Thursday, 15 January 2015

जिंदगी के मासूम सवाल

सवाल जवाबो में उलझी इस जिंदगी में हम निरंतर जवाब देते हुए आगे बढ़ते रहते है। जिंदगी भी कभी चुप नहीं बैठती सवाल पे सवाल दागती ही रहती है। तभी तो परेशान होकर  गुलज़ार साहब ने लिखा "तुझसे नाराज नहीं जिंदगी, हैरान हूँ मैं, तेरे मासूम सवालो से परेशान हूँ मैं "

हमने जिंदगी के ऐसे ही कुछ "मासूम" से सवालो की एक सूचि संकलित की है जिनसे आपका पाला अवश्य ही पड़ा होगा। यह वो सवाल है जिनसे अरनब गोस्वामी भी एक बार तो परेशान हुआ ही होगा।




विद्यालय में पहली कक्षा से लेकर १२ वी कक्षा तक जो सवाल आपको बहुत तंग करते है उनमे से सबसे ऊपर है
 रिजल्ट कैसा रहा ? यह सवाल परीक्षा में पूछे गए सवालो से भी ज्यादा परेशान करता है। 
फिर 
क्या विषय ले रहे हो १०वी के बाद ? इस सवाल के जवाब में हम और हमारे घरवाले कभी एक मत नहीं होते। 

फिर जैसे तैसे १२वी हो जाये तो

कौन से कॉलेज में एडमिशन ले रहे हो ? (अगर कोई ढंग का कॉलेज मिल जाये तो ठीक नहीं तो अगले ३-४ साल भुगतो इस सवाल और इसके जवाब को )

फिर रिजल्ट कैसा रहा ? ( हर सेमेस्टर/साल, घूम के फिर यही सवाल आ ही जाता है )
अब कॉलेज जाना शुरू हो गया, और गलती से थोड़ा बन-ठन के निकले तो जो सवाल तैयार रहता है वो है 
किसी के साथ कोई चक्कर तो नहीं चल रहा ? ( यह सवाल डायरेक्ट नहीं पूछा जायेगा, घुमा फिरा के पूछेंगे)

कॉलेज खत्म होते होते अगला भयानक प्रश्न तैयार हो जाता है 
प्लेसमेंट हुआ ? कहाँ हुआ ? ( घरवालो से ज्यादा पड़ौसी चिंतित रहते है, जैसे उनके घर राशन नहीं आएगा अगर मेरा प्लेसमेंट नहीं हुआ तो )
हो गया तो नेक्स्ट क्वेश्चन 
कितना पैकेज है ? ( "बस इतना हमारे साढू के भतीजे का तो इतना है", अरे कितना भी हो कौनसा तुम्हारे अकाउंट में जाने है  )

फिर जैसे तैसे नौकरी मिल भी गयी तो हमारे ही अन्य दोस्त जो हमारी ही कंपनी में या अन्य कंपनी में काम कर रहे होते है, पूरा साल एक ही सवाल करेंगे,
अप्रैज़ल हुआ ? कितना हाईक मिला ?

और गलती से आप आय. टी. में हो तो तैयार रहो की साल में १२ बार यह सवाल भी आपको तंग करेगा की "फॉरेन-वॉरेन गए की नहीं एक बार भी "

फिर जिंदगी का सबसे ज्यादा दोहराने वाला और सबसे ज्यादा चिढ दिलाने वाला प्रश्न जो आपके जीवन से जुड़ा हर व्यक्ति आपसे पूछेगा
शादी कब कर रहे हो ?
शादी कब कर रहे हो ?
शादी कब कर रहे हो ? ( हर बार, हर कोई पूछेगा, जब तक की हो नहीं जाती,  इस सवाल पर तो पूरी किताब लिखी जा सकती है )

झल्ला के ही सही आप शादी कर लेते है और उसके तुरंत बाद, अगला यक्ष प्रश्न हाजिर हो जाता है
खुशखबरी कब दे रहे हो ? ( पहले साल )
खुशखबरी कब दे रहे हो ? ( दूसरे साल )
इस साल तो हो ही रहे हो न दो से तीन ( हर साल, जब तक की तीसरा आ नहीं जाता ) 
और जहाँ हमें एक खुशखबरी देने में १० बार सोचना पड़ता है वही हमारे नेता ४-४, ५-५ खुशखबरी देने को बाध्य कर रहे है। 

और खुशखबरी देने के २-३ साल बाद 
कौनसे स्कूल में डाल रहे हो ? (और गलती से आप पूछ लो की आप ही बताईये, तो तैयार रहिये रायचंदो से निपटने के लिए)

यह तो वो प्रश्न थे जो की दोस्त, रिश्तेदार, पड़ौसी, माँ-बाप, और भाई बहन आपसे पूछते रहते है। इनके तो आप जवाब भी दे सकते हो, तुरंत न सही थोड़ा वक्त लेकर। किन्तु कुछ सवाल ऐसे है जिनका जवाब आजतक नहीं खोजा जा सका है, और कोई जवाब देता भी है तो सीधे सीधे नहीं दे सकता। पहले तो सवाल ही कठीन और दूसरा यह सवाल पूछे जाते है आपकी धर्मपत्नी के द्वारा। याने की करेला वो भी नीम चढ़ा। 

तो दोस्तों पेश के जिंदगी के सबसे बड़े और खतरनाक २ सवाल जिन्होंने लगभग हर इंसान को एक बार तो परेशान किया ही होगा।

१. जानू, मैं सच में मोटी लगती हूँ ? ( सच कहो या झूठ या डिप्लोमेटिक हो जाओ, मेरे ख्याल से चुप रहना ज्यादा बेहतर है। )

और

२. आज खाने में क्या बनाना है ?(बाकी के सवाल तो कभी न कभी पीछा छोड़ ही देते है, परन्तु इस सवाल का हमारे जीवन से वैसा ही नाता है जैसा केजरीवाल का टीवी से, कांग्रेस का घोटालो से और मोदी का माइक से)



ऐसे ही आपके कोई पर्सनल सवाल हो जो इस सूचि में न हो और आपको लगता है की वो भी जीवन के सबसे जटिल प्रश्नो में से एक है तो कमेंट करिये। 

Monday, 12 January 2015

नाम में क्या रखा है

"नाम में क्या रखा है ?" शेक्सपियर तो इतना कहके निकल लिए, उनको क्या मालूम था की यहाँ भारत में नाम के पीछे कितना कोहराम है।
स्रोत: गूगल इमेज सर्च 


आजकल के लेखक, पत्रकार, दार्शनिक भी जब कुछ लिखते है तो नायक नायिका के नाम लेने से परहेज करते है। बेवजह का "साम्प्रदयिक" तनाव पैदा हो सकता है इसीलिए कोई नाम नहीं लेता। यहाँ तक की पुलिस थाने में भी रिपोर्ट "अज्ञात" लोगो के नाम की लिखी जाती है, फिर भले ही सबूत के तौर पर पेश किया गया वीडियो चिल्ला चिल्ला के अपराधी का नाम ज़ाहिर कर रहा हो।

खैर इन सब के बारे में आप सब जानते हो, मैं आपको नामो की वजह से होने वाली एक अलग ही वैश्विक समस्या से आपको अवगत कराने की मंशा रखता हूँ। हालाँकि आप में से अधिकांश लोगो को यह समस्या झेलनी पड़ी होगी।

जवान हो, अपने पैरो पर खड़े हो तो घरवाले आप पर सबसे बड़ा दबाव डालेंगे की शादी कर लो, वो भी हो गया तो सालभर के भीतर आप पर एक नया दबाव आ जायेगा, २ से ३ होने का। कहीं कहीं तो मैंने यह भी सुना है की एम्प्लोयी ने इन्ही सब बातों का रोना रोकर अपने मैनेजर को इतना इमोशनल ब्लैकमेल किया की उसको सैलरी हाईक मिल गयी। खैर आप २ से ३ भी हो गए, अब आपके सामने सबसे बड़ी समस्या यह नहीं है की डाइपर कौन बदलेगा, न ही इस बात की चिंता है की रात रात भर जाग के दूध की बोतल कौन भरेगा बल्कि सबसे बड़ी चिंता का विषय है की इस नए मेहमान का नाम क्या रखे ?

स्रोत: गूगल इमेज सर्च 

आज के जमाने में "यूनिक" नाम रखने का चलन है। लोग अपने पालतू पशुओ का नाम भी मोती, ब्रूनो, टाइगर या शेरू नहीं रखते बल्कि यूनिक सा अंग्रेजी सा कोई नाम ढूंढ़ते है। बात खुद के बच्चे की हो तो नाम थोड़ा ख़ास ही ढूंढ़ना पड़ता है और ये यूनिक नाम ढूढ़ने पर भी नहीं मिलते। हालांकि कई माँ-बाप तो अपने खुद के नामो के प्रथम २ अक्षरो की संधि करके ही यूनिक नाम बना लेते है।  परन्तु हर पति पत्नी ऐसा नहीं कर सकते तो ऐसे में बेचारा पति सारी  रात इंटरनेट पर सर्च करके कोई "भल्ता सा" ही सही पर यूनिक नाम ढूंढ़ता है तो पत्नी कहती है, नहीं यह नाम तो मेरी मौसी की बेटी के देवर के बच्चे का भी है, कोई "यूनिक" नाम ढूंढो। फिर जाके २-४ "बेबी नेम्स" वाली किताब खरीद के लाते हो, फिर भी मनपसंद नाम तो किसी के भाई के साले के बच्चे का निकलता है तो कोई नाम दोनों पति पत्नियों में से किसी के दोस्त अपने बच्चो को दे चुके होते है । हजारो नाम खारीज़ करने के बाद बड़ी मशक्कत से एक यूनिक नाम आप ढूंढते हो। अब आप सेलिब्रेशन की तैयारी कर ही रहे होते हो की आपके घरवाले जाके किसी पण्डित से बच्चे की कुंडली बनवा आते है और नाम का अक्षर तय हो जाता है की अब नाम तो इसी अक्षर से शुरू होगा। फिर शुरू होती है वही कहानी, गोल गोल धानी और इत्ता इत्ता पानी।



मेरे एक परिचित ने तो यूनिकनेस के चक्कर में कंफ्यूज होके अपने बच्चे का नाम "चमन" रख दिया तो उसके पहले जन्मदिन पर आये मेहमानो ने जैसे तैसे समझाया की कैसे तुम अपने ही बच्चे को उसके बाप का कतल करने के लिए उकसा रहे हो।  अभी अभी मेरे एक बहुत खास और बहुत ही कांग्रेस विरोधी दोस्त ने अपना खुद का ही नाम राहुल से बदल के वरुण रख लिया है।

क्या आप अब भी कहेंगे की नाम में क्या रखा है ? अब तो शेक्सपियर भी अपने शब्द वापस लेने को तैयार होंगे।

Wednesday, 7 January 2015

पिके का विरोध - in Cut to cut style


फिल्म "पीके" पर इतनी प्रतिक्रियाएँ, टिप्पणियाँ आ चुकी है मार्केट में की इस पर कुछ भी लिखना क्लीशे होगा। फिर भी आज बैठे बैठे सोचा की क्यों न मैं भी अपनी आपत्ती दर्ज करवा ही दूँ। क्योंकि आजकल अगर किसी न किसी चीज का विरोध न करो तो लोग बेवकूफ समझते है। इसलिए मैं अपना ऑनलाइन प्रोटेस्ट करता हूँ "पीके" के खिलाफ।



इस फिल्म में एक गाना है "बिन पूछे मेरा नाम और पता, रस्मो को रख के परे , चार कदम बस चार कदम चल दो न साथ मेरे" . 

एक फुल टाइम फुल्ली कमिटेड पति होने के नाते इस गाने से मेरी भावनाएं आहात हुयी है जनाब। नायक पहली ही मुलाकात में नायिका को पटाने के लिए गाना गाता है और कहता है की मेरा नाम पता पूछे बिना ही मेरे साथ २-४ कदम चल लो। हद्द है यार, यहाँ अगर हमें शादी करना हो या लड़की पटाना हो तो नाम पता तो ठीक है अपनी जनम कुंडली, बैंक बैलेंस, मंथली इनकम से लेकर अपनी पैथोलॉजी रिपोर्ट्स तक दिखानी पड़ती है और तुम नाम पता भी नहीं बता सकते। फिर अागे कहता है की रस्मो को परे रख दो, बोलो यार यहाँ हम सारी रस्मे, कस्मे और वादें निभाते रहे जीवन भर, और अगर कोई छोटा मोटा वादा न निभा पाये तो सजा भी भुगते। सिर्फ यहीं तक मेरी भावनाएं आहात नहीं हुयी इसके आगें तो नायक कहता है की बस चार कदम चलदो साथ मेरे। कहिये, यहाँ हम सात सात जन्मो की कसम खाके एक ही नायिका के साथ बंधे हुए है और यह हर चार कदम में नयी नायिका चाहता है वो भी बिना कोई कमिटमेंट के, वाह भाई वाह।


बात सिर्फ इतनी ही होती तो जैसे तैसे ठंडा पानी पिके (पीने वाला पिके, फिलम वाला नहीं) हम काम चला लेते परन्तु नायक यहीं रुका नहीं इसके आगे सुनिए।  कहता है बिन कुछ कहे बिन कुछ सुने मेरे साथ चलदो, अब आप ही बताओ आप में से किसकी गर्लफ्रैण्ड या बीवी आपसे बिन कुछ कहे आपके साथ चलने को राजी हो जाती है ? कब हुआ था आखिरी बार ऐसा की आप कही गए हो ४ कदम ही चले हो और वो "चुप" रही हो ?

एक कमिटेड पुरुष होने के नाते हम इस गाने का विरोध करते है साहब। इतना ही नहीं, गाना खत्म होते होते नायिका अंत में कह ही देती है "चार कदम ही क्या, सारी उम्र चल दूंगी साथ तेरे" तब जाकर राहत की साँस लेता हूँ मैं की चलो ये नायिका भी उमर भर चिपकेगी इसके साथ।

वैसे चलते चलते इस गाने के अलावा एक और चीज से मेरी उम्मीदों को ठेस पहुंची है और वो यह की नंगा पुंगा एलियन दोस्त आमिर ही क्यों कटरीना क्यों नहीं ??

Friday, 26 December 2014

मॉल की सैर


देखो यार हम बड़े शहरों में रहने वाले लोग है, छुट्टी मिले तो उठ के रिश्तेदारो या दोस्तों के घर नी जा धमकते और ना ही शहर के किसी छोटे मोटे टॉकीज में या बगीचे के चहलकदमी करके आते है। भिया यार हम मॉल जाते है सीधा , क्या समझे ?
नी  समझे तो समझाते है, क्या है की छुट्टियों का मौसम चल रिया है और लोग बाग़  हिल स्टेशन, समुन्दर पे , या किसी रिसोर्ट में अपनी छुट्टियां मना रहे है और सब जगह के होटल मानो ओवरफ्लो हो रहे है। और तो और सडको पे भी जाम लगा पड़ा है तो जो जगह एक दिन में घूम के आ सको वहां भी नी जा सकते। यही बात इस क्रिसमस पे हमने अपनी बेग़म साहिबा को समझाई, जो वो समझ भी गयी(शायद)। लेकिन अब छुट्टी के दिन सारा दिन घर बैठ के बीवी की गालियां भी तो नहीं सुन सकते ना। हमने यह भी समझाया की अभी भीड़ भाड़ वाली जगहों पे नहीं जा सकते, आतंकवादियों का हमला हो सकता है इस लिए आराम से घर पे ही तुम दाल-बाटी बनाओ और अपन टीवी देखते है । इसके बाद तो जो हमला हुआ हम पे उससे तो आतंकवादियों का हमला ही हमें बेहतर लगा सो हम चुपचाप अपनी दुपहिया पे बेग़म को बिठा के निकल पड़े।

अब साब बड़े शहरों में घूमने के लिए ले देकर मॉल ही होता है जहाँ जाके आटे-दाल के भाव पता करके आ जाओ बस।  हम भी गए, क्रिसमस का दिन था, सड़के जाम शहर में भी थी, शायद आधा शहर हमारी तरह होटल का ओवरफ्लो देख के कही नहीं गया था। मॉल पहुंचे तो गेट के बाहर इतनी भीड़ थी मानो भीतर माता रानी का भण्डारा चल रहा हो। ऐसी भीड़ तो यार भिया हमने अपने इंदौर में १५ अगस्त और २६ जनवरी को चिड़ियाघर के बाहर ही देखी थी अब तक क्योंकि साल के इन २ दिनों को मुफ्त एंट्री होती है । जैसे तैसे हिम्मत करके हम अपनी दुपहिया और उसपे बैठी हमारी बेग़म को धकेलते हुए पार्किंग के गेट तक पहुंचे और २० रुपये का टिकिट कटा के तलघर में जगह ढूंढ के दुपहिए को टिका दिए।

मॉल के अंदर घुसे तो पाया की  जिधर देखो उधर लोगो की भीड़ ही भीड़, वाइफ बोली " लो देखो जब सारा शहर पहाड़ो पे, समुन्दरो पे घूमने गया तो यहाँ क्या ये भूत घूम रहे है ? " हमने थोड़ा झेम्प के कहा की भई शहर की पापुलेशन ही बहुत है क्या करे। आगे बढे तो देखते है की लोगो के हाथो में शॉपिंग की थैलियों की जगह कैमरा था, जिसे देखो वो अपने हाथो में कैमरा लिए क्लिक क्लिक किये जा रहा था, किसी के हाथो में अमेरिका से आने वाले दोस्तों से मंगाया हुआ सस्ता DSLR था तो किसी के हाथो में उन्ही अमरीकी रिटर्न दोस्तों से मंगाया हुआ  महंगा आईफोन था। इन सब कैमरामैन को देख के ऐसा लग रहा था की सब किसी जंगल में जानवरो के साथ अपनी फोटो खिंचाने आये हो या किसी दरिया किनारे बर्ड वाचिंग करने।  खैर सही भी था कुछ लोग सच में अपने लम्बे लम्बे ज़ूम कैमरों से "बर्ड वाचिंग" ही कर रहे थे। दिसंबर की ठण्ड और मॉल का AC भी किसी काम का न था, इतनी "हॉटनेस" बिखरी पड़ी थी मॉल में।

अपने हाथो में न तो शॉपिंग बैग था न कोई कैमरा, था तो सिर्फ अपनी इकलौती बीवी का हाथ और उसका प्यारा साथ, बस उसी को जकड़े हुए हम उस भीड़ भड़ाके में घूमते रहे। एस्कलेटर पर ऊपर चढ़ते हुए अचानक से एक अनाउंसमेंट हुआ " मि. रोहित आप जहाँ कहीं भी है तुरंत हेल्प डेस्क के पास आये यहाँ आपकी बीवी मिसेज़ नेहा आपका वैट कर रही है " और एक बार नहीं २-३ बार यह उद्घोषणा की गयी। हमें तो उस बेचारे रोहित पर तरस आने लगा की कही वो "बर्ड वाचिंग" के चक्कर में अपनी बीवी से भटक न गया हो, और भटक के अब मिल भी गया तो अब उसका घर पहुंच के क्या हाल होगा ? क्या वो सही सलामत घर पहुंच भी पायेगा, उसकी बीवी नेहा उसका क्या हाल करेगी ? यह सब सोच सोच के हमारे रोंगटे खड़े हो रहे थे और हमने अपनी बीवी का हाथ कस के पकड़ लिया। उसने एक प्यारी से स्माइल देते हुआ धीरे से कहा "हाउ रोमेंटिक …… आपने सरे आम मेरा हाथ यूँ पकड़ा", हमने भी वही स्माइल उन्हें लौटाते हुए हाँ में मुंडी हिला दी। उन्हें क्या पता की हमने इतना कस के हाथ पकड़ा इसके पीछे कोई रोमेंटिक ख्याल नहीं भयानक वाली फीलिंग थी। खैर आगे बढ़ते हुए दुकानो पे नज़र दौड़ाते हुए हलकी फुलकी बर्ड वाचिंग हमने भी कर ही ली।


इतना घूमने के बाद अब भूख सी लग पड़ी थी सो हमने सोचा क्यों न थोड़ा बहुत यहीं कुछ खा लें, हालांकि यहाँ मॉल का खाना होता तो अपने बजट से बाहर ही है पर फिर भी थोड़ा सा "चख" लेंगे। यही सोच के फ़ूड कोर्ट पहुंचे तो देखते है की यहाँ भी लोग ऐसे टूटे पड़े है दुकानो पे जैसे फोकट में बँट रहा हो, बैठने तक की जगह नहीं, जहाँ मिले वंही टिक के जो मिला वही ठूंसे जा रहे थे सभी। हमने "सब वे बर्गर" वाले के बाहर निचे बालकनी की रेलिंग की सीढ़ी पर लोगो को बर्गर खाते देखा तो इंदौर के अन्नपूर्णा और खजराना मंदिर की याद आ गयी, वहां भी ऐसे ही लोग सीढ़ियों पे बैठ के जो मिले वो खाते दिख जायेंगे। बस फर्क इतना सा है की वहाँ वो लोग जेब से एक फूटी कौड़ी नहीं निकालते और यहाँ यह लोग सैकड़ो रुपये देके खा रहे है।

थोड़ी ही देर में हम दोनो भी ऐसे ही रेलिंग की सीढ़ी पर बैठ कर अपना बर्गर खा रहे थे या यूँ कहे की "चख" रहे थे तभी एक और उद्घोषणा हुयी की "मिस्टर केशव रंजन आप जहाँ कहीं भी है तुरंत हेल्प डेस्क काउंटर पर आये, यहाँ आपकी वाइफ मिसेज़ कृति रंजन आपका वैट कर रही है"




नोट :  चित्र फ़ीनिक्स मॉल, पुणे के फेसबुक पेज से साभार लिए गए है। 


Wednesday, 17 December 2014

हैप्पी न्यू ईयर


वर्ष २०१४ संपन्न होने जा रहा है। हर साल की तरह यह साल भी बहुत सारी बातो के लिए याद किया जायेगा। इस साल आपके जीवन में भी तो कुछ ऐसा घटित हुआ ही होगा जिसे आप भूल नहीं पाओगे।

आईये इससे पहले की दुनिया भर के टीवी चैनल्स बीते हुए साल का एनालिसिस करे हम भी कुछ चिर-फाड़ कर डालते है थोड़े कट-टू-कट अंदाज़ में।

हम भारतियों की एक बात तो छुपाये नहीं छुपती और वो है बॉलीवुड और क्रिकेट प्रेम, तो चलिए इस बीते साल का मुआईना करते है इसी साल रिलीज़ हुई बॉलीवुड फिल्मो के "टाइटल" के आधार पर।

हम लेकर आये है कुछ चुनिंदा फिल्मे जिनके टाइटल इस साल के महत्वपूर्ण इवेंट्स को समर्पित है।


१. टोटल सियापा 

साल की शुरुआत हुई एक फिल्म "टोटल सियाप्पा" से जो की समर्पित है " आम आदमी पार्टी" और केजरीवाल साब को जिन्होंने इस साल सियाप्पे के सिवा कुछ नहीं पटका। पहले दिल्ली में उम्मीद बंधवाई फिर उस बंधी हुई उम्मीद को छोड़ के लोकसभा के पीछे भागे और फिर लौट के दिल्ली में सियाप्पे किये जा रहे है।


२. जय हो 
अगली है सलमान की फिल्म  "जय हो"  और यह फिल्म बहुत कुछ हद तक नरेंद्र मोदी की तरफ इशारा करती है  जिनके लिए इस साल हर जगह एक ही नारा गूंजा है और वो है "जय हो।" न केवल मोदी बल्कि भारतीय खेल जगत ने भी इस साल कॉमनवेल्थ और एशियन गेम्स में "जय हो" का नारा लगवाया।  यही नहीं जय हो का टाइटल हमारे देसी नासा याने की इसरो को भी मिलता है जिन्होंने इस साल दुनिया का सबसे सस्ता मंगलयान अंतरिक्ष में छोड़ा।


३. बेवकूफियां 
जी हाँ यह फिल्म समर्पित है हमारे देश के प्यारे राहुल गांधी को जिन्होंने इस साल भी अपने हर भाषण में कुछ ऐसा किया और कहा जिससे इनकी बेवकूफियों के पुराने रिकॉर्ड भी ध्वस्त हो गए।


४. दावत-ऐ-इश्क़ 
हमारे प्रधानमंत्री ने प्यार का सन्देश देने के लिए अपनी शपथ ग्रहण समारोह में सारे पड़ौसी देशो को दावत दी थी और इस दावत का एक ही उद्देश्य था की आपसी तकरार कम हो और प्यार बढे।  इसीलिए परिणीति चोपड़ा की फिल्म का टाइटल इस शपथ ग्रहण समारोह को दिया जाता है।

५ . २ स्टेट्स 

आंध्र प्रदेश और तेलंगाना जो की पहले संयुक्त राज्य हुआ करते थे इसी साल १ से २ स्टेट्स बन गए और इसीलिए इस साल की इस हिट फिल्म का टाइटल समर्पित है इन राज्यों को।


६ . क़्वीन 
दर-असल यह टाइटल हमारे देश के किंग के लिए है मेरा मतलब हमारे प्रधानमंत्री के लिए है , जिस तरह से फिल्म में नायिका अपने हनीमून पर अकेली विदेश यात्राओ पर निकल पड़ती है ठीक उसी प्रकार इस साल हमारे पी. एम साब ने भी ताबड़तोड़ विदेश यात्रायें करी है और वो भी अपनी सरकार के हनीमून पीरियड में। इसीलिए यह टाइटल जाता है हमारे पी.एम. साब को।

७ . गुलाब गैंग 

आप सबने रोहतक की घटना तो सुनी ही होगी, और इस घटना के कितने सारे पहलु सामने आये यह भी आप जानते होंगे। इस घटना का सच जो भी हो किन्तु उन दो बहनो के लिए माधुरी दिक्षित अभिनीत फिल्म का टाइटल "गुलाब गैंग" हम जरूर इस्तेमाल कर सकते है।

८ . गुंडे 

यह शीर्षक और इसके कई पर्यायवाची शीर्षक से हर साल फ़िल्मे आती है और हर साल देश दुनिया में कितनी ही हरकते ऐसी होती है जिनके लिए यह टाइटल बना है। किसी विशेष घटना या विशेष अपराधी को यहाँ अपने लेख में जगह देकर उसको यह टाइटल समर्पित नहीं करूँगा।  बस इतना कहूँगा की आप इस किसी की भी हरकतों को नजरअंदाज न करे क्योंकि हम जिन लोगो  की  छोटी छोटी गलतियों को नज़रअंदाज करते रहते है वही लोग आगे चलकर "गुंडे" बनते है।


९   . क्या दिल्ली क्या लाहोर 

हर साल की तरह इस साल भी बनते बिगड़ते रिश्तो के बीच दोनों देशो की जनता सिर्फ यही कहती रह गयी की साब अब तो क्या दिल्ली क्या लाहोर। यह फिल्म का शीर्षक समर्पित है भारत-पाकिस्तान के रिश्ते को।

१०   .हेट स्टोरी -२ 

इस फिल्म का टाइटल दिया जाता है हमारे देश के कई सारे नेता/वक्ताओं/धर्म के ठेकेदारो को जो हर साल की तरह इस साल भी अपनी ज़हरीली वाणी से समाज में नफरत का विष घोलने से पीछे नहीं हटे। हम आशा करते है की हेट स्टोरी २ से अब हेट स्टोरी ३-४-५ इत्यादि न बने इस देश में।

११  . अमित साहनी की लिस्ट 

जी इस टाइटल को हम थोड़ा इस प्रकार कह सकते है "भारत सरकार की लिस्ट" जो की समर्पित है उस लिस्ट को जिसमे  ६२७ वो नाम है "जिनका नाम नहीं लेते" मेरा मतलब है जिनका नाम कोई नहीं लेता।  यह वो नाम है जिनका असीमित धन देश के बाहर की तिजोरियों में जमा है, जी जनाब मैं काले धनवानों की लिस्ट का जिक्र कर रहा हूँ।

चलिए हंसी मजाक बहुत हुआ, देश दुनिया के परिदृश्य में इस साल बहुत उथल पुथल हुई और हर घटना को महज एक बॉलीवुड फिल्म के टाइटल से प्रदर्शित करना आसान नहीं है। जब कही कुछ अच्छा होता है तो कही बहुत अच्छा भी होता है और जब कही कुछ बुरा होता है तो कही बहुत बुरा भी होता है।
फिल्मो की इस लिस्ट की अंतिम फिल्म का टाइटल हमने कुछ बहुत बुरे को प्रदर्शित करने के लिए इस्तेमाल किया है। हालांकि फिल्म बहुत बुरी नहीं है हम सिर्फ इसका टाइटल इस्तेमाल कर रहे है।

१२  . बैंग - बैंग 

इस साल भी भारत पाकिस्तान सीमा पर, नक्सली क्षेत्रो में और उत्तर-पूर्वी राज्यों में भीषण गोलीबारी और बम धमाके हुए जिनमे सैकड़ो निर्दोष लोगो और सैनिको की जाने गयी।  यही नहीं पुरे विश्व में अमरीका से लेके ऑस्ट्रेलिया और इराक़ से लेके पाकिस्तान तक हर जगह आतंकवादियों ने कहर बरपाया।  ईश्वर से प्रार्थना है की इस साल की समाप्ति के साथ ही ये बैंग बैंग भी समाप्त हो जाये और अगला साल पुरे विश्व के लिए "हैप्पी न्यू ईयर" बन के आये इसी के साथ अब हम इस लेख की "हैप्पी एंडिंग" करते है और आपको आने वाले साल के लिए ढेरो शुभकामनायें देते है ।
और आप लेख पर अपनी प्रतिक्रियाएं अवश्य ज़ाहिर कीजियेगा।
जय हिन्द।

