Tuesday, 18 March 2014

शादी के बाद तुम बदल गए -२

शादी के बाद तुम बदल गए, इस जुमले पर एक बहुत ही हल्का सा ऑब्जरवेशन मेने अपने पुराने लेख में लिखा था, जो आपने पसंद किया था।

इसी कड़ी में "शादी के बाद तुम बदल गए" का दूसरा संस्करण आपके समक्ष प्रस्तुत है, यह लेख मूलतः मेरा लिखा गया नहीं है, और मूल लेखक का मुझे अता -पता भी नहीं है, मेने तो बस "रेडी तो ईट मील " में थोडा तड़का लगाने का प्रयास किया है, आशा है आपको पसंद आएगा। 


शादी के बाद हर इंसान बदलता है यह बात तो आपको समझ में आ ही गयी होगी, लोग आपके लिए बदल जायेंगे, आप लोगो के लिए बदल जायेंगे, यही नहीं आप अपनी बीवी या पति के लिए भी बदल जाओगे शादी के बाद, हम तो इंसान है बदलना हमारा स्वाभाव है लेकिन भगवान् का क्या ? 

अब आपको लेके चलता हूँ ऐसी ही एक मजेदार चर्चा में जहा आपको पता पड़ेगा कि शादी के बाद भगवान् भी कितना बदल गए, जी हाँ, यह चर्चा हो रही है स्वर्ग में भगवान् श्री कृष्ण और राधा रानी के बिच.

ऐसे ही घूमते घामते कृष्ण एकदम से राधा जी से टकरा गए एक दिन, देखते ही चोंक से गए, अब चौंकना तो स्वाभाविक है, आपकी शादी के हजारो साल बाद आप किसी दिन अपनी एक्स-प्रेमिका से टकरा जाओ तो आदमी शॉक में आ ही जायेगा, परन्तु यहाँ कृष्ण जी दिल ही दिल में खुश हुए और चौंकने का थोडा नाटक किया, खुश इसलिए हुए क्योंकि रुक्मिणी उनके साथ नहीं थी। कृष्ण कुछ कहते इसके पहले ही राधा जी बोली कैसे हो द्वारकाधीश ?


अब आप ही सोचिये अगर आप सालो बाद अपनी एक्स प्रेमिका से मिलो और वो आपको आपके ऑफिस में जो आपका पद है उससे सम्बोधित करे, मसलन कहे कि "कैसे हो मेनेजर साब ?" कैसा लगेगा आपको, जो कभी आपको आपके उपनाम से पुकारा करती थी, स्वीटहार्ट , जान , जानु इत्यादि और अचानक मेनेजर साब ?

