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Sunday, 2 April 2017

रोमियो ही क्यों

अभी जोर शोर से जो नाम सुनाई दे रहे है वो है एक तो राम और दूसरा रोमियो। एक ही राशि के दो नामो के प्रति अलग अलग भावनाएं है और हमारे देश में आप किसी की भी जान से खिलवाड़ कर सकते हो परंतु ख़बरदार जो किसी की भावनाओ से खिलवाड़ किया तो।

चलिए ज्यादा सेंटी नहीं होते है और मुद्दे पर आते है की आखिर यार एंटी-रोमियो अभियान एकदम से कैसे चल पड़ा और इसका मास्टर माइंड कौन है ? इस अभियान के मोटिव को तो आप सब जानते ही होंगे, किंतु इसके नामकरण के पिछे हाथ है सुब्रमंड्यम स्वामी का जी सही सुना आपने। दर-असल रोम है इटली में और स्वामी जी को इटली वालो से है नफ़रत। बस इतनी सी बात है की स्वामी जी एंटी रोमियो हो गए और योगी जी को नाम सुझा  दिया।




लेकिन रोमियो से नफ़रत करने वाले स्वामी जी को राम जी से बड़ा प्यार है किन्तु इन्ही राम जी का एक बहुत ही प्रसिद्द भजन है जिससे स्वामी जी को बेहद चिढ है और वो भजन है -
                                                               मेरे रोम रोम में बसने वाले राम.  . .
इसीलिए वो कहते है की राम सिर्फ अयोध्या में बसेंगे रोम में नहीं।


चलिए फिर हम भावनाओ में भटक गए बात करते है मुद्दे की, आखिर एंटी रोमियो या एंटी मजनू ही क्यों ? क्यों कोई सरकार एंटी जूलिएट अभियान नहीं चलाती है उस जूलिएट के लिए जो कॉलेज में अपनी अदा दिखा कर दोस्त बना कर लड़को से कैंटीन का बिल भरवाती है, क्यों उस जुलिएट को कोई कुछ नहीं कहता जिसके लिए बेचारा रोमियो अपनी पढ़ाई छोड़कर उसका सारा असाइनमेंट पूरा करे, उसके लिए डेली हर क्लास अटेंड करे और अंत में सिर्फ एक अच्छा दोस्त (धीरे से इसको चु**या पढ़े )बन के रह जाये।


क्यों कोई अभियान नहीं चलता उस जूलिएट के लिए जो दफ्तरों में हलकी से बातचीत और ठिठोली करके अपना सारा कोड बेचारे रोमियों से लिखवा कर अप्रैज़ल सुधार लेती है  और रोमियो एक बार फिर अप्रैज़ल में C Grade लेकर एक बड़ा C बन जाता है। एक अभियान उस जूलिएट के लिए भी चले जो लिफ्ट खराब होने पर अपना १० किलो का राशन का झोला यह कह के शर्मा जी को पकड़ा देती है की अरे शर्मा जी आप तो बड़े फिट है , क्या मेरा बैग पांचवें माले तक ले चलेंगे ? और शर्मा जी छाती फुलाकर जब पाचंवे माले पर झोला देते है तो यही मैडम थैंक यू भैया कहके छाती पंक्चर कर देती है।

अगर आप हमारी बातो से सहमत है तो इस सन्देश को फैला दो ताकि यह सरकार तक पहुँच  जाये। और हाँ चलते चलते एक और बात कहनी थी कि सुना है अवैध कतलखाने भी बंद हो गए है , फिर भी हुस्न बालाएं अपनी  एक मुस्कान से कितने कितने दिलो का क़त्ल किये जा रही है , जरा इस और भी ध्यान दिया जाये।

चलते है , फिर मिलेंगे। राम और रोमियों से बेख़बर होके जरा रम की एक्सपायरी डेट देख लेते है। 



चित्र गूगल जी की मेहरबानी से
 

Tuesday, 1 December 2015

असहिष्णुता

दृश्य एक :
स्थान: पुणे
समय-काल  : गणेशोत्सव के आस पास

कहते है की गणेशोत्सव की धूम धाम इस शहर से बढ़कर कहीं  देखने को नहीं मिलती , सच भी है। इस वर्ष भी गणेशोत्सव की तैयारियाँ जोरो शोरो से चल रही है। जोर इस लिए क्योंकि बड़े बड़े ढोल ताशे घंटो उठा के प्रैक्टिस करने में बड़ा जोर लगता है और फिर होने वाला शोर तो वाज़िब है ही । पुणे में गणेश विसर्जन बड़ा खास होता है, भिन्न भिन्न ढोल-ताशा पथक इसके लिए महीनो पहले रियाज़ शुरू करते है और अपनी प्रस्तुति देते है।
इस बार नव-युवा चेतना समूह भी जोर शोर से तैयारी कर रहा है, इस समूह में ६ से  ७० साल तक के सदस्य है। एक ८  साल का बच्चा अपने घर वालो से ज़िद करके अभी अभी इस समूह में दाखिल हुआ है और समूह के सदस्यों ने उसका भव्य स्वागत भी किया।  मात्र ३ दिनों में ही इस बालक ने पुरे समूह का दिल जीत लिया है। अपने अन्य साथियों के साथ वो भी अपने नाजुक कंधो पर भारी ढोल उठा के ताल से ताल मिलाके घंटो प्रैक्टिस करता है।


