Sunday, 2 August 2015

दोस्तों की ऐतिहासिक जोड़ियां

लैला-मजनूँ , सोहणी-महिवाल, जोधा-अकबर, रोमियो-जूलिएट, राधा-कृष्ण और ऐसी ही बहुत सारी युगल जोड़ियों के नाम सुन सुन के बड़े हुए है हम। हमारे समाज में फिक्शनल लव-स्टोरीज को जितनी मान्यता प्राप्त है उतनी मान्यता रियल लव स्टोरीज को हरगिज़ नहीं मिली। फिर भी कुछ अभागे कोशिश करते है, कुछ सफल प्रेमी कहलाते है कुछ "समाज के सम्मान" की खातिर या तो खुद बलि चढ़ जाते  है या अपने प्रेम की बलि चढ़ा देते है।

जो भी हो, लेकिन आज भी लोग मानते है की प्यार की पहली सीढ़ी  दोस्ती है। प्यार किसी भी प्रकार का हो उसको सफल बनाने के लिए पहले दोस्ती आवश्यक है। कई बार दोस्ती के पैकेट में लपेटकर ही प्यार जताया जाता है और कईं बार सामने वाला वो पैकेट खोल ही नहीं पाता और बात दोस्ती से आगे बढ़ ही नहीं पाती।
खैर,  जब एक युगल जोड़े के बीच पनपे प्यार को फिल्मो में या साहित्य में दर्शाया जाता है तो उसे रोमांस कहते है, वहीं अगर दोस्ती दो  लडको में हो और प्रगाढ़ता से दर्शाया हो तो उसे ब्रोमान्स कहते है।

रोमांटिक जोड़ियों के बारे में तो आपने बहुत पढ़ा, सुना और देखा होगा। आज "फ्रेंडशिप डे(Friendship Day)" स्पेशल में आपको कुछ जानी मानी ऐतिहासिक "ब्रोमांटिक" जोड़ियों के बारे बताते है। और हाँ, ये जोड़ियां जय-वीरू की तरह फिक्शनल नहीं बल्कि सजीव जोड़ियां है।

दोस्ती एक ऐसा रिश्ता माना जाता है जो सबसे अलग हटकर होता है। आपका दोस्त आपका हमराज़ होता है जिसे आप हर छोटी से बड़ी बात, समस्या, उलझन, कठिनाई या ख़ुशी साझा करते है।
तो आईये आज ऐसी ही कुछ ख़ास दोस्तों की जोड़ियों की हम बात करते है।

हमारी लिस्ट की पहली जोड़ी है  
१. कृष्ण-सुदामा की जोड़ी:


यह दोस्ती उदाहरण है इस बात का की दोस्ती में कोई अमीर गरीब नहीं होता, कोई ऊँचा-निचा नहीं होता। सब दोस्त समान होते है। एक जैसे व्यवहार के अधिकारी होते है। कहा जाता है की कृष्ण के राजा बनने के बाद जब सुदामा पहली बार उनसे मिलने द्वारका पहुंचे तो कृष्ण अपनी सभा छोड़कर नंगे पैरो दौड़ते हुए उनको "रिसीव" करने पहुंचे। सुदामा अपने दोस्त कृष्ण के लिए कुछ अनाज लेकर आये थे (As a courtesy gift) किन्तु कृष्ण के राज्य की भव्यता देखकर उन्होंने वो अनाज की पोटली छुपा ली। कृष्ण की नजर जैसे ही उस पोटली पर पड़ी उन्होंने तपाक से उसे सुदामा से छीनते हुए कहा, "क्या छुपाते हो, मेरे लिए भाभी माँ ने कुछ भेजा है, मुझे दो" और पोटली में से अनाज की फाँकियां भर के खाने लगे।
इनकी दोस्ती पर एक अलग पोस्ट लिखी जा सकती है , इतनी प्रगाढ़ दोस्ती थी कृष्ण सुदामा की।

२.  अकबर-बीरबल 

अगर कोई कहे जोधा तो तुरंत अगला नाम आता है अकबर ठीक वैसे ही अगर कोई कहे अकबर तो अगला नाम सीधा आता है बीरबल का। इस जोड़ी पर तो आपको बहुत कुछ देखने सुनने को मिल जायेगा। यही वजह है की जोधा-अकबर के भी पहले से हम अकबर-बीरबल ही सुनते आये है। किन्तु यह जोड़ी कतई फिक्शनल नहीं है। बीरबल, अकबर के नौ रत्नो में से एक थे और अकबर के करीबी होने के कारण उनके सुख दुःख के साथी भी थे। कहने को तो दोनों का रिश्ता प्रोफेशनल था, किन्तु वाकई में दोनो गहरे मित्र भी थे।
बीरबल का असली नाम महेश दास भट्ट था और  महेशदास के  एक संगीतकार, कवि और अच्छे वक्ता होने के कारण अलग अलग राज्यों के दरबार से उनको "ऑफर्स" थे। ऐसे ही स्विच करते करते महेशदास ने अकबर के नौरत्न मंडल को ज्वाइन किया। एक बार एक युद्ध में अपनी युद्धकला से अकबर को जीत दिलाई बस उसके बाद अकबर ने महेशदास को नाम दिया वीरवर जो आगे चलकर बीरबल बन गया।