यही हुआ भगवान् कृष्ण के साथ ,जो राधा उन्हें कान्हा कान्हा कह के बुलाती थी उसके मुख से द्वारकाधीश का संबोधन कृष्ण को भीतर तक घायल कर गया फिर भी किसी तरह अपने आप को संभाल लिया और बोले राधा से .........
मै तो तुम्हारे लिए आज भी कान्हा हूँ तुम तो द्वारकाधीश मत कहो! आओ बैठते है ....जलपान ग्रहण करते है कुछ मै अपनी कहता हूँ कुछ तुम अपनी कहो, और वो लोग जाके एक पेड़ कि छाँव में बैठ गए, अगर आप अपने जीवन से जोड़ के देखना चाहे तो जैसे आप किसी मॉल में "उनसे" मिले और कॉफी के लिए बैठ गए। 
सच कहूँ राधा जब जब भी तुम्हारी याद आती थी इन आँखों से आँसुओं की बुँदे निकल आती थी, दिल बड़ा ही बेचैन हो उठता था, लेकिन क्या करे शादी का धर्म रुक्मिणी के साथ निभाना ही था.
राधा ने भी एक जमके फ़िल्मी फटका मारा और  बोली,
मेरे साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ ना तुम्हारी याद आई ना कोई आंसू बहा क्यूंकि हम तुम्हे कभी भूले ही कहाँ थे जो तुम याद आते, इन आँखों में सदा तुम रहते थे कहीं आँसुओं के साथ निकल ना जाओ इसलिए रोते भी नहीं थे, हम तो वैसे के वैसे ही है,  ज़रा सा भी नहीं बदले, आप ही बिलकुल बदल गए शादी के बाद.
कृष्णा अपने माथे पे हाथ रख के  बोले , 
अरे राधा तुम भी ?? सारी  दुनिया कहती है में शादी के बाद बदल गया, यंहा तक कि रुक्मिणी भी यही कहती है , तुम तो ऐसा मत कहो। 
बेचारे कृष्ण भी एकदम फ्रस्ट्रेट होके  बोले थे , लेकिन राधा तो राधा थी, एक तो लड़की और ऊपर से एक्स प्रेमिका, 
राधा बोली, नहीं द्वारकाधीश, 
तुम बहुत बदल गए हो, मानो या न मानो, तुम मेरे कान्हा नहीं रहे.आप  कितना बदल गए हो इसका इक आइना दिखाऊं आपको ? कुछ कडवे सच ,प्रश्न सुन पाओ तो सुनाऊ?
कृष्णा जी कुछ और कहते इसके पहले राधा जी ने टोका और आगे कहना शुरू किया, वैसे भी एक बार नारी कहना शुरू कर दे तो नर को चुप चाप खड़े रह के सुनना ही पड़ता है , बिलकुल डॉक्टर कि कड़वी दवाई कि तरह  हर बात निगलना पड़ती है
राधा ने कहना जरी रखा ,  
कभी सोचा इस तरक्की में तुम कितने पिछड़ गए यमुना के मीठे पानी से जिंदगी शुरू की और समुन्द्र के खारे पानी तक पहुच गए ?एक ऊँगली पर चलने वाले सुदर्शन चक्रपर भरोसा कर लिया और दसों उँगलियों पर चलने वाळी बांसुरी को भूल गए ? कान्हा जब तुम प्रेम से जुड़े थे तो ....जो ऊँगली गोवर्धन पर्वत उठाकर लोगों को विनाश से बचाती थी प्रेम से अलग होने पर वही ऊँगली क्या क्या रंग दिखाने लगी सुदर्शन चक्र उठाकर विनाश के काम आने लगी.

तुम कहते हो कि तुम नहीं बदले लेकिन कान्हा और द्वारकाधीश में क्या फर्क होता है बताऊँ, कान्हा होते तो तुम सुदामा के घर जाते सुदामा तुम्हारे घर नहीं आता, तुम राजा हो गए हो, बड़े आदमी हो गए हो, तब एक ग्वाले हुआ करते थे। 
अब तक राधा फुल मूड में आ चुकी थी, कान्हा भी समझ गए थे कि अब पार पाना अपने बस का ना है

राधा ने बिना साँस लिए बोलना ज़ारी रखा 
युद्ध में और प्रेम में यही तो फर्क होता है युद्ध में आप मिटाकर जीतते हैं और प्रेम में आप मिटकर जीतते हैं कान्हा,  प्रेम में डूबा हुआ आदमी दुखी तो रह सकता है पर किसी को दुःख नहीं देता