कईं दिनों की प्रैक्टिस के बाद गणेश विसर्जन के दिन  समूह को अन्य बड़े बड़े ढोल पथको के साथ प्रस्तुति देने का अवसर प्राप्त हुआ । ६ घंटे सतत रूप से ढोल और ताशो के लय ताल से भरे युद्ध में अंततः इस युवा समूह को विजयी घोषित किया जाता है। समूह के सभी बड़े सदस्य छोटे छोटे सदस्यों को अपने कंधे पर उठाकर झूम रहे है। हमारा ८ वर्षीय बालक जो अपने घरवालो से लड़कर इस समूह में शामिल हुआ था वो भी बहुत खुश है। आज उसके माता पिता भी बहुत खुश है यह देख कर की उसे समूह के बाकी लोगो से कितना प्रेम मिल रहा है। J

दृश्य दो:
स्थान: हैदराबाद
समय -काल : रमज़ान का महीना

हैदराबाद की चार मीनार और बिरियानी के अलावा वहां की ओल्ड सिटी में बोली जाने वाली हिंदी भी विश्वप्रसिद्ध है। क्या कहा ? आपने नहीं सुनी वहां की हिंदी ? क्या हौले जैसी बातां करते मियां तुम, तुम हयदेराबाद की हिंदी नको सुने तो क्या सुने जी  ?
चलिए मजाक की बात छोड़िये मुद्दे की बात करते है।
रमज़ान का महीना है, ज्वेलरी की दूकान पर सेठ जी के यहाँ काम करने वालो में ज्यादातर लोग रोज़ा रखते है। जो लोग रोज़ा नहीं रखते वो रोज़ा रखने वालो का ध्यान रखे इस बात का सेठजी पूरा ध्यान रखते है। सेठ जी ने अपने शोरूम के ऊपरी माले में एक कमरा खाली करवाया है। भोजन काल के दौरान रोज़ा न रखने वाले चुपचाप बिना कोई शोर किये उस कमरे में जाके अपना भोजन करके आ जाते है और फिर शाम तक न पानी का और न ही भोजन का कोई जिक्र करते है। शाम होते ही सेठजी अपनी और से इफ्तार के लिए भोजन सामग्री मंगवाकर रोज़ा करने वालो को उसी ऊपरी माले के कमरे में भेजते है जहाँ वो इत्मीनान से अपना रोज़ा खोल सके।


 पुणे वाले किस्से में उस ८ साल के बालक का नाम है  सोहैल  जी हाँ एक मुस्लिम परिवार का बच्चा जो हिन्दुओं के त्यौहार में ढोल बजा रहा था जहाँ  उसे मान सम्मान भी भरपूर मिला।और उसके परिवार ने भी धार्मिक सहनशीलता दिखाते हुए उसे आज़ादी दी अपने मन की करने की।
हैदराबाद की घटना में यह जौहरी सेठ एक हिन्दू है जिन्हे यह भी पता है की इंसानियत भी एक धर्म है। इन्ही सेठ के यहाँ कईं वफादार कारीगर मुस्लिम समुदाय से है और प्रतिवर्ष इनकी दूकान पर ईद और दीवाली समान रुप से मनाई जाती है।

यह किस्से सत्य घटनाओँ से प्रेरित है। ऐसे ही असंख्य किस्से है जो हमारे आस पास बिखरे पड़े है। हम आम लोगो का जीवन बीते कईं वर्षो से इसी प्रकार चल रहा है।किन्तु हमें कभी नहीं लगा की देश में असहनशीलता का वातावरण है। हाँ यह एक राजनैतिक बहस का मुद्दा जरूर हो सकता है किन्तु जरा विचार कीजिये की क्या देश के हीत के लिए ऐसी नकारात्मक बातें फैलाना उचित होगा ? हमें अपने विवेक से भी काम लेना होगा, हम इतने साधन संपन्न भी नहीं है की किसी ने कुछ कहा और देश छोड़ के चले जाएँ।

चलिए अभी इन वास्तविक किस्सों से परे एक काल्पनिक किस्सा सुनाते है।
दृश्य ३
स्थान : आमिर खान का घर,मुंबई
समय-काल : दिसंबर २०१५

