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Sunday, 2 April 2017
Tuesday, 12 April 2016
तलाश - जीवन यात्रा
अँधेरी कोठरी में ढूँढता हूँ एक दीपक उजाले के लिए
जैसे भटका हुआ परिंदा ढूंढे कोई दरख़्त सुस्ताने के लिए
चेहरो की इस भीड़ में तलाशता हूँ एक चेहरा जिसे कह सकु मैं अपना
जैसे हर सुबह उठके याद करे कोई एक भुला हुआ सा सपना
असंख्य दर्पणों में खोजता हूँ खुद की एक तस्वीर धुँधली सी
जैसे हजारो बार किसी से मिलने पर भी उसकी हर मुलाक़ात लगे पहली सी
कहने को तो जी रहा हूँ मैं, पर अभी भी तलाश है ज़िन्दगी की
ऊपर वाला भी राह दिखाए तो कैसे, उसे भी तो खोज है सच्ची बंदगी की
कुल मिलाकर बस बात इतनी सी है की
ढूंढ रहा हूँ मैं अपनी आत्मा, जो खो गयी है कहीं मेरे ही भीतर
जैसे तेज़ बहती नदी थक हार कर तलाशती है अपना समंदर
यह जीवन एक यात्रा है अनन्त खोज की, जिसमे न जाने क्या ढूंढ रहा है हर कोई और इसी खोज में खो दे रहा है स्वयं को कहीं।
जैसे भटका हुआ परिंदा ढूंढे कोई दरख़्त सुस्ताने के लिए
चेहरो की इस भीड़ में तलाशता हूँ एक चेहरा जिसे कह सकु मैं अपना
जैसे हर सुबह उठके याद करे कोई एक भुला हुआ सा सपना
असंख्य दर्पणों में खोजता हूँ खुद की एक तस्वीर धुँधली सी
जैसे हजारो बार किसी से मिलने पर भी उसकी हर मुलाक़ात लगे पहली सी
कहने को तो जी रहा हूँ मैं, पर अभी भी तलाश है ज़िन्दगी की
ऊपर वाला भी राह दिखाए तो कैसे, उसे भी तो खोज है सच्ची बंदगी की
कुल मिलाकर बस बात इतनी सी है की
ढूंढ रहा हूँ मैं अपनी आत्मा, जो खो गयी है कहीं मेरे ही भीतर
जैसे तेज़ बहती नदी थक हार कर तलाशती है अपना समंदर
यह जीवन एक यात्रा है अनन्त खोज की, जिसमे न जाने क्या ढूंढ रहा है हर कोई और इसी खोज में खो दे रहा है स्वयं को कहीं।
Monday, 5 October 2015
डर लगताहै
कितनी तेज़ है आंधी, न जाने कब यह बूढ़ा पेड़ गिर जाये
मुझे तो धुप में खड़े रहने दो, छाँव से डर लगताहै।
सुना है फिर एक अन्नदाता मर गया भूख से मेरे गांव में
मुझे तो शहर की कोलाहल में ही रहने दो, गांव से डर लगता है।
नदियां की बेचैन लहरे, हिचकोले खाती नाव
तैर के पार कर लूंगा , नाव से डर लगताहै।
आज फिर एक निर्दोष मारा गया धरम के नाम पे, शायद चुनाव होने को है कहीं
रहने दो, मत बदलो सरकार को, मुझे अब चुनाव से डर लगता है।
Sunday, 21 June 2015
पिता
पिता
हमारी पहचान के जनक है वो।
हमारे अस्तित्व के घटक है वो।
स्वयं के कंठ को सुखा रखके,
हमारी हर तृष्णा को शांत किया
स्वयं भूख की ज्वाला में धधक कर ,
हमें भूख की परिभाषा से भी वंचित किया।
हमारी असीमित इच्छाओ की पूर्ति के लिए ,
स्वयं की हर इच्छा को रौंदा है जिन्होंने
ऐसे त्यागी उपासक है वो।
हमारा जीवन परिणाम के जिनकी कठिन साधना का
ऐसे योगी, साधक हमारे पिता है वो।
संसार के सारे पिताओ को प्रणाम !!
