Thursday, 4 August 2016

दिल्ली की सैर



भारत में लोग-बाग अपने फेवरेट सितारों से मिलने बम्बई जाते है, एक झलक पाने को घंटो हजारो की भीड़ में खड़े रहते है। कुछ बावले लोग तो चुपके से सितारों के घरो में घुस तक जाते है और आराम से घूम-घाम के सकुशल लौट भी आते है। अभी हाल ही में एक भाईसाब ने पुरे ९ घंटे अमिताभ बच्चन के घर में गुजारे वो भी बगैर किसी को भनक लगे।
जब मैंने ये ख़बर पढ़ी तो सोचा की क्यों न मैं भी अपने पसंदीदा मनोरंजक सितारों के दर्शन के लिए उनके घर में घुसपैठ करूँ ? बस यही सोच के मैंने प्लान बनाया दिल्ली सैर का। अजी हाँ मेरा मनोरंजन करने वाले सभी सितारे दिल्ली में ही रहते है।


तो भाईसाब हम पंहुचे दिल्ली और सबसे पहले घुसे अपने नंबर १ मनोरंजक सितारे के बैडरूम में। इस सुपरस्टार को लोग प्यार से पप्पू बुलाते है। ये एक बहुत बड़े खानदान के वारिस है। जैसे ही छुपते -छुपाते इनके घर में दाखिल हुए तो हमने देखा की कमरे के एक कोने में कुछ बुझी हुयी चिलम पड़ी थी, सेंटर टेबल पर कुछ क्रेडिट कार्ड्स और कोई सफ़ेद पाउडर बिखरा पड़ा था टीवी पर फुल वॉल्यूम में डोरीमोन का कार्टून चल रहा था, थोड़ा और नज़र को इधर उधर दौड़ाया तो पाया की ये जनाब अपने पुरे घर में फ़ोन लेकर दौड़ लगा रहे थे। थोड़ा और नज़दीक से जानने की कोशिश की तो हमने पाया की ये तो पोकेमोन-गो नामक मोबाइल गेम खेल रहे थे वो भी घर के अंदर क्योंकि मम्मी ने बाहर जाने से मना किया है। बड़ा अच्छा लगा इन्हें इतना नज़दीक से देखकर। जैसे बाल-गोपाल की कलाएं देखकर गोकुलवासियों का मन मोहित होता होगा बिलकुल वैसे ही हम बाबा को देखकर मोहित होते रहे।

वहाँ से निकल कर फिर हम घुसे ७-रेसकोर्स रोड वाले बंगले में, यकीन मानिये बड़ी आराम से घुस गए यहाँ भी। रात हो चुकी थी और इसी अँधेरे का फायदा उठा कर हम नमो जी के कमरे में घुस गए। ये चमकती सफ़ेद दाढ़ी क्या खूब चांदनी बिखेर रही थी। वो अपनी कुर्सी पर बैठकर कोई किताब बांच रहे थे , शीर्षक थोड़ी देर तक तो नहीं देख पाया अंग्रेजी में था किन्तु थोड़ी मशक्कत के बाद पता चल ही गया उनकी किताब का नाम -Gulliver's Travels था। उनके कमरे की दिवार पर दुनिया का नक्शा टंगा हुआ था और लगभग आधे नक़्शे पर हरे और लाल रंग के पिन घुसे हुए थे। शायद ये पिन इंगित कर रहे थे कि नक़्शे की ये जगहें जहाँ जहाँ पिन लगी थी सारी नमोजी की चरणधूलि पाके धन्य हो चुकी थी। किन्तु लाल और हरे का मतलब क्या हुआ भला? एक लाल पिन हमारे प्रिय पडौसी देश के सीने पर भी घुसी हुयी थी। ओह मतलब समझा हरी पिन मतलब जहाँ आमंत्रण पर पधारे थे और लाल पिन मतलब जहाँ जाके नमोजी ने कहा था "सरप्राईज़ ". . .
बस अब इतनी संवेदनशील जगह पर ज्यादा समय नहीं बिता सकता था तो चुपचाप मैं वहां से कूच कर गया।

अगला और अंतिम पड़ाव था भारत के सबसे ज्यादा चर्चित और चहेते CM का घर। प्यार से इनको भी कईं नाम दिए गए है परंतु इन्हें किसी परिचय की आवश्यकता नहीं है। पहले धरने-आंदोलनों से और फिर ट्विटर के माध्यम से ये कईं लोगो का मनोरंजन करते आ रहे है। रात हो चुकी थी मैं गलती से इनके बैडरूम में दाखिल हो गया था सो डर और शर्म के मारे इनके बेड के नीचे जाके घुस गया था। तभी भाईसाब और भाभी जी आये मुझे कुछ सूझ नहीं रहा था की यहाँ से कैसे निकलूँ इसलिए चुपचाप वहीं इनके सोने का इंतजार करता रहा। अब आपको पता ही है कि किसी दंपत्ति के बैडरूम चुपके से उनकी बातें सुनना जुर्म है और उन बातो को फिर ज़माने को बताना तो घोर अपराध है। किन्तु लाख कोशिशो के बावज़ूद मैं खुद को रोक नहीं पाया, न सुनने से न ही सुनाने से। तो सुनिये :
मैडम : कितने दिन हो गए आपने रोमांस तो क्या रोमांटिक बातें भी नहीं करी मुझसे। कितने साल हो गए आप मुझे फिल्म दिखाने भी नहीं ले गए हर बार उस मुए मनीष को ले जाते हो। आखिर कब तक चलेगा ऐसा ?
भाई साहब खांसते हुए और मफलर को उतार के साइड में रखते हुए बोले : जानू मैं तुमसे कितना प्यार करता हूँ ये मुझे ट्वीट करके बताने की जरुरत नहीं। मैं तुम्हे डेट पे ले जाना चाहता हूँ, बच्चो को पिकनिक पे ले जाना चाहता हूँ, तुम्हे फिर से पहले जैसा रोमांस करना चाहता हूँ पर क्या करूँ ? मुझे मोदीजी ये सब करने ही नहीं देते।

इतने में मेरी आँख लग गयी और जब खुली तो खुद को अपने कमरे में स्वयं के बिस्तर पर पाया। धत्त तेरे की ये दिल्ली की मनमोहक सैर तो एक स्वप्नदोष निकल गया मेरा मतलब दोषपूर्ण स्वप्न निकल गया।

 नोट: चित्र गूगल इमेज सर्च के सौजन्य से

Tuesday, 14 June 2016

पहली बारिश



बारिश की पहली बौछार, बिजली की चमकार, मिट्टी की सौंधी महक और पहला -पहला प्यार। अरे अरे आप तो रोमांटिक होने लगे , रुकिए तो सही। श्रृंगार रस  से भरी ये बातें अब जवानी में अच्छी लगती है किन्तु बचपन में तो इन सबके मायने अलग ही हुआ करते थे।

वैसे तो इस पहली बारिश के मायने धरती पर निवास करने वाली हर प्रजाति के हर उम्र, लिंग, और व्यवसाय के हिसाब से अलग अलग हो सकते है। परन्तु मैँ आज संक्षिप्त में बचपन की ही बात करूँगा।

जून का आधा महीना बीत जाने के बाद जैसे ही मौसम सुहाना होने लगता, बादलों का झुण्ड आवारागर्दी करते हुए बरसने को बेचैन होता, बिजलियाँ लूप-झूप करने लगती वैसे ही हमारे दिलो की धड़कने बढ़ने लगतीं थी। यहाँ धड़कनो का ताल्लुक कतई रोमांटिक भावनाओ से नहीं है।  ये पहली बारिश संकेत होती थी गर्मी की छुट्टियां ख़त्म होने का, ये कड़कती बिजलियाँ कहती थी बंद करो ये क्रिकेट और गरजते बादल संदेसा लाते थे की अब स्कूल शुरू होने को है,और इसीलिए तेज़ होती थी धड़कने।



हर इंसान को ईश्वर का वरदान होता है की जो चीज वो टाल नहीं सकता उसके साथ ताल-मेल बैठा ही लेता है। फिर चाहे वो शादी हो, नौकरी हो या स्कूल। इसी प्रकार छुट्टियों का खत्म होना, स्कूल का खुलना और पढ़ाई का शुरू होना वो घटनाएँ थी जिन्हे टाला नहीं जा सकता था। इसलिए इन सब के साथ ताल-मेल बैठाया जाता था इस लालच के साथ की अब सब कुछ नया नया होने को है। नयी क्लास, नयी किताबें, नया बस्ता ( स्कूल बैग) नयी यूनिफार्म और भी कईं चीजे।

तब मिट्टी की खुशबू से ज्यादा अच्छी लगती थी नयी किताबों की महक, जिस प्रकार पहली पहली बूंदे सुखी पड़ी जमीन को भिगोती थी उसी प्रकार नयी-नयी पेंसिल से कोरी कोरी नोटबुक पर नाम लिखा जाता था। 
नाम -> प्रितेश दुबे 
विषय -> हिंदी 
कक्षा ->४ थी 
 जैसे पहली बारिश धरती को धानी चुनर से ढँक देती थी उसी प्रकार हम अपनी किताबो को भूरे कवर से ढंका करते थे। स्कूल खुलने के समय की खरीदी किसी शादी ब्याह की शॉपिंग से कम न होती थी। घर का माहौल स्कूलमय हो जाया करता था। पापा किताबो पर कवर चढ़ाते और माँ यूनिफार्म की फिटिंग सही करती। और हम अपने नए बस्ते को ज़माने में व्यस्त रहते। 
और हाँ WWF के पहलवानो वाले, डिज़्नी के कार्टून वाले और क्रिकेटर्स के फोटो वाले स्टिकर्स का तो बोलना भूल ही गया। 

ऐसा नहीं है की पहली बारिश सिर्फ हमारी धड़कने तेज़ करती थी बल्कि पापा को भी मन ही मन परेशान करती थी। स्कूल खुलने पर हमारा नया बस्ता तो नयी किताबो-कॉपियों से भर जाता था परन्तु शायद उनका बस्ता (बटुआ)खाली हो जाया करता था। जो चीज टाली  नहीं जा सकती उसके साथ ताल-मेल बिठाना भी तो उन्होंने ही सिखाया था तो वो भी इस परिस्थिति से ताल-मेल बैठा ही लेते थे हर बार। 

बारिश तब भी आती थी, बारिश अब भी आती है। स्कूल तब भी खुलते थे, स्कूल अब भी खुलते है। पापाओं की जेब तब भी खाली होती थी और अब भी खाली होती है। सब कुछ वैसा का वैसा है सिवाए बचपन के। बचपन अब वैसा नहीं रहा।



Thursday, 14 April 2016

बाबा साहेब आंबेडकर

बाबा साहेब आंबेडकर की १२6 वीं  जयंती मनाई जा रही है और बड़े धूमधाम से ही मनाई जा रही है। पिछले कुछ दिनों से चंदा उगाही का कारोबार भी चल रहा है। हमारे देश में कोई भी महोत्सव चाहे वो धार्मिक हो, राजनैतिक हो या सामाजिक हो उसकी तैयारी बड़े जोरो शोरो से होती है। "जोर" लगा लगा के चन्दा उगाया जाता और फिर उस चंदे से हाई वोल्टेज DJ वाले बाबुओं से "शोर" करवाया जाता है। ऐसा अमूमन सभी प्रमुख महोत्सवों के दौरान होता है। (सभी मतलब सभी)

हाँ तो हम बात कर रहे थे बाबासाहेब आंबेडकर की १२6 वीं  जयंती की तो सभी राजनैतिक दल, सामाजिक कार्यकर्ता, और दलितों के, पिछड़ो के मसीहा लोग आज के दिन अपने वातानुकूलित ऐशो -आराम छोड़ के १-२ जगह भाषण देंगे, पिछली, मौजूदा और आने वाली सभी सरकारों को गरियाएंगे और घर जाके २-४ पेग मार के सो जायेंगे। ऐसा ही होता आया है बरसो से।



बरसो से हम सब के मन में राजनैतिक दलों ने बाबासाहेब की एक छवि बना दी है की वो दलित नेता थे। बाबासाहेब का योगदान सिर्फ दलितों के उत्थान के लिए ही सिमित था। हमारी भी स्कूली किताबो ने हमे ज्यादा कुछ नहीं पढ़ाया बाबासाहेब के बारे में सिवाए इसके की वो हमारे संविधान के निर्माता थे।

बाबासाहेब आंबेडकर को इतना "सेलिब्रेट" करने वाले भी उनके कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण योगदानों के बारे में शायद ही जानते होंगे। आइए आपको बताता हूँ की "भारत के आज़ाद होने के बाद" बाबासाहेब का क्या क्या योगदान रहा है देश के लिए। (जो वाक्य बोल्ड और रेखांकित है उसका महत्त्व भी आप समझेंगे लेख के अंत में ).

१. RBI को भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ कहा जाता है, इसकी परिकल्पना बाबासाहेब ने की थी।

२. भारतीय वित्त आयोग जो की भारतीय राज्यों और केंद्र के बिच वित्त प्रबंधन की प्रमुख कड़ी है का गठन भी बाबासाहेब के प्रयासों से हुआ था।

३. संविधान में "हिन्दू कोड बिल" को कानूनी दर्जा दिलाने की जद्दोजहद भी आंबेडकर ने की थी, इस बिल का मकसद महिला सशक्तिकरण, सती प्रथा और दहेज़ प्रथा का उन्मूलन था। अगर यह बिल पास हो जाता तो १९५१ से ही असल "Women Empowerment" की शुरुआत हो जाती। परन्तु ऐसा हो नहीं पाया और २०१४ में राहुल गांधी को "Women Empowerment" शब्द के रट्टे लगाने पड़े।

४. श्रम मंत्री रहते हुए उन्होंने आधिकारिक कामकाज के घंटो को १२ से घटवा के ८ करवाया। (आईटी वालो को तो अब तक अपने बाबासाहेब का इंतजार है )

५. कश्मीर में आर्टिकल ३७०, जिसके बूते पर कईं सरकारे आई और गयी।  इसी आर्टिकल ३७० को पूरी तरह से नकारने का साहस भी बाबासाहेब ने दिखाया था। उन्होंने कश्मीरियों से कहा था की आप चाहते हो की आपकी सीमा सुरक्षा हम करे, आपको आर्थिक सहायता हम दे , आपको आपदा सहायता हम प्रदान करे और आप हमारे कानून नहीं मानेंगे , ऐसा कैसे हो सकता है ? ( हम मतलब भारत सरकार)
किन्तु आज बाबासाहेब के कईं अनुयायी JNU में आर्टिकल ३७० की वकालत करते है और कश्मीर की आज़ादी का बीड़ा उठाये है।

६. नेशनल पावर ग्रिड, राष्ट्रीय सिंचाई योजना जैसी कईं परियोजनाओं को क्रियान्वित करने में योगदान।
७. बौद्ध धर्म की परिस्थापना और
८. भारत के कईं राष्ट्रिय चिन्हों पर बौद्ध धर्म की छाप भी इन्ही के प्रयासों का परिणाम है।

और भी कईं चीजे मेरी व्यक्तिगत जानकारी के आभाव में छूट गयी है , किन्तु इतनी काफी है इस बात के प्रमाण के लिए की आधुनिक भारत की नींव रखने में उनका अच्छा ख़ासा योगदान रहा है। जिसे राजनैतिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए पिछली सरकारों ने प्रचारित नहीं किया।

उनके इन योगदानों को शायद कोई याद भी नहीं करना चाहता, क्योंकि ये पुरे देश के हित में थे। आजकल देश-हित  की बात करने वालो को "सूडो नेशनलिस्ट", "भक्त" या "संघी" कहा जाता है। और अगर बाबासाहेब के इन सभी योगदानों का जिक्र हो गया तो हंगामा खड़ा हो जायेगा। इसीलिए आजतक उन्हें सिर्फ और सिर्फ संविधान निर्माता और दलितों का नेता ही कहा जाता है।

अब चलते चलते आपको उस बोल्ड और रेखांकित वाक्य के बारे में भी कुछ जानकारी दे देते है। उनके उपरोक्त  सभी योगदान भारत के आज़ाद होने के बाद के थे जब उन्हें संवैधानिक ओहदा प्राप्त हुआ था। आज़ादी के पहले की उनकी सारी लड़ाई दलितों के उत्थान के लिए थी। यहाँ अगर कहा जाये कि उनकी लड़ाई अंग्रेजो के खिलाफ डायरेक्ट कभी नहीं रही तो भी असत्य नहीं होगा । उन्होंने अंग्रेजो से भी हाथ मिलाया था ताकि दलितों को अधिकार मिल सके। उन्हें कुछ हद तक कोई सरोकार नहीं था की देश में सरकार किसकी है। उनकी प्राथमिकता में सिर्फ पिछड़ो को आगे लाना था। कुछ एक मुद्दों पर वो गांधीजी के विरूद्ध भी खड़े हुए थे। उन्ही के प्रभाव के चलते आज़ादी के आंदोलन में दलितों का संगठित योगदान उतना अहम नहीं रहा है जितना हो सकता था।

और जहाँ तक रही बात दलितों के लिए काम करने की तो वो जरूर उन्होंने किया किन्तु अकेले उन्होंने किया ऐसा भी नहीं है। जातीप्रथा के खिलाफ अभियान और कईं रूढ़ियों को खत्म करने के लिए प्रमुख कदम उठाने वालो में जो नाम आते है वो राजाराममोहन राय, रबिन्द्र नाथ टैगोर, केशब चन्द्र सेन जैसे लोग है जो की ब्राह्मण थे। इनके अलावा बॉम्बे प्रार्थना समाज, आर्य समाज, सत्य साधक समाज इत्यादि ने भी सर्व कल्याण और मनुष्यो में समभाव  के लिए काम किया। बाबासाहेब ने एक वोटबैंक जरूर खड़ा किया और आज कईं राजनैतिक पार्टियां उसी वोटबैंक के लालच में "दलित-दलित " चिल्लाती फिर रही है।  आज शायद बाबासाहेब अपनी आँखों से यह सब देख रहे होते तो शायद उन्हें थोड़ा दुःख जरूर पहुँचता।

अगर हमारे पुरखो ने जाती प्रथा का प्रचलन शुरू किया और मनुष्यो को उनके कार्य के अनुसार विभाजित किया तो "Social Equality" की बात करने वाले लोगो ने इन्ही मनुष्यो के बिच बैर और घृणा को जन्म दिया। यह सामाजिक विभाजन अब इतना बढ़ चूका है की हम देश हित के बारे में अब भी नहीं सोच रहे है। अब भी हम सिर्फ हमारी जाती, हमारा धर्म, हमारा समाज इन्ही घेरो में अटके है।

हमारा देश तेज़ी से आगे तो बढ़ा है किन्तु ट्रेडमिल के ऊपर। सालो तक  भागने के बाद उतरे तो पाया की हम तो वहीं खड़े है।


नोट: इस लेख का उद्देश्य किसी की भावनाओं को आहात करने का कतई नहीं है। हम बाबासाहेब आंबेडकर के कार्यो के लिए उनका भरपूर सम्मान करते है। किन्तु उनके नाम का दुरुपयोग करने वालो के सख्त विरुद्ध है। जिस प्रकार गांधी जी के नाम का भरपूर दुरूपयोग होता आया है वैसा ही कुछ लोग आंबेडकर के साथ करने जा रहे है।
फिर भी दिमाग की जगह अगर किसी का दिल दुखा हो तो लिखित में क्षमा चाहता हूँ और आशा करता हूँ की इस लेख के विरोध में कहीं आग-जनि, बंद या पत्थरबाजी नहीं होगी। धन्यवाद।

Tuesday, 12 April 2016

तलाश - जीवन यात्रा

अँधेरी कोठरी में ढूँढता  हूँ एक दीपक उजाले के लिए 
जैसे भटका हुआ परिंदा ढूंढे कोई दरख़्त सुस्ताने के लिए 

चेहरो की इस भीड़ में तलाशता हूँ एक चेहरा जिसे कह सकु मैं अपना 
जैसे हर सुबह उठके याद करे कोई एक भुला हुआ सा सपना 

असंख्य दर्पणों में खोजता हूँ खुद की एक तस्वीर धुँधली सी 
जैसे हजारो बार किसी से मिलने पर भी उसकी हर मुलाक़ात लगे पहली सी 

कहने को तो जी रहा हूँ मैं, पर अभी भी तलाश है ज़िन्दगी की 
ऊपर वाला भी राह दिखाए तो कैसे, उसे भी तो खोज है सच्ची बंदगी की 

कुल मिलाकर बस बात इतनी सी है की 

ढूंढ रहा हूँ मैं अपनी आत्मा, जो खो गयी है कहीं मेरे ही भीतर 
जैसे तेज़ बहती नदी थक हार कर तलाशती है अपना समंदर 

यह जीवन एक यात्रा है अनन्त खोज की, जिसमे न जाने क्या ढूंढ रहा है हर कोई और इसी खोज में खो दे रहा है स्वयं को कहीं।


Thursday, 3 March 2016

कन्हैया की ज़मानत

  
हमारा देश आजकल एक अलग ही "संघर्ष" से जूझ रहा है। JNU के मसले को कोई हर दिन एक नया मोड़ दिया जाता है। इस सिलसिले में "सच" DSLR कैमरा की रॉ फाइल की तरह है जो सिर्फ फोटोग्राफर के पास है और हमारे सामने सिर्फ "Processed" फोटो ही आ रही है।  जिसको जैसी फोटो अच्छी लगे उसके लिए उसी प्रकार से "Process" की हुयी तस्वीर हाजिर कर दी जाती है। क्या पता २ साल बाद यूनिवर्सिटी का कोई कर्मचारी सेवानिवृत्त होने के बाद एक नया ही सच लेकर सामने आये। बहरहाल इस फैशन शो के शोस्टॉपर कन्हैया कुमार को दिल्ली हाईकोर्ट ने ज़मानत दे दी है।


किन्तु यह ज़मानत कुछ चेतावनी और मशवरों के साथ दी गयी है। मीडिया और सोशल मीडिया पर हर कोई ज़मानत का जिक्र कर रहा है किन्तु उसके ऊपर लगे * ( शर्ते लागू) का जिक्र कोई नहीं कर रहा है। कन्हैया की ज़मानत के कोर्ट के आदेश की एक प्रति हमारे हाथ भी लग गयी है तो हमने सोचा क्यों न हम आपके सामने कन्हैया की ज़मानत का विश्लेषण प्रस्तुत करें  in cut to cut style.

तो जनाब, कोर्ट के आदेश के मुताबिक,

"कन्हैया को ६ महीने की जमानत पर रिहा किया जाता है और उसके माँ बाप को मशवरा दिया जाता है कि  जल्द से जल्द कन्हैया के लिए एक लड़की ढूंढ कर उसके साथ इसकी शादी करवा दी जाये। कन्हैया को अगले ३० दिनों के भीतर अपना फेसबुक रिलेशनशिप स्टेटस "कोम्प्लिकेटेड " से बदलकर "मैरिड To XYZ" करना है। अदालत चाहती है की एक महीने बाद कन्हैया के फेसबुक वाल पर JNU वाले वीडियो के बजाये हनीमून के पिक्चर्स पाये जाने चाहिए। अदालत बहुत ही बारीकी से कन्हैया का फेसबुक फॉलो कर रही है और उपरोक्त सभी मटेरियल फेसबुक या न्यूज़  में न पाये जाने पर  इसे अदालत की अवमानना करार दिया जायेगा "

अदालत के इस क्रांतिकारी फैसले को समझने के लिए जब हमने हाईकोर्ट  के एक वरिष्ठ वकील से बात की तो बेहद ही चौंकाने वाली बात सामने आई। आईये पढ़िए क्या कहा उन्होंने।

"देखिये, अदालत ने यह फैसला बहुत ही सोच समझ कर "बच्चे" के जीवन को संवारने के लिए दिया है। कन्हैया एक अच्छा स्टूडेंट बने न बने परन्तु उसे एक अच्छा पति तो झक मारकर बनना ही पड़ेगा।  अभी बहुत से लोगो को कन्हैया से शिकायत होगी की वो वन्दे के बाद मातरम का नारा नहीं लगाता है किन्तु शादी के बाद तो उसे I love you के बाद I love you too का नारा लगाना ही पड़ेगा। यही नहीं,  शादी के बाद कन्हैया को कश्मीर तो दूर  खुद की आज़ादी के बारे में  सोचना भी  महंगा पड़ेगा।  आज लाल-झंडे उठाने वाला हमारा ये दोस्त कल सब्जियों के झोले में लाल टमाटर उठाता हुआ मिलेगा। अफज़ल गुरु का शहादत दिवस भूल के हर साल अपना शहादत दिवस  मनायेगा शादी की सालगिरह के तौर पर। "

इतनी बात कहते कहते वकील साब की आँखें भर आयी और उन्होंने रजनीगंधा की पुड़िया फाड़कर अपने मुखकमल को समर्पित की और अब भरी आँखों के साथ भरे मुंह से बोलना शुरू किया। (पति है वो भी, अपनी छोटी से दुनिया को कदमो में लाने के लिए रजनीगंधा का नाकामयाब सहारा ले रहा है ) इससे पहले की वो गुटखे को देखकर चर्चा को बजट की और मोड़े हमने कहा आप कन्हैया पर बोलना जारी रखे।

उन्होंने आगे कहा

"देखिये मेरी नजरो में तो अदालत ने उसे एक तरह से जमानत देने के बजाय उम्रकैद का फैसला सुनाया है।  दर-असल अदालत ने त्रेतायुग के कन्हैया के केस का संज्ञान लेते हुए यह फैसला सुनाया। 

त्रेतायुग में राम थे, कृष्ण तो द्वापर में थे न सर ?

अरे हाँ तो राम को भी तो शादी के तुरंत बाद वनवास लगा था , भाई भावनाओ को समझो, GK टेस्ट तो मत करो। 

ओके ओके, आप बताईये आगे।

हाँ तो आप तो जानते ही होंगे की कैसे रुक्मणी से शादी करके द्वापर वाले कन्हैया की सारी लीलाओ पर विराम लग गया था। ऐसे ही हमारे इस JNU वाले कन्हैया का होगा। बेचारा कल तक देश की बर्बादी तक जंग लड़ने की बात कर रहा था और अब देखिएगा शादी के बाद उसकी इस वीरता पर  कैसे जंग लग जाएगी। पाकिस्तान जिंदाबाद की जगह पत्नी महान -जिंदाबाद जिंदाबाद के नारे लगाएगा । अब तक जो फेसबुक स्टेटस  क्रांतिकारी हुआ करते थे अब  'Checked into falaana-dhimkaa mall with wife', "Happy birthday dear wife" 'Watching bhutiyapa movie with wife' जैसे स्टेटस में बदल जायेंगे। सरकार बदलने की बात करने वाला हमारा वीर बहादुर 'कॉमरेड' अब टीवी का चैनल भी नहीं बदल पायेगा। में तो कहता हूँ की अदालत ने लाल सलाम को लाल बिंदी से दबा दिया है।  और.............."


"यूँही तुम मुझसे बात करती हो , या कोई प्यार का इरादा है .........."

इतनी ही गंभीर बातें हो पायी थी हमारी कि अचानक से वकील साब की बीवी का फ़ोन आ गया और यह ऊपर उनके फ़ोन की रिंगटोन थी। वकील साब को अचानक किसी "जरूरी काम" से जल्दी निकलना पड़ा। किन्तु उन्होंने बहुत ही सरल भाषा में अदालत के फैसले की व्याख्या करके हमें ज्ञान संपन्न बना दिया।


नोट: यह लेख एक व्यंग्य मात्र है और इसका उद्देश्य केवल हास्य पैदा करना है। हम भारत के नागरिक होने के नाते देश और इसकी न्याय व्यवस्था का भरपूर सम्मान करते है। और जी हाँ, शादी और पत्नियों का भी उतना ही सम्मान करते है। :) उपरोक्त लिखी सभी बाते काल्पनिक है।

Saturday, 27 February 2016

भारत की युवाशक्ति


जब से सत्ता संभाली है तभी से हमारे प्रधानमंत्री जी ने दुनियाभर में ढिंढोरा पिट रखा है कि भारत दुनिया का सबसे युवा देश है। भारत का युवा दुनिया बदलने की ताकत रखता है। सारी दुनिया हमारे देश की ओर आशाभरी दृष्टि से देख रही है। और भी न जाने कितनी बातें कही है हमारे प्रधानमंत्री ने हमारी युवा शक्ति के बारे में।

किन्तु बेचारे मोदी जी यह जानने में शायद असफल रहे है की असल में उनकी तथाकथित महान युवा शक्ति कर क्या रही है। हमारे देश में आज की तारिख में मोटे-मोटे तौर पर ५ प्रकार की युवाशक्ति पायी जाती है। मोटे तौर पर इस लिए विभाजित किया क्योंकि इन्ही ५ श्रेणी के युवा तय कर सकते है की देश को किस दिशा में लेके जाना है।

आईये आपको हम बताते है उस युवाशक्ति के बारे में, मोदी जी जिसका प्रचार प्रसार समस्त विश्व में कर रहे है ।

१. बुद्धिजीवी युवाशक्ति :
ये वो युवाशक्ति है जो अपने आपको "रॅशनल" कहते है और हर प्रकार के रूढ़िवादी विश्वास पर प्रश्न करते है। इसी कड़ी में कईं बार वो भूल जाते है की देश का इतिहास क्या रहा है। भूल जाते है की कुछ विश्वास इतने अटल होते है की तथ्यों से परे होते है। ये वो युवा है जिन्हे अपने "ईश्वर" से  ज्यादा भरोसा अपनी बुद्धिमता पर है। यहाँ तक तो सब कुछ अच्छा है, आपको सब ठीक लग रहा होगा। किन्तु यही वो युवा है जो बड़ी आसानी से बहकावे में आता है। यही वो युवा है जो गरीबो के लिए लड़ते लड़ते अचानक से आतंकवादियों के लिए मोर्चा लिया खड़ा पाया जाता है। इस युवाशक्ति के लिए अफजलगुरु और याकूब मेमन जैसे लोग हीरो हो जाते है।यही वो युवा है जो कलम छोड़ कर बन्दूक उठाने की बात करता है। यही वो युवा है जो अंधभक्ति पर सवाल उठाते उठाते देशभक्ति भूल जाता है। यही वो युवा है जो दक्षिणपंथ (राइट विंग) का विरोध करते करते देश का ही विरोध करने लग जाता है।सामंतवाद से लड़ते लड़ते ये अलगाववाद से जुड़ जाते है। ये लोग अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर देशविरोधी नारे लगाते है। इस प्रकार की युवाशक्ति हमारे देश में सदियों से रही है किन्तु उन्होंने कभी देश के अपमान में एक शब्द भी नहीं कहा। किन्तु आज कुछ लोगो के बहकावे में आकर यही युवाशक्ति अपने पथ से भटक रही है।





२.सायबर युवाशक्ति:
दूसरी प्रकार का युवा वो है जिसे जमीनी हकीक़त से कोई सरोकार नहीं है। जिसके लिए मीडिआ (प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और ज्यादातर सोशल मीडिआ ) ही साक्षात ईश्वर है। यह वो युवा है जो सिर्फ इंटरनेट पर देश के लिए लड़ाई लड़ता है। यह वो युवा है जिसे सरकार को गालियां देना फैशन लगता है। यह वो युवा है जो आये दिन देशद्रोही और देशभक्ति का प्रमाणपत्र  बांटता फिर रहा है। सबसे खतरनाक तो इनमे से वो है जिन्हे "लॉजिक" और "तथ्यों" से कोई मतलब नहीं होता। ये वो युवा है जो "टार्ड " और "भक्त" नाम के दो समुदायों में बंट के रह गया है। वैसे इनमे एक तीसरा समुदाय भी है जिसे किसी पार्टी, देश या धरम से कुछ लेना देना नहीं होता। इस समुदाय के लोग सबसे काम हानिकारक भी होते है। ये समुदाय है "एन्जेल-प्रिया" या "मीणा-बॉयज" टाइप फेसबुक अकाउंट धारियों का।


३.आक्रोशी युवाशक्ति:
तीसरी प्रकार की युवाशक्ति वो है जिन्हे बस "आदेश" मिलना चाहिए और वो निकल पड़ते है सडको पर। इस प्रकार के युवा इंटरनेट पर ही लड़ाई नहीं लड़ते अपितु सडको पर खुले-आम बसो को, गाड़ियों को, ट्रको को फूंक डालते है। ट्रेनों को जला कर पटरियां उखाड़ फेंकते है। जब जहाँ जैसा मौका मिले वैसा कुकृत्य करते है और ग्लानि तो दूर इनके माथे पर शिकन तक नहीं आती है। ये वो युवा है जिसे पढ़ना लिखना नहीं है, बाौद्धिक मेहनत इनसे नहीं होती है। इन्हे हर प्रकार की शासकीय सुविधा पर एक ख़ास आरक्षित तथा अप्रतिबंधित अधिकार चाहिए। इन्हे आरक्षण चाहिए। इन्हे उसी "इंफ्रास्ट्रक्चर" के लिए आरक्षण चाहिए जिसे यह आये दिन नुकसान पँहुचाते रहते है।


४.बेचारी युवाशक्ति:
ये वो युवाशक्ति है जो देश को ज्यादा फायदा नहीं तो कोई नुकसान भी नहीं पँहुचाते है । ये मेहनत करते है, पढ़ते है लिखते है। रोजी-रोटी कमाने के लिए दिन रात एक कर देते है। ये वो युवा शक्ति है जो रात-रात भर अपनी "तशरीफ़" रगड़ कर काम करते है और ईमानदारी से पूरा का पूरा इनकम टैक्स भी भरते है। ये वो युवाशक्ति है जो अगर नौकरी न भी मिले तो मायूस होकर आरक्षण के लिए पटरियां नहीं उखाड़ते अपितु उसी स्टेशन पर चाय की टपरी खोल कर अपनी आजीविका चलाते है। इनको कोई मतलब नहीं है आप किस पार्टी को अच्छा मानते है किसे बुरा। इनको कोई मतलब नहीं है अगर किसी ने पैगम्बर को बुरा कहा या दुर्गा माँ को अपशब्द कहे। इन्हे मतलब होता है तो इस बात से की आज इनके यहाँ सब्जी क्या बनेगी, आज बेटे को दूध मिलेगा या नहीं, इस महीने की EMI का बंदोबस्त होगा या नहीं, इस बार अपनी बेटी को एडमिशन दिलवा पाउँगा या नहीं और ऐसी ही तमाम जद्दोजहद में जीवन बीत जाता है इनका।


५ . असल देशभक्त युवा:
यहाँ हम उस युवा शक्ति की बात कर रहे है जो बहुतायत में बिलकुल नहीं पायी जाती है। दुर्लभ किसम की युवा शक्ति है यह। इनके मन में असल देशप्रेम होता है जिसे इन्हे "फेसबुक" या "ट्विट्टर" पर साबित नहीं करना पड़ता। इनका देशप्रेम सर्वविदित होता है, जगज़ाहिर होता है। इनके देशप्रेम से किसी भारतवासी को कोई डर नहीं लगता अपितु दुश्मन देशो के हौसले पस्त हो जाते है इनकी देशप्रेमी के आगे। ये वो युवा शक्ति है जो चोटिल होने के बावजूद मोर्चा नहीं छोड़ते।इन्हे अपनी माँ से ज्यादा फ़िक्र भारत माँ की होती है। ये सामने से आतंकवादियों का सामना कर रहे होते है तो पीछे से अपने ही देश के "पथभ्रष्ट" युवाओ के पत्थरो का शिकार भी हो रहे होते है। ये वो युवाशक्ति है जिसे वन्दे-मातरम कहने या तिरंगे के आगे सर झुकाने में किसी धरम की परिभाषा रोकती नहीं है । ये वो युवाशक्ति है जिसके होने से ही हम है और बाकी के युवा है। उन माताओं को हमारा शत शत नमन है जिन्होंने ऐसे युवाओ को जन्म दिया है।




अब आप ही बताईये हमें किस वर्ग के युवा की सबसे ज्यादा आवश्यकता है और हम कितना और किस श्रेणी में योगदान दे रहे है देश को सुदृढ़ करने में ?

नोट: सभी चित्र इंटरनेट इमेज सर्च के माध्यम से विभिन्न सूत्रों द्वारा साभार संकलित

Tuesday, 2 February 2016

व्रत की महिमा


आगे पढ़ने से पहले एक बात आप समझ लें की यह लेख पूर्णतः पुरुषो के और विशेषतः भावनात्मक रूप से बंदी (शादीशुदा) पुरुषो के दृष्टिकोण से लिखा गया है।

तो जनाब तन की शक्ति, मन की शक्ति से कहीं बढ़कर है व्रत की शक्ति।जी हाँ सही पढ़ा आपने। व्रत की शक्ति को नज़रअंदाज करना आपके लिए हानिकारक हो सकता है। विशेषकर जब कि आपकी अर्धांगिनी फलां -फलां व्रत करती है।



 शादी के बाद जीवन में आने वाले बड़े-बड़े परिवर्तनों के बीच हम छोटे-छोटे परिवर्तनों पर गौर ही नहीं कर पाते है। जैसे कि जब आप सिंगल थे तब आपके कार्यक्षेत्र पर (प्रोजेक्ट में, ऑफिस, महाविद्यालय इत्यादि जगह ) आपके आसपास हमेशा खूबसूरती छायी रहती थी। आँखें कभी तरसती नहीं थी, इसीलिए तो आप सदैव प्रसन्न रहते थे। किन्तु शादी के बाद हालात ऐसे होते है जैसे नसीब केजरीवाल (U-Turn) बन गया हो।आप को लगता है जैसे आपके साथ काम करने वालो में अचानक से डाइवर्सिटी (विभिन्न जेंडर ) ख़त्म हो गयी है। एकाएक आपको अहसास होता कि धीरे धीरे आपके साथ काम करने वालो की लिस्ट में सिर्फ पुरुष ही रह गए है।

 शादी से पहले जब भी आप कहीं कोई यात्रा करते थे ट्रैन से, बस से, वायुयान इत्यादि से तो भी १० में से ८ बार आपकी यात्रा मंगलमयी ही रहती थी । आपकी बोगी में, या आपकी पास वाली सीट पर कोई न कोई सुन्दर बाला(या बालाएँ ) जरूर बैठी मिलती थी। जिनके सिर्फ वहाँ बैठे होने भर से ही ऐसा लगता था जैसे किसी ने हवा में खुशबू घोल दी हो। जैसे किसी ने सुमधुर सरगम के राग छेड़ दिए हो। अगर मैं ग़लत कह रहा हूँ तो बताईये ? होता था कि नहीं ऐसा शादी से पहले ?और अब जब आप शादीशुदा है तो जो चीज १० में से ८ बार होती थी वो १ बार ही होती है और वो भी तब जब कि आप सपरिवार(सपत्नीक) यात्रा कर रहे होते है।

आपकी शादी से पहले आपके कईं दोस्त हुआ करते थे उनमे लड़कियाँ भी होती थी और लडके भी, कुँवारे भी होते थे और शादीशुदा भी। परन्तु जैसे ही आप शादीशुदा हुए आपके दोस्तों की लिस्ट छोटी ही नहीं हो जाती बल्कि क्लासिफाइड भी हो जाती है। कुछ शादीशुदा बेवड़े दोस्त ही गुप्त रूप से उस लिस्ट की परमानेंट आइटम होते है जिनको लिस्ट से डिलीट कर दिए जाने के बाद भी आप हर बार रिसाईकल बिन से रिस्टोर कर लाते हो।

कुलमिलाकर अगर कहा जाये तो शादी के बाद आप ही नहीं बदल जाते, आपका नसीब भी बदल जाता है।

ऊपर जितनी भी बातें लिखी है ऐसा सब कुछ होने के पीछे क्या कारण हो सकता है कभी आपने सोंचा है ? मैं बताता हूँ ,कभी आपने ग़ौर किया है कि भले ही आपकी पत्नी कभी कोई व्रत रेगुलर बेसिस पर न करे परन्तु साल में कोई न कोई एक व्रत पकड़ के कर ही लेती है। बस यही व्रत आपके इस नसीब के स्विच का कारण बनता है। ईश्वर और किसी की सुनें  न सुनें परन्तु व्रत करने वाली स्त्री की अवश्य सुनता है। आपने बचपन से सुना होगा कि बीवियों के व्रत से पतियों की उम्र बढ़ती है , बिलकुल सही सुना है। जब उनके व्रत के प्रभाव से आपको अपने शादीशुदा जीवन के बाहर विचरण (एक्स्ट्रा मैरिटल) करने का मौका ही नहीं मिलेगा, आपको किसी गलत राह पर जाने की छूट ही नहीं मिलेगी तो आप पथ से भटकेंगे ही नहीं। और जब आप पथ से भटकेंगे नहीं तो बीवी के प्रति वफादार रहेंगे, ईमानदार रहेंगे और जब तक बीवी के प्रति वफादार रहेंगे तब तक ज़िंदा रहेंगे और न केवल ज़िंदा बल्कि लम्बे समय तक ज़िंदा रहेंगे।

अगर आपकी शादी हो चुकी है तो आप शायद ऊपर लिखी सारी बक़वास समझ पाएं।परन्तु अगर आप अब तक सिंगल है और प्रसन्न है तो दुनिया के किसी कोने में कोई तो होगी जो आपकी प्रसन्नता भंग करने के लिए (आपसे विवाह करने के लिए) कोई न कोई व्रत कर ही रही होगी।

तो जनाब नारी की शक्ति तो अपरम्पार है ही, उनकी व्रत के शक्ति भी कम नहीं है।




चित्र गूगल इमेज सर्च के सौजन्य से






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