३ साल का आज़ाद घर छोड़ने की ज़िद्द लिए बैठा है क्योंकि उसको उसकी माताजी ने डांट दिया है। क्यों ?
क्योंकि अब उसकी शैतानियाँ बर्दाश्त से बाहर है। जब आमिर ने पूछा की बेटा अगर मम्मी ने जरा सा डांट दिया तो इसमें घर छोडनें की क्या जरुरत है ?
मासूम आज़ाद का जवाब सुनिए : "मम्मी को तो किसी ने नहीं डांटा था और वो इंडिया छोड़ने की बात कर रही थी तब तो आपने उन्हें कुछ नहीं कहा और मुझे ज्ञान पेल रहे हो पापा ? हैँ ? "



चित्र: गूगल इमेज सर्च के सौजन्य से









Monday, 2 June 2014

एक रेल यात्रा और २ स्मरणीय नाम

एक रेल यात्रा और २ स्मरणीय नाम

बात १९९० की गर्मियों की है, में और मेरी मित्र भारतीय रेलवे सेवा के प्रशिक्षु के तौर पर लखनऊ से देल्ही तक का सफर कर रहे थे।  हमारी ही बोगी में २ सांसद भी सवार थे जिनसे हमे कोई परेशानी नहीं थी, परन्तु उनके साथ यात्रा कर रहे उनके १०-१२ साथियो ने बड़ी ही बदतमीज़ी से हमसे बात की। उन लोगो ने हमारी आरक्षित सीट से ही हमें उठा कर खुद सवार हो गए ,  और तो और भद्दी भद्दी टिप्पणियाँ भी करते रहे। उस बोगी में कोई भी यात्री या टिकट चेकर हमारी सहायता करने आगे नहीं आया। हम लोगो ने भय युक्त वातावरण में जैसे तैसे रात गुजारी। 

अगले दिन सुबह हम डेल्ही पहुंचे, तथापि उन गुंडों ने हमें कोई शारीरिक क्षति तो नहीं पहुचाई परन्तु मानसिक रूप से हमें बहुत आघात पंहुचा था।  मेरी मित्र को तो इतना गहरा सदमा पंहुचा था की उन्होंने प्रशिक्षण का अगला चरण टालना ही उचित समझा जो की अहमदाबाद में होना था।

मेने अहमदाबाद जाने का निर्णय किया क्योंकि एक और प्रशिक्षु मेरे साथ यात्रा करने वाली थी। इस बार हम आरक्षण नहीं करवा पाये और वेटिंग का टिकट लेकर ट्रैन में चढ़ गए।  प्रथम श्रेणी के कोच में TTE  से हमने बात की और समझाया की हमारा अहमदाबाद पहुचना कितना जरूरी है, वो हमें एक द्विशायीका (कंपार्टमेंट ) में लेके गया और बैठ कर कुछ देर इन्तेजार करने को कहा। मेने अपने संभावित सह-यात्रियों की और देखा जो की अपने परिधानों से किसी राजनैतिक पार्टी के नेता ही लग रहे थे। मुझे अपनी पिछली यात्रा का संस्मरण हो आया और मेरी भाव-भंगिमा से मेरे भीतर की घबराहट मेरे मुख पर स्पष्ट दिखाई पड़ रही थी। TTE ने मेरे चहरे के भाव पढ़कर मुझे आश्वस्त किया की ये लोग सभ्य और  नियमित यात्री है। 

उनमे से एक कुछ ४० पार रहा होगा और दूसरे की उम्र कुछ ३५-४० रही होगी। उन लोगो ने ख़ुशी ख़ुशी हमारे लिए बैठने की जगह बनाते हुए खुद को एक कोने में समेट लिया। उन दोनों ने अपना परिचय गुजरात के भाजपा नेताओ के रूप में दिया, उन्होंने अपने नाम भी बताये मगर नाम हम याद नहीं रख पाये, हमने भी उन्हें बताया की हम आसाम से रेलवे सेवा के प्रशिक्षु है। हम लोगो ने कई विषयों पर बातचीत की, विशेषकर इतिहास पर। मेरी मित्र ने इतिहास में स्नातकोत्तर उपाधि प्राप्त कर रखी  थी सो उसने बढ़चढ़ कर चर्चा में हिस्सा लिया, मेने भी बीच बीच में भाग लिया। नेताओ में से जो वरिष्ठ थे उन्होंने ने उत्साह के साथ चर्चा में अपनी हिस्सेदारी दिखाई जबकि दूसरे नेता ने सुनने में अधिक रूचि दिखाई। 