Thursday, 20 November 2014
अजनबी हवा
यह कविता मेने आज से करीब ६- ७ साल पहले तब लिखी थी जब हम लोग कॉलेज से पास आउट होकर अपनी अपनी नौकरियों की तलाश में या जॉइनिंग के लिए निकल रहे थे, जब बीता हुआ कॉलेज का हर लम्हा आँखों के सामने फ़्लैश बैक की तरह घूम रहा था। हम सभी ने कॉलेज में एडमिशन इसी दिन के लिए तो लिया था की एक दिन अच्छी कंपनी में नौकरी करने जायेंगे, पर जॉब मिलने की ख़ुशी से ज्यादा इस बात का अफ़सोस था की कॉलेज में बने दोस्त बिछड़ जायेंगे, अलग अलग शहरों और कंपनियों में चले जायेंगे। और वैसे भी किसी महान शख्स ने कहा है की दोस्त कॉलेज लाइफ तक ही मिलते है उसके बाद जो मिलते है वो तो सिर्फ कलीग्स होते है।
आईये एक "एमेच्योर कवि" की हिंदी -उर्दू मिश्रित कविता की चंद पंक्तियों का आनंद लीजिये, और अच्छी लगे या बुरी , कमेंट करके बताईये।
आईये एक "एमेच्योर कवि" की हिंदी -उर्दू मिश्रित कविता की चंद पंक्तियों का आनंद लीजिये, और अच्छी लगे या बुरी , कमेंट करके बताईये।
कदमो को जुदा जुदा सी लगे यह जमीं।
इन सांसो को हवाएँ भी लगने लगी अजनबी।
सर पर है जो आसमाँ वो भी लगता अब अपना नहीं।
लम्हा लम्हा गुजरता यह वक़्त क्यों थमता नहीं।
इन अजनबी हवाओं के साथ बाह चले है सभी।
कुछ ख्वाब पुरे हुए, कईं और ख्वाब बाकी है अभी।
राहें बदल जाएंगी, ख्वाब बदल जायेंगे।
पर इन ख्वाबो को पनाह देंगी ऑंखें वही।
हमने न सोचा था की ये पल इतनी जल्दी आएंगे।
हँसते खेलते ये साल यूँही बीत जायेंगे।
जिस डोर से जिंदगी को नचाया था हमने कभी।
उसी डोर पर कठपुतलियों की तरह नाचेंगे हम सभी।
जंदगी नए मोड़ पर खड़ी है अपनी हकीक़त का आईना लेकर।
और एक हम है जो इस वक़्त को थाम रहे है हाथो से पकड़ कर।
यह वक़्त अब नहीं थम पायेगा, पहिये की तरह घूमता जायेगा।
इन चंद सालो का हर एक लम्हा यादों के सुनहरे पिंजरे में कैद हो जायेगा।
कॉलेज से भले ही हम हो रहे है विदा।
पर खुद को कभी न समझना दोस्तों से जुदा।
हम फिर मिल जायेंगे, वही हंगामा फिर मचाएंगे।
मिल कर फिर इस जिंदगी को उसी की डोर से नचाएंगे।
-प्रितेश दुबे
Friday, 29 November 2013
Saturday, 26 October 2013
सूरज स्त्री है या पुरुष ? ( Gender of Sun)
डिस्क्लेमर: यह पोस्ट महिला दिवस के उपलक्ष्य में इस दुनिया की समस्त नारीयों को समर्पित है, तथा अंत में उन्ही नारीयों के लिए एक सन्देश भी निहित है। अतः कृपया पूरी पोस्ट पढ़े।
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सूरज, भानु, सूर्य, प्रभाकर, दिनकर, आदित्य, भास्कर, रवि, दिवाकर और आफताब.. …
मैं यहा किसी स्कूल की कक्षा मे हाज़िरी नही ले रहा हूँ, मैं तो सूरज के भिन्न भिन्न नामो का उच्चारण कर रहा हूँ, आपने गौर किया कुछ, जीतने भी नाम है सूरज के सभी पुल्लिंग में है, मतलब सूरज को एक पुरुष की उपाधि दी गयी है, पौराणिक मान्यताओ की भी माने तो सूर्य देव, एक नर ही है|
परंतु मैं सोंच रहा था कि नाम और पौराणिक कथाओ को एक तरफ रख कर सोचे तो सूरज मे पुरुषो के कोई ज़्यादा गुण नज़र नही आते है।