३. सचिन - कांबली 

आधुनिक काल की महान दोस्तियों की चर्चा हो और इस दोस्ती का नाम न ले ऐसा कैसे हो सकता है। क्रिकेट जगत के आसमान में जगमगाने से पहले सचिन और कांबली लंगोटिया यार हुआ करते थे। साथ में प्रैक्टिस, साथ में स्कूल, साथ में आना जाना और खाना पीना। इन दोनो की दोस्ती प्रगाढ़ तो थी ही किन्तु इनकी प्रोफेशनल जोड़ी भी कमाल की थी। "हेर्रिस शील्ड" ट्रॉफी के दौरान इन दोनों के बनाये गए ६६४ रनों के पहाड़ को आज भी हिमालय की दृष्टि से देखा जाता है। दोनों में वैसे तो कोई दूरी नहीं थी किन्तु प्रोफेशनली दोनों ने अलग अलग रास्ते चुने और थोड़ी दूरियां बढ़ गयी। फिर भी हमारी महान दोस्तों की  जोड़ी की लिस्ट में इनका नाम आने से कोई नहीं रोक सकता।

बात खेल और खिलाड़ी की हो रही हो तो एक और खेल है जहाँ दोस्ती की जोड़ी भी बनती है और दुश्मनी की भी। हम बात कर रहे है टेनिस की। हमारी लिस्ट में अगले महान दोस्त है  . ....... 

४. रोजर फेडरर और स्टेन वावरिंका 

यह दोनों न केवल अच्छे खिलाड़ी है बलकि बहुत ही अच्छे दोस्त भी है। इन दोनो का देश ही समान नहीं है बल्कि इनका कोच और फिटनेस ट्रेनर भी एक ही है। दोनों एक दूसरे का तहे-दिल से सम्मान करते है।
हो सकता है की टेनिस की दुनिया में और भी महान दोस्ती के किस्से रहे हो पर हमारी लिस्ट में स्थान इन दोनों ने पाया है।

अंत में फिर से एक बार ले चलते है आपको इतिहास की ओर और मिलवाते है अगली जोड़ी से जो भी दोस्ती की एक मिसाल है किन्तु सम्मान को प्राप्त न कर सकी।

५. कर्ण और दुर्योधन 

कहते है दोस्ती एक ऐसा रिश्ता है जो पूर्णतः स्वार्थ रहित होता है या होना चाहिए। किन्तु यह दोस्ती अपने -अपने स्वार्थ को सिद्ध करने के लिए स्थापित हुयी थी और यही कारण है की इस दोस्ती को उस सम्मान की दृष्टि से नहीं देखा जाता जिस सम्मान का इसे अधिकार है। और यह दोस्ती इस बात की भी मिसाल है की दोस्त को गलत राह पर चलने से न रोक पाना और उसकी हर गलती में साथ देना कितना भारी पड़ता है। कर्ण जो की एक महान योद्धा, एक संवेदनशील इंसान था।  जिसके दिल में गरीबो के लिए प्रेम और दया का भाव था जो की खुद सूर्य पुत्र था किन्तु एक दुर्योधन की दोस्ती ने उसे इतिहास में एक नायक की जगह खलनायक का स्थान दिलवा दिया।
जो भी कह लो किन्तु दोनों ने मित्रता अंत समय तक  निभाई।

तो यह थी ५ मेरी सबसे पसंदीदा दोस्तों को जोड़ी किन्तु इनके अलावा कुछ और नामो का उल्लेख करना चाहूंगा जैसे लेरी पेज-सरजी ब्रिन(गूगल वाले भाई लोग), अमिताभ-अमरसिंग( बिलकुल सचिन कांबली टाइप जोड़ी), सलमान-आमिर(बॉलीवुड स्टाइल जोड़ी), सचिन-गांगुली, और दिग्गी-राहुल गांधी।
 

तो बताईये आपको कौनसी जोड़ी सबसे ज्यादा अच्छी लगी या कोई और भी जोड़ी हो जो आपकी आदर्श हो और इस लिस्ट में न हो तो कमेंट करके बताईये।