बातो के बीच में मेने श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मृत्यु का जिक्र किया की कैसे उनकी मौत आज तक एक रहस्य बनी  हुयी है।  कनिष्ठ नेता जो की अब तक बगैर ज्यादा कुछ कहे सिर्फ सुन रहे थे, अचानक बोले : "आप श्यामा प्रसाद मुखर्जी के बारे में कैसे जानती है ?", तब मेने उन्हें बताया की किस प्रकार से उन्होंने मेरे पिताजी की पढ़ाई के लिए छात्रवृत्ति का इन्तेजाम किया था। 

अचानक से वरिष्ठ नेता ने हमसे कहा , "आप लोग गुजरात में हमारी पार्टी क्यों नहीं ज्वाइन कर लेते ?" हमने जोर का ठहाका लगा के कहा की हमारे बस का ना है और वैसे भी हम गुजरात के नहीं है , तभी छोटे नेता ने कहा : " तो क्या फरक पड़ता है अगर आप आसाम से हो, हमारे यहाँ प्रतिभावान लोगो का स्वागत है ", यह  कहते वक़्त उनके शांत गंभीर चेहरे पर एक चमक सी साफ़ नज़र आ रही थी। हमे प्रतीत हुआ की ये सिर्फ कहने की बात नहीं थी , बल्कि वो लोग गंभीर थे। 

खाना आ चूका था, ४ शाकाहारी थालियां।  हम चारो ने शांतिपूर्वक भोजन किया और जब पेन्ट्री वाला पैसे लेने आया तो छोटे वाले नेताजी ने पूरा भुगतान स्वयं किया।  मेने धीरे से धन्यवाद दिया, उन्होंने सीधे तौर पर दरकिनार करते हुए कहा की इतनी छोटी बात के लिए कैसा धन्यवाद।  उस समय उनके आभामंडल पर जो चमक थी वो देखने लायक थी।

 इतने में TTE  ने आकर हमें सीट की अनुपलब्धता के बारे में जानकारी देकर अपनी असमर्थता ज़ाहिर की और कहा की कुछ और इन्तेजाम नहीं हो सका।  इतना सुनते ही वो दोनों नेतागण तपाक से बोल पड़े की चिंता करने की कोई बात नहीं है हम व्यवस्था कर देंगे। उन्होंने बड़े आराम से निचे फ्लोर पर चादर बिछाई और सो गए और हमने उन लोगो की सीट पर कब्ज़ा जमा लिया। 

पिछली ट्रैन यात्रा और इस यात्रा में कितना बड़ा अंतर था, एक तरफ उन राजनेताओ का झुण्ड जो सभी सह-यात्रियों से बदतमीज़ी कर रहे थे और एक तरफ यह २ नेता जिनके साथ हमे पूर्ण सुरक्षा का अनुभव हो रहा था। अगली सुबह जब ट्रैन अहमदाबाद के करीब पहुंची तो वरिष्ठ नेता ने हमसे हमारे रहने के प्रबंध के बारे में पूछा और अपना पता बताते हुए कहा की कुछ भी समस्या हो तो हम बेझिझक उनके घर जा सकते है, छोटे वाले नेता ने कहा की मेरा तो अहमदाबाद में कोई ठौर ठिकाना नहीं है , परन्तु आप लोग इनका निमंत्रण स्वीकार कर सकते हो और कोई भी परेशानी हो तो बता सकते हो, हम हर संभव सहायता की कोशिश करेंगे। 

 यह सब बातें करते वक़्त उन दोनों के मुख पर एक गंभीरता और आशावान चमक थी। हमने अपने रहने के प्रबंध के बारे में उन्हें आश्वस्त किया और निमंत्रण के लिए उन्हें सहृदय धन्यवाद दिया।  

इससे पहले की ट्रैन  स्टेशन पर रूकती और हम लोग उतर कर अपने अपने गंतव्य की और प्रस्थान करते मेने अपने बैग से अपनी डायरी और पेन निकलते हुए उन दोनों से अपने अपने नाम लिखने का आग्रह किया। क्योंकि में उन दो विशाल ह्रदय वाले नेताओ का नाम नहीं भूलना चाहती थी जिन्होंने नेताओ के प्रति मेरे पूर्वाग्रह को एक अलग ही दिशा प्रदान की थी। 

उन्होंने डायरी लेकर एक -एक करके अपना नाम लिखा , उम्र में बड़े दिखने वाले नेता ने लिखा शंकर सिंह वाघेला और छोटे नेता ने लिखा नरेंद्र मोदी। 

यह पूरा घटनाक्रम मेने १९९५ में एक असमीज़ समाचार पत्र में लिखा था, यह उन दो गुजरती नेताओ के प्रति मेरी आदरांजलि थी जिन्होंने निस्वार्थ भाव से हम दो असमिया बेन  के लिए इतना कुछ किया था।  By Leena Sarma
(The author is General Manager of the Centre for Railway Information System, Indian Railways, New Delhi. leenasarma@rediffmail.com)

नोट: प्रस्तुत लेख अंग्रेजी समाचार पात्र "द  हिन्दू " में १ जून २०१४ को प्रकाशित हुआ था , उसी का हिंदी अनुवाद मेने यहाँ प्रस्तुत किया 

 अंग्रेजी में पढ़ने के लिए निचे दिए लिंक पर जाये :



Monday, 24 March 2014

Polls from the eyes of an IT serviceman

These days the oxygen of India is so adulterated with politic that you can not refrain from inhaling it, even you use masks.
politics is everywhere, you want to search for any technical information you get ads of political parties on web pages, you read newspaper, every page is colored with politics, you switch TV channels, you get ads of parties there too. So in short, I want to say that you can not run away from politics even if you hate it most.