आप बोलोगे की कैसे, तो भाई साब(हांजी, मैं भाईयों से ही कह रहा हूँ) एक बात बताईए जब आप कोई बहुत ही सुंदर, आकर्षक नैन नक्श वाली, भरपूर डील-डौल वाली कोई कन्या को देखते है तो आप अपनी "कूल लॅंग्वेज" मे क्या कहते है ? ....... "Woww she is so hot" अथवा बड़ी हॉट है बे.... ऐसे ही जुमले निकलते है ना आपके मुँह से, अब यह चर्चा फिर कभी करेंगे की लड़कियों के आकर्षण का पैमाना तापमान से कैसे पता चलता है, बहरहाल बात करते है हॉट की, तो आप किसी पुरुष को हॉट नही कहेंगे, कन्या को ही कहेंगे है की नही? तो इस हिसाब से सूरज तो हॉटेस्ट हुआ/हुई, तो यह गुण तो स्त्री का ही हुआ ना।
चलिए एक और उदाहरण लेते है, जब वही अति ताप वाली कन्या मतलब होटेस्ट गर्ल आपके क्षेत्र में , कॉलेज में , ऑफीस में या पड़ौस में ही रहने वाली है, तो आप उसके चक्कर काटने शुरू कर देते हो, गोल गोल round round , हैं ना भाई साब, सच कह रहा हूँ ना? माफ़ करना अगर बात बुरी लगे तो ।
फिर आपको पता पड़ता है की ऐसे चक्कर काटने वाले आप अकेले नही है और भी भाई लोग है लाइन मे, कोई थोड़ा नज़दीक तो कोई थोड़ा दूर, पर है चक्कर काटने को मजबूर। अब बात करते है सूरज की, इसके आसपास चक्कर काटने वालो की भी कोई कमी नही है, मंगल से लेके शुक्र, गुरु से लेके बुध और शनि से लेके यम, अरुण से लेके वरुण तक सब के सब उस बेचारे / बेचारी सूरज के पीछे नहा धोके या बिना धोये पड़े है।
इसीलिए इन्ही सब पुरुष ग्रहो से तंग आके प्रथ्वी भी सूरज के इर्द-गिर्द होस्टल वॉर्डन की तरह चक्कर काटती रहती है, परंतु बेचारी पृथ्वी के ही पीछे एक दूसरा मजनूँ "चाँद" पड़ा हुआ है, घूमता रहता है आगे पीछे।
एक और उदाहरण देखते है, वो अंग्रेजी में कहते है न "लास्ट बट नोट दी लिस्ट" याने की आखिरी उदहरन जो आपको वाकई में सोचने पर मजबूर कर देगा की सूरज पुरुष है या स्त्री , अगर कोई आपको कहे कि जाओ सूरज को एक जैसा निहारो, तो आप क्या करेंगे? हाँ हाँ ऐसा कौन पागल कहेगा की सूरज को निहारो परन्तु मान लो न की अगर ऐसा करना ही पड़े तो आप कैसे करेंगे ? सनग्लासेस का इस्तेमाल करेंगे और पुरे आत्मविश्वास के साथ सूरज कि आँखों में याने उसकी किरणो में आँखें डाल के देखेंगे। अब वहींअगरआपको किसी कन्या को देखना हो बिना किसी को पता पड़े तो "सेम तो सेम "" वही सनग्लासेस पहन के भरपूर ताडेंगे । तो सूरज में और कन्या में समानता हुई कि नहीं ?
तो देखा आपने सूरज का नाम सूरज नही सुरजिया बाई होना चाहिए, जो अपने आकर्षण के जाल मे फंसा कर इतने सारे गृहो को अपने आगे पीछे घुमा रहीहै।
बात यहीं ख़तम नही हुई, माना दसियों गृह सुरजिया के चक्कर काटते फिरते है, परन्तु मजाल है कि कोई थोडा करीब जाने कि हिम्मत भी कर पाये। दूर से ही दर्शन करके सुखी है सभी। सुरजिया भी अपनी पूरी चमक लिए रोजाना अपने नियत समय पर घर से निकलती है और नियत समय पर घर पँहुचती है, लाखों करोडो सालो से ऐसा ही चला आ रहा है। सुरजिया कभी डरी नहीं , घबराई नहीं , सदियों से चक्कर काट रहे गृह भी कभी उसका कुछ बिगाड़ नहीं पाये ।
मैं अपनी इस पोस्ट के माध्यम से सभी नारीयों से यही कहना चाहूँगा कि आप भी सूरज कि भांति ही हो, चमकीली और दिशा देने वाली, कहते है इस संसार में राह कि दिशा का ज्ञान सूरज से और जीवन कि दिशा का ज्ञान एक नारी से ही मिलता है। तो इस जगत कि नारी तुम सूरज कि तरह अपने अक्ष पर विराजमान हो, चमको और दिशा निर्धारण करो, परन्तु किसी के दुस्साहस से मत डरो, और अपने भीतर जलने वाली ज्वाला से उसका सर्वनाश करो ।
