Thursday, 28 January 2016

बड़े बाबू

डिस्क्लेमर:   हो सकता है की यह लेख मेरी कोरी कल्पना का नतीजा हो, हो सकता है इसका किसी जीवित या मृत व्यक्ति से कोई लेना देना न हो।  अगर यह लेख पढ़ते समय आपका सामना किसी जीवित या मृत व्यक्ति के व्यक्तित्व से हो जाये तो हो सकता है यह भी संयोग मात्र हो।
और एक बात, इस लेख को लिखते समय किसी भी जीव- जंतु, पेड़-पौधे या कोई भी प्राणी को कोई क्षति नहीं पंहुचायी गयी है।

तो बैठे बैठे क्या करे, करना है कुछ काम, आओ बतोलेबाजी करे लेकर बाबूजी का नाम।

एक होते है बाबूजी, जो हर फिलम, टीवी और लगभग हर इंसान के असली जीवन में होते है। जो कभी नरम  तो कभी सख्त, कभी अच्छे तो कभी खडूस, कभी "कूल" तो कभी संस्कारी होते है। ऐसे सभी बाबूजी को प्रणाम करके बात करते है बड़े बाबू की।

 जी हाँ, बड़े बाबू वही जो ज्यादातर सरकारी दफ्तरों में सुनाई दिखाई पड़ते है। जिन तक पहुँचना मुश्किल ही नहीं कभी कभी नामुमकिन होता है। ऐसे बड़े बाबू सिर्फ सरकारी दफ्तरों में ही नहीं, प्राइवेट दफ्तरों, स्कूलों, अस्पतालों, बैंको और यहाँ तक की शादियों में भी फूफा के रूप पाये जाते है।

हमने अपने पिछले लेख में आपको एक प्रजाति से अवगत कराया था जिसे मैनेजर कहते है। अब जैसे शेर जो है वो बिल्ली की नसल का है , छिपकली जो है वो डाईनासौर के खानदान की है और जैसे भेड़िया, कुत्तो के कुटुंब का प्राणी है ठीक वैसे ही मैनेजर जो है वो बड़े बाबू की ही नस्ल के प्राणी होते है किन्तु बड़े बाबू के आगे कुछ नहीं लगते। बड़े बाबुओं की तुलना में मैनेजर निहायती सीधा, सरल और उपजाऊ प्राणी होता है।



कुछ एक अपवादों (Exceptional Cases) को छोड़ दो तो बड़े बाबू बनने के लिए ज्यादा हुनर या किसी विशेष गुण या अत्यधिक परिश्रम करने की आवश्यकता नहीं होती है। चाहिए तो सिर्फ एक लम्बा कार्यकाल,  ४० पार की उमर और एक लम्बी जबान। जी हाँ कार्यकाल लम्बा होगा तो उसको अनुभव माना जायेगा (आप कहोगे की लम्बा कार्यकाल होना और अच्छा अनुभव होना अलग है तो मैं कहूँगा की ऐसा आप सोचते है, बड़े बाबू नहीं ) और अगर जबान लम्बी और टिकाऊ होगी तो अपने से ऊपर वालो के _ _ _ _ (रिक्त स्थान अपने विवेक से भर ले ) चाटने के अलावा अपने "लम्बे और अच्छे अनुभव" की दास्तान (धीरे से इसे डींगे हांकना पढ़े) सुनाने के काम आती है।दास्तान बोले तो अपनी पिछली पोस्टिंग या प्रोजेक्ट के बहादुरी, पराक्रम, कर्तव्यपरायणता  और हुनर की किस्से। याने की जंगल में मोर नाचा, किसने देखा वाली बात।

केवल इन दो गुणों(लम्बा कार्यकाल और जबान) की बदौलत इंसान कितना ऊपर जा सकता है यह बात समझने के लिए आपको न्यूटन या आईन्स्टाईन होने की आवश्यकता तो है नहीं। समझ गए न ?

यह तो बात हुयी गुणों की तो भईया जहाँ सुख है वहां दुःख है, जहाँ हँसी है वहाँ रोना भी है और जहाँ दिन है वहां रात है ऐसे ही जहाँ गुण है वहाँ अवगुण भी होंगे ही। सोचिये भला की बड़े बाबुओं में क्या क्या अवगुण होते होंगे ?नहीं नहीं ऐसे महापुरुषों में कोई भी अवगुण भला कैसे हो सकता है ये तो सिर्फ गुणों और सद्गुणों की खदान होते है।

चलिए हम उलटे क्रम (Chronological order) में बातें करते है अपने बड़े बाबुओ के Extra ordinary सद्गुणों  की और इन्ही सद्गुणों के महत्ता और ऐसे बाबुओ की उपलब्धता के आधार पर उनकी वरीयता भी इसी क्रम में रखते चले जायेंगे ।

४ . भुक्कड़ बाबू :


कुछ बड़े बाबू जो होते है न उनके दिमाग में सिर्फ खाना-पीना रहता है। ऐसे बाबू सुबह दफ्तर आते ही काम से पहले चाय पकौड़े निपटाएंगे।  दोपहर में खुद के डिब्बे  के साथ साथ औरो के डिब्बो को भी चट कर जायेंगे। और फिर शाम की चाय के साथ समोसे और कचोरी अलग। इनमे एक विशेष खूबी होती है, कहीं भी प्लास्टिक की थैली की चर -चर  की आवाज़ सुनते ही पहुंच जायेंगे इसी आस में की कुछ खाने का खुला है। यही नहीं अगर गलती से किसी का खाने का डिब्बा लीक हो रहा हो तो खुशबू से जान लेंगे की आज कोई बिरियानी लेके आया है। रात होते ही पीने की बातें और बातों के साथ यह कवायद भी शुरू कर देंगे की कहीं फ्री की पीने को मिल जाये तो जन्नत नसीब हो । ऐसे गुणों के स्वामी बड़े बाबू आपको बहुतायत में मिलेंगे इसीलिए  जनरल कैटगरी के ऐसे महान लोगो को अपने क्रम में अंतिम स्थान पर रखा है।

३ . ठरकी बाबू :

कौन आदमी ठरकी नहीं होता जनाब, जब संसद में बैठा सफेदपोश नेता भी अपने फ़ोन पे "उस टाइप" के वीडिओज़ देखता पाया जाता है तो बड़े बाबू तो फिर भी एक मामूली से दफ्तर में बैठे बाबू है। ठरकी हो सकते है।इस पूरी दुनिया में आदमी ही एक ऐसा प्राणी है जिसकी ठरक उम्र, ओहदे और पैसे के साथ बढ़ती ही जाती है। बड़े बाबू इस बीमारी से कैसे अछूते रह सकते है। जैसे कुछ बड़े बाबुओ के दिमाग पर खाना-पीना हावी रहता है उसी प्रकार कुछ लोगो के दिमाग पर सिर्फ लड़कियां ही हावी रहती है। ऐसे बड़े बाबुओ को अगर फिरंगी लड़कियों (औरतें भी) से रू-बरु करवा दो तो इनके दिमाग के कोने कोने में ऐसे रस का स्त्राव शुरू हो जाता है जो इनके इमोशन्स को बेकाबू करने की जी-तोड़ कोशिश करता है। इस सारी मानसिक जद्दोजहद के अंत में बड़े बाबू अपने छोटे बाबू को सिर्फ इतना कह पाते है की "बस यार जैसे तैसे कंट्रोल करता हूँ, नहीं तो मन तो करता है की............ " हालांकि कुछ बड़े बाबू इस जद्दोजहद में हार जाते है और अपने इमोशन के हाथो अपनी इज्जत भी गँवा बैठते है।  ऐसे चरित्रवान बाबू बहुतायत में न मिले किन्तु दुर्लभ भी नहीं है। इसीलिए हमारी लिस्ट में तीसरे स्थान पर है।

२ . आवारा-नाकारा बाबू : ( ज़ोम्बी बाबू )

यह वह श्रेणी है जिसके अंतर्गत आने का नसीब हर किसी का नहीं होता। मतलब एक तो आपको बड़े बाबू के पद से नवाजा जाये, और ऊपर से कुछ काम धाम न करने पर भी कोई कार्रवाई न हो। ऐसे तक़दीरवाले बड़े बाबू जिस भी दफ्तर, कॉर्पोरेट में होते है वहां इनकी चर्चाएं भी खूब होती है। इन्हे अगर आम जनता के साथ बैठने को कहा जाये तो बिदक जाते है , पर्सनल केबिन जरूरी होता है। इस कैटगरी के लोग कभी कोई काम ठीक से कर नहीं पाते और हमेशा शिकार की तलाश में रहते है जो इनका काम कर दे और इनके बदले की गालियां भी सुन ले। इन्हे कुछ लोग ज़ोम्बी बाबू भी कहते है क्योंकि ये कुछ प्रोडक्टिव काम तो नहीं करते अपितु इधर उधर भटकते रहते है और दुसरो के कामो में उंगली करते है। ऐसे बड़े बाबू हमारी लिस्ट में दूसरी वरीयता पर आते है।

१. सर्वगुण संपन्न बड़े बाबू :

हमारी लिस्ट के सर्वोच्च पायदान पर है वो बड़े बाबू जिनमे उपरोक्त सभी गुण प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होते है। इतना ही नहीं इन सभी गुणों के अलावा इनमे और भी कईं ख़ास बातें होती है जैसे चिन्दिगिरी(अपनी चाय के पैसे दुसरो से दिलवाना), आलसीपन(दफ्तर में सोते रहना), फटीचरी (पैसा कमाते हुए भी दिखाना भी इनसे गरीब कोई नहीं )इत्यादि। ऐसे छोटे मोटे गुणों का बखान तो हम कर ही नहीं रहे है। इतनी सारी विशेष कलाओं के धनि हमारी इस लिस्ट में प्रथम स्थान पर विराजमान है।

 किन्तु इस प्रजाति के बड़े बाबू सर्वगुण संपन्न बहु की भांति ही दुर्लभ है, किसी किसी बदनसीब के दफ्तर में ही मिलते है। पर जिसे भी मिलते है वो अगर इन्हे हँसते हँसते सह जाये, इनके साथ रहकर अपने सारे काम सकुशलता से निपटाता जाये तो उसे वीरता पुरूस्कार से नवाज़ा जाता है।

 इन सभी प्रकार के बड़े बाबुओ के बीच कुछ अपवाद भी पाये जाते है। यह अपवाद बड़ी लगन और श्रद्धा से, मेहनत और जूनून से अपना काम करते है। ऐसे बड़े बाबुओ को भी प्रणाम।