Now when the environment to so politics friendly, how can I escape from writing something on politics, however I have written on politics in past too, this time let's try to make it a little interesting.

As the title of this article says, election from the eyes of an IT serviceman, so if you do not belong to IT or do not understand IT people's emotions then stop reading.
 And if you are an IT fellow, working in development team or quality testing team, or as a technical consultant and want to see the political scenario as an IT guy, then go ahead my friend, you must read this article.

Here is a scenario, if I consider India as client and Central government as a production server, then we see that in last 10 years, the code in production server got corrupted, and needs to be either upgraded or should be replaced with new code. Client (India) follows a 5 yearly release process, means the whole code can be replaced or upgraded only once in 5 years. Emergency releases may possible provided that the production is completely down.

so once a code is released, our various development teams(political Parties) start coding for next release. Our client(India) does not have 2 team system, where best code of 2 will go to production, but we have several development teams. Whoever's code is passed by end user(Voters), only that code will be delivered to production. However there were only 2 big development teams for many years, who are coding for India, but now several small teams have been grown. In recent few releases India has deployed code written by one big team along with some small teams, because some of the crucial modules developed and integrated by small teams, and they given integration option to only one big team.

Here we name the teams, the oldest development team is called as team C, the other big team is called Team B and several small teams collectively can be called team X. So right now our production server is (dis)functioning on a code written by C+X.(anyways, Ctr+X means cut from everywhere and paste it in swiss production).
 The code is traditional and runs on legacy systems, with very limited flexibility. End Users are now frustrated with the performance of production system. End users used to have only option that they pass the code by Team B. All of sudden a new team arises, team A, who claimed that they can develop a code which is most suitable for production, which will remove all the bugs from production. Team A claimed that they born to kill bugs from production, they are willing to clean the system, so that users do not get useless pop ups and they can work on production system easily. 

We have several quality servers ( state government) which got periodically refreshed with the data from production, but they do not function exactly same as production, but somehow near to production. The big difference is load, there are less users per quality server as compare to production server.
So when Team A claimed that they have a revolutionary code which could fix all problems of production, then end users decided to test their code in one of the quality system(Delhi), in fact it can be called as a pre-production server. The code written by team A was deployed in Delhi, with the help of legacy system as they were short of some important modules. The code was tested for 49 days, since it was claimed that it is a revolutionary code and can bring drastic changes, so load testing was performed along with UAT.
Several bugs were reported, many times code was hanged, the main module of the code was so unpredictable that anytime it would stop working  and hang(sit on Dharna). End users of quality system were happy for some time as they could see a totally new interface to use, they started testing the system heavily.

Before implementing the code, development team A claimed that it is purest of pure code they have delivered, so they do not expect any bug. Testing teams have reported several bugs but dev team was reluctant to correct any of their bug. In fact their code could not survive the load which was generated, they excused that due to firewall we are not able to perform. They demanded to disable the firewall, they even claimed that the antivirus is not good, they wanted to implement their own antivirus. When dev team was forced to follow the CMM-5 process they became angry and they deimplemented their code by themselves from the quality.

Now the Delhi quality server is down, and waiting for a new deployment.

Even after failing in quality server, dev team A is preparing code for production, they want to deploy their code in production. They say that Team C has corrupted the production but Team B will also do the same. Team A's dev lead is everywhere criticizing team B's dev lead. In fact still they claim that only they can provide clean code, some end users are still hopeful, however chances are less that their code is going to be deployed.

Business people says that Team B has a code which may be deployed in production, no one from Team B claiming that their code has 0 bug, unlike Team A.  Offcourse they have some bugs in their code, some hard to identify and some they can not remove as they are using few unlicensed SDKs.

Team B is claiming that their code will be so robust and powerful that it will improve the performance of production, and so the business of client will be improved, they are claiming that they will save the system from Trojan, spams, and viruses. In fact they have implemented their code in some quality systems successfully and their code is running fine, no major bugs reported. There is one thing that is still horrifying for Team B.In 2002 one of quality server where their code was running crashed due to some important database table corruption, however they have somehow recovered the tables, but lost data. The data which was belonged to a certain group of user could not be recovered. That part of users think that the code developed by Team B is not suitable for them, so they may deny the deployment of Team B's code. But Team B's star coder, who has developed a smooth code in a quality server Gujarat, has become the face of Team B. People are starting to believe that he can write a good code.

Now coming to team C, which is also known for masters of legacy systems, since they run their code on legacy systems only, never upgraded, but this time they don't have a proper code. They are still trying to woo the end user, if any of their module could be implemented. The current production server was running on their code, and it is so much corrupted that India had to suffer major financial loss. But they don't bother. Their main programmer is trying hard to learn new technologies to write a better code, but he is not able to grasp the things. Still hopes are alive.

Team X, they are comprising of several small scale development teams, are also in race of production.Team X alone may not deliver the production code, but they could play an important role. They could provide some modules, and it may be possible that Team B or C or A can not integrate their code without team X's connectors.


So, the announcement is due on 16th May, who's code is going to deployed in production, is it Team B, B+X, A, A+X or team C. However the contest seems to be C, X, A v/s B. 
Wait and watch.

at the end I would appeal to all of you, please go and vote for any team, but at least vote, at last you are the end user, who is going to suffer if correct code is not selected and business will suffer if stable and strong code is not selected. 

--JaiHind


Cartoon from Internet.


Thursday, 16 January 2014

२०१४ का महाभारत

हम बड़े ही सहज रूप से कह सकते है कि २०१४ का चुनाव अब "बीजेपी" और "आप" के बीच ही लड़ा जायेगा (या यु कहे मोदी और केजरीवाल के बीच लड़ा जायेगा)

कॉंग्रेस ( राहुल गाँधी ) कि तो कोई बात ही नहीं कि जा सकती यहाँ,  क्रिकेट कि भाषा में बात करे तो यह वो त्रिकोणीय मुक़ाबला है जिसमे तीसरी टीम (टीम  RaGa ) नामीबिया कि है। या बॉलीवूड कि भाषा में बात करे तो ३ फिल्मो के बिच मुक़ाबला है जिनके मुख्य किरदार क्रमशः  शाहरुख़ खान, सलमान खान और उदय चोपड़ा है।

अब अगर इसे सीधा मुकाबला मोदी V /S  केजरीवाल माने तो यहाँ यह देखना भी जरूरी है कि आखिर इन दोनों में तुलना किन बिन्दुओ पर हो ?

  1. सुढृढ़ सुशासन या दिखावटीपन (चुहलबाजी)
  2. परिणामकारी प्रदर्शन या आंदोलन 
  3. विकास के मुद्दे या व्यक्तिगत मान से जुड़े इरादे 
  4. एक स्थापित विचारधारा या आदर्शवाद 
  5. देश कि अखंडता या अलगाववादियों का समर्थन 
  6. सम्पूर्ण विकास या किसी समुदाय विशेष का तुष्टिकरण
  7. एक सिद्ध अनुभव या अतिउत्साही और अवसरवादी लोगो का समूह 
  8.  देश को विकास कि  दिशा प्रदान करना या देश के साथ एक प्रयोग करना 
यह एक बहुत अच्छी बात है कि आप पहली बार चुनाव लड़े और लोगो कि भावनाओ के साथ जुड़कर उनके दिल और कुछ सीटे जीत ले और जिनका उम्रभर से विरोध करते आये उन्ही का थोडा सा साथ लेकर सत्ता में भी आ जाये।
परन्तु  एक तरफ वो है जो लोगो कि भावनाओ के दम पर पहली बार जीत के आये  और सत्ता में बने रहने के लिए संघर्ष कर रहे है वोही दूसरी  और वो है जो  समग्र विरोध को झेलने के बावज़ूद लगातार तीन बार जीत कर आये, लोगो कि भावनाओ के दम पर नहीं, अपने शक्तिशाली प्रदर्शन के दम पर.। 

महत्वकांक्षी  होना  अच्छी बात है परन्तु  जो चीज हाथ में है, जिसके लिए आपको मौका दिया गया है (दिल्ली ), उसके बारे में सोचने के बजाय आप क्या कर रहे है ,  खूद को देश की  हर समस्या का समाधान बता कर  मैदान में कूद कर स्थापित लोगो को चुनौती दे रहे है जबकि आपको यह  तक नहीं पता कि आपका कौन नेता देश के किस मुद्दे पर क्या अनर्गल बाते कर रहा है। 
 जब आपको एक राज्य का दायित्व दिया गया है तो उसी को राजधर्म कि तरह निभाईये, झोंक दीजिये अपनी सारी शक्ति यह साबित करने में कि आपको दिया गया मौका व्यर्थ नहीं है। 