राधा वाकई में कान्हा कि सच्ची प्रेमिका थी, कान्हा कि हर गतिविधि पर नजर रखे हुए थी, कान्हा के हर एक एक्शन को राधा ने करीब से देखा था, हो सकता जैसे आप भी अपने एक्स पार्टनर कि फेसबुक प्रोफाइल को रेगुलरली चेक करते हो, मन ही मन उसके हर मूव को रिकॉर्ड करते हो, हो सकता है न ? मतलब में ये नहीं कह रहा कि ऐसा होता ही है, हो सकता है, सम्भावना है। 
तो राधा को भी कान्हा कि पूरी जानकारी थी, उसने आज सोच लिया था कि साबित करना ही है कि कान्हा शादी के बाद कितना बदल गया है , राधा आगे बोली 
आप तो कई कलाओं के स्वामी हो स्वप्न दूर द्रष्टा हो गीता जैसे ग्रन्थ के दाता हो पर आपने क्या निर्णय किया अपनी पूरी सेना कौरवों को सौंप दी? और अपने आपको पांडवों के साथ कर लिया सेना तो आपकी प्रजा थी राजा तो पालक होता है उसका रक्षक होता है, आप जैसा महा ज्ञानी उस रथ को चला रहा था जिस पर बैठा अर्जुन आपकी प्रजा को ही मार रहा था अपनी प्रजा को मरते देख आपमें करूणा नहीं जगी ?
 क्यूंकि आप प्रेम से शून्य हो चुके थे, आप बदल चुके थे मान लो कान्हा कि इंसान हो या भगवान्, शादी के बाद हर कोई बदल जाता है। 
कान्हा कि बारी आयी, अबकी कान्हा बोले, 
मान गया राधा कि में बहुत बदल गया हूँ, लेकिंन क्या करे काम काज का बोझ, और शादी के बाद घर गृहस्थी कि जिम्मेदारी में कोई भी अपने आप को बदल ही लेता है, बदलना ही पड़ता है, जिंदगी में आगे बढ़ना ही पड़ता है, अब इसमें मेरा क्या कसूर ?
राधा ठहाके लगा के हंसी और बोली, वो तो सब ठीक है, पर एक बात बताती हूँ, प्रेम से कभी दूर मत रहो, हो सके तो उसी से शादी करो  जिससे प्रेम करते हो, वोही काम करो जिसमे आनंद आता हो, बस जिम्मेदारी निभाने के लिए किया गया काम और प्रेम ये दुनिया याद नहीं रखती।
कान्हा ने माथे पे बल देकर कहा, में कुछ समझा नहीं राधा, 
तब राधा ने अपना लास्ट बट नोट दी लीस्ट वाला मास्टर डायलॉग मारा, और जो बात राधा ने कही उसके बाद आप भी विचार करने को मजबूर हो जायेंगे ……………राधा ने अपनी अंतिम बात कुछ यू रखी
मतलब यह है कान्हा कि आज भी धरती पर जाकर देखो अपनी द्वारकाधीश वाळी छवि को ढूंढते रह जाओगे,  हर मंदिर में मेरे साथ ही खड़े नजर आओगे आज भी मै मानती हूँ लोग गीता के ज्ञान की बात करते हैं उनके महत्व की बात करते है मगर धरती के लोग युद्ध वाले द्वारकाधीश पर नहीं प्रेम वाले कान्हा पर भरोसा करते हैं गीता में मेरा दूर दूर तक नाम भी नहीं है पर आज भी लोग उसके समापन पर " राधे राधे" करते है"

विचार कीजियेगा कि शादी के बाद बदल जाने के तर्क वितर्क में भगवान् भी जीत न पाये तो क्या आप जीत पाएंगे ??

Thursday, 30 January 2014

Piclog-3


After piclog-1, piclog-2 here I am with third version of piclog, this time the theme is "Jeev-Jantu" :

I hope you would enjoy this piclog....


 An Indian leader, when we select him as MP or MLA, a clean and white image


 Judiciary system , can only watch and tell others to wait for justice

 A proud and caring mother....


 Aam aadmi, bole to sota hua sher ( a sleeping Tiger depicting a common man)






The same leader who we chose as MP or MLA, after some time....