हमारे देश के सरकारी - प्राइवेट बड़े बाबुओ की यह चर्चा अब यहीं समाप्त करते है, फिर मिलेंगे अगले मसालेदार लेख के साथ। और हाँ आप भी अगर बड़े बाबू बनो तो हो सके तो मेरी उपरोक्त बातो को झूठा जरूर साबित करना।

एक मिनट  ..........
"क्या कहा आपने ? , IT  इंडस्ट्री मैं ?" अरे जनाब बिलकुल, यहाँ तो ऐसे बड़े बाबुओ की भरमार है। किसी भी प्रोजेक्ट में जाईये असल काम करने वाले सिर्फ २ या ३ मिलेंगे परन्तु उनके ऊपर ६-८  बड़े बाबू बैठे मिल जायेंगे। गौर से अपने आसपास देखिये और लेख फिर से पढ़िए, क्या पता आपके बाजु में ही कोई बड़ा बाबू बैठा हो।


सभी चित्र गूगल बाबू की कृपा से

Sunday, 27 December 2015

गोआ



दुनिया भर के युवाओं के लिए चार छः आठ धामो में से एक धाम है गोआ। मतलब युवावस्था में एक बार गोआ घूमने जाना जिंदगी की चंद जरूरी चीजो में शामिल है और अगर यह यात्रा शादी से पहले हो जाये तो जीवन सुधर जाये।

हमारे इन यात्रियों की शादी से पहले और शादी के बाद वाले गोआ प्रवासो में काफ़ी अंतर होता है और यह अंतर क्या होता है यह बताना जरूरी नहीं है।

गोआ शब्द कानो में पड़ते ही हमारी कल्पना के घोड़े समंदर के उन किनारों पर दौड़ना शुरू कर देते है जहाँ मदिरा की लहरो की सूनामी आपके दिलो-दिमाग पर छा जाती है। इस जगह के बारे में सुनते ही कईं लोगो के दिमाग में एक ३ डी फिल्म चालू हो जाती है जिसके ३ आयाम होते है मदिरा, मादकता और मांसाहार। ( शुद्ध हिंदी में शराब-शबाब और कबाब )


गोआ के बारे में अब तक असंख्य यात्रियों ने अपने यात्रा वृतांत लिखे होंगे और लाखो लोगो ने अपने यात्रा अनुभवों को ब्लॉग के माध्यम से दुनिया के सामने परोसा होगा। गोआ यात्रा के बारे में सुनना, पढ़ना बड़ा ही क्लिेशे सा हो गया है इसलिए मैने सोचा मैं नया क्या ही लिख पाउँगा छोडो नहीं लिखते है। फिर आधी रात को ख़याल आया की साला शाहरुख़ खान जैसा सुपर स्टार भी कुछ नया नहीं कर पा रहा है, मोदी भी कितना नया कर ले लोग गालियां ही देते है तो मेँ कौनसा ऊपर वाला हूँ। मुझपर नया करने का कौनसा दबाव है ? लिख डालो गोआ पर। तो मेरे प्यारे दोस्तों जब मेने लिख डाला तो आप पढ़ डालो 

गोआ में शराब, शबाब, कबाब और समुन्दर की लहरो के सिवा भी आपको बहुत कुछ अजीब चीजे देखने को मिलती है, बस उन्ही अजीब चीजो को आप भी देखो मेरी नज़र से ।

एक आकर्षक हनीमून डेस्टिनेशन होने के नाते यहाँ कईं नए नवेले जोड़े दीखते है। समुद्र बीच पर हाथो में हाथ डाले, लहरो के साथ अठखेलियां करते ये जोड़े आपको बहुतायत में देखने को मिलेंगे। आप कहेंगे की इसमें अजीब क्या है तो देखिये एक नयी नवेली दुल्हन जिसके चूड़े से भरे पुरे हाथ, हाथो में धुंधली सी मेहंदी और उन्ही  हाथो में ब्रीज़र की बोतल। फिर गले में लम्बा सा मंगलसूत्र, गाढ़े सिन्दूर से भरी मांग, अनापशनाप मेकअप के साथ पैरो पर घुटने तक की मेहंदी और ऊपर हॉट पैंट्स। वहीं दुल्हन के बाजू में दुल्हेराजा गले में DSLR लटकाये अतरंगी रंग का चश्मा चढ़ाये सामने दो कपड़ो में लिपटी फिरंगी बालाओ और बाजू में बैठी बीवी के बीच नज़रो का टेबल टेनिस खेल रहे होते है।  है न अजीब दृश्य ?

यह तो नए जोड़ो का हुआ अब आपको दिखाते है सनसेट, मतलब पुराने जोड़ो का प्यार, अरे मतलब सनसेट पर बैठे कुछ पुराने कपल्स का प्यार। जब पति पत्नी एक साथ समुन्दर किनारे सूर्यास्त का आनंद ले रहे होते है और रोमांटिक बातो में मशगूल होते है तभी सामने से अल्प वस्त्रो में देशी-विदेशी बालाओं का एक झुण्ड गुजर जाये तब पतिदेव की आँखों में जो नूर आता है वो देखते ही बनता है। डूबता हुआ सूरज भी चमकने लगता है।




ऐसा नहीं नहीं है की गोआ में सिर्फ नए नवेले जोड़े ही आते है, या सिर्फ यंग क्राउड ही आता है बल्कि "शिवशंकर तीर्थ यात्रा कंपनी" के प्रौढ़ और बुजुर्ग दंपत्ति भी आपको गोआ का रसपान करते हुए दिख जायेंगे। ऐसे जोड़े समुन्दर किनारे अक्सर चाय ढूंढते पाये जाते है। गोआ में आपको हर दो कदम पर दारू की दूकान मिल जाएगी परन्तु अगर आप चाय के शौकीन है तो फ्रस्ट्रेट हो जायेंगे। ऐसे ही फ्रस्ट्रेट होते हुए मिस्टर श्रीवास्तव आकर घुटने मसलते हुए बैठी बेचारी मिसेज़ श्रीवास्तव को समझाते है, बहुत ही कमीने लोग है यहाँ के ४० रुपये में चाय बेच रहा है वो भी गरम लाल मीठा पानी, तुम चाय पीना छोड़ ही दो अब।

गोआ में एक और चीज बहुत प्रसिद्द है और वो है टैटू स्टूडियो। इसमें अजीब क्या है अब ? आपको पूछा जाये की टैटू की दूकान का कोई रैंडम नाम सोचिये तो आपके दिमाग में आएगा रॉकी टैटू, सैंडी टैटू , बीच-वे टैटू इत्यादि। किन्तु असल में ऐसा नहीं है, गोआ में आपको गुप्तजी टैटू वाले, रमेश टैटू स्टुडिओ, रामलाल टैटू वाला भी है।
जहाँ कईं लडके अपने बाजुओं पर ऐसी ऐसी डिज़ाइन बनवाते नजर आते है जिनका मतलब उन्हें खुद भी समझ न आये। और तो और कईं लडको के टैटू तो दिखाई भी नहीं देते क्योंकि स्किन कलर और इंक कलर एक ही होता है। (ख़बरदार जो मुझे रेसिस्ट कहा).

और सबसे अजीब और अनोखी चीज जो आज हर जगह देखने ही मिलती है उससे गोआ कैसे अछूता रह सकता है ? वो चीज है सेल्फ़ी प्रेम। कुछ लोग यहाँ  सिर्फ इसलिए आते है ताकि २ दिन घूम के 1760 फोटो खीच के फेसबुक पे डाल सकें। उसके बाद फिर इन्तेजार लाइक्स और कमेंट्स का तब जाकर होती है गोआ यात्रा सफल।

अगली बार जब आप गोआ जाएँ तो "कुछ हटके" जरूर देखियेगा और खुद भी करियेगा।















Tuesday, 1 December 2015

असहिष्णुता

दृश्य एक :
स्थान: पुणे
समय-काल  : गणेशोत्सव के आस पास

कहते है की गणेशोत्सव की धूम धाम इस शहर से बढ़कर कहीं  देखने को नहीं मिलती , सच भी है। इस वर्ष भी गणेशोत्सव की तैयारियाँ जोरो शोरो से चल रही है। जोर इस लिए क्योंकि बड़े बड़े ढोल ताशे घंटो उठा के प्रैक्टिस करने में बड़ा जोर लगता है और फिर होने वाला शोर तो वाज़िब है ही । पुणे में गणेश विसर्जन बड़ा खास होता है, भिन्न भिन्न ढोल-ताशा पथक इसके लिए महीनो पहले रियाज़ शुरू करते है और अपनी प्रस्तुति देते है।
इस बार नव-युवा चेतना समूह भी जोर शोर से तैयारी कर रहा है, इस समूह में ६ से  ७० साल तक के सदस्य है। एक ८  साल का बच्चा अपने घर वालो से ज़िद करके अभी अभी इस समूह में दाखिल हुआ है और समूह के सदस्यों ने उसका भव्य स्वागत भी किया।  मात्र ३ दिनों में ही इस बालक ने पुरे समूह का दिल जीत लिया है। अपने अन्य साथियों के साथ वो भी अपने नाजुक कंधो पर भारी ढोल उठा के ताल से ताल मिलाके घंटो प्रैक्टिस करता है।


कईं दिनों की प्रैक्टिस के बाद गणेश विसर्जन के दिन  समूह को अन्य बड़े बड़े ढोल पथको के साथ प्रस्तुति देने का अवसर प्राप्त हुआ । ६ घंटे सतत रूप से ढोल और ताशो के लय ताल से भरे युद्ध में अंततः इस युवा समूह को विजयी घोषित किया जाता है। समूह के सभी बड़े सदस्य छोटे छोटे सदस्यों को अपने कंधे पर उठाकर झूम रहे है। हमारा ८ वर्षीय बालक जो अपने घरवालो से लड़कर इस समूह में शामिल हुआ था वो भी बहुत खुश है। आज उसके माता पिता भी बहुत खुश है यह देख कर की उसे समूह के बाकी लोगो से कितना प्रेम मिल रहा है। J

दृश्य दो:
स्थान: हैदराबाद
समय -काल : रमज़ान का महीना

हैदराबाद की चार मीनार और बिरियानी के अलावा वहां की ओल्ड सिटी में बोली जाने वाली हिंदी भी विश्वप्रसिद्ध है। क्या कहा ? आपने नहीं सुनी वहां की हिंदी ? क्या हौले जैसी बातां करते मियां तुम, तुम हयदेराबाद की हिंदी नको सुने तो क्या सुने जी  ?
चलिए मजाक की बात छोड़िये मुद्दे की बात करते है।
रमज़ान का महीना है, ज्वेलरी की दूकान पर सेठ जी के यहाँ काम करने वालो में ज्यादातर लोग रोज़ा रखते है। जो लोग रोज़ा नहीं रखते वो रोज़ा रखने वालो का ध्यान रखे इस बात का सेठजी पूरा ध्यान रखते है। सेठ जी ने अपने शोरूम के ऊपरी माले में एक कमरा खाली करवाया है। भोजन काल के दौरान रोज़ा न रखने वाले चुपचाप बिना कोई शोर किये उस कमरे में जाके अपना भोजन करके आ जाते है और फिर शाम तक न पानी का और न ही भोजन का कोई जिक्र करते है। शाम होते ही सेठजी अपनी और से इफ्तार के लिए भोजन सामग्री मंगवाकर रोज़ा करने वालो को उसी ऊपरी माले के कमरे में भेजते है जहाँ वो इत्मीनान से अपना रोज़ा खोल सके।


 पुणे वाले किस्से में उस ८ साल के बालक का नाम है  सोहैल  जी हाँ एक मुस्लिम परिवार का बच्चा जो हिन्दुओं के त्यौहार में ढोल बजा रहा था जहाँ  उसे मान सम्मान भी भरपूर मिला।और उसके परिवार ने भी धार्मिक सहनशीलता दिखाते हुए उसे आज़ादी दी अपने मन की करने की।
हैदराबाद की घटना में यह जौहरी सेठ एक हिन्दू है जिन्हे यह भी पता है की इंसानियत भी एक धर्म है। इन्ही सेठ के यहाँ कईं वफादार कारीगर मुस्लिम समुदाय से है और प्रतिवर्ष इनकी दूकान पर ईद और दीवाली समान रुप से मनाई जाती है।

यह किस्से सत्य घटनाओँ से प्रेरित है। ऐसे ही असंख्य किस्से है जो हमारे आस पास बिखरे पड़े है। हम आम लोगो का जीवन बीते कईं वर्षो से इसी प्रकार चल रहा है।किन्तु हमें कभी नहीं लगा की देश में असहनशीलता का वातावरण है। हाँ यह एक राजनैतिक बहस का मुद्दा जरूर हो सकता है किन्तु जरा विचार कीजिये की क्या देश के हीत के लिए ऐसी नकारात्मक बातें फैलाना उचित होगा ? हमें अपने विवेक से भी काम लेना होगा, हम इतने साधन संपन्न भी नहीं है की किसी ने कुछ कहा और देश छोड़ के चले जाएँ।

चलिए अभी इन वास्तविक किस्सों से परे एक काल्पनिक किस्सा सुनाते है।
दृश्य ३
स्थान : आमिर खान का घर,मुंबई
समय-काल : दिसंबर २०१५

३ साल का आज़ाद घर छोड़ने की ज़िद्द लिए बैठा है क्योंकि उसको उसकी माताजी ने डांट दिया है। क्यों ?
क्योंकि अब उसकी शैतानियाँ बर्दाश्त से बाहर है। जब आमिर ने पूछा की बेटा अगर मम्मी ने जरा सा डांट दिया तो इसमें घर छोडनें की क्या जरुरत है ?
मासूम आज़ाद का जवाब सुनिए : "मम्मी को तो किसी ने नहीं डांटा था और वो इंडिया छोड़ने की बात कर रही थी तब तो आपने उन्हें कुछ नहीं कहा और मुझे ज्ञान पेल रहे हो पापा ? हैँ ? "



चित्र: गूगल इमेज सर्च के सौजन्य से









Saturday, 28 November 2015

मैनेजर


मैनेजर
यह वह प्रजाति है जो हर दफ़्तर, हर संस्था, हर दूकान और यहाँ तक की गली नुक्कड़ों पर हो रही चर्चाओं में भी पायी जाती है। दफ़्तर सरकारी हो या प्राइवेट आपको भिन्न भिन्न प्रकार के मैनेजर हर जगह देखने सुनने को मिलेंगे।

अगर आपको इस प्रजाति के विशेष गुणों की चर्चा सुननी हो तो किसी भी दफ़्तर के बाहर की चाय-सुट्टे की टपरी पर जाकर आईये, आपको मैनेजर के भांति भांति के लक्षणों, गुणों के बारे में पता पड़ेगा। वैसे मैनेजर खुद अपने बारे में इतना नहीं जानता होगा जितना की वो चाय की टपरी वाला जानता है।  ऐसा भी माना जाता है की जिस वक़्त कुछ कर्मचारी चाय के साथ सुट्टा मार रहे होते है ठीक उसी वक़्त उनके मैनेजर की माताजी और बहन जी को गज्जब की हिचकियाँ आ रही होती है। खैर इसके पीछे के साइंस को मत समझिए, जाने दीजिये।



आपको एक बात बता दे की कईं कर्मचारीगण अपने जीवन में एक बार मैनेजर बनने का हसीं ख्वाब जरूर देखते है। यह बिलकुल उसी प्रकार है जैसे कॉलेज में फ्रेशर अपने सीनियर द्वारा हुए अत्याचारों की भड़ास निकालने के लिए खुद सीनियर बनने के ख्वाब बुनता है। फिर जिस प्रकार उस कर्मचारी ने अपने मैनेजर का "तथाकथित" सम्मान किया, उसकी हर बात को ब्रह्मवाक्य मानकर पूर्णतः पालन किया, कभी उसकी किसी बात का विरोध नहीं किया, उसी कर्मचारी का मैनेजर बनने पर अपनी निचले कर्मचारियों से भी यही सब करने की अपेक्षा करना स्वाभाविक है।

मैनेजर होना बिलकुल उस कढ़ाई की तरह है जो भट्टी पर रखी होती है और जिसमे तरह तरह के प्रोजेक्ट पकवान की तरह पकते रहते है। इस कढ़ाई में सामान्य कर्मचारी तेल या घी की तरह गरम होते है और इस गर्म कढ़ाई को कोसते है। किन्तु बेचारी कढ़ाई भी अपनी निचे लगी भट्टी की आग को झेल रही होती है। ऐसे में कढ़ाई का मजबूत होना बहुत आवश्यक है। कभी कभी जब कढ़ाई आग सहन न कर पाये और पिघल के पकवान में मिश्रित होने लगे तो पकवान स्वादिष्ट नहीं रह पाते है और कसैले स्वाद के लिए कढ़ाई को ही जिम्मेदार ठहराया जाता है। इसलिए आग इतनी भी नहीं बढ़नी चाहिए की कढ़ाई को कढ़ाई न रहने दे और पकवान को ज़हर बना दे।

इसीलिए कह रहे है की मैनेजर होना आसान नहीं है साब, बहुत मुश्किलें है। ऊपर निचे आगे पीछे हर जगह से तपना पड़ता है। अगर आपको कोई ऐसा कर्मचारी मिले जो १०-२० साल नौकरी करने के बाद भी मैनेजर न बन पाया हो और एक सामान्य कर्मचारी का जीवन जी रहा हो तो उसे मुर्ख मत समझिए। मेरा यकीन मानिए उस महान आत्मा को जरूर इस कढ़ाई वाले ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति हो गयी होगी।


दुनिया के समस्त मैनेजर प्रजाति के लोगो को समर्पित।

डिस्क्लेमर: यह पोस्ट किसी भी प्रकार से प्रायोजित पोस्ट नहीं है और न ही इसका आने वाले अप्रैज़ल साईकल से कोई लेना देना है ।


Monday, 5 October 2015

डर लगताहै





कितनी तेज़ है आंधी, न जाने कब यह बूढ़ा पेड़ गिर जाये
मुझे तो धुप में खड़े रहने दो, छाँव से डर लगताहै।

सुना है फिर एक अन्नदाता मर गया भूख से मेरे गांव में
मुझे तो शहर की कोलाहल में ही रहने दो, गांव से डर लगता है।
 
नदियां की बेचैन लहरे, हिचकोले खाती नाव
तैर के पार कर लूंगा , नाव से डर लगताहै।

आज फिर एक निर्दोष मारा गया धरम के नाम पे, शायद चुनाव होने को है कहीं
रहने दो, मत बदलो सरकार को, मुझे अब चुनाव से डर लगता है।

                                                              


Monday, 21 September 2015

पुरुषो के अच्छे दिन



आज की तारीख में अगर कोई कहे "बेचारा" तो अनायास ही मुँह से निकल जाता है "पुरुष", जी हाँ बेचारा पुरुष।

अगर ध्यान से देखे तो बीते कुछ सालो में किसी ने पुरुषो के उत्थान के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाये है। किसी ने अगर कदम उठाये है तो केवल इनको कुचलने के लिए, इनकी आज़ादी के पतन के लिए, और इन्हे बेचारा बनाने के लिए।

बताइये, हजारो साल पहले पुरुषो ने कभी कोई अत्याचार किया होगा किस नारी पर तब से आज तक उसका बदला लिया जा रहा है।

शादीशुदा पुरुष, कुंवारा पुरुष, विधुर पुरुष, तलाकशुदा पुरुष, सारे के सारे ही बेचारे पुरुष। यकीन न आये तो टीवी खोल के देख लीजये, किसी भी धारावाहिक में अगर पुरुष दिखाई दे जाये तो बताईये।और दिख भी जाये तो खुश दिखे तो बताना। किसी न्यूज़ चैनल पर पुरुष विरोधी न्यूज़ न आ रही हो तो बताईये।



मुझे तो भय सताने लगा है की पुरुषो प्रजाति कहीं विलुप्त न हो जाये

किन्तु ऐसे घोर कलियुग में अगर कोई पुरुषो के लिए भगवान बन के, ख़ुदा का फरिश्ता बन के आया है तो वो है BSNL । जी हाँ सही सुने आप, मैं फ़ोन वाले BSNL की ही बात कर रहा हूँ।

 BSNL ने जबसे रात ९ से सुबह ७ की ऑल इंडिया कॉलिंग मुफ्त कर दी है तब से टीवी के रिमोट जैसी स्ट्रेटेजिक चीज पर पुरुषो का अधिपत्य हो चूका है । नहीं तो ९ से ग्यारह में स्टार प्लस और ज़ी टीवी के घनघोर &*यापे  वाले सीरियल्स देख देख के पुरुषो का IQ राहुल गांधी जैसा हो गया था। अब रात के ९ बजते से ही घर की महिला के हाथो में टीवी का रिमोट नहीं, फ़ोन का रिसीवर होता है। और घर का पुरुष स्वच्छन्दता से, अपनी पूर्ण स्वतंत्रता से टीवी में आने वाले सारे चैनल्स चेक कर सकता है। हर २ मिनट में नयी चीज देख सकता है। क्रिकेट, फुटबॉल , TNA  कुश्ती, फैशन जगत की बालाएँ, किंगफ़िशर के कैलेंडर मेकिंग का स्टडी टूर इत्यादि कुछ भी देख सकता है। यह कमाल किया है BSNL ने ।

इतना ही नहीं, अभी यहाँ तक सुनने में आया है की १ अक्टूबर से BSNL ब्रॉडबैंड इंटरनेट में कम से कम २ MBPS की स्पीड मुहैया करायेगा ही करायेगा। याने की अब पुरूषों को अपने मोबाइल /लैपटॉप में कोई भी वीडियो अटक अटक के बफर करा करा के नहीं देखना पड़ेगा। इसका मतलब समझ रहे है आप ? जानता  हूँ आपमें से कईयों के मन के कैसे कैसे विचार उत्पन्न हो रहे होंगे। अभी काबू रखिये। परन्तु १ अक्टूबर से खुल के मजे लीजिये फुल HD में।



धन्य है BSNL जिसकी पुरुष हित में जारी की गयी योजनाओ की वजह से पुरुषो को अपनी खोयी हुई आज़ादी  मिलने को है। पुरुषो के अच्छे दिन आने को है।


नोट: इस लेख के बदले में BSNL वालो ने मेरा कोई बिल माफ़ नहीं किया है न ही कोई विशेष सेवा का लाभ दिया है , परन्तु अगर कोई BSNL कर्मचारी /अधिकारी इसे पढ़के मुझ पे ऐसा कोई उपकार करना चाहे तो मैं कतई मना नहीं करूँगा।





Tuesday, 11 August 2015

ड्रोन इन इंडिया

इस वक़्त जबकि आप यह लेख पढ़ रहे है दुनिया के किसी हिस्से में कोई ड्रोन किसी देश के सिपाहियों की जासूसी कर रहा होगा। या  किसी सुन्दर से द्वीप पर सूर्यास्त का चित्र ले रहा होगा या फिर किसी की टेबल पर कोई ड्रोन बियर की बोतल सर्व कर रहा होगा। यह भी हो सकता है की कोई ड्रोन किसी किशोर बालक का भेजा हुआ लाल गुलाब बाजू वाली बिल्डिंग की बालकनी में खड़ी किशोरी बाला के हाथो में  पंहुचा रहा होगा। बहुत कुछ हो रहा होगा और बहुत कुछ हो सकता है इस बारे में खोज चल रही होगी।

आगे बढ़ने से पहले एक बात साफ़ साफ़ बता दूँ की मैं यहाँ महाभारत के आचार्य द्रोण की बात नहीं कर रहा हूँ और न ही २००८ में आयी इसी नाम की एक शताब्दी की सबसे घटिया फिल्म की बात कर रहा हूँ ( आधे से ज्यादा लोग तो जानते भी नहीं होंगे की द्रोणा नाम की कोई फिल्म आयी थी। )

दर-असल मैं बात कर रहा हूँ रिमोट से चलने वाले हेलीकॉप्टरनुमा अतिबुद्धिमान यन्त्र की जिसे ड्रोन कहा जाता है। जी हाँ वही जो आपने "IIN" के विज्ञापन में देखा था।


टेक्नोलॉजी से हमारे जीवन में कईं क्रांतिकारी परिवर्तन हुए है। ज्यादा कुछ नहीं तो एक स्मार्ट फ़ोन को ही ले लीजिये फ़ोन न हुआ मुआ हमारे जीवन का रिमोट कंट्रोल हो गया।

ड्रोन भी बस इसी तरह से लोगो के जीवन में क्रांतिकारी बदलाओ लाने की क्षमता रखता है। आपने खबर में पढ़ा सुना ही होगा की ऑनलाइन शॉपिंग की सबसे बड़ी वेबसाइट अमेज़न ने अपने उत्पादों की डेलिवरी ड्रोन से करवाने की सफल टेस्टिंग की है। अब कोई भी सामान इसके ज़रिये मंगवाया / भिजवाया जा सकता है। है न कमाल की चीज। अब सोचिये की अगर ड्रोन का इस्तेमाल हमारे देश में धड़ल्ले से शुरू हो जाये तो भला क्या क्या हो सकता है ? सोंचिये।

चलिए आपको कल्पनाओ की उड़ान में ड्रोन की उड़ान से अवगत कराते है।

अब सोनू की मम्मी चिल्ला चिल्ला के सोनू को यह नहीं बोलती की जा बेटा ५ रुपये का धनिया मिर्ची ले आ। बलकि अब  वो ड्रोन के पंजो में ५ का सिक्का फंसाती है और सब्जी वाले के ठेले के कोआर्डिनेट सेट करके भेज देती है। २ मिनट में उधर से घुन घुन करता हुआ ड्रोन धनिया मिर्ची लेके हाजिर हो जाता है ।

पोर्न के बैन होने से बोखलाए लोंडे अब ड्रोन को खुला छोड़ देते है और बिल्डिंग दर बिल्डिंग तांका  झांकी करके किसी के बैडरूम से लाइव स्ट्रीमिंग देखते है।

अपने बंटी, रिंकू, बिट्टू और सोनू की गैंग जब भी क्रिकेट खेलती है और हरे रंग की कॉस्को की टेनिस बाल बड़ी बड़ी हरी झाड़ियों में जब खो जाती है तो ड्रोन की मदद से वो तुरंत उसे ढूंढ लाते है। इतना ही नहीं जब सोनू सिक्सर मार के गेंद को खडूस माथुर अंकल की बालकनी में पहुंचा देता है तब भी ड्रोन जाके गेंद को उठा लाता है।

मेरा बॉस अब एक मच्छर जितना बड़ा ड्रोन अपने केबिन से छोड़ता है और पता लगा लेता है की कौन काम कर रहा है और कौन सोशल नेटवर्किंग कर रहा है।

यु. पी में लोगो की जान को अब कम ख़तरा रहता है। बिजली के तारो पे बंगी टांगने का काम अब ड्रोन करने लगे है और इतना ही नहीं जब भी उड़न दस्ते आने वाले होते है ड्रोन आप ही तारो से बंगी  निकाल देते है।

जेठालाल अब सूरज को पानी देने बाहर नहीं जाता वो घर में, बाथरूम में या बैडरूम में बैठे बैठे ड्रोन की मदद से ही बबीता जी के दर्शन कर लेता है।

इधर हामिद ईद के मेले में से अपनी दादी के लिए चिमटा नहीं एक ड्रोन खरीदना चाहता है।

और अब बिजिली के तारो पर, नीम और पीपल के बड़े पेड़ो पर पतंगे उलझी हुयी नहीं मिलती, मिलते है तो फंसे हुए, भटके हुए, बिना बैटरी के बेजान ड्रोन्स।


चलिए  कल्पनाओ से बाहर आते है।


तो देखा आपने किस तरह से ड्रोन हमारे जीवन के दरवाजे पर क्रांतिकारी बदलाओ की दस्तक दे रहे है। हंसी मजाक की बात छोड़ भी दें तो ड्रोन वाकई में इंसानी जीवन को एक बेहतर दिशा में ले जाने में सक्षम है।

आज वैज्ञानिक इस विषय पर इतना शोध कर रहे है की आने वाले समय में ड्रोन हर आकार-प्रकार और शकल सूरत में हमारे आस पास घुन्न घुन्न करते फिरेंगे।

नमूने के तौर पर जटिल शल्य क्रिया (मेडिकल ऑपरेशन ), बड़ी छोटी पाइप लाइन की मरम्मत, खेतो में सिंचाई-बुवाई, तबेलों में जानवरो की देखरेख, जंग के मैदान और पहाड़ी गाँवो में दवाईयां पहुँचाने से लेकर कटरीना - रणबीर के हॉलिडे के सीक्रेट फोटो लेने तक के सारे काम ड्रोन करेगा। 

दूसरा पहलू यह भी है की आपकी हर एक्शन, हर बात, हर शब्द कही न कहीं रिकॉर्ड हो रहा होगा, कोई छोटा मोटा ड्रोन सदैव आपकी निगरानी कर रहा होगा और यही डेटा और इनफार्मेशन सदा सदा के लिए इंटरनेट पर उपलब्ध करवा रहा होगा। कोई चोर अपने टारगेट घरो की अच्छे से पहचान कर पायेगा। "एम एम एस कांड" अब ड्रोन वीडियो कांड बन के वायरल होने लगेंगे। सुरक्षा के लिहाज से आपको सदैव चौकन्ना रहना पड़ेगा।इत्यादि कईं प्रकार की तमाम वो हरकते जो नहीं होना चाहिए आसानी से की जा सकेंगी।

किन्तु जैसे बचपन से  हम हिन्दी के पेपर में "विज्ञान - वरदान या अभिशाप" पर निबंध लिखते आये है वैसे ही "ड्रोन- वरदान या अभिशाप" पर निबंध लिखा करेंगे। कहने का तात्पर्य यह है की जहाँ देव है वहां दानव है, जहाँ बुद्धि है वहीं कुबुद्धि है और जो एक पानी की बून्द सीपी का मोती बन सकती है वही पानी की बून्द किसी जहाज़ को डूबा सकती है। टेक्नोलॉजी और विज्ञान तो दिन प्रतिदिन उन्नत होते जा रहे है।इंसानी जीवन को सुखद और समृद्ध बनाने के लिए निरंतर नए आविष्कार आते जा रहे है। परन्तु इन्हे इस्तेमाल करने की नियत/इरादे/इंटेंशन्स में कोई बदलाओ नहीं आ रहा है। जब नियत बदलेगी तभी सभ्यता समृद्ध होगी। सब कुछ आप और हम पर निर्भर करता है।इसीलिए आने वाली पीढ़ी की नियत की प्रोग्रामिंग अच्छे से करे और एक उन्नत और समृद्ध भविष्य की कामना करे।



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चित्र : हमेशा की तरह गूगल के सौजन्य से







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