दूसरी और मोदी के बारे में  यह कैसा झूठा डर  फैलाया जा रहा है कि अगर मोदी कि सरकार बनी तो देश में अल्पसंख्यक असुरक्षित  हो जायेंगे, मानो अचानक ही  यह पूरा जनतंत्र  तानाशाही में बदल जायेगा और सारी  विपक्षी पार्टियाँ, सहयोगी दल , राज्य सरकारे और न्यायपालिका रातोरात इस "सबका मालिक एक " वाली सरकार के सामने नतमस्तक हो जाएँगी ?
यह तो सीधा सीधा उन लोगो के द्वारा किया गया दुष्प्रचार या प्रपंच है को वाकई में मोदी को सत्ता  में आने से रोकना चाहते है , यह लोग सिर्फ नफरत कि राजनीति जानते है प्रेम कि नहीं।

वैसे कविराज जो कि अब नेता जी बन गए है कि एक काव्य गोष्ठी में मेने उन्ही के मुख कमल से एक कविता सुनी थी जो कुछ  यों  थी_ _ _

हमे मुहब्बत सब से है हमे फूलो को छांटना नहीं आता
हम तो जोड़ना जानते है बस हमें काटना नहीं आता
हम क्या करे हमे खुशियों के सिवा कुछ बाँटना नहीं आता

अभी यह सब बाते शायद उनके लिए सिर्फ कल्पनाओ और शब्दो का एक जाल मात्र हो सकती है जिसका हकीकत से कोई लेना देना न हो शायद।

खैर छोड़िये 

केजरीवाल (और AAP ) कि तुलना मोदी (और NDA ) से करना किसी कल ही कॉलेज से पास हो कर नए आये कर्मचारी कि  किसी उच्च प्रबंधक जो कि बरसो से कंपनी और अपने विभाग कि सेवा करके उस पद तक पंहुचा है से तुलना करने के बराबर है। 

क्या कोई भी कंपनी कल के पास हुए छात्र को अपने उच्च प्रबंधन का दायित्व सोंप सकती है ?
खुद ही विचार कीजियेगा। 

--------------------------------------------फेसबुक पर एक पेज "भक साला " में  प्रकाशित हुये एक अंग्रेजी लेख़ से साभार  

Friday, 4 October 2013

रॉयल्टी और राष्ट्रपिता


मित्रो अभी कुछ दीनो पहले खबरें आई थी की जानेमाने लेखक/ गीतकार सलीम साहेब और जावेद अख़्तर ने किसी  फिल्म के निर्माताओ पर मुक़दमा ठोका था की इन्हे कोई लगभग 7 करोड़ रुपये रायल्टी के तौर पर मिलना चाहिए क्योंकि फिल्म तो असलियत मे इन्ही के द्वारा लिखी गयी थी.. ऐसे ही संगीत, साहित्य और कला के क्षेत्र में भी रॉयल्टी का बड़ा महत्व है। 

आखीर यह रायल्टी भी कितने कमाल की चीज़ है, काम आप आज जवानी मे करके जाओ और सठियाने की उमर मे मुनाफ़ा कमाओ और तो और मरने के बाद आपकी पीढ़ियाँ आपके नाम का माल खाएगी| उदाहरण के रूप मे अगर देखे तो अमित कुमार जो की मशहूर गायक अभिनेता  किशोर कुमार के सुपुत्र है, यूँ तो उन्होने कोई ज़्यादा काम नही किया है परंतु आज भी पिताजी के गाए हुए गानो की बदौलत अच्छी ख़ासी रायल्टी कमा रहे है, इतना ही नही आपने थोड़ा बहुत अच्छा काम करके थोड़ा नाम भी कमा लिया और आपकी संतान निकम्मी भी निकली तो भी कुछ ना कुछ तो कमा ही लेगी, उदाहरण अभिषेक बच्चन, उदय चोपड़ा, तुषार कपूर, इत्यादि |

अब इतनी बात चली ही है तो रायल्टी खाने के नाम पे देश मे नंबर 1 परिवार के बारे मे बिना कुछ बोले कैसे रहा जा सकता है, अब जब यह परिवार सत्ता के गलियारे से कोसो दूर है फिर भी हमारी जिह्वा पर इनका नाम तो आ ही जाता है , आपने अब तक अनुमान लगा ही लिया होगा में किसकी बात कर रहा हूँ , जी हाँ ठीक समझे, हमारा "गाँधी" परिवार, 
भाई यह परिवार तो रायल्टी के नाम पे ना जाने क्या क्या खा चूका इस देश मे और अब भी दबे छुपे खाए जा रहा है , 
खैर छोड़िये यहा में ज़्यादा भावुक नही होना चाहता हूँ|

 "गाँधी" और "रायल्टी" से याद आया की जैसे हम तमाम धार्मिक कथाओ, व्रत की कहानियों मे सुनते है की फलाँ फलाँ देवी या देवता ने स्वप्न मे आकर अपने भक्त को कुछ आदेश दिया और आदेश ना मानने के हाल मे उसका सारा राज चौपट होने की भी चेतवानी दी| आज में ईश्वर से यही प्रार्थना करना चाहूँगा की ऐसा ही कुछ आदेश हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी भी आज की सभी पार्टी के सभी नेताओ, मंत्रियों, प्रधानमंत्री, और सभी MPs तथा  MLAs (जीते हुए और हारे हुए )को भी स्वप्न मे आके दे |

इन सभी भ्रष्ट नेताओं को स्वप्न मे बापू आके कहे की आप लोग मेरी फोटो का उपयोग सालो से कर रहे हो, इसके एवज मे रायल्टी के नाम पे एक फूटी कौड़ी तक नही दी है आज तक तुमने, सबसे पहले तो मेरी फोटो मुझसे बगैर पूछे "रुपये"   के हर नोट पर छापी गयी फिर ऐसे लाखो करोड़ो के नोट तुम लोगो ने अपने जेबो मे भर लिए, फिर मेरे नाम का दुरुपयोग किया यह कह कर की गाँधी की "हरी पत्ती" के बगैर तुम कोई काम नही करोगे, मेरे नाम पर हर पार्टी के नेता ने वोट मांगे , इन सब बातो के लिए जुर्माना नही माँग रहा हूँ, में बस यह कहना चाहता हूँ की कॉपीराईट एक्ट के तहत मुझे इसकी रायल्टी मिलनी चाहिए और जैसा की इस देश मे होता आया है बाप के गुजर जाने के बाद रायल्टी उसकी संतान को मिलती है वैसे ही अब यह सारी रायल्टी की रकम तुम लोग पूरे देश मे बाँटोगे, क्योंकि क़ानूनन मे पूरे देश का बाप हूँ, में राष्ट्रपिता हूँ|




सोचिए अगर ऐसा हो जाए और यह लोग बापू की बात मान ले  और हर नोट पर छपी बापू की फोटो के लिए उस नोट की कीमत का २% भी रायल्टी के रूप मे देदे तो भी अपना देश तो सुखी हो जाए......

में तो हिसाब लगा रहा हूँ की मेरे हिस्से मे कितना आएगा, आप भी लगा लो |


--------------------------------------------------------------------------चित्र इंटरनेट के सौजन्य से

Friday, 16 August 2013

An open letter to Anna Hajare Team and AAP Members



Dear Anna,

I hope you are still thinking about betterment for India.
The movement you started 2 years back was nothing less than a historical phenomena in Indian democracy. You compelled Indian youth to come on roads, you ignited a new flame in our hearts, you showed that we can also be revolutionary youth. You just gave us a hope that we can fulfill our dream of doing something for nation by supporting you.
But all of sudden the very accused government ditched you and you surrendered. You just believed them as we did by voting them, and they did the same to you what they did to our nation, they cheated. The very sharp movement became blunt; you disappeared and kept a silence fast. Meanwhile all the flames were extinguished, all hopes of Indian Youth shattered and most worst happened was our belief on you deviated, your team was divided, aim was alienated. Government played their cards and we along with you felt a shocking defeat.
Now once again when you are trying to ignite the same fire with the same fuel it is not even heating, why because the fuel has expired.


Dear Arvind Kejriwal,

Congratulations on your decision of entering into the system and fighting to clean it.
You parted from Anna’s movement, because you understood that if system has to be cleaned you have to make your hands dirty. You can not stand in a corner and clean the muddiness. We appreciate your initial acts of disclosing misdeeds of big corporate houses, but again it was only a breaking news for us, we just watch news channel to see if something big has been revealed by you, we don’t bother to join your party because we have our own commitments, we have job, a family to look after and a small ambition for our future. You may say that we are selfish, yes we are, and you may say that we don’t want to do something for our nation, yes you can say, but truth is that now we don’t believe in Anna’s movement, same as most of us don’t believe in your success.

Now let me clear why we don’t believe in success of both of you in spite of having a pure ambition, a true heart and a determination to do best for nation, because you are fighting with demons and not common people and you are fighting without arms.

You are saying that all political parties are bad, none is honest, that is correct and we agree to your sentiments, but remember even when god had to eliminate the evil soul from earth, he had to acquire human nature, he had to follow the way devils were following, just to kill him, and this is written in all our mythological books (I said all, inclusive of all religion). Same if you want to eliminate one devil then you have to take help of another, first remove one with the help of other and then remove the evil spirit from the one who helped you. Don’t fight alone.


I hope you understood my signal.

देश भक्ति

  देश भक्ति , यह वो हार्मोन है जो हम भारतियों की रगो में आम तौर पर स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस  या भारत पाकिस्तान के मैच वाले दिन ख...