Saturday, 25 January 2014

पत्नियां ............. तब और अब

डिस्क्लेमर : इस लेख के पात्र, घटनाये, और सन्दर्भ काल्पनिक भी हो सकते है(जिसके चान्सेस कम है ), और यह लेख लिखते समय किसी भी पशु के साथ कोई  दुर्व्यवहार नहीं किया गया है means no animal is hurt during writing of this article . और यह लेख सम्पूर्णतः एक पति के दृष्टि से लिखा गया है तो कोई नारी जो पत्नी भी है, कृपया आगे न पढ़े।

पत्नियां ............. तब और अब 

पत्नी, बीवी,  अर्धांगिनी, जीवनसंगिनी, वाइफ या बेग़म , ऊपर  वाले कि इस बेहतरीन रचना पर कई बड़े धुरंधरो ने बड़ी बड़ी बातें कही, लिखी, गायी , और सही भी है।
पत्नियों पर लिखी सारी रचनाओ को संकलित किया जाये तो इससे बड़ा महा-काव्य कुछ न होगा, मेने भी सोचा कि इस ऐतिहासिक विषय पर चोरी छुपे कुछ लिखा जाये(चोरी छुपे किसलिए, यह आप समझ ही गए होंगे).

जैसा कि मेरे लेख के  विषय  से ही समझ आता है कि में यहाँ  भिन्न काल खंडो कि पत्नियों कि तुलना करने कि जुर्रत करने जा रहा हूँ।
अगर हम पुरातन युग कि बात करे तो रजा-महाराजाओ के ज़माने में पत्नियां आज कि पत्नियों कि तुलना में बिलकुल अलग हुआ करती थी, उनकी तुलना हम आधुनिक पत्नियों से नहीं कर सकते, तब कोई राजा या सेनापति कही लड़ाई को जाते तो पत्नियों को मालूम होता था कि या तो हार के मूह काला करा के आयेंगे या जीत के किसी के साथ मूह काला करके आयेंगे। तब के राजा लोग तो जितनी बार युद्ध जीत के आते २-४ नयी रानियां साथ ले आते, अब आज के जमाने में यह कहा सम्भव है इसलिए मध्यकालीन युग कि पत्नियों को प्रणाम करके हम आगे बढ़ते है।

आगे बढ़ने से पहले एक बात  बता दू कि पत्नियां किसी कि भी हो , किसी भी कालखंड या देश कि हो सबमे एक बात कॉमन होती है , और वो है पति पे शक करना।  जी हाँ दोस्तों , दुनियां भर कि पत्नियां खाना, टीवी देखना, घूमना फिरना और यहाँ तक कि शौपिंग करना भी छोड़ सकती है पर अपने पति पर और किसी दूसरी औरत पर शक कि निगाह से देखना नहीं छोड़ सकती।



आईये तुलना करते है आज से १५ -२० साल पहले कि पत्नियों कि  आज कि पत्नियों से , तब कि बात थोड़ी अलग हुआ करती थी, तब पत्नियां ज्यादातर घरेलु हुआ करती थी, घरेलु से तात्पर्य है कि होम मेकर्स हुआ करती थी,  इसलिए ज्यादातर समय घर पर या मोहल्ले में अड़ौस पड़ौस कि औरतो के बिच ही गुजारना पसंद किया करती थी।  उस समय टीवी पर इतने सारे चेनल्स कि भरमार भी न थी और न ही इतने सारे "एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर्स" वाले सिरिअल्स आते थे फिर भी बीवियां अपने शक का चूरन ढूंढ ही लेती थी , कहा से मिलता था ये चूरन ?? यह बात जानने के लिए चलते है श्रीमती मेहता के  यहाँ , श्रीमति मेहता जब भी अपने पति के कपडे धोती है या धोबी को देने के लिए निकालती है तो एक एक शर्ट को किसी प्रशिक्षित स्निफर कि भांति सूंघती है , भाई जब शर्ट मैला है तो धोने में देना ही है, सूंघना क्यों? रिसर्च करने पर पता पड़ा कि पत्नियां(इन्क्लुडिंग मिसेज़ मेहता) सूंघ कर देखती थी कि पति कि शर्ट में से कही किसी महिला परफ्यूम कि खुशबू तो नहीं आ रही या कही किसी कपडे में कोई लम्बा बाल या लिपस्टिक के निशाँन तो नहीं । तो आप समझे उस ज़माने कि पत्नियां शर्ट सूंघ कर अपने लिए "शक" का चूरन तलाशती थी, यही नहीं फिर अगर थोडा समय मिला तो पड़ौस में श्रीमती शर्मा के यहाँ गपशप में हिस्सा लिया जाता , उस गपशप में मोहल्ले या बिल्डिंग कि सारी सभ्य महिलाएं इकट्ठी होती और जो महिला किसी कारण से न आ पाती तो वो बेचारी ,आयी हुयी सारी महिलाऒ कि चर्चा का विषय बनती।
वैसे  क्या चर्चा होती है श्रीमती शर्मा कि महफ़िल में ? जानने के लिए चलते है ऐसी ही एक महफ़िल में। ………