नोट: कुछ फिल्मे सिनेमा स्क्रीन के साथ ही हमारे ज़ेहन से भी उतर जाती है इसीलिए हमने यहाँ उनके पोस्टर्स भी चिपकाएं है ताकि आपको याद आजाये की हम किस फिल्म की बात कर रहे है।  सभी चित्र गूगल इमेज सर्च के सौजन्य से। 




Friday, 12 December 2014

कांग्रेस मुक्त भारत




अभी अभी कुछ दिनों पहले सुनने में आया था की हैदराबाद के हवाई अड्डे  का नाम "राजीव गांधी हवाई अड्डे "  से बदल कर N.T.रामाराव  हवाई अड्डा रख दिया गया है। खबर सुनकर राजनितिक गलियारों में हड़कम्प मच गया था , खासकर कोंग्रेसियों के तो पेट ज्यादा खराब हो गए। वैसे भी कोंग्रेसियों के पास है ही क्या "इन ३ नाम" के अलावा ?

खैर जब इस खबर को खंगाला गया तो मेरे ख़ुफ़िया सूत्रों ने जो बात बताई वो बड़ी ही चौंकाने वाली है, हाँ आप भी चौंक जाओगे , दर-असल हवाई अड्डे का नाम बदलने के पीछे मोदी जी का हाथ है , जी हाँ भाई साब पुख्ता खबर है।  कुछ महीनो पहले के उनके भाषणो को याद करो तो आपको याद आएगा की मोदी जी ने हर जगह लगभग हर दिन एक नारा जोर जोर से लगाया था और वो था "कांग्रेस मुक्त भारत" का नारा।

आदरणीय केजरीवाल जी ने भी अपनी मुहर लगा दी है  इन सब के पीछे मोदी जी और अडानी /अम्बानी का हाथ है , एक गजेटेड ऑफिसर के द्वारा अटेस्टेड होने पर यह खबर और भी पुख्ता बन गयी है।

अब देश में कांग्रेस के पास ले देकर पूर्वजो (जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी) के नाम के अलावा कुछ बचा नहीं , और अगर कांग्रेस को जिन्दा रखना है तो इन नामो को जिन्दा रखना होगा, इसीलिए सोच समझ कर पिछली कांग्रेस सरकारों ने देश में ४५० से ज्यादा सरकारी योजनाओ,  भवनो, सडको , विश्वविद्यालयों इत्यादि के नाम इन तीन लोगो के नाम पर ही रखे है , ताकि इनके नाम पर ही सही लोग कांग्रेस को "कुछ अच्छे" के लिए याद रख सके।

Pic Courtesy  A Suryaprakash


किन्तु मोदी जी ने तो देश को कांग्रेस मुक्त करने की मानो शपथ सी ले रखी है। इसीलिए यह शुरुआत है की सबसे पहले सरकारी योजनाओ को गांधी-नेहरू परिवार के नाम से मुक्त किया जाये, फिर धीरे धीरे एयरपोर्ट, पोर्ट , स्टेडियम, सड़क, चौराहो और विश्विद्यालयों के नाम से नेहरू-गांधी हटाया जायेगा।

हैदराबाद में एयरपोर्ट का नाम बदल के कुछ हद तक कांग्रेस मुक्त भारत की और एक कदम उठा लिया है मोदी सरकार ने।  हमारे ख़ुफ़िया सूत्रों ने तो यहाँ तक खबर दी है की जल्द ही सरकार एक विधेयक लाने  वाली है जिसके तहत देश में जिसका भी नाम राजीव, राहुल, सोनिया, प्रियंका या रॉबर्ट (वैसे भी आजकल जवाहर, और इंदिरा नाम कोई नहीं रखता) होगा उसको सरकारी सुविधाओं से वंचित रखा जायेगा, उन्हें अपना नाम बदलना होगा। यही नहीं किसी ने अपने बच्चे का नाम इनमे से कुछ रखा तो उसे जन्म प्रमाण पत्र, आधार कार्ड, पैन कार्ड, या पासपोर्ट जारी नहीं किया जायेगा।  यह सब महत्त्वाकांक्षी योजनाएं अभी मोदी सरकार के मंत्रीगण  बना रहे है और जल्द ही इन्हे मोदी जी के समक्ष प्रस्तुत करके वाह वाही लूटने की तैयारी में है।

तो दोस्तों तैयार हो जाओ कांग्रेस मुक्त भारत के लिए।  अरे अरे.…………  अभी अभी एक और ख़ुफ़िया खबर आयी है की दिग्विजय सिंह ने राहुल गांधी को सुझाओ दिया है की वो "गांधी" सरनेम का पेटेंट कांग्रेस के नाम पे रजिस्टर करवा के कॉपी राइट लेले ताकि कोई और इसका फायदा न उठा सके।  सुना है की राहुल बाबा ने बात को मानते हुए अर्ज़ी दे दी है।  अगर ऐसा हो जाता है तो गांधी सरनेम वाले सभी लोग कांग्रेस की अधिसंपत्ति माने जायेंगे, .......ओह्ह्ह ...... फिर मेनका और वरुण का क्या होगा ?

खैर जो भी हो आप हमारे साथ लगातार लगातार बने रहिये, आपको लेटेस्ट अपडेट के साथ सरकार के अंदर की खबर देने फिर आएंगे, तब तक के लिए गुड नाईट।

डिस्क्लेमर: उपरोक्त लेख लिखते समय लेखक ने ४ बोतल वोडका अपने गले में उँडेली हुयी थी और उसकी टेबल पर ४ रैपर भांग की गोली के भी पाये गए थे। और जब तक मैंने यह लेख ब्लॉग पर डाला तब तक भी लेखक को होश नहीं आया था।




Thursday, 4 December 2014

एक बंधुआ मज़दूर की कहानी

 क्या आप भगवान या भाग्य में यकीन रखते है ?

आप कहोगे की आज यह कौनसी बेतुकी बात कर रहे हो , खुद की मेहनत और हुनर के सिवा किसी पे यकीन करना बईमानी है। पढ़े लिखे नवजवान जो ठहरे आप, ऐसा ही सोचना होगा आपका, है ना ? अब भइया हम आपको एक सच्ची घटना पर आधारित कहानी सुना रहे है,  मतलब पढ़वा रहे है।  इसको पढ़कर आपको यकीन हो जायेगा की गरीब, ईमानदार और मेहनती लोगो को उनका ईश्वर उन्हें न्याय जरूर दिलाता है।

यह घटना मध्यप्रदेश  के एक छोटे से गाँव की है, गाँव मे अधिकांश लोग किसान है और सब के सब बड़े किसान है और उँची जाती से है तो ज़ाहिर सी बात है की खेतो में काम करने के लिए मज़दूर मिलना बहुत मुश्किल होता होगा किसानो के लिए। इसीलिए मज़दूरी के लिए बाहर से लोगो को लाया जाता है और अपने खेत पर रख कर साल भर काम करवाया जाता है।

ऐसे ही एक बड़े किसान परिवार जिसका मुखिया है रामप्रसाद ने मध्यप्रदेश के नीमाड क्षेत्र से एक मजदूर परिवार जिसका मुखिया है मोहनलाल  को अपने यहाँ लगभग बंधुआ मजदूर की हैसियत से रखा हुआ था। नाम मात्र का वेतन और खूब सारा काम करवाया जाता था उनसे. मोहन का परिवार भी इसी बात से खुश था की कम से कम २ वक़्त की रोटी तो मिल रही है पूरे परिवार को नही तो अपने क्षेत्र मे ना तो बारिश है ना ज़मीन ही इतनी उपजाऊ की कुछ काम मिल सकता।



गाँव हो या शहर, किसान हो या उद्योगपति, कॉम्पीटिशन के इस समय मे हर कोई अपने प्रतिद्वंदी को निचा करने का मौका ढूंढता है।  इसी गाँव के दूसरे किसान परिवार ने जिलाधीश कार्यालय में रामप्रसाद की शिकायत लगा दी।  शिकायत पर जिला कलेक्टर ने मोहन के  परिवार को बंधुआ मजदूर घोषित कर गाँव से रिहा कर के उनको वापस अपने गाँव भिजवा दिया।

अभी यहाँ पर सवाल यह है की सरकारी कायदो के मुताबिक कलेक्टर ने सही किया या मानवीय आधार पर गलत किया ?खैर जो भी हो , अभी एक परिवार बेरोज़गार हो गया था और दूसरी तरफ एक बड़े किसान की फसल पर विपरीत असर होने आया था।  सरकारी कायदो के मुताबिक बाहर के व्यक्ति को "जबरदस्ती" अपने खेत पर कम वेतन पर रखना और काम करवाना "बंधुआ मज़दूरी" की श्रेणी में आता है।

किसान परिवार के मुखिया रामप्रसाद ने पुनः उस मोहन के  परिवार को अपने  गांव में बुला लिया और इस बार उसको गांव का स्थाई निवासी बना लिया, याने की  उसके राशन कार्ड, वोटिंग कार्ड इत्यादि उसी गांव के बनवा दिए।  अब मोहन इसी गांव का निवासी हो गया और दिहाड़ी मज़दूरी पर रामप्रसाद के यहाँ काम करने लगा। 

६ महीने बाद गांव के पंचायत के चुनाव के समय इस गांव की सीट अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवार के लिए आरक्षित घोषित की गयी। और इस बार गांव को बगैर चुनाव के ही सरपंच मिल गया।  पुरे गांव में केवल एक ही परिवार था जो अनुसूचित जनजाति का था और जिसके पास गांव के स्थाई निवासी होने के वैध कागज़ भी थे।
जी हाँ दोस्तों, वो था मोहन का परिवार। और हाँ अब मोहन को उस गांव में मज़दूर नहीं मोहन सरपंच के नाम से जाना जाता है।

तो अब बताईये की यहाँ भाग्य ने अपना खेल खेला की नहीं ??



देश भक्ति

  देश भक्ति , यह वो हार्मोन है जो हम भारतियों की रगो में आम तौर पर स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस  या भारत पाकिस्तान के मैच वाले दिन ख...