Thursday, 4 June 2015

सफ़र(Suffer)

भारत के महाराष्ट्र राज्य में एक ख़ूबसूरत शहर है पुणे। इस शहर की बढ़ती हुयी आबादी और तरक्की में एक बहुत बड़ा हिस्सा आईटी प्रोफेशनल्स का है। जिस तेज़ी से शहर की सीमायें बढ़ रही है उस तेज़ी से सुविधाएँ नहीं बढ़ पा रही। पब्लिक ट्रांसपोर्ट के नाम पे गिनी चुनी बस और डूक्कड़गाड़ियां चलती है यहाँ जिनसे गुजारा होना बड़ा ही मुश्किल काम है साब। इसलिए हर आदमी की खुद की गाडी (२/३/४ व्हीलर) होना आवश्यक है।
जितनी शहर की आबादी उससे कहीं ज्यादा यहाँ की सडको पे ट्रैफिक रहता है। और क्या कहा आपने , ट्रैफिक सेन्स , जी वो क्या होता है यह किसी ने नहीं बताया हमें आज तक ?


पुणे शहर में प्रमुख कंपनियों के आईटी ऑफिस या तो पूर्व में हडपसर -खराड़ी - विमाननगर में है या पश्चिम में हिंजवडी में (जी यह जगहों के नाम है ना की द्वापर युग के राक्षसो के ). अभी ऐसे में कोई बेचारा जो की पूर्व के किसी क्षेत्र में रहता है और उसका तबादला पश्चिम वाले ऑफिस या स्पष्ट कहें हिंजवडी वाले ऑफिस में हो जाता है तो उस पर क्या बीतती होगी यह उसके सिवा वो ही बता सकता है जो हिंजवडी में रहता है और उसका ऑफिस हडपसर में हो जाता है।

हिंजवडी रोड


ऐसे में रोज रोज ऑफिस जाना रामगोपाल वर्मा की आग झेलने से कहीं ज्यादा दुष्कर है । रोज सड़ा हुआ, थकेला ट्रैफिक झेल के ऑफिस जाओ, लेट होने पर बॉस का सड़ा हुआ  चेहरा देखो फिर वापसी में उससे भी ज्यादा सड़ा हुआ ट्रैफिक झेल कर, जान पर खेलकर घर पहुँचो तो शकल  देखकर बीवी कहती है " जाओ भइया कल आना, अभी ये घर पे नहीं है " ।

ऐसे में साला आदमी को सपने भी अच्छे आये तो कैसे आये ?

यहाँ बात दुरी की नहीं है , रोजी रोटी के लिए एक साइड का ४०-५० किलोमीटर तो कोई भी तय कर ले किन्तु पुणे की सडको पर हडपसर से हिंजवडी या हिंजवडी से खराड़ी रोज रोज आना जाना मतलब अपने पिछले जनम के पापो की सजा भुगतने जैसा है। अब तो शायद नरक वालो ने भी अपनी सजा के मेनू में बदलाव  करके दुष्ट आत्माओ को पुणे की सडको पर छोड़ दिया होगा की भुगतो अपने कर्मो को यहाँ , यही तुम्हारी वैतरणी है जो  तुम्हे पार लगाएगी ।

हर रोज सुबह मगरपट्टा(एक और जगह का नाम, नाकि की दानव का ) से एक आईटी प्रोफेशनल सजधज के ऋतिक रोशन बनके अपनी बाइक पर हिंजवडी के लिए निकलता है और ऑफिस पहुँचते पहुँचते कब राखी सांवत बन जाता है पता ही नहीं चलता। और अगर ऑफिस की बस में आना जाना करे तो आदमी का आधा जीवन बस में ही गुजर जाये।

सिर्फ पुणे वालो का दर्द नहीं है यह, आप बैंगलोर में रोज़ाना कम से कम दो बार मारथल्ली फ्लाईओवर क्रॉस करने वालो से पूछिये की कैसा लगता है 1 घंटा घसीट घसीट के चलना ? "it's like a slow death" .

 हमने एक्सपेरिमेंट करने के लिए 2 लोगो को मगरपट्टा से हिंजवडी बाइक पर भेजा, 2 लोगो को BTM Layout से व्हाईट फिल्ड भेजा और at the same time 2 लोगो को 4 रेपट धर के दिए, कसम से रेपट खाने वाले लोग ज्यादा खुश दिखे ।

 हमारे इसी दर्द को देखते हुए इंसानियत के नाते ओला कैब्स और टैक्सी 4 श्योर ने वादा किया है की जल्द ही वो इन सारे बताये हुए रूट्स पर लो कॉस्ट एयर टैक्सी चलाएंगे। इसके लिए हिंजवडी और ITPL में हेलिपैड बनवाने के ऑर्डर्स दे दिए गए है ।

(अब दुआ करो की ये सपना सच हो और जल्दी हो , ताकि यह सफ़र थोड़ा सुहाना हो सके )








सभी चित्र गूगल महाराज के सौजन्य से



Monday, 20 April 2015

बिरियानी

मुझे पता है की कईयों की तो लार टपक पड़ी होगी इस लेख का शीर्षक पढ़ के। हिंदुस्तान में रहो और बिरियानी से प्यार न करो ऐसा कैसे हो सकता है। लखनऊ से लेकर हैदराबाद तक, कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक बिरियानी की महक आपको अपनी और खींच लाएगी।

बिरियानी के चर्चे गली मोहल्ले तो छोड़िये आजकल फिल्मो में भी बहुत होने लगे है। वैसे तो बिरियानी मूल रूप से कभी शाकाहारी व्यंजन रहा ही नहीं किन्तु आजकल वेज-बिरियानी भी उतनी ही शिद्दत से बनायी और खायी जाती है जितना की कभी राजा महाराजा मटन बिरियानी खाया करते थे।
दूसरे व्यंजन तो आपको देखने पर ललचायेंगे किन्तु बिरियानी के प्रति आपका प्यार ऐसा है की बिना देखे दूर से ही अगर कही से महक आ जाये तो आपके पेट में हँसी और मुँह में पानी आ जायेगा। वैसे दम बिरियानी का दम निकाल दो तो वो बन जाता है पुलाओ, बिरियानी का ही भाई है। यह भी कहीं कम नहीं पड़ता सैकड़ो प्रकार से बनाया जाता है। पीस पुलाओ, कश्मीरी पुलाओ, बंगाली पुलाओ तो कहीं शाही पुलाओ के नाम से यह भी अपना रंग जमा ही लेता है।

अपने देश का कोई भी प्रदेश हो और किसी भी धर्म, जाती का समारोह हो बिरियानी और पुलाओ हमारी दावतों का अभिन्न अंग है। में खुद ४ साल हैदराबाद में रहा हूँ तो बिरियानी से तो अपना घर जैसा सम्बन्ध हो गया है। यह बात और है की शुद्ध शाकाहारी होने के नाते मेरी प्लेट में आने का सौभाग्य अब तक सिर्फ वेज बिरियानी को ही मिला है। किन्तु कसम संजीव कपूर और मास्टर शेफ की, शाकाहारी बिरियानी में भी जो मजा है न वो शायद हड्डियों वाली में न हो। खैर छोड़िये, बात बिरियानी की हो रही थी, तो उसी पर रहते है , इंसानो की तरह उसका क्लासिफिकेशन नहीं करना चाहिए।

बिरयानी एक ऐसी चीज है जो खुद अपने दम पर जितनी प्रसिद्द हुयी है उससे ज्यादा तो अजमल कसाब ने उसको नाम दिलाया है। दुनियाभर में कसाब की बिरियानी के चर्चे हुए और अगर यह सच है उसे जेल में बिरियानी मिलती थी तो सोचिये की कितनी ताकत है इस बिरियानी में।  एक आतंकवादी के सारे जुर्म कबूल करवा लाई।

आप ऐसा मत सोचियेगा की मैं भूखा नंगा बैठा हूँ और सुबह से खाने को कुछ मिला नहीं इसीलिए फालतू की चीजे लिखे जा रहा हूँ।  दर-असल आज बीवी ने वेजिटेबल दम बिरियानी बनाई थी और जब मैं खाने बैठा तो मसालों की महक से ही आह हा हा , लार टपक सी गयी। फिर जैसे ही पहला निवाला खाया तो पेट को उस अद्भुत आनंद की प्राप्ति हुयी जिसके लिए साधु संत तपस्या करते फिरते है।
किन्तु फिर मेरे दिमाग में आया की बेचारे चावल, सब्जियां और मसाले कितने कष्ट सहते है हमारी तृष्णा शांत करने के लिए। खौलते पानी में इन्हे उबाला जाता है और गरम तेल में तड़का लगाया जाता है उसके बाद परत दर परत एक के ऊपर एक इन्हे बिछा के दम घुटने तक पकाया जाता है। तब जाके तैयार होती है लजीज बिरियानी।

कितनी तपस्या, त्याग और कष्ट झेलती है यह बिरियानी, ऐसा सोचते सोचते मैं जैसे ही दूसरा निवाला उठाने लगा तो एक चावल छिटक के बोला।

"खाले हपशी खाले इतना मत सोच, हम तो बने ही इस लिए है, की हमें पका के तुम खाओ। "

 तभी गोभी का टुकड़ा भी मचल के बोला,

"हाँ हाँ हम इतना सब कुछ तुम्हारे लिए ही तो सहते है। कहाँ कहाँ से हमें लाया जाता है , काटा जाता है पकाया जाता है सिर्फ इसलिए की तुम्हारा पेट भर सके और तुम खुश रहो।"

 फिर दूसरा चावल बोला ,

"तुम इंसान तो एक साथ  एक देश, एक शहर और एक मोहल्ले तो क्या एक घर में शांति से नहीं रह सकते। हमेशा लड़ते झगड़ते हो, कभी जाती के नाम पर तो कभी धरम के नाम पर। कभी अमीरी के नाम पर तो कभी गरीबी के नाम पर। तुम लोग खुद के सिवा दुसरो का भला क्या ही सोचोगे। हमें देखो देश के अलग अलग कोने  से आये और अलग अलग जाती धरम के लोगो द्वारा हमें लाया गया है।हम चावल एक गरीब हिन्दू किसान के खेत से आये है, यह आलू एक दलित के हाथो उखाड़े गए थे और यह जो केसर डाला है न बिरियानी में वो एक मुस्लिम ने उगाया था फिर भी हम एक साथ मिलकर इतनी लजीज बिरियानी बन गए।  हम सब मिलकर, एक साथ एक बर्तन में एक ही आंच पर पक कर तुम जैसे कितने ही इंसानो का पेट और मन भरते है । हमें हर मजहब, जाती और वर्ग का इंसान उतने ही प्यार से खाता है जितने प्यार से हमे उगाया और पकाया गया। "

फिर पूरी की पूरी बिरियानी एक सूर में बोल पड़ी

"तुम इंसानो को भी ईश्वर ने बड़े प्यार से बना के भेजा है एक दूसरे का प्यार पाने के लिए, एक दूसरे की हिम्मत और सहारा बनने के लिए। किन्तु तुम लोग............. छोड़ भाई तू रहने दे यह सब, मत सोच इतना, खाले तू आराम से।"







Monday, 6 April 2015

बीवी और शॉपिंग

यह लेख बीवियों के बारे में लिखा है तो इसका मतलब यह नहीं है की इसको सिर्फ शादीशुदा लोग ही पढ़ेंगे। आप उम्र और रिश्ते के किसी भी दौर से गुजर रहे हो, आपको पढ़ना चाहिए। खुद पे न बीती हो तो कम से कम  दुसरो के जख्मो से रू-ब-रू तो होना चाहिए।

बीवी और शॉपिंग का  रिश्ता बहुत गहरा है। कईं बातें और जुमले कहे गए है इस विषय पर और आगे भी कहे जायेंगे। बीवी को खुश रखने का सबसे सरल परन्तु महंगा उपाय है यह।
वैसे दुनिया के आधे से ज्यादा रईस पुरुष इसलिए खुश नहीं है कि वो रईस है, बल्कि इसलिए खुश है कि उनकी बीवियाँ सदैव शॉपिंग में व्यस्त रहती है और उनके पास फ़ालतू के झगड़ो के लिए समय ही नहीं होता।
हमारे यहाँ मिडिल क्लास पतियों की आफत यह है कि उनकी बीवियों को शॉपिंग का मौका तभी मिलता है जब घर में कुछ तीज-त्यौहार-शादी-ब्याह वगैरह हो। शॉपिंग करके भी उनका जी तब जल जाता है जब उनके जैसी same to same साड़ी या ड्रेस कोई और रिश्तेदार या पड़ौसी भी ले आये और आपके पड़ौसी की यह मासूम सी गलती आपकी जेब पर भारी पड़ती है।
दूसरी आफत इनकी यह है कि अमीरो की तरह सिर्फ कार्ड का भुगतान करके ये अपनी बीवी की शॉपिंग नहीं करवा सकते, इनको तो बीवी के साथ मॉल दर मॉल, दूकान दर दूकान भटकना पड़ता है उसकी पसंद की चीज के ख़ातिर। साड़ी पसंद आ जाये तो फिर मैचिंग की चप्पल के लिए भटको, चप्पल पसंद आयी तो चूड़ियाँ फिर नैल पेंट और न जाने क्या क्या।

इसी प्रकार मेरे एक दोस्त दीपू के साले की शादी के लिए उसको अपनी बीवी को शॉपिंग करवानी पड़ी थी। सारा दिन १४७ दुकानो पर १७६० साड़ियां देखने के बाद दीपू की बीवी को पहली दूकान पर जो दूसरे नंबर पर साडी दिखाई गयी थी वही साडी १४५ वी दूकान पर देखने के बाद पसंद आयी । इस बीच दीपू  ७ घंटो में कुल ८  किलोमीटर पैदल और २२ किलोमीटर गाडी चला चूका था । उसके बाद भी उसको इतनी ऊर्जा बचा के रखने की जरुरत थी कि वो अपनी बीवी को मैचिंग की चप्पल, बैग, ज्वैलरी, चूड़ी और कास्मेटिक भी पसंद करने तक उसके साथ एक मुस्कराहट लिए खड़ा रहे। ( अगर मुस्कान गायब हुयी तो ३ हफ़्ते  बाद भुगतान करना पड़ सकता है। ) 

बीवियों या यूँ कहे कि लड़कियों की यह अजीब बात होती है, इन्हे शॉपिंग की ख़ातिर कितना भी चला लो इन्हे थकान तो क्या माथे पे भी शिकन तक नहीं आएगी।  वहीं पति या आम पुरुष से आप जीम में चाहे जितना मर्जी हम्माली करवा लो आसानी से थकेगा नहीं परन्तु शॉपिंग करने के नाम पे दिमाग में पहले से फिक्स रहता है की किस दूकान से जाके क्या चीज उठा के लानी है और १० मिनट या ज्यादा से ज्यादा आधे घंटे में शॉपिंग ख़त्म। ज्यादा चलना, घूमना भटकना इनके बस की बात नहीं होती।

तो बात हो रही थी दीपू और उसकी बीवी की शॉपिंग की, सारा दिन बाज़ारो में भटकने के बाद, चप्पल को छोड़ कर बाकी सब मिल गया था। बीवी ने फ़ाइनली कहा थक गए है, घर जाके कौन खाना बनाएगा चलो यहीं से कुछ खाके घर चलते है, चप्पल फिर बाद में फ़ुरसत से देखेंगे।

घर पहुंचे तो दीपू की बैटरी एकदम डाउन हो चुकी थी उसने तुरंत सोने की इच्छा जताई। इसी बात पर बीवी भड़क कर बोली, अभी से क्यों सो रहे हो, जो ड्रेस और साड़ी लाये है वो ट्राय करके दिखाती हूँ। अभी फ़ोन या लैपटॉप लेके बैठोगे तो नींद नहीं आएगी।  दीपू ने भी "बला टालने" के लिए कहा, अच्छा ठीक है जल्दी से दिखाओ। फिर पत्नी जी पुरे साजो सामान के साथ सज-धज के एक एक करके अगले २ घंटे अपनी ड्रेस ट्राय कर कर के दिखाती है। "कैसी लग रही हूँ ?" बेचारा थका मांदा दीपू एनर्जी जुटा के हर बार कहता है "अच्छी है , "यह भी अच्छी है "
 

सिर्फ अच्छी है ?  इतनी मेहनत से मेने पसंद करी, पहन के दिखाई और आप कह रहे हो "अच्छी है " ?रहने दो आपको तो कोई इंटरेस्ट ही नहीं है, वहां बाजार में भी मेरी मदद करवाने के बजाये दूसरी दूसरी  लड़कियों को ही घूर रहे थे आप।जाने दो आपसे मुझे कोई बात नहीं करना।


धम्म से दरवाजा बंद होता है और बीवी एक करवट से पलंग का एक कोना पकड़ के सो जाती है।

और इसी के साथ होता है इति शॉपिंग पुराण।

देखा आपने "शॉपिंग" के नाम से सारे पतियों की हवा टाइट क्यों हो जाती है।





नोट: सारे पिक्स गूगल इमेज सर्च के माध्यम से

Friday, 20 March 2015

स्मार्टफोन की लत


स्मार्टफोन पर सोशल मिडिया की लत, इस विषय पर अब तक बहुत कुछ लिखा पढ़ा जा चूका होगा। कईं सेमिनार हो चुके होंगे, ब्रिटेन के किसी होनहार ने कोई रिसर्च पेपर तक प्रदर्शित कर दिया होगा। परन्तु इस लत को  IIN और एयरटेल वाली लड़की के सिवा किसी ने जिंदगी जीने की लठ (छड़ी)साबित नहीं किया होगा।

आप में से कितने ही लोग ऐसे होंगे जिन्हे कभी न कभी फेसबुक/स्मार्टफोन की लत लगी होगी या अभी भी है ? एक बात बता दू आपको कि यह लत किसी भी प्रकार की अन्य लतो की तुलना में जितनी ज्यादा खतरनाक है उतनी ही गुणकारी भी। आपको अगर शराब या सिगरेट या दोनों की लत है तो आप दिन में कितनी बार पीते होंगे ? सिगरेट ४ बार या  ६ बार , शराब  १ बार या २ बार , गुटखा खैनी मुश्किल से दिन में २ बार। माफ़ कीजियेगा अगर यह आंकड़े आपकी पर्सनालिटी पर खरे न उतरे। परन्तु अगर आपको फेसबुक या व्हाट्सऐप की लत लगी हुयी है तो जनाब पूछिये ही मत। दिन में १००-१०० बार आप फेसबुक या व्हाट्अप खोल खोल के देखेंगे बिलकुल वैसे ही जैसे पुरातन समय में पहले प्यार में पागल इंसान अपनी माशूका या माशूक़ के पुराने मेसेजेस(SMS ) भी बार बार पढता था। आजकल तो पहला वाला प्यार ही बार बार हो जाता है, यह अलग बात है की हर बार माशूका/माशूक़  बदल जाती है।




परन्तु अगर आप "बी-पॉजिटिव" वाले नजरिये से देखे तो यह लत कईं मायनो में समाज की दशा सुधारने की दिशा में बहुत ही कारगर सिद्ध हो सकती है।कैसे , यह जानने के लिए चलते है रोहित के घर।

 रोहित को जब भी उसके पिताजी डांट लगाते है तो वो चुपचाप उठकर अपने कमरे में जाके अपना लैपटॉप खोलकर बैठ जाता है। तुरंत फेसबुक पर स्टेटस अपडेट करता है "फीलिंग इरिटेटेड", उसके बाद धड़ाधड़ कमेंट्स आने शुरू हो जाते है, लोग बाग़ सोशल मीडिआ पर दिल खोलकर अपनी सांत्वना प्रकट करते है जिस से रोहित का मूड फ्रेश हो जाता है। 
वहीं अगर यह पुराने जमाने का रोहित होता तो या तो घर छोड़कर ही चला जाता या फिर अपने किसी नालायक दोस्त के पास जाकर अपना दुखड़ा सुनाता। बदले में वो दोस्त कुछ न कुछ "उलटी पट्टी" पढ़ा ही देता।

एक और उदाहरण लेते है अपने दीपू का, दीपू को उसकी गर्लफ्रेंड ने सिर्फ इसलिए छोड़ दिया था क्योंकि दीपू ने उसे पिछले नौ दीनो में एक भी सरप्राइज नहीं दिया था। दीपू का दिल टूट चूका था, एकदम उदास दीपू घर आकर अपने स्मार्टफोन से फेसबुक पर स्टेटस डालता है "फीलिंग ब्रोकन " बदले में उसको ढेरो सांत्वनाएं ही नहीं मिलती बल्कि एन्जेल प्रिया और सिमरन बेब  जैसी ढेरो खूबसूरत लड़कियों के प्रपोज़ल  भी आ जाते है। इसी ले साथ दीपू के प्रेम प्रसंग का सिस्टम रिबूट हो जाता है। अगर यहाँ भी पुराने जमाने का दीपू होता तो सीधा "अल्ताफ राजा" या "पंकज उधास" बन कर "मयखाने" की ओर दौड़ लगाता और खुद को नशे की लत लगा बैठता।


 यही नहीं आजकल व्हट्सऐप की नयी लत लगी है अपने दोस्तों को। वो भी बहुत फायदेमंद सिद्ध हो रही है। आपको अकेले बैठे बैठे बोरियत हो रही हो तो तुरंत आपका कोई दोस्त या ग्रुप मेंबर एक धांसू चुटकुला भेज देता है या कोई "फ़िल्मी गाना बताओ" करके पहेली भेज देता है तो आपका समय बड़ी आसानी से बर्बाद व्यतीत हो जाता है। यही नहीं अगर आप पत्नी से पीड़ित है और बुरी तरह से मन व्यथित है तो भी आपके कईं दोस्त आपको "पत्नी पीड़ित स्पेशल" जोक्स भेजते रहेंगे जिन्हे पढ़कर आप हल्का महसूस करेंगे।

तो देखा आपने किस तरह से सोशल मीडिआ की इस लत ने हमारी युवा पीढ़ी को न केवल बुरी संगतो से बचा के रखा है बल्कि कईं दूसरी भयानक लतो से भी दूर रखा है ।

किन्तु एक बात सामने आयी है कि ज्यादातर पत्नियां अपने पति की इस व्हाट्सएप या फेसबुक की लत से खफा हो जाती है। उन्हें मैं समझाना चाहता हूँ कि देखिये आपके पति आपके पास ही बैठे है, अपने दोस्त के साथ बातें कर रहे है वो भी बिना कुछ बोले चाले एक दम "म्यूट" अवस्था में। सोचिये आपका कितना बड़ा फायदा है इसमें , एक तो वो कहीं बाहर जाकर अपना मूह काला मूड फ्रेश नहीं कर रहे और दूसरा उनके कोई दोस्त यार आपके घर आके धमाल नहीं मचा रहे ;और इन सबसे बड़ी बात आप अपने पति की गोद में लेटकर बड़े इत्मीनान से "यह रिश्ता क्या कहलाता है"  या "ससुराल सीमर का"   जैसे बेहद ही घटिया उम्दा  सीरियल का लुत्फ़ ले सकती है। इतनी सारी चीजों  के साथ साथ अगर गलती से आप रूठी भी तो बेचारा पति उसी स्मार्टफोन से आपके लिए कुछ न कुछ गिफ्ट भी आर्डर कर देता है। तो देवियों आप के पति का फ़ोन आपका दुश्मन नहीं, सबसे अच्छा दोस्त है।

तो साथियों स्मार्टफोन की लत कतई बुरी बात नहीं है अपितु इसके सहारे कईं लोग अपनी  जिंदगी के कृत्रिम असली मज़ो का लुत्फ़ उठा रहे है। 





सभी चित्र गूगल इमेज सर्च के सौजन्य से


Monday, 9 March 2015

परीक्षा की तैयारी


मार्च का महीना, फागुन की बयार, क्रिकेट का सीजन और पहला पहला प्यार लेकिन इन सब पर बैरन परीक्षा की मार।

अगर आप यह लेख पढ़ पा रहे है(मतलब अगर आप पढ़े-लिखे है) तो उपरोक्त पंक्ति को आप अच्छे से समझ पा रहे होंगे(मतलब कभी कोई परीक्षा दी ही होगी)। परीक्षाओ का मौसम चल रहा है। २०-२० क्रिकेट भी चालु है और अभी अभी बसंत बीता और फागुन आया है।  परीक्षा जैसी मनहूस चीज के लिए ऐसा समय जिसने भी चुना वो बड़ा ही नीरस किसम का इंसान रहा होगा। खैर छोड़िये, बात करते है परीक्षा की तैयारियों की। विशेषकर हमारे जमाने(90s) की तैयारियों की। जैसे जैसे परीक्षा नज़दीक आती थी, वैसे वैसे दिलो-दिमाग की हालत उस दूल्हे जैसे होने लगती थी जो आज ही ब्याहने जा रहा हो।  परीक्षा के बाद मिलने वाली गर्मी की छुट्टियों की खुशियां तो मन में रहती ही थी साथ ही बालको को फ़ैल होने का और कन्यायों  को १००/१०० न ला पाने का डर भी रहता था।

परीक्षा शुरू होने से कुछ ही दिनों पहले जैसे ही प्रिपरेशन लीव पड़ती थी  हम बनाते थे  एक "टाइम-टेबल ", चिपकाते थे उसे वहां जहाँ हमारी नजर बार बार पड़े। और ये टाइम-टेबल कुछ इस तरह से होता था :

सुबह ५ बजे उठना और थोड़ी सी खिट -पिट करके जता देना की हाँ उठ गए है।  ५ से ७ पढ़ना या लाइट जाने का इन्तेजार करना, जैसे ही लाइट जाये तुरंत सो जाना। ८-९ बजे उठकर घरवालो को बताना की कैसे आज ४ बजे से ७ बजे तक पढ़ाई करी। फिर नहाना -धोना(अगर मूड हुआ तो), खाना पीना और दोस्त के घर पढने जाना और वहां जाकर क्या पढ़ना यह आपको अच्छे से पता है। दोस्त के घर से सीधे ट्यूशन जाना। ट्यूशन पर थोड़ा पहले पहुँचना और "उसका" इन्तेजार करना।वो आ जाये तो क्लास ख़त्म होते ही उससे बात करने की फिर एक आखिरी नाकाम कोशिश करना।

स्कूल में हो न हो ट्यूशन में हमारी अटेंडेंस शत प्रतिशत रहती है। हर रोज इसी आस में जाते है कि आज तो बात कर लूंगा, हालांकि अक्सर ऐसा करते करते साल गुजर जाता है और बात वहीं रह जाती है।  घर आके मूड फ्रेश करने का कह के थोड़ा खेलना उसके बाद जहां सुबह किताब बंद हुयी थी वहीं से आगे बढ़ने की "कोशिश" करना। कईं बार किताब का एक पन्ना एक तनहा जिंदगी जैसा लगता है, जो आसानी से गुजरती नहीं। खैर थोड़ा पढ़ के खाना खाके फिर मूड फ्रेश करना पड़ता है टीवी देख कर। अब चूँकि सुबह जल्दी उठना है तो जल्दी सोना पड़ेगा।

यही सब करते करते आ जाती है मुई परीक्षा। घर वाले, रिश्तेदार, आस-पड़ोस सभी एक ही सवाल पूछते है , "हो गयी तैयारी परीक्षा की ?" हम भी जोर शोर से कहते है हाँ हाँ एक दम फर्स्टक्लास तैयारी हो गयी।
और हमारी तैयारी होती थी कुछ इस तरह :

यूनिफार्म पर इस्तरी कर ली जूते पोलिश कर लिए और साइकिल की एक मरम्मत करवा ली। नया रेनॉल्ड्स 045 फाइन कर्बर या रोटोमैक (लिखते लिखते लव हो जाये वाला) या सेलो जैल पेन और उसकी २ एक्स्ट्रा रिफिल खरीद ली। नया शार्पनर और रबर खरीदा। नयी नटराज या अप्सरा( औकात के हिसाब से लगा लो ) पेन्सिल शार्प करके रखी। एक कम्पास बॉक्स* लिया जिसमे नया स्केल*, चांदा*, डे-टांगा* पहले से आया था।

एक नया क्लिप वाला पुष्टां* खरीदा। पुष्ठे पर परीक्षा का टाईमटेबल चिपकाया। कम्पास बॉक्स में सारी आयटम अच्छे से चेक करके रखी और प्रवेश पत्र भी उसी में ठूस लिया। २-३ बार इन सब चीजो को बारी बारी से चेक किया और हो गयी हमारी परीक्षा की तैयारी।आजकल के बच्चे तो खामखाँ का टेंशन लेते है।


*

ग्लोसरी:
क्लिप वाला पुष्टां= clipboard
चांदा = Protractor,
डे-टांगिया= Divider or Compass,
कम्पास बॉक्स= Geometry box,
स्केल= Ruler


और हाँ ....... चित्र इंटरनेट के सौजन्य से।


Thursday, 26 February 2015

पप्पू गायब हो गया

बधाई हो, कांग्रेस और देश दोनो को कुछ समय के लिए  राहुल गांधी से निजात मिल गई है। कुछ कार्यकर्ताओं को छोड़ कर पूरी पार्टी अंदर ही अंदर खुश है। यह दीगर है की कोई भी बड़ा नेता इस ख़ुशी को ज़ाहिर नहीं कर पा रहा है।

पप्पू भाईसाब के छुट्टी पर जाने से इतना हाहाकार मचा हुआ है की पूछो ही मत। जैसे शक्तिमान गायब हो गया हो और अब संकट यह है की बच्चो को किल्विश के चंगुल से कौन छुड़ाएगा ?
पप्पू यहाँ रहता भी तो भी कौनसा पत्थर को तराश के हीरा बना रहा था बल्कि उसके जाने के बाद तो शेयर मार्किट उछाल मार रहा है। अब जो होना था वो तो हो गया, किन्तु दुनिया के ४ महान लोग ४ महान बातें तो करते ही है उन्हें कोई माई का लाल नहीं रोक सकता। हमने भी अपने सूत्रों को चारो और भेजा और कम से कम ४ लोगो से राहुल के गायब होने के सस्पेंस के बारे में जानने को कहा। और जिन चार लोगो ने ४ बातें बतायी वो बेहद चौकाने वाली थी। लीजिये आप भी पढ़िए।

१. दिग्विजय सिंह के हिसाब से राहुल गांधी के गायब होने के पीछे आरएसएस का हाथ है। थोड़ा और ज्यादा पूछने पर उन्होंने बताया की राहुल गांधी को कुछ दिनों से खाकी चड्डी पहनने का शौक चढ़ा था जो दिग्विजय सिंह ने खुद देखी थी उनके पायजामे के भीतर। (कब, कैसे और  किन परिस्थितियों में ? इन सबका जवाब वो देने से कतरा गए ). हालांकि उन्होंने ज़ोर देकर कहा की राहुल गांधी का ब्रेन वाश करके उसको RSS वालो ने अपने किसी कैंप में छुपा रखा है।

२. RSS के ऊपर लगे इल्जाम को लेकर हम मोहन भागवत के पास पहुंचे। उन्हें हमने बताया की दिग्गिराजा का क्या कहना है। उन्होंने साफ़ कहा की हमें कोई ऐतराज नहीं है अगर पप्पू RSS ज्वाइन करे।भागवत ने दावा की की उसने RSS की जगह ISIS ज्वाइन कर लिया है अब इसमें हम क्या करे। हम तो उसकी तुरंत "घर वापसी" करवा दे बशर्ते दिग्विजय सिंह उम्र भर के लिए मौन व्रत धारण करे फिजिकली और डिजिटली दोनों।

ऐसा होना तो संभव नहीं है की दिग्गी मौन रख के बैठ जाये तो मतलब RSS वाले तो राहुल की घर वापसी न करवा पाएंगे। फिर हमारे सूत्र पहुंचे सोनिया गांधी के पास।

३. राहुल गांधी के गायब होने के पीछे जितना अच्छी तरह से सोनिया गांधी को पता होगा उतना शायद किसी को नहीं। हमारे सूत्रों ने सोनिया जी से भी जानने की कोशिश की तो उन्होंने एक कहानी सुनायी जो उन्ही के शब्दों में प्रस्तुत है: " मैं पिछले साल अपने हाथो से सरकार चले जाने से दुखी थी और रो रही थी, तभी राहुल ने पूछा की क्यों रो रही हो ? मैंने उसे समझाया की जब कोई चीज अपने पास रहती है तब हमें उसकी अहमियत पता नहीं पड़ती, जब वो अपने हाथो से निकल जाती है तो पता पड़ता है की कितनी जरूरी चीज थी। "
सोनिया जी के हिसाब से यही बात राहुल गांधी ने बड़ी सीरियसली ले ली और खुद की अहमियत बताने के लिए वो थोड़े दिनों के लिए सबसे दूर चला गया है। ताकि हमें और पार्टी के लोगो को उसकी अहमियत का अहसास हो।


वैसे राहुल गांधी के पिता कहा करते थे की हमारे राज में जब हम १ रूपया देते है तो वो आप तक पहुँचते पहुँचते १५ पैसे हो जाता है। यह बात राजीव जी ने यूँही नहीं कह दी थी इसके लिए प्रेरणा स्त्रोत उनका अपना बेटा था। घर का कोई भी सदस्य या शिक्षक जब भी राहुल गांधी को कोई बात कहता तो उसका १५% ही राहुल को समझ आता था बाकी सब बेकार जाता था । बचपन से ही राहुल ऐसे है और कांग्रेस ने जनता को शुरू से राहुल ही बनाया है। ऐसा हमारा कहना नहीं है यह बात बताई है उनकी सगी बहन प्रियंका ने जब हमने उनसे राहुल के गायब होने के बारे में पूछा।

४. प्रियंका गांधी ने बताया की राहुल गांधी को एक बार उन्होंने कहा की तू कैजरीवाल से कुछ सिख, आम आदमी की तरह रहा कर तो राहुल ने काउंटर क्वेश्चन किया की कैसे ? कोई उदाहरण दीजिये। तब प्रियंका ने कहा की जैसे तू वेकेशन पर जाता है तो बजट होलिडे लिया कर। सस्ता होता है और आम आदमी की तरह लगता है। बस इसी बात को गंभीरता से लेते हुए राहुल ने बजट के दौरान वेकेशन ले लिया।

इन ४ लोगो की ४ बातों के अलावा हमने सभी ४ लोगो की खबर रखने वाले कुछ पत्रकारों से भी चर्चा की तो उन्होंने जो थ्योरी हमे बताई वो सुन कर तो लगने लगा है की कलयुग का अंतिम चरण शुरू होने को है और जल्द ही प्रलय आने वाला है।

सुनिए पत्रकारों का क्या कहना है : उनके हिसाब से एक थ्योरी तो यह भी है की जिस दिन से राखी सांवत ने AIB रोस्ट वाला अपना बयान दिया की करन जौहर और रणवीर सिंह की आवाज़ डब करके गालियां निकाली गयी है तब से वो और राहुल गांधी एक साथ गायब है।आशंका यह भी जताई जा रही है की दोनो ने भाग के शादी करने का फैसला कर लिया है और इस समय यूगांडा के किसी गांव में वहां के गरीबो की एक बस्ती में अपना हनीमून मना रहे है।

खैर सच्चाई जो भी हो फिलहाल सोनिया गांधी और कांग्रेस के लिए बड़ी राहत की बात है और मीडिया को कुछ और दिनों का मसाला मिल गया है। वहीं कांग्रेस के कुछ युवा कार्यकरता अपने युवा ह्रदय सम्राट के गायब होने का दुःख भी मना रहे है। आपको भी अगर पप्पू की कोई खबर मिले तो जरूर बताईयेगा।



Friday, 20 February 2015

विरोध करो

हमारे देश में ३ विशेष प्रकार के लोग आपको ज़रूर मिलेंगे, एक जो आपकी किसी भी बात पर "हाँजी" की मुंडी हिलाएंगे, दूसरे वो जो आपको हर मोड़ पर, हर कदम पर "राय" देते मिलेंगे और तीसरे वो जो आपकी हर बात का "विरोध" करेंगे। ताज़ा सर्वे के आंकड़े बताते है की तीसरे टाइप के याने की विरोधी स्वाभाव के लोग दिन ब दिन बढ़ते ही जा रहे है।

हर जगह हर कोई किसी न किसी बात का विरोध कर रहा है, विधानसभाओ में विपक्षी दल सत्तारूढ़ दल का विरोध कर रहे है, पत्नियां पतियों का विरोध कर रही है, पप्पू अपनी मम्मी का विरोध कर रहा है , मम्मी मोदी का विरोध कर रही है , सेंसर बोर्ड गालियों का विरोध कर रहा है  और हम अपने सारे विरोध गालियां निकाल के कर रहे है।

अभी अभी वेलेंटाईन डे बीता, हर साल की तरह इस साल भी बहुत दिलजलों ने इसका विरोध किया। शादी से पहले हमने भी गर्लफ्रेंड बनाने की कोशिश की तो हमारे घरवालो ने विरोध किया और शादी के बाद कोशिश की तो घरवाली ने विरोध किया तो तैश में आकर हमने भी इस वेलेंटाईन डे का विरोध कर डाला।

खैर अगर इतिहास खंगाले तो विरोध करना भारतियों के स्वाभाव में था ही नहीं, किन्तु जब से गांधी जी ने अवज्ञा आंदोलन का पाठ पढ़ाया और उस पाठ को हमने इतिहास की किताबो में रटा तब से हमे विरोध करने की आदत सी हो गयी है। यह बात और है की हमारा विरोध कहीं नोटिस नहीं होता न ही उस चीज से बच पाते है जिसका विरोध हम करते है।

मसलन स्कूल न जाने का , सुबह जल्दी न उठने का , होमवर्क न करने का , खेलने न जाने देने का , बर्फ का गोला न खाने देने का और कद्दू, करेले, बैगन, मेथी, पालक, मूंग दाल का विरोध तो आपको याद ही होगा जो बचपन में बहुत किया। टाँगे पटक पटक के किया, मूह फाड़ के, दहाड़े मार के और जमीन पर लेट के किया, किन्तु इतना विरोध करने से आखिर मिला क्या ? कुछ नहीं।

इससे तो अच्छा होता की हमारी माँ ने ही बाबूजी का कुछ विरोध किया होता, तो कम से कम हम इस निर्दयी दुनिया में आने से तो बच जाते।  बचपन में कुचले गए हमारे विरोध की खुन्नस हम उम्रभर किसी न किसी तरह का विरोध करके निकालते रहते है।

आज की दुनिया में तो आलम यह है की अगर सारी दुनिया किसी चीज का विरोध कर रही है और आप कुछ नहीं कर या कह रहे तो आप एक नंबर के चु**ये करार दिए जायेंगे। आजकल अपना विरोध दर्ज करवाने के लिए आपको किसी अनशन पर थोड़े ही बैठना है न ही पुलिस के डंडे खाने है। सोशल मिडिया का ज़माना है भई और इस ज़माने में विरोध करना कितना आसान है, जिस किसी ने भी विरोधी स्वाभाव की पोस्ट डाली हो  उसपे जाके बस एक "Like" बटन ही तो दबाना है, या किसी की पोस्ट अच्छी न लगे तो उसको थोड़ा गरिया दो याने गालियां पटक दो बस हो गया विरोध और आप बन गए इंटरनेट के "Intellectual" प्राणी। कुछ ज्यादा तूफ़ानी करना हो तो उस पोस्ट की अपने निहायती घने नेटवर्क(फेसबुक, व्हाट्सप्प, ट्विटर) में आग की तरह फैला दीजिये। और ऐसा करके आपने अपने हिस्से की समाज सेवा कर ली मानो।

अब अगर राजनीती की बात करे तो विपक्ष में बैठी पार्टियों का भी तो एक ही काम है , विरोध करो। कुछ भी हो जाये बस सरकार के कामो का विरोध करो। सरकार ने गरीबो के लिए बैंक खाते खुलवाये, विरोध करो, सरकार ने उद्यमियों की सुविधा के लिए कदम उठाये, विरोध करो, बस किसी न किसी तरह विरोध करो। जब कांग्रेस की सरकार ने परिवार नियोजन लागू किया तब लालू विपक्ष में थे उन्होंने इस योजना का विरोध किया, परिणामस्वरूप दर्जन भर बच्चे पैदा कर डाले।  अभी हमारी कांग्रेस पार्टी ने तो आतंकवादियों के इरादो पर पानी फेरने वाले सुरक्षाकर्मियों का ही विरोध कर दिया। अब तो हालत यह है की विपक्षी पार्टियों के अंदर ही एक दूसरे का विरोध शुरू हो गया है।ताजा हाल यह है की बिहार में एक ही दल के २ मुख्यमंत्री एक दूसरे के विरोध में खड़े है।

परन्तु असल बात तो यही है की जिसका जितना ज्यादा विरोध वो चीज उतनी तेज़ी से फैलती है , उदाहरण देखिये। बचपन में होमवर्क का विरोध किया तो वो बढ़ गया, खेल और टीवी पर पाबन्दी का विरोध किया तो १० और चीजो पर पाबन्दी लग गयी। आज की बात करे तो मोदी जी का १० सालो तक भयानक विरोध किया गया, किन्तु फल क्या निकला ?वो उतनी ही प्रचंडता से सरकार में आये। इधर दिल्ली में मोदी ने केजरीवाल का विरोध करने में पूरी ताकत झोंक डाली, और इस विरोध का परिणाम क्या निकला वो तो आप जानते है। आतंकवाद का विरोध पूरी दुनिया सालो से करती आ रही है, किन्तु क्या हुआ? रुकने की बजाये यह तेज़ी से विश्व के हर देश में फैलता जा रहा है। स्वास्थ्य की बात करे तो हम लोग एबोला और स्वाईन फ्लू का कितना विरोध कर रहे है फिर भी रुकने का नाम ही नहीं ले रहा। और सबसे बड़ा उदहारण फिल्म PK, कितना विरोध हुआ इस फिल्म का, किन्तु सबसे ज्यादा कमाई भी इसी फिल्म ने की।

इतने सरे उदाहरणों से कुछ समझे आप ? मतलब ये है की जिस चीज का जितना तगड़ा विरोध करो वो उतनी ही तेज़ी से फैलती है, सीधे सीधे न्यूटन महाराज का तीसरा नियम लागू हो रहा है।

तो अब ध्यान रखे, जब भी पेट्रोल के दाम घटे तब आप विरोध करे, जब भी अर्थव्यवस्था सुधार की बात हो आप विरोध करे, जब भी सेंसेक्स ऊपर चढ़ता दिखे तुरंत उसका विरोध शुरू करे, सफाई अभियान का विरोध करे, स्वाईन फ्लू और अन्य बीमारी से बचने के लिए जो निर्देश दिए है उनका विरोध करे, यहाँ तक की अगर कोई सरकारी कर्मचारी रिश्वत न ले तो उसका भी विरोध करे, फिर देखिये कैसे हमारा देश तरक्की करता है।

मैंने तो सरकार को चिट्ठी लिख के अपना यह प्रस्ताव भी भेजा है की सरकार अपने ख़ुफ़िया सोशल नेटवर्किंग डिपार्टमेंट को ही यह काम सौंप दे, विरोध करने का, बाकी हम "लाइक और शेयर" के बटन तो दबा ही देंगे।

तो कुल मिलाकर मन की शांति और देश की तरक्की के लिए विरोध करते रहिये। हम पैदा ही विरोध करने और सहने के लिए हुए है।




देश भक्ति

  देश भक्ति , यह वो हार्मोन है जो हम भारतियों की रगो में आम तौर पर स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस  या भारत पाकिस्तान के मैच वाले दिन ख...