श्रीमती शर्मा:  सुना तूने वो शीला है न , अरे वोही बी विंग में दूसरे माले वाली, जो बड़ी स्टाइलिश ड्रेसेस पहनती है , वो अपने मिस्टर खन्ना के ऑफिस में ही जॉब करती है, कई बार मिस्टर खन्ना के साथ ही आती जाती है, मिसेज़ खन्ना को थोडा ध्यान देना चाहिए।

ओफ्फ्फहो ---------

ऐसी बातें तो  उस समय कि पत्नियों के लिए दिमाग में रखे हुए कच्चे माल  में  भरपूर मात्रा में तड़का लगाने के लिए काफी होती थी, शीला जैसी स्टाइलिश औरते मेरे पति के ऑफिस में भी तो जॉब करती होगी , और वो उस दिन रात को कितनी देर से भी आये थे घर , सन्डे को भी कभी कभी ऑफिस जाते है , हाय कोई भला सन्डे को काम करता है क्या ? और भी न जाने कितनी घटनाओ को सीधे अपनी "शक" कि निगाहो से देखना शुरू कर देती थी उस समय कि पत्नियां।  वैसे भी पुरानी छोटी छोटी घटनाओ के  टुकड़ो  कि HD रिकॉर्डिंग महिलाओ के दिमाग कि "हार्ड ड्राइव " के किसी फोल्डर में हमेशा सुरक्षित रहती है.

अब बात करते है आज २१वी  शताब्दी कि पत्नियों कि, आज इनके पास समय ही नहीं है फिजूल कि चर्चाओ का, क्योंकि आज  कि पत्नियां ज्यादातर काम  -काजी किसम कि होती है, सुबह उठते से दफतर को जाती है शाम को आके थक हार के खाना खाके सो जाती है, फिर भी "शक का चूरन" इन्हे भी मिल ही जाता है , वो भला कैसे ?
अब यह कपडे तो नहीं धोती अपने पति के जो कि उनको सूंघ के देखे और कोई "सुराग" हाथ लग जाये, ना ही इतना समय कि यह जान पाये कि पड़ौस में मिसेज़ शर्मा का घर है या मिसेज़ देशपांडे का, फिर भी मेरे प्यारे दोस्तों इन्हे इनके शक के कीड़े के लिए खुराक मिल ही जाती है।
आज टीवी पर इतने चैनल्स कि भरमार है कि उसमे दिखाए गए किसी भी सिरिअल को अपनी निजी जिंदगी से जोड़ने में इन्हे ज्यादा वक़्त नहीं लगता , और सिरिअल भी कैसे कैसे , "इमोशनल अत्याचार" जिसमे शो का सूत्रधार पूरी कोशिश करता है कि बने बनाये रिश्तो में किसी तरह दरार पड़  जाये  , या "बालिका वधु" जिसमे नायक को पता ही नहीं होता कि वो प्यार किससे करता है और शादी किस से करना चाहता है या "क्राइम पेट्रोल दस्तक" जहा अनूप सोनी हर नारी को यह अहसास दिलाता है कि आप एक अबला नारी हो, सावधान रहना और किसी से नहीं तो अपने पति से ही , रही सही कसर "सनसनी" पूरी कर देता है , "ध्यान से देखिये अपने पति को , कही वो आप से चीटिंग तो नहीं कर रहा". और भी बहुत सारे ऐसे शोज़ है जिनके बारे में लिखने बैठूंगा तो २-४ भागो में यह लेख पूरा होगा, बहरहाल आप समझ गए होंगे कि हमारे घर में रखा टीवी नामक डब्बा   पत्नियों  के "चूरन" का  कितना बड़ा जरिया है।

अब बात करते है आज के ज़माने के सबसे बड़े औजार कि , जो कि पत्नियों के दीमागी शक के कीड़ो कि खुराक का  पूरा का पूरा खज़ाना है , आप सही समझे में बात कर रहा हूँ मोबाइल कि, अब पत्नियों को आपके शर्ट, बैग, लैपटॉप या पर्स चेक करने कि कोई जरुरत नहीं है, बस दिन में २ बार आपका मोबाइल चेक कर लिया तो कुछ न कुछ तो मिल ही जाता है, किस्से आपने व्हाट्सप्प पे चैट कि , किसके FB PIC को लाइक किया , किसके कमेंट पर आपने :) :) स्माइली भेजा etc etc. और जब शक वाले कीड़ो को इतनी सारी खुराक मिलेगी तो सोचिये जरा कि कीड़े कितने बलवान होके अटैक करेंगे ?


इसलिए पति महोदय , ध्यान से देखिये ,आपके दुश्मन आपके घर में ही मौजूद है , कही ४० इंच  तो कही ५२ इंच कि साइज़ में , कही जेली बीन तो कही आइस-क्रीम सैंडविच के रूप में , सावधान रहिये अपने इन ज़ालिम दोस्तों से जो आपकी पीठ पीछे आपकी मासूम पत्नी को उसके "शक" कि खुराक मुहैया कराते है।



तो दोस्तों पत्नियां तो पत्नियां ही होती है, किसी भी ज़माने कि हो, किसी भी देश कि हो, शक के साथ साथ अपने पति को 24/7 प्यार भी करती है।

ओफ्फ्फ माफ़ कीजियेगा आज का पत्निपुराण यही खत्म करता हूँ, चोरी छुपे ज्यादा लिख नहीं पाउँगा, कीबोर्ड कि खट खट से मेरी पत्नी कही यह न समझ ले कि किसी के साथ चैटिंग कर रहा हूँ.

मेरे ब्लॉग पर आने के लिए शुक्रिया और ऐसे ही आते रहिये , हौसला अफजाई करते रहिये, पढ़ते और पढ़ाते रहिये। जयहिन्द।



कार्टून: इन्टनेट से साभार




Thursday, 16 January 2014

२०१४ का महाभारत

हम बड़े ही सहज रूप से कह सकते है कि २०१४ का चुनाव अब "बीजेपी" और "आप" के बीच ही लड़ा जायेगा (या यु कहे मोदी और केजरीवाल के बीच लड़ा जायेगा)

कॉंग्रेस ( राहुल गाँधी ) कि तो कोई बात ही नहीं कि जा सकती यहाँ,  क्रिकेट कि भाषा में बात करे तो यह वो त्रिकोणीय मुक़ाबला है जिसमे तीसरी टीम (टीम  RaGa ) नामीबिया कि है। या बॉलीवूड कि भाषा में बात करे तो ३ फिल्मो के बिच मुक़ाबला है जिनके मुख्य किरदार क्रमशः  शाहरुख़ खान, सलमान खान और उदय चोपड़ा है।

अब अगर इसे सीधा मुकाबला मोदी V /S  केजरीवाल माने तो यहाँ यह देखना भी जरूरी है कि आखिर इन दोनों में तुलना किन बिन्दुओ पर हो ?

  1. सुढृढ़ सुशासन या दिखावटीपन (चुहलबाजी)
  2. परिणामकारी प्रