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Thursday, 4 August 2016

दिल्ली की सैर



भारत में लोग-बाग अपने फेवरेट सितारों से मिलने बम्बई जाते है, एक झलक पाने को घंटो हजारो की भीड़ में खड़े रहते है। कुछ बावले लोग तो चुपके से सितारों के घरो में घुस तक जाते है और आराम से घूम-घाम के सकुशल लौट भी आते है। अभी हाल ही में एक भाईसाब ने पुरे ९ घंटे अमिताभ बच्चन के घर में गुजारे वो भी बगैर किसी को भनक लगे।
जब मैंने ये ख़बर पढ़ी तो सोचा की क्यों न मैं भी अपने पसंदीदा मनोरंजक सितारों के दर्शन के लिए उनके घर में घुसपैठ करूँ ? बस यही सोच के मैंने प्लान बनाया दिल्ली सैर का। अजी हाँ मेरा मनोरंजन करने वाले सभी सितारे दिल्ली में ही रहते है।


तो भाईसाब हम पंहुचे दिल्ली और सबसे पहले घुसे अपने नंबर १ मनोरंजक सितारे के बैडरूम में। इस सुपरस्टार को लोग प्यार से पप्पू बुलाते है। ये एक बहुत बड़े खानदान के वारिस है। जैसे ही छुपते -छुपाते इनके घर में दाखिल हुए तो हमने देखा की कमरे के एक कोने में कुछ बुझी हुयी चिलम पड़ी थी, सेंटर टेबल पर कुछ क्रेडिट कार्ड्स और कोई सफ़ेद पाउडर बिखरा पड़ा था टीवी पर फुल वॉल्यूम में डोरीमोन का कार्टून चल रहा था, थोड़ा और नज़र को इधर उधर दौड़ाया तो पाया की ये जनाब अपने पुरे घर में फ़ोन लेकर दौड़ लगा रहे थे। थोड़ा और नज़दीक से जानने की कोशिश की तो हमने पाया की ये तो पोकेमोन-गो नामक मोबाइल गेम खेल रहे थे वो भी घर के अंदर क्योंकि मम्मी ने बाहर जाने से मना किया है। बड़ा अच्छा लगा इन्हें इतना नज़दीक से देखकर। जैसे बाल-गोपाल की कलाएं देखकर गोकुलवासियों का मन मोहित होता होगा बिलकुल वैसे ही हम बाबा को देखकर मोहित होते रहे।

वहाँ से निकल कर फिर हम घुसे ७-रेसकोर्स रोड वाले बंगले में, यकीन मानिये बड़ी आराम से घुस गए यहाँ भी। रात हो चुकी थी और इसी अँधेरे का फायदा उठा कर हम नमो जी के कमरे में घुस गए। ये चमकती सफ़ेद दाढ़ी क्या खूब चांदनी बिखेर रही थी। वो अपनी कुर्सी पर बैठकर कोई किताब बांच रहे थे , शीर्षक थोड़ी देर तक तो नहीं देख पाया अंग्रेजी में था किन्तु थोड़ी मशक्कत के बाद पता चल ही गया उनकी किताब का नाम -Gulliver's Travels था। उनके कमरे की दिवार पर दुनिया का नक्शा टंगा हुआ था और लगभग आधे नक़्शे पर हरे और लाल रंग के पिन घुसे हुए थे। शायद ये पिन इंगित कर रहे थे कि नक़्शे की ये जगहें जहाँ जहाँ पिन लगी थी सारी नमोजी की चरणधूलि पाके धन्य हो चुकी थी। किन्तु लाल और हरे का मतलब क्या हुआ भला? एक लाल पिन हमारे प्रिय पडौसी देश के सीने पर भी घुसी हुयी थी। ओह मतलब समझा हरी पिन मतलब जहाँ आमंत्रण पर पधारे थे और लाल पिन मतलब जहाँ जाके नमोजी ने कहा था "सरप्राईज़ ". . .
बस अब इतनी संवेदनशील जगह पर ज्यादा समय नहीं बिता सकता था तो चुपचाप मैं वहां से कूच कर गया।

अगला और अंतिम पड़ाव था भारत के सबसे ज्यादा चर्चित और चहेते CM का घर। प्यार से इनको भी कईं नाम दिए गए है परंतु इन्हें किसी परिचय की आवश्यकता नहीं है। पहले धरने-आंदोलनों से और फिर ट्विटर के माध्यम से ये कईं लोगो का मनोरंजन करते आ रहे है। रात हो चुकी थी मैं गलती से इनके बैडरूम में दाखिल हो गया था सो डर और शर्म के मारे इनके बेड के नीचे जाके घुस गया था। तभी भाईसाब और भाभी जी आये मुझे कुछ सूझ नहीं रहा था की यहाँ से कैसे निकलूँ इसलिए चुपचाप वहीं इनके सोने का इंतजार करता रहा। अब आपको पता ही है कि किसी दंपत्ति के बैडरूम चुपके से उनकी बातें सुनना जुर्म है और उन बातो को फिर ज़माने को बताना तो घोर अपराध है। किन्तु लाख कोशिशो के बावज़ूद मैं खुद को रोक नहीं पाया, न सुनने से न ही सुनाने से। तो सुनिये :
मैडम : कितने दिन हो गए आपने रोमांस तो क्या रोमांटिक बातें भी नहीं करी मुझसे। कितने साल हो गए आप मुझे फिल्म दिखाने भी नहीं ले गए हर बार उस मुए मनीष को ले जाते हो। आखिर कब तक चलेगा ऐसा ?
भाई साहब खांसते हुए और मफलर को उतार के साइड में रखते हुए बोले : जानू मैं तुमसे कितना प्यार करता हूँ ये मुझे ट्वीट करके बताने की जरुरत नहीं। मैं तुम्हे डेट पे ले जाना चाहता हूँ, बच्चो को पिकनिक पे ले जाना चाहता हूँ, तुम्हे फिर से पहले जैसा रोमांस करना चाहता हूँ पर क्या करूँ ? मुझे मोदीजी ये सब करने ही नहीं देते।

इतने में मेरी आँख लग गयी और जब खुली तो खुद को अपने कमरे में स्वयं के बिस्तर पर पाया। धत्त तेरे की ये दिल्ली की मनमोहक सैर तो एक स्वप्नदोष निकल गया मेरा मतलब दोषपूर्ण स्वप्न निकल गया।

 नोट: चित्र गूगल इमेज सर्च के सौजन्य से

Thursday, 14 April 2016

बाबा साहेब आंबेडकर

बाबा साहेब आंबेडकर की १२6 वीं  जयंती मनाई जा रही है और बड़े धूमधाम से ही मनाई जा रही है। पिछले कुछ दिनों से चंदा उगाही का कारोबार भी चल रहा है। हमारे देश में कोई भी महोत्सव चाहे वो धार्मिक हो, राजनैतिक हो या सामाजिक हो उसकी तैयारी बड़े जोरो शोरो से होती है। "जोर" लगा लगा के चन्दा उगाया जाता और फिर उस चंदे से हाई वोल्टेज DJ वाले बाबुओं से "शोर" करवाया जाता है। ऐसा अमूमन सभी प्रमुख महोत्सवों के दौरान होता है। (सभी मतलब सभी)

हाँ तो हम बात कर रहे थे बाबासाहेब आंबेडकर की १२6 वीं  जयंती की तो सभी राजनैतिक दल, सामाजिक कार्यकर्ता, और दलितों के, पिछड़ो के मसीहा लोग आज के दिन अपने वातानुकूलित ऐशो -आराम छोड़ के १-२ जगह भाषण देंगे, पिछली, मौजूदा और आने वाली सभी सरकारों को गरियाएंगे और घर जाके २-४ पेग मार के सो जायेंगे। ऐसा ही होता आया है बरसो से।



बरसो से हम सब के मन में राजनैतिक दलों ने बाबासाहेब की एक छवि बना दी है की वो दलित नेता थे। बाबासाहेब का योगदान सिर्फ दलितों के उत्थान के लिए ही सिमित था। हमारी भी स्कूली किताबो ने हमे ज्यादा कुछ नहीं पढ़ाया बाबासाहेब के बारे में सिवाए इसके की वो हमारे संविधान के निर्माता थे।

बाबासाहेब आंबेडकर को इतना "सेलिब्रेट" करने वाले भी उनके कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण योगदानों के बारे में शायद ही जानते होंगे। आइए आपको बताता हूँ की "भारत के आज़ाद होने के बाद" बाबासाहेब का क्या क्या योगदान रहा है देश के लिए। (जो वाक्य बोल्ड और रेखांकित है उसका महत्त्व भी आप समझेंगे लेख के अंत में ).

१. RBI को भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ कहा जाता है, इसकी परिकल्पना बाबासाहेब ने की थी।

२. भारतीय वित्त आयोग जो की भारतीय राज्यों और केंद्र के बिच वित्त प्रबंधन की प्रमुख कड़ी है का गठन भी बाबासाहेब के प्रयासों से हुआ था।

३. संविधान में "हिन्दू कोड बिल" को कानूनी दर्जा दिलाने की जद्दोजहद भी आंबेडकर ने की थी, इस बिल का मकसद महिला सशक्तिकरण, सती प्रथा और दहेज़ प्रथा का उन्मूलन था। अगर यह बिल पास हो जाता तो १९५१ से ही असल "Women Empowerment" की शुरुआत हो जाती। परन्तु ऐसा हो नहीं पाया और २०१४ में राहुल गांधी को "Women Empowerment" शब्द के रट्टे लगाने पड़े।

४. श्रम मंत्री रहते हुए उन्होंने आधिकारिक कामकाज के घंटो को १२ से घटवा के ८ करवाया। (आईटी वालो को तो अब तक अपने बाबासाहेब का इंतजार है )

५. कश्मीर में आर्टिकल ३७०, जिसके बूते पर कईं सरकारे आई और गयी।  इसी आर्टिकल ३७० को पूरी तरह से नकारने का साहस भी बाबासाहेब ने दिखाया था। उन्होंने कश्मीरियों से कहा था की आप चाहते हो की आपकी सीमा सुरक्षा हम करे, आपको आर्थिक सहायता हम दे , आपको आपदा सहायता हम प्रदान करे और आप हमारे कानून नहीं मानेंगे , ऐसा कैसे हो सकता है ? ( हम मतलब भारत सरकार)
किन्तु आज बाबासाहेब के कईं अनुयायी JNU में आर्टिकल ३७० की वकालत करते है और कश्मीर की आज़ादी का बीड़ा उठाये है।

६. नेशनल पावर ग्रिड, राष्ट्रीय सिंचाई योजना जैसी कईं परियोजनाओं को क्रियान्वित करने में योगदान।
७. बौद्ध धर्म की परिस्थापना और
८. भारत के कईं राष्ट्रिय चिन्हों पर बौद्ध धर्म की छाप भी इन्ही के प्रयासों का परिणाम है।

और भी कईं चीजे मेरी व्यक्तिगत जानकारी के आभाव में छूट गयी है , किन्तु इतनी काफी है इस बात के प्रमाण के लिए की आधुनिक भारत की नींव रखने में उनका अच्छा ख़ासा योगदान रहा है। जिसे राजनैतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए पिछली सरकारों ने प्रचारित नहीं किया।

उनके इन योगदानों को शायद कोई याद भी नहीं करना चाहता, क्योंकि ये पुरे देश के हित में थे। आजकल देश-हित  की बात करने वालो को "सूडो नेशनलिस्ट", "भक्त" या "संघी" कहा जाता है। और अगर बाबासाहेब के इन सभी योगदानों का जिक्र हो गया तो हंगामा खड़ा हो जायेगा। इसीलिए आजतक उन्हें सिर्फ और सिर्फ संविधान निर्माता और दलितों का नेता ही कहा जाता है।

अब चलते चलते आपको उस बोल्ड और रेखांकित वाक्य के बारे में भी कुछ जानकारी दे देते है। उनके उपरोक्त  सभी योगदान भारत के आज़ाद होने के बाद के थे जब उन्हें संवैधानिक ओहदा प्राप्त हुआ था। आज़ादी के पहले की उनकी सारी लड़ाई दलितों के उत्थान के लिए थी। यहाँ अगर कहा जाये कि उनकी लड़ाई अंग्रेजो के खिलाफ डायरेक्ट कभी नहीं रही तो भी असत्य नहीं होगा । उन्होंने अंग्रेजो से भी हाथ मिलाया था ताकि दलितों को अधिकार मिल सके। उन्हें कुछ हद तक कोई सरोकार नहीं था की देश में सरकार किसकी है। उनकी प्राथमिकता में सिर्फ पिछड़ो को आगे लाना था। कुछ एक मुद्दों पर वो गांधीजी के विरूद्ध भी खड़े हुए थे। उन्ही के प्रभाव के चलते आज़ादी के आंदोलन में दलितों का संगठित योगदान उतना अहम नहीं रहा है जितना हो सकता था।

और जहाँ तक रही बात दलितों के लिए काम करने की तो वो जरूर उन्होंने किया किन्तु अकेले उन्होंने किया ऐसा भी नहीं है। जातीप्रथा के खिलाफ अभियान और कईं रूढ़ियों को खत्म करने के लिए प्रमुख कदम उठाने वालो में जो नाम आते है वो राजाराममोहन राय, रबिन्द्र नाथ टैगोर, केशब चन्द्र सेन जैसे लोग है जो की ब्राह्मण थे। इनके अलावा बॉम्बे प्रार्थना समाज, आर्य समाज, सत्य साधक समाज इत्यादि ने भी सर्व कल्याण और मनुष्यो में समभाव  के लिए काम किया। बाबासाहेब ने एक वोटबैंक जरूर खड़ा किया और आज कईं राजनैतिक पार्टियां उसी वोटबैंक के लालच में "दलित-दलित " चिल्लाती फिर रही है।  आज शायद बाबासाहेब अपनी आँखों से यह सब देख रहे होते तो शायद उन्हें थोड़ा दुःख जरूर पहुँचता।

अगर हमारे पुरखो ने जाती प्रथा का प्रचलन शुरू किया और मनुष्यो को उनके कार्य के अनुसार विभाजित किया तो "Social Equality" की बात करने वाले लोगो ने इन्ही मनुष्यो के बिच बैर और घृणा को जन्म दिया। यह सामाजिक विभाजन अब इतना बढ़ चूका है की हम देश हित के बारे में अब भी नहीं सोच रहे है। अब भी हम सिर्फ हमारी जाती, हमारा धर्म, हमारा समाज इन्ही घेरो में अटके है।

हमारा देश तेज़ी से आगे तो बढ़ा है किन्तु ट्रेडमिल के ऊपर। सालो तक  भागने के बाद उतरे तो पाया की हम तो वहीं खड़े है।


नोट: इस लेख का उद्देश्य किसी की भावनाओं को आहात करने का कतई नहीं है। हम बाबासाहेब आंबेडकर के कार्यो के लिए उनका भरपूर सम्मान करते है। किन्तु उनके नाम का दुरुपयोग करने वालो के सख्त विरुद्ध है। जिस प्रकार गांधी जी के नाम का भरपूर दुरूपयोग होता आया है वैसा ही कुछ लोग आंबेडकर के साथ करने जा रहे है।
फिर भी दिमाग की जगह अगर किसी का दिल दुखा हो तो लिखित में क्षमा चाहता हूँ और आशा करता हूँ की इस लेख के विरोध में कहीं आग-जनि, बंद या पत्थरबाजी नहीं होगी। धन्यवाद।

Monday, 21 September 2015

पुरुषो के अच्छे दिन



आज की तारीख में अगर कोई कहे "बेचारा" तो अनायास ही मुँह से निकल जाता है "पुरुष", जी हाँ बेचारा पुरुष।

अगर ध्यान से देखे तो बीते कुछ सालो में किसी ने पुरुषो के उत्थान के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाये है। किसी ने अगर कदम उठाये है तो केवल इनको कुचलने के लिए, इनकी आज़ादी के पतन के लिए, और इन्हे बेचारा बनाने के लिए।

बताइये, हजारो साल पहले पुरुषो ने कभी कोई अत्याचार किया होगा किस नारी पर तब से आज तक उसका बदला लिया जा रहा है।

शादीशुदा पुरुष, कुंवारा पुरुष, विधुर पुरुष, तलाकशुदा पुरुष, सारे के सारे ही बेचारे पुरुष। यकीन न आये तो टीवी खोल के देख लीजये, किसी भी धारावाहिक में अगर पुरुष दिखाई दे जाये तो बताईये।और दिख भी जाये तो खुश दिखे तो बताना। किसी न्यूज़ चैनल पर पुरुष विरोधी न्यूज़ न आ रही हो तो बताईये।



मुझे तो भय सताने लगा है की पुरुषो प्रजाति कहीं विलुप्त न हो जाये

किन्तु ऐसे घोर कलियुग में अगर कोई पुरुषो के लिए भगवान बन के, ख़ुदा का फरिश्ता बन के आया है तो वो है BSNL । जी हाँ सही सुने आप, मैं फ़ोन वाले BSNL की ही बात कर रहा हूँ।

 BSNL ने जबसे रात ९ से सुबह ७ की ऑल इंडिया कॉलिंग मुफ्त कर दी है तब से टीवी के रिमोट जैसी स्ट्रेटेजिक चीज पर पुरुषो का अधिपत्य हो चूका है । नहीं तो ९ से ग्यारह में स्टार प्लस और ज़ी टीवी के घनघोर &*यापे  वाले सीरियल्स देख देख के पुरुषो का IQ राहुल गांधी जैसा हो गया था। अब रात के ९ बजते से ही घर की महिला के हाथो में टीवी का रिमोट नहीं, फ़ोन का रिसीवर होता है। और घर का पुरुष स्वच्छन्दता से, अपनी पूर्ण स्वतंत्रता से टीवी में आने वाले सारे चैनल्स चेक कर सकता है। हर २ मिनट में नयी चीज देख सकता है। क्रिकेट, फुटबॉल , TNA  कुश्ती, फैशन जगत की बालाएँ, किंगफ़िशर के कैलेंडर मेकिंग का स्टडी टूर इत्यादि कुछ भी देख सकता है। यह कमाल किया है BSNL ने ।

इतना ही नहीं, अभी यहाँ तक सुनने में आया है की १ अक्टूबर से BSNL ब्रॉडबैंड इंटरनेट में कम से कम २ MBPS की स्पीड मुहैया करायेगा ही करायेगा। याने की अब पुरूषों को अपने मोबाइल /लैपटॉप में कोई भी वीडियो अटक अटक के बफर करा करा के नहीं देखना पड़ेगा। इसका मतलब समझ रहे है आप ? जानता  हूँ आपमें से कईयों के मन के कैसे कैसे विचार उत्पन्न हो रहे होंगे। अभी काबू रखिये। परन्तु १ अक्टूबर से खुल के मजे लीजिये फुल HD में।



धन्य है BSNL जिसकी पुरुष हित में जारी की गयी योजनाओ की वजह से पुरुषो को अपनी खोयी हुई आज़ादी  मिलने को है। पुरुषो के अच्छे दिन आने को है।


नोट: इस लेख के बदले में BSNL वालो ने मेरा कोई बिल माफ़ नहीं किया है न ही कोई विशेष सेवा का लाभ दिया है , परन्तु अगर कोई BSNL कर्मचारी /अधिकारी इसे पढ़के मुझ पे ऐसा कोई उपकार करना चाहे तो मैं कतई मना नहीं करूँगा।





Thursday, 26 February 2015

पप्पू गायब हो गया

बधाई हो, कांग्रेस और देश दोनो को कुछ समय के लिए  राहुल गांधी से निजात मिल गई है। कुछ कार्यकर्ताओं को छोड़ कर पूरी पार्टी अंदर ही अंदर खुश है। यह दीगर है की कोई भी बड़ा नेता इस ख़ुशी को ज़ाहिर नहीं कर पा रहा है।

पप्पू भाईसाब के छुट्टी पर जाने से इतना हाहाकार मचा हुआ है की पूछो ही मत। जैसे शक्तिमान गायब हो गया हो और अब संकट यह है की बच्चो को किल्विश के चंगुल से कौन छुड़ाएगा ?
पप्पू यहाँ रहता भी तो भी कौनसा पत्थर को तराश के हीरा बना रहा था बल्कि उसके जाने के बाद तो शेयर मार्किट उछाल मार रहा है। अब जो होना था वो तो हो गया, किन्तु दुनिया के ४ महान लोग ४ महान बातें तो करते ही है उन्हें कोई माई का लाल नहीं रोक सकता। हमने भी अपने सूत्रों को चारो और भेजा और कम से कम ४ लोगो से राहुल के गायब होने के सस्पेंस के बारे में जानने को कहा। और जिन चार लोगो ने ४ बातें बतायी वो बेहद चौकाने वाली थी। लीजिये आप भी पढ़िए।

१. दिग्विजय सिंह के हिसाब से राहुल गांधी के गायब होने के पीछे आरएसएस का हाथ है। थोड़ा और ज्यादा पूछने पर उन्होंने बताया की राहुल गांधी को कुछ दिनों से खाकी चड्डी पहनने का शौक चढ़ा था जो दिग्विजय सिंह ने खुद देखी थी उनके पायजामे के भीतर। (कब, कैसे और  किन परिस्थितियों में ? इन सबका जवाब वो देने से कतरा गए ). हालांकि उन्होंने ज़ोर देकर कहा की राहुल गांधी का ब्रेन वाश करके उसको RSS वालो ने अपने किसी कैंप में छुपा रखा है।

२. RSS के ऊपर लगे इल्जाम को लेकर हम मोहन भागवत के पास पहुंचे। उन्हें हमने बताया की दिग्गिराजा का क्या कहना है। उन्होंने साफ़ कहा की हमें कोई ऐतराज नहीं है अगर पप्पू RSS ज्वाइन करे।भागवत ने दावा की की उसने RSS की जगह ISIS ज्वाइन कर लिया है अब इसमें हम क्या करे। हम तो उसकी तुरंत "घर वापसी" करवा दे बशर्ते दिग्विजय सिंह उम्र भर के लिए मौन व्रत धारण करे फिजिकली और डिजिटली दोनों।

ऐसा होना तो संभव नहीं है की दिग्गी मौन रख के बैठ जाये तो मतलब RSS वाले तो राहुल की घर वापसी न करवा पाएंगे। फिर हमारे सूत्र पहुंचे सोनिया गांधी के पास।

३. राहुल गांधी के गायब होने के पीछे जितना अच्छी तरह से सोनिया गांधी को पता होगा उतना शायद किसी को नहीं। हमारे सूत्रों ने सोनिया जी से भी जानने की कोशिश की तो उन्होंने एक कहानी सुनायी जो उन्ही के शब्दों में प्रस्तुत है: " मैं पिछले साल अपने हाथो से सरकार चले जाने से दुखी थी और रो रही थी, तभी राहुल ने पूछा की क्यों रो रही हो ? मैंने उसे समझाया की जब कोई चीज अपने पास रहती है तब हमें उसकी अहमियत पता नहीं पड़ती, जब वो अपने हाथो से निकल जाती है तो पता पड़ता है की कितनी जरूरी चीज थी। "
सोनिया जी के हिसाब से यही बात राहुल गांधी ने बड़ी सीरियसली ले ली और खुद की अहमियत बताने के लिए वो थोड़े दिनों के लिए सबसे दूर चला गया है। ताकि हमें और पार्टी के लोगो को उसकी अहमियत का अहसास हो।


वैसे राहुल गांधी के पिता कहा करते थे की हमारे राज में जब हम १ रूपया देते है तो वो आप तक पहुँचते पहुँचते १५ पैसे हो जाता है। यह बात राजीव जी ने यूँही नहीं कह दी थी इसके लिए प्रेरणा स्त्रोत उनका अपना बेटा था। घर का कोई भी सदस्य या शिक्षक जब भी राहुल गांधी को कोई बात कहता तो उसका १५% ही राहुल को समझ आता था बाकी सब बेकार जाता था । बचपन से ही राहुल ऐसे है और कांग्रेस ने जनता को शुरू से राहुल ही बनाया है। ऐसा हमारा कहना नहीं है यह बात बताई है उनकी सगी बहन प्रियंका ने जब हमने उनसे राहुल के गायब होने के बारे में पूछा।

४. प्रियंका गांधी ने बताया की राहुल गांधी को एक बार उन्होंने कहा की तू कैजरीवाल से कुछ सिख, आम आदमी की तरह रहा कर तो राहुल ने काउंटर क्वेश्चन किया की कैसे ? कोई उदाहरण दीजिये। तब प्रियंका ने कहा की जैसे तू वेकेशन पर जाता है तो बजट होलिडे लिया कर। सस्ता होता है और आम आदमी की तरह लगता है। बस इसी बात को गंभीरता से लेते हुए राहुल ने बजट के दौरान वेकेशन ले लिया।

इन ४ लोगो की ४ बातों के अलावा हमने सभी ४ लोगो की खबर रखने वाले कुछ पत्रकारों से भी चर्चा की तो उन्होंने जो थ्योरी हमे बताई वो सुन कर तो लगने लगा है की कलयुग का अंतिम चरण शुरू होने को है और जल्द ही प्रलय आने वाला है।

सुनिए पत्रकारों का क्या कहना है : उनके हिसाब से एक थ्योरी तो यह भी है की जिस दिन से राखी सांवत ने AIB रोस्ट वाला अपना बयान दिया की करन जौहर और रणवीर सिंह की आवाज़ डब करके गालियां निकाली गयी है तब से वो और राहुल गांधी एक साथ गायब है।आशंका यह भी जताई जा रही है की दोनो ने भाग के शादी करने का फैसला कर लिया है और इस समय यूगांडा के किसी गांव में वहां के गरीबो की एक बस्ती में अपना हनीमून मना रहे है।

खैर सच्चाई जो भी हो फिलहाल सोनिया गांधी और कांग्रेस के लिए बड़ी राहत की बात है और मीडिया को कुछ और दिनों का मसाला मिल गया है। वहीं कांग्रेस के कुछ युवा कार्यकरता अपने युवा ह्रदय सम्राट के गायब होने का दुःख भी मना रहे है। आपको भी अगर पप्पू की कोई खबर मिले तो जरूर बताईयेगा।



देश भक्ति

  देश भक्ति , यह वो हार्मोन है जो हम भारतियों की रगो में आम तौर पर स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस  या भारत पाकिस्तान के मैच वाले दिन ख...