आईये आपका पुनः स्वागत है कट टू कट के इस नए लेख पर , अब तक की मेरी रचनाएँ हमारे दैनिक जीवन की उठा पटक को देख कर लिखी गयी है जिनमे मेने थोड़ा व्यंग्य का नमक भी छिड़का है। आज संभवतया पहली बार यह एक कहानी नुमा लेख आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ जो की "फिक्शन" की श्रेणी में आता है जिसका शीर्षक है "आवारा लड़का "। आशा है आप इसे भी पसंद करेंगे।
यह कहानी है एक १७ साल के किशोर की, जो अपने जीवन के उस दौर में है जहाँ हमें कोई एक राह चुन कर आगे बढ़ना होता है , समाज वाले इस उम्र को "कच्ची उम्र" भी कहते है क्योंकि अभी तक जीवन रूपी घड़े की मिटटी कच्ची ही होती है इसके बाद इसे जो रूप देदो वो रूप अख्तियार करके जीवन आगे बढ़ जाता है। यह कहानी है गोलू की।
यह कहानी है एक १७ साल के किशोर की, जो अपने जीवन के उस दौर में है जहाँ हमें कोई एक राह चुन कर आगे बढ़ना होता है , समाज वाले इस उम्र को "कच्ची उम्र" भी कहते है क्योंकि अभी तक जीवन रूपी घड़े की मिटटी कच्ची ही होती है इसके बाद इसे जो रूप देदो वो रूप अख्तियार करके जीवन आगे बढ़ जाता है। यह कहानी है गोलू की।
गोलू, बी. कॉम प्रथम वर्ष का छात्र है, इसका ज़्यादातर समय
अपने दोस्तो मे इधर-उधर की सम-सामयिक चर्चाएँ करने मे गुजरता है, एक 17 साल का किशोर किस
तरह की सम-सामयिक चर्चाओं मे व्यस्त रहता होगा इसका बखान करने की शायद आवश्यकता नहीं है,
यह वो उम्र होती है
जब इंसान के शरीर और मस्तिष्क पर "क्यूरीयोसिटी" नाम का वाइरस अपना क़ब्ज़ा
जमा चुका होता है और गाहे-बगाहे दीमाग के किसी शांत पड़े कोने मे कुलबुलाता रहता हैं|
अक्सर जब यह कुलबुलाता
है तो इसे शांत करने के लिए इंसान कई तरह के इलाज के पीछे भागता है, वैसे सबसे सस्ता और
कारगर इलाज है दोस्त। जी हाँ मन मे जो भी विकार
हो, कोई कुलबुलाहट हो, सीधा जाके अपने दोस्तो से डिसकस करो, सारे वाइरस एकदम शांत
हो जाते है| दोस्त या तो आपको सटीक तरीका बता देंगे जिससे सारी कुलबुलाहट
मिट जाए, या फिर उस वाइरस को दीमाग के एक कोने से दूसरे कोने मे शिफ्ट कर देते है,
और इसी प्रक्रिया मे
थोड़ी देर के लिए सही, हमारा "क्यूरीयोसिटी" वाइरस शांत रहता है|
बहर-हाल बात करते है गोलू की, गोलू ने अपनी कक्षा
12वी तक की पूरी पढ़ाई मोहल्ले के
"गवर्नमेंट बॉय्स उ. मा. विद्यालय" से ही पुरी की है, और उसके ज़्यादातर
दोस्त भी उसी स्कूल से पास/फैल/आउट होके निकले है। गोलू के आधे से ज़्यादा
दोस्तो को सितारो से जडीत “मार्क-शीट” मीली, और उन्होने इधर-उधर ट्राय करने के बाद अपने पिताओ के घरेलू
व्यवसाय संभालने शुरू कर दिए|
परंतु गोलू थोड़ा ख़ुशनसीब निकला और ठिक-ठाक अंको से स्कूल कि
दहलीज पार करने का सर्टिफिकट लेकर अब कॉलेज जाने लगा है। उसके नये नये दोस्त भी बने है ,
पूरी 100% पुरुष मंडली। शुद्ध रूप
से लडको के स्कूल से पढकर आने वाले विद्यार्थी के लिये सबसे आसान काम होता है “बॉय्स
ओनली” ग्रूप बना लेना और फिर उस लडके कि जम्के खींचायी करना
जो भुले से भी कन्याओ कि मंड्ली मे शामील हो गया हो। या यूँ कह लीजिए की अंगूर खट्टे
के खट्टे ही रहते है|
अभी कॉलेज की ख़ास बात यह है की यहा गोलू के सिर्फ दीमाग मे
ही वायरस छट्पटाता है आँखों मे कोई वाइरस नही कुलबुलाता, क्योंकि को-एड कॉलेज
मे दाखिला लिया था, इसीलिए आँखें ठंडक पाने को कम ही तरसती थी|
गोलू और उसकी मंडली ज़्यादातर अपना समय ऐसी जगहो पर बीताते
है जहाँ कन्याओ के झुंड का आना जाना ज्यदा होता हो।
खैर अब तक यहाँ गोलू के बारे में जो कुछ भी बताया गया है उसको सुन पढ़ कर आपके दिमाग में उसका चरित्र चित्रण हो चूका होगा, यह सामान्य इंसानी बिमारी है की हम किसी के बारे में कुछ सुनते पढ़ते है तो उसके बारे में वैसी ही धारणा बना लेते है।
वैसे गोलू आसानी से किसी का कहना नहीं सुनता परन्तु अगर बाइक पर कही जाके कोई काम करवाना हो तो आप बेझिझक गोलू को कह सकते है। मसलन, पड़ौसी शर्मा अंकल को सुबह सुबह ६ बजे उठकर रेलवे स्टेशन पहुचाना हो, बड़ी बहन को उसके कॉलेज छोड़ कर आना हो, पास वाली भाभी को बाजार लेके जाना हो या पीछे की गली में रहने वाली सलमा आपा को ब्यूटी पार्लर लेके जाना हो, गोलू बिना कोई झिक झिक किये इन सब का काम कर देता है।
आज ही गोलू के घर में किरायेदार आंटी ने कहा "अरे गोलू भइया, आप कोचिंग जाओगे न, तो रास्ते में ही हमारी मौसी का घर पड़ता है, थोड़ा छोड़ दोगे क्या हमको ?" गोलू ने तपाक से कह दिया " अरे आंटी थोड़ा क्या आपको पूरा का पूरा वहां छोड़ दूंगा " ठहाके गूंजे और थोड़ी देर में गोलू अपनी बाइक पर आंटी को बिठा के निकल पड़ा।
गोलू ने अपना बी.कॉम प्रथम वर्ष पूरा कर लिया इसी तरह, देश में जिस तरह बारिश की कमी रही उसी तरह गोलू की मार्कशीट में भी थोड़ा सुखा पड़ा इस बार, परन्तु पास जरूर हो गया।
गोलू की जिंदगी इसी तरह अब भी चल रही है, पास वाले चौहान अंकल से लेके पड़ोस वाले पटेल काका तक सब का कोई न कोई काम करता आ रहा है (बशर्ते उस काम में बाइक की आवश्यकता हो ना की बल की )
आईये अब आपको लेके चलते है इन्ही पड़ौसियों के घर, पास वाली शर्मा आंटी आज अपने बेटे को डांट रही थी "पढ़ ले थोड़ा, बैठ के किताब खोल लिया कर नहीं तो वो गोलू जैसा आवारा बन के घुमा करेगा इधर उधर "
गोलू की बाइक पर अक्सर बाज़ार जाने वाली भाभी आज सलमा आपा से मिली तो कह रही थी की आज तो पुरे १० रुपये खर्च करके बस से बाजार जाना पड़ा नहीं तो वो आवारा गोलू छोड़ ही देता है हमेशा। पड़ोस वाले शर्मा जी को उनका सहकर्मी ट्रैन में बता रहा था की किस तरह उसको ऑटो वाले ने लूटा, तभी शर्मा जी बोले "यार अपना तो बढ़िया है , पड़ोस में एक बेवकूफ़ किसम का लड़का रहता है उसको जब बोलो तब बाइक लेके आ जाता है और स्टेशन छोड़ जाता है।"
गोलू को उसके अपने घर में भी कोई सीरियसली नहीं लेता है, वो अपने खुद के घर में भी एक "आवारा लड़के" की पदवी पा चूका है।