------चित्र इंटरनेट से साभार
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सूरज, भानु, सूर्य, प्रभाकर, दिनकर, आदित्य, भास्कर, रवि, दिवाकर और आफताब.. …
मैं यहा किसी स्कूल की कक्षा मे हाज़िरी नही ले रहा हूँ, मैं तो सूरज के भिन्न भिन्न नामो का उच्चारण कर रहा हूँ, आपने गौर किया कुछ, जीतने भी नाम है सूरज के सभी पुल्लिंग में है, मतलब सूरज को एक पुरुष की उपाधि दी गयी है, पौराणिक मान्यताओ की भी माने तो सूर्य देव, एक नर ही है|
परंतु मैं सोंच रहा था कि नाम और पौराणिक कथाओ को एक तरफ रख कर सोचे तो सूरज मे पुरुषो के कोई ज़्यादा गुण नज़र नही आते है।
आप बोलोगे की कैसे, तो भाई साब(हांजी, मैं भाईयों से ही कह रहा हूँ) एक बात बताईए जब आप कोई बहुत ही सुंदर, आकर्षक नैन नक्श वाली, भरपूर डील-डौल वाली कोई कन्या को देखते है तो आप अपनी "कूल लॅंग्वेज" मे क्या कहते है ? ....... "Woww she is so hot" अथवा बड़ी हॉट है बे.... ऐसे ही जुमले निकलते है ना आपके मुँह से, अब यह चर्चा फिर कभी करेंगे की लड़कियों के आकर्षण का पैमाना तापमान से कैसे पता चलता है, बहरहाल बात करते है हॉट की, तो आप किसी पुरुष को हॉट नही कहेंगे, कन्या को ही कहेंगे है की नही? तो इस हिसाब से सूरज तो हॉटेस्ट हुआ/हुई, तो यह गुण तो स्त्री का ही हुआ ना।
चलिए एक और उदाहरण लेते है, जब वही अति ताप वाली कन्या मतलब होटेस्ट गर्ल आपके क्षेत्र में , कॉलेज में , ऑफीस में या पड़ौस में ही रहने वाली है, तो आप उसके चक्कर काटने शुरू कर देते हो, गोल गोल round round , हैं ना भाई साब, सच कह रहा हूँ ना? माफ़ करना अगर बात बुरी लगे तो ।
फिर आपको पता पड़ता है की ऐसे चक्कर काटने वाले आप अकेले नही है और भी भाई लोग है लाइन मे, कोई थोड़ा नज़दीक तो कोई थोड़ा दूर, पर है चक्कर काटने को मजबूर। अब बात करते है सूरज की, इसके आसपास चक्कर काटने वालो की भी कोई कमी नही है, मंगल से लेके शुक्र, गुरु से लेके बुध और शनि से लेके यम, अरुण से लेके वरुण तक सब के सब उस बेचारे / बेचारी सूरज के पीछे नहा धोके या बिना धोये पड़े है।
इसीलिए इन्ही सब पुरुष ग्रहो से तंग आके प्रथ्वी भी सूरज के इर्द-गिर्द होस्टल वॉर्डन की तरह चक्कर काटती रहती है, परंतु बेचारी पृथ्वी के ही पीछे एक दूसरा मजनूँ "चाँद" पड़ा हुआ है, घूमता रहता है आगे पीछे।
एक और उदाहरण देखते है, वो अंग्रेजी में कहते है न "लास्ट बट नोट दी लिस्ट" याने की आखिरी उदहरन जो आपको वाकई में सोचने पर मजबूर कर देगा की सूरज पुरुष है या स्त्री , अगर कोई आपको कहे कि जाओ सूरज को एक जैसा निहारो, तो आप क्या करेंगे? हाँ हाँ ऐसा कौन पागल कहेगा की सूरज को निहारो परन्तु मान लो न की अगर ऐसा करना ही पड़े तो आप कैसे करेंगे ? सनग्लासेस का इस्तेमाल करेंगे और पुरे आत्मविश्वास के साथ सूरज कि आँखों में याने उसकी किरणो में आँखें डाल के देखेंगे। अब वहींअगरआपको किसी कन्या को देखना हो बिना किसी को पता पड़े तो "सेम तो सेम "" वही सनग्लासेस पहन के भरपूर ताडेंगे । तो सूरज में और कन्या में समानता हुई कि नहीं ?
तो देखा आपने सूरज का नाम सूरज नही सुरजिया बाई होना चाहिए, जो अपने आकर्षण के जाल मे फंसा कर इतने सारे गृहो को अपने आगे पीछे घुमा रहीहै।
बात यहीं ख़तम नही हुई, माना दसियों गृह सुरजिया के चक्कर काटते फिरते है, परन्तु मजाल है कि कोई थोडा करीब जाने कि हिम्मत भी कर पाये। दूर से ही दर्शन करके सुखी है सभी। सुरजिया भी अपनी पूरी चमक लिए रोजाना अपने नियत समय पर घर से निकलती है और नियत समय पर घर पँहुचती है, लाखों करोडो सालो से ऐसा ही चला आ रहा है। सुरजिया कभी डरी नहीं , घबराई नहीं , सदियों से चक्कर काट रहे गृह भी कभी उसका कुछ बिगाड़ नहीं पाये ।
मैं अपनी इस पोस्ट के माध्यम से सभी नारीयों से यही कहना चाहूँगा कि आप भी सूरज कि भांति ही हो, चमकीली और दिशा देने वाली, कहते है इस संसार में राह कि दिशा का ज्ञान सूरज से और जीवन कि दिशा का ज्ञान एक नारी से ही मिलता है। तो इस जगत कि नारी तुम सूरज कि तरह अपने अक्ष पर विराजमान हो, चमको और दिशा निर्धारण करो, परन्तु किसी के दुस्साहस से मत डरो, और अपने भीतर जलने वाली ज्वाला से उसका सर्वनाश करो ।
सूरज सी चमक है तुझमे अगर
तो उसका ताप भी है
दुःखियों को देख के पिघल जाए, हृदय मे ऐसी नरमी है
तो दूर्जनों को जला कर भस्म कर दे ऐसी गरमी भी है
हैं नारी तू जननी है, विधाता है, रूप है काली का, चंडी का
राक्षसो को जलाके कर सकती है तू राख
तेरी तरफ एक बार भी उठे जो उनकी आँख !!
------चित्र इंटरनेट से साभार
Friday, 7 June 2013
World Environment Day Special ( विश्व पर्यावरण दिवस विशेष)
विश्व पर्यावरण दिवस पुरे विश्व में धूमधाम से मनाया गया, कही कही तो दिवस की जगह पूरा हफ्ता ही पर्यावरण को बचाने के लिए जागरूकता अभियान चलाये जा रहे है।
हमारे ऑफिस में ही ले लीजिये, सप्ताह में २ दिन टिश्यू पेपर और डिस्पोजल गिलास पर पाबन्दी लगा दी गयी, हम बेचारे हिंदुस्तानी लोग तो जैसे तैसे पानी से धोके रुमाल से पोंछ के काम चला गए, पर बेचारे अमरीकन लोग जो २-४ दिन की विजिट पे आये थे फस गए पर्यारण दिवस के चक्कर में । एक तो हमारे कैफेटेरिया का स्पेशल मसालेदार खाना जिसको खाके अच्छे खासे लोग यह गाना गाने लगते है " फायर ब्रिगेड मंगवा दे तू अंगारे पर है पिछवाडा"! उस खाने को खाके फिरंगी ( so called Clients) मेहमान तो यह गाना लूप में गाते है, और उपर से "No tissue paper and no disposal glasses available".
चलिए ऑफिस की बात यही ख़तम करते है और घर की बात करते है, विश्व पर्यावरण दिवस पर घर आये और बीवी से कहा की बहुत दिन हो गए कुछ लिखा नहीं चलो पर्वायारण पर कुछ लिखता हूँ, बस इतना सुना की बीवी ने अपना "Romantic Movie Channel" बदला और तुरंत "Action Movie channel" लगा के बोली, क्यों???? सब पर कुछ न कुछ लिखो........ कभी मुझ पे भी कोई आर्टिकल या कविता लिखो।
बस हम अपना "Discovery Channel" म्यूट करके बैठे गए और अंत में बोले की चलो कुछ तुम पर ही कुछ लिखने का ट्राय करते है , तुम ही तो अभी मेरा पर्यावरण हो जो कुछ सालो में धरोहर बन जाओगी तो चलो तुम पर ही कुछ लिखते है।
बस इतना कहा और बैठे सोचने की क्या लिखे और जो कुछ भी दीमाग में आया वो कुछ इस तरह से था।
Sunday, 12 May 2013
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