बार बार कहने की जरुरत तो नहीं पर फिर भी कहना चाहिए की सारे चित्र गूगल इमेज सर्च के सौजन्य से




Sunday, 26 July 2015

बंधन



डिस्क्लेमर/घोषणा/सावधान:
यह पोस्ट थोड़ी गंभीर हो सकती है, हो सकता है की इसमें हास्य का तड़का फीका रहे, यह भी हो सकता है की अंत तक थोड़ी भारी भारी सी लगने लगे; किन्तु विश्वास कीजिये इसे पूरा पढ़ने के बाद आप निस्संदेह प्रसन्नचित्त होंगे।

जैसा की शीर्षक से समझ आता है की यह लेख किसी प्रकार के बंधन या सम्बन्ध पर आधारित है। जी हाँ सबसे महत्त्वपूर्ण सम्बन्ध या नाता जिसे मानवता का नाता कहते है उसी पर आधारित है यह लेख। इस संसार में हर एक मनुष्य दूसरे मनुष्य से किसी न किसी तरह जुड़ा हुआ है। भले ही आपस में कोई स्पष्ट सम्बन्ध दिखाई न दे किन्तु हमारा जीवन हर पल किसी न किसी के जीवन को प्रभावित करता है। अगर सिंपल भाषा में बात करू तो हम सब एक दूसरे से किसी न किसी तरह कनेक्टेड है। सुनने में थोड़ा अजीब लगे किन्तु हम इस तरह से जुड़े हुए है की किसी एक इंसान का दर्द हमे तकलीफ दे सकता है और किसी दूसरे कोने में दूसरे इंसान की एक मुस्कान हम सभी को ख़ुशी दे सकती है। और इस बात से आप इंकार नहीं कर सकते की किसी अनजाने इंसान की तकलीफ देखकर आपको जरा भी रंज नहीं होता या किसी मासूम बच्चे की हंसी देखकर आपको जरा भी ख़ुशी का अहसास नहीं होता। निस्संदेह होता ही होगा।

कहने का तात्पर्य यह है की जिस प्रकार किसी और का दुःख हमें दुखी कर सकता है, किसी और की ख़ुशी हमें खुश कर सकती है उसी प्रकार हमारा दुःख भी किसी और को दुखी करने के लिए पर्याप्त है। हम बचपन से ही सुनते-पढ़ते आ रहे है की जैसा बोओगे वैसा काटोगे, जैसी करनी वैसी भरणी या अंग्रेजी में Whatever goes around, comes around. यह चीज हमारे वचन और कर्म पर लागू होती है। हमारे द्वारा बोला गया कटु वचन जो भले ही हमने किसी अपने को बोला हो वो किसी और के जीवन को प्रभावित कर सकता है। इस चीज को समझने के लिए एक उदाहरण लेते है रामायण का, मुझे नहीं पता की आप में से कितनो को यह कहानी पता होगी। किन्तु इस बात को समझने के लिए बही इससे सटीक उदाहरण नहीं मिला।
आप जानते है अपनी पत्नी सीता को राम जी ने रावण के चंगुल से छुड़ाने के उपरांत पुनः परित्याग करते हुए जंगल में छोड़ दिया था। क्यों किया था ऐसा, जानते है आप ? दर-असल राम के राज्य में एक दिन एक शराबी धोबी नशे में धुत्त होकर अपनी पत्नी को सरे-राह पिट रहा था और भला बुरा कह रहा था। नशे में उसने कुछ ऐसे वचन कहे जिन्होंने इतिहास रच दिया। गुस्से और नशे के वश में उस धोबी ने अपनी पत्नी को गालियां देते हुए कहा :
"कुलटा है तू, निकल जा मेरे घर से, मैं राम के जैसा महान नहीं हूँ जो किसी और के पास रहकर आयी अपनी पत्नी को अपना ले। मैं तुझे त्यागता हूँ, मैं अधर्म नहीं कर सकता। एक दूषित नारी को अपने घर में जगह नहीं दे सकता। "

यह वचन इतने प्रभावी सिद्ध हुए की भगवान राम के दरबार तक जब यह बात पहुंची तो उनके पंडित पुरोहितो ने तुरंत उन्हें राजधर्म निभाने की सलाह देते हुए सीता का त्याग करने का आदेश दे दिया। और राम ने राजधर्म को परिवार से बड़ा मानते हुए सीता का त्याग कर दिया।

चित्र गूगल इमेज सर्च से
 
देखा आपने, एक शराबी ने नशे और गुस्से में आकर जो शब्द अपनी पत्नी को कहे वो शब्द सीता के जीवन पर भारी पड़े। कहने को तो एक मामूली सा  धोबी ही था वो जिसका राज-परिवार से कोई रिश्ता नहीं था परन्तु फिर भी वो सीता के जीवन में होने वाले उथल पुथल का कारण बना। इसी प्रकार से हमारे भी वचन अनजाने में पता नहीं किसके जीवन को नुकसान पंहुचा सकते है।इसलिए जो भी बोले सोच समझ कर बोले, कई बार कटु वचन हमारे मन में कुलबुलाते रहते है। ऐसे समय में चुप रहना ही न्यायसंगत होता है।

यह तो  हुयी हमारे द्वारा इस्तेमाल किये जाने वाले शब्दों की बात, इसी प्रकार से हमारे किये हुए कर्मो का असर सिर्फ हमारे जीवन पर ही नहीं होता अपितु समस्त संसार में किसी भी प्राणी के जीवन पर हो सकता है। इसको समझने के लिए हम समकालीन उदहारण लेते है।
मान लीजिये की आज आपने अपने ऑफिस में इतना अच्छा काम किया की शाम को देर तक बैठने की जरुरत नहीं पड़ी। आपका बॉस भी बड़ी ख़ुशी के साथ आज जल्दी घर निकल गया। जल्दी पंहुचा तो बॉस की बीवी बड़ी खुश हुयी और वो दोनों बड़े दिनों बाद बाहर डिनर पर जा सके। पत्नी इतनी खुश थी की बॉस को इस वीकेंड अपने दोस्तों के साथ पार्टी करने की इजाज़त देदी। वेटर को भी आज ज्यादा टिप मिली। आते आते पड़ौसी के बच्चे के लिए आइसक्रीम खरीद के ले आये तो वो बच्चा भी खुश हो गया। बच्चे को खुश देखकर उसके माँ बाप भी बड़े आनंदित हुए। (आपके जल्दी घर पँहुचने पर जो खुशियाँ आपको मिली होगी उसका हिसाब तो यहाँ हम रख ही नहीं रहे है। )


तो देखा आपने, आपके द्वारा ऑफिस में किया हुआ अच्छा काम कितने लोगो को अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित कर गया। इसी प्रकार से अगर हम वही काम बिगाड़ देते, जिसको सुधारने के लिए देर रात तक आपको और बॉस को ऑफिस में ही बैठना पड़ता तो यह चैन ऑफ़ इवेंट्स बिलकुल उलटे होते।

शायद विज्ञान की भाषा में इसे रिप्पल इफ़ेक्ट की उपाधि दी गयी है किन्तु यह बचपन से सुनते आ रहे उस जुमले का ही विज्ञानी नाम है जिसे हम कहते है Whatever goes around, comes around. या जैसा करोगे वैसा भरोगे।

कल्पना कीजिये की अगर पूरी दुनिया में लोग अपने वचनो और कर्मो से किसी को दुःखी न करे,तो हो सकता है की एक दिन समस्त संसार से दुःखो का नाश हो जाये। हमारे अच्छे वचन और अच्छे कर्म हमे ही नहीं अपितु पुरे संसार को सुख देने की क्षमता रखते है।

अगर हम इस समाज के भले के लिए ज्यादा कुछ नहीं कर सकते तो कम से कम इतना तो कर ही सकते है की निश्चय करले की कटु शब्दों और घृणा से भरे वचनो का प्रयोग करने से बचेंगे और प्रयत्न करेंगे की कभी हमारे शब्द या कर्मो से किसी को कष्ट न पहुंचे।

ध्यान रखने वाली बात यह भी है की यह कर्म और वचन ऑनलाइन क्रीड़ाओं पर ज्यादा लागू होता है , क्योंकि आजकल प्रत्यक्ष जीवन में तो इतना हम किसी से मिलते जुलते नहीं जितनी बाते सोशल मिडिया पर करते है।
कोशिश करे की किसी घृणा से भरी पोस्ट को आगे बढ़ने से रोके और खुद तो ऐसे पोस्ट कदापि न डाले।

अगर अच्छी लगे तो इस पोस्ट को आप जरूर आगे बढ़ा सकते है शेयर का बटन दबा के।


नोट : ऊपर कही गयी बातों को अंग्रेजी में विज्ञान के लहजे में समझने के लिए Google सर्च करे "Ripple Effect" और "Butterfly effect".









Tuesday, 14 July 2015

ऑनलाइन शॉपिंग के नुकसान


भारत में ऑनलाइन शॉपिंग का ट्रेंड बड़े जोरो शोरो से चल रहा है। सर की टोपी से लेकर पैरो की जुराबों तक, छोटे से फ़ोन से लेकर बड़े से मकान तक सब कुछ ऑनलाइन बिक रहा है। हमारी युवा पीढ़ी तो सबकुछ ऑनलाइन ही कर रही है।

वैसे तो मैं भी इसी पीढ़ी का हिस्सा हूँ परन्तु मेरी पढ़ाई लिखाई इस ऑनलाइन क्रांति से थोड़ा पहले ही खत्म हो गयी थी, इसलिए मैं अपनी स्कूल/कॉलेज के जीवन में इस क्रांति से अछूता रह गया।अभी तो जितना हो सके मैं भी  शॉपिंग ऑनलाइन ही करता हूँ फिर चाहे कच्छा खरीदना हो या जूते या फ़ोन।

अभी अभी हमारे प्रधानमंत्री जी ने भी डिजिटल इंडिया के नाम से आंदोलन छेड़ा है तो आने वाले समय में ऑनलाइन काम-काज बढ़ेगा। लोग तो यहाँ तक कहते सुनते नजर आते है की अब बाज़ार बंद होने को है, दुकानो पर ताला लगने वाला है क्योंकि सब कुछ तो मोबाइल से ही खरीदा जा सकता है।
किन्तु मेरा कहना है की हम भारतीय लोग कभी इन बाज़ारो को बंद नहीं होने देंगे, चाहे कितना ही ऑनलाइन क्रांति ले आओ हमें मार्केट में जाके मोल-भाव करके सामान खरीदने से कोई नहीं रोक सकता।

मैं अपने दिल की बात बताऊ तो ऑनलाइन शॉपिंग में वो मजा नहीं है जो मजा किसी सामान को बाज़ार से खरीद के लाने में है।

किसी उत्सव की शॉपिंग हो या शॉपिंग का उत्सव, भारत की एक प्रजाति जिसे लोग मिडल क्लास कहते है सबसे आगे रहती है। हाई क्लास वाले तो भारत में शॉपिंग करते ही कहाँ है। और जब हम शॉपिंग को उत्सव की तरह मनाते है तो बाकायदा इसके लिए दिन महीना वार चौघड़िया निश्चित करके घर से निकलते है। अब अगर कोई कहे की इस उत्सव को घर बैठे मनाओ वो भी कंप्यूटर/मोबाइल के सामने बैठे बैठे तो इसमें क्या मजा है भाई ?

आईये मुद्दे की बात करते है और आपको समझाते है की बाज़ार में जाकर शॉपिंग करने के कितने फायदे है।

१. फैमिली आउटिंग:
हमारे यहाँ कईं लोगो के लिए  शॉपिंग एक फैमिली आउटिंग की तरह होती है। यहाँ शॉपिंग से मेरा मतलब मासिक राशन की शॉपिंग से भी हो सकता है जो की बिग-बाजार, रिलायंस मार्ट या डी-मार्ट से जाके की जाती है। अपने २ साल के बच्चे को शॉपिंग कार्ट में बिठा दो और कार्ट का हैंडल अपने बड़े बच्चे को पकड़ा दो।
पुरे फ्लोर पे २-३ घंटे घूम के गृहस्थी का सारा सामान लेने के बाद बच्चो को कॅश काउंटर पर पड़ी चॉकलेट दिलवा दो। शॉपिंग की शॉपिंग , आउटिंग की आउटिंग।

२. मैच मेकिंग/नैन मटक्का
बाहर जाके खरीददारी करने का दूसरा फायदा यह है की जितने भी सिंगल भाई बंधू या देवियाँ है उनको एक मौका मिल जाता है चेक आउट करने का। कहते है की नज़रे मिली और इश्क़ हो गया , किन्तु नज़रे मिलने के लिए आपको घर से बाहर निकलना होगा और उसके लिए कोई अच्छा सा काम का बहाना चाहिए।आपने फिल्मो में देखा ही होगा कितने लोगो की कहानी दुकानो पर या बाज़ार की गलियों में नैन मटक्को से ही शुरू होती है।
मैं तो कहता हूँ की कुछ फिल्मे ऐसी बननी चाहिए जिनके नाम हो, "दो दिल मिले दूकान में ", "बिल देते देते दे दिया दिल", etc etc ...



३.  "We" time for couples:
जी हाँ आज कल के कपल्स के लिए "वी टाइम" याने के दोनों को अकेले में साथ बिताने (बतियाने)का समय निकालने बहुत ही मुश्किल है। पूरा दिन तो काम काज में निकल जाता है, शाम को खा पी के टीवी देख के सो जाने में और अगले दिन से फिर वही। वीकेंड में फ्री टाइम मिलता है तो दोनों अपना अपना कोई पर्सनल काम निपटा लेते है और बाकी बचा टाइम मोबाइल या  लैपटॉप की भेंट चढ़ जाता है। ऐसे में अगर शॉपिंग भी लैपटॉप/मोबाइल से ही कर लोगे तो आपस में जान पहचान कब करोगे ?
इसके लिए जाईये कम से कम राशन तो बाहर से खरीद के लाईये, आपस में बातें करने का मौका मिलेगा, किसे क्या पसंद है जानने का मौका मिलेगा और इसी बहाने सो कॉल्ड टीम वर्क भी हो जायेगा।


४. Men will be men actions:
अब इसके लिए क्या लिखू ? आप खुद ही समझदार है। ज्यादा जानने के लिए वीडियो देखे। किन्तु फेमिनिस्ट लोगो को चेता दू की यहाँ बात का बतंगड़ न बनाये ।


तो समझे आप , भारत में दुकाने और बाज़ार इतनी आसानी से बंद नहीं होने वाले।




नोट: चित्र गूगल सर्च के सौजन्य से







Sunday, 21 June 2015

पिता

 पिता


 

हमारी पहचान के जनक है वो। 
हमारे अस्तित्व के घटक है वो।

स्वयं के कंठ को सुखा रखके,
हमारी हर तृष्णा को शांत किया

स्वयं भूख की ज्वाला में धधक कर ,
हमें भूख की परिभाषा से भी वंचित किया। 

हमारी असीमित इच्छाओ की पूर्ति के लिए ,
स्वयं की हर इच्छा को रौंदा है जिन्होंने 
ऐसे त्यागी उपासक है वो। 

हमारा जीवन परिणाम के जिनकी कठिन साधना का 
ऐसे  योगी, साधक हमारे पिता है वो। 

संसार के सारे पिताओ को प्रणाम !!

Piclog-4

Though I am not a pro, however now a days who has a phone camera is a photographer :)

After my previous piclogs, here I am with Piclog-4


I know each and everything around us inspire us to do something better in our life. If you observe closely around yourself, you will find that everything has a philosophical point of view.

I am inspired very much from a train. Our life is smiler to a train where after each certain period it halts for a station. Some people leave it and some get on-boarded. It never mind for those who leave it, nor it rejects anybody who try to on-board it.

A train-a life (Picture taken at Matheran-Toy train)



A train may be like our life, but this runs on rail tracks. Again our life evolves on rail tracks, 2 paralleled iron bars, people call them parents. These 2 parallel bars are together always just to give a direction to our life. Irrespective of weather, climate and our speed to reach destination, these bars always support us/train.

Backbone of a train, like our parents are backbone of our life



Note: Pictures taken by my phone camera.

Thursday, 4 June 2015

सफ़र(Suffer)

भारत के महाराष्ट्र राज्य में एक ख़ूबसूरत शहर है पुणे। इस शहर की बढ़ती हुयी आबादी और तरक्की में एक बहुत बड़ा हिस्सा आईटी प्रोफेशनल्स का है। जिस तेज़ी से शहर की सीमायें बढ़ रही है उस तेज़ी से सुविधाएँ नहीं बढ़ पा रही। पब्लिक ट्रांसपोर्ट के नाम पे गिनी चुनी बस और डूक्कड़गाड़ियां चलती है यहाँ जिनसे गुजारा होना बड़ा ही मुश्किल काम है साब। इसलिए हर आदमी की खुद की गाडी (२/३/४ व्हीलर) होना आवश्यक है।
जितनी शहर की आबादी उससे कहीं ज्यादा यहाँ की सडको पे ट्रैफिक रहता है। और क्या कहा आपने , ट्रैफिक सेन्स , जी वो क्या होता है यह किसी ने नहीं बताया हमें आज तक ?


पुणे शहर में प्रमुख कंपनियों के आईटी ऑफिस या तो पूर्व में हडपसर -खराड़ी - विमाननगर में है या पश्चिम में हिंजवडी में (जी यह जगहों के नाम है ना की द्वापर युग के राक्षसो के ). अभी ऐसे में कोई बेचारा जो की पूर्व के किसी क्षेत्र में रहता है और उसका तबादला पश्चिम वाले ऑफिस या स्पष्ट कहें हिंजवडी वाले ऑफिस में हो जाता है तो उस पर क्या बीतती होगी यह उसके सिवा वो ही बता सकता है जो हिंजवडी में रहता है और उसका ऑफिस हडपसर में हो जाता है।

हिंजवडी रोड


ऐसे में रोज रोज ऑफिस जाना रामगोपाल वर्मा की आग झेलने से कहीं ज्यादा दुष्कर है । रोज सड़ा हुआ, थकेला ट्रैफिक झेल के ऑफिस जाओ, लेट होने पर बॉस का सड़ा हुआ  चेहरा देखो फिर वापसी में उससे भी ज्यादा सड़ा हुआ ट्रैफिक झेल कर, जान पर खेलकर घर पहुँचो तो शकल  देखकर बीवी कहती है " जाओ भइया कल आना, अभी ये घर पे नहीं है " ।

ऐसे में साला आदमी को सपने भी अच्छे आये तो कैसे आये ?

यहाँ बात दुरी की नहीं है , रोजी रोटी के लिए एक साइड का ४०-५० किलोमीटर तो कोई भी तय कर ले किन्तु पुणे की सडको पर हडपसर से हिंजवडी या हिंजवडी से खराड़ी रोज रोज आना जाना मतलब अपने पिछले जनम के पापो की सजा भुगतने जैसा है। अब तो शायद नरक वालो ने भी अपनी सजा के मेनू में बदलाव  करके दुष्ट आत्माओ को पुणे की सडको पर छोड़ दिया होगा की भुगतो अपने कर्मो को यहाँ , यही तुम्हारी वैतरणी है जो  तुम्हे पार लगाएगी ।

हर रोज सुबह मगरपट्टा(एक और जगह का नाम, नाकि की दानव का ) से एक आईटी प्रोफेशनल सजधज के ऋतिक रोशन बनके अपनी बाइक पर हिंजवडी के लिए निकलता है और ऑफिस पहुँचते पहुँचते कब राखी सांवत बन जाता है पता ही नहीं चलता। और अगर ऑफिस की बस में आना जाना करे तो आदमी का आधा जीवन बस में ही गुजर जाये।

सिर्फ पुणे वालो का दर्द नहीं है यह, आप बैंगलोर में रोज़ाना कम से कम दो बार मारथल्ली फ्लाईओवर क्रॉस करने वालो से पूछिये की कैसा लगता है 1 घंटा घसीट घसीट के चलना ? "it's like a slow death" .

 हमने एक्सपेरिमेंट करने के लिए 2 लोगो को मगरपट्टा से हिंजवडी बाइक पर भेजा, 2 लोगो को BTM Layout से व्हाईट फिल्ड भेजा और at the same time 2 लोगो को 4 रेपट धर के दिए, कसम से रेपट खाने वाले लोग ज्यादा खुश दिखे ।

 हमारे इसी दर्द को देखते हुए इंसानियत के नाते ओला कैब्स और टैक्सी 4 श्योर ने वादा किया है की जल्द ही वो इन सारे बताये हुए रूट्स पर लो कॉस्ट एयर टैक्सी चलाएंगे। इसके लिए हिंजवडी और ITPL में हेलिपैड बनवाने के ऑर्डर्स दे दिए गए है ।

(अब दुआ करो की ये सपना सच हो और जल्दी हो , ताकि यह सफ़र थोड़ा सुहाना हो सके )








सभी चित्र गूगल महाराज के सौजन्य से



Monday, 20 April 2015

बिरियानी

मुझे पता है की कईयों की तो लार टपक पड़ी होगी इस लेख का शीर्षक पढ़ के। हिंदुस्तान में रहो और बिरियानी से प्यार न करो ऐसा कैसे हो सकता है। लखनऊ से लेकर हैदराबाद तक, कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक बिरियानी की महक आपको अपनी और खींच लाएगी।

बिरियानी के चर्चे गली मोहल्ले तो छोड़िये आजकल फिल्मो में भी बहुत होने लगे है। वैसे तो बिरियानी मूल रूप से कभी शाकाहारी व्यंजन रहा ही नहीं किन्तु आजकल वेज-बिरियानी भी उतनी ही शिद्दत से बनायी और खायी जाती है जितना की कभी राजा महाराजा मटन बिरियानी खाया करते थे।
दूसरे व्यंजन तो आपको देखने पर ललचायेंगे किन्तु बिरियानी के प्रति आपका प्यार ऐसा है की बिना देखे दूर से ही अगर कही से महक आ जाये तो आपके पेट में हँसी और मुँह में पानी आ जायेगा। वैसे दम बिरियानी का दम निकाल दो तो वो बन जाता है पुलाओ, बिरियानी का ही भाई है। यह भी कहीं कम नहीं पड़ता सैकड़ो प्रकार से बनाया जाता है। पीस पुलाओ, कश्मीरी पुलाओ, बंगाली पुलाओ तो कहीं शाही पुलाओ के नाम से यह भी अपना रंग जमा ही लेता है।

अपने देश का कोई भी प्रदेश हो और किसी भी धर्म, जाती का समारोह हो बिरियानी और पुलाओ हमारी दावतों का अभिन्न अंग है। में खुद ४ साल हैदराबाद में रहा हूँ तो बिरियानी से तो अपना घर जैसा सम्बन्ध हो गया है। यह बात और है की शुद्ध शाकाहारी होने के नाते मेरी प्लेट में आने का सौभाग्य अब तक सिर्फ वेज बिरियानी को ही मिला है। किन्तु कसम संजीव कपूर और मास्टर शेफ की, शाकाहारी बिरियानी में भी जो मजा है न वो शायद हड्डियों वाली में न हो। खैर छोड़िये, बात बिरियानी की हो रही थी, तो उसी पर रहते है , इंसानो की तरह उसका क्लासिफिकेशन नहीं करना चाहिए।

बिरयानी एक ऐसी चीज है जो खुद अपने दम पर जितनी प्रसिद्द हुयी है उससे ज्यादा तो अजमल कसाब ने उसको नाम दिलाया है। दुनियाभर में कसाब की बिरियानी के चर्चे हुए और अगर यह सच है उसे जेल में बिरियानी मिलती थी तो सोचिये की कितनी ताकत है इस बिरियानी में।  एक आतंकवादी के सारे जुर्म कबूल करवा लाई।

आप ऐसा मत सोचियेगा की मैं भूखा नंगा बैठा हूँ और सुबह से खाने को कुछ मिला नहीं इसीलिए फालतू की चीजे लिखे जा रहा हूँ।  दर-असल आज बीवी ने वेजिटेबल दम बिरियानी बनाई थी और जब मैं खाने बैठा तो मसालों की महक से ही आह हा हा , लार टपक सी गयी। फिर जैसे ही पहला निवाला खाया तो पेट को उस अद्भुत आनंद की प्राप्ति हुयी जिसके लिए साधु संत तपस्या करते फिरते है।
किन्तु फिर मेरे दिमाग में आया की बेचारे चावल, सब्जियां और मसाले कितने कष्ट सहते है हमारी तृष्णा शांत करने के लिए। खौलते पानी में इन्हे उबाला जाता है और गरम तेल में तड़का लगाया जाता है उसके बाद परत दर परत एक के ऊपर एक इन्हे बिछा के दम घुटने तक पकाया जाता है। तब जाके तैयार होती है लजीज बिरियानी।

कितनी तपस्या, त्याग और कष्ट झेलती है यह बिरियानी, ऐसा सोचते सोचते मैं जैसे ही दूसरा निवाला उठाने लगा तो एक चावल छिटक के बोला।

"खाले हपशी खाले इतना मत सोच, हम तो बने ही इस लिए है, की हमें पका के तुम खाओ। "

 तभी गोभी का टुकड़ा भी मचल के बोला,

"हाँ हाँ हम इतना सब कुछ तुम्हारे लिए ही तो सहते है। कहाँ कहाँ से हमें लाया जाता है , काटा जाता है पकाया जाता है सिर्फ इसलिए की तुम्हारा पेट भर सके और तुम खुश रहो।"

 फिर दूसरा चावल बोला ,

"तुम इंसान तो एक साथ  एक देश, एक शहर और एक मोहल्ले तो क्या एक घर में शांति से नहीं रह सकते। हमेशा लड़ते झगड़ते हो, कभी जाती के नाम पर तो कभी धरम के नाम पर। कभी अमीरी के नाम पर तो कभी गरीबी के नाम पर। तुम लोग खुद के सिवा दुसरो का भला क्या ही सोचोगे। हमें देखो देश के अलग अलग कोने  से आये और अलग अलग जाती धरम के लोगो द्वारा हमें लाया गया है।हम चावल एक गरीब हिन्दू किसान के खेत से आये है, यह आलू एक दलित के हाथो उखाड़े गए थे और यह जो केसर डाला है न बिरियानी में वो एक मुस्लिम ने उगाया था फिर भी हम एक साथ मिलकर इतनी लजीज बिरियानी बन गए।  हम सब मिलकर, एक साथ एक बर्तन में एक ही आंच पर पक कर तुम जैसे कितने ही इंसानो का पेट और मन भरते है । हमें हर मजहब, जाती और वर्ग का इंसान उतने ही प्यार से खाता है जितने प्यार से हमे उगाया और पकाया गया। "

फिर पूरी की पूरी बिरियानी एक सूर में बोल पड़ी

"तुम इंसानो को भी ईश्वर ने बड़े प्यार से बना के भेजा है एक दूसरे का प्यार पाने के लिए, एक दूसरे की हिम्मत और सहारा बनने के लिए। किन्तु तुम लोग............. छोड़ भाई तू रहने दे यह सब, मत सोच इतना, खाले तू आराम से।"







देश भक्ति

  देश भक्ति , यह वो हार्मोन है जो हम भारतियों की रगो में आम तौर पर स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस  या भारत पाकिस्तान के मैच वाले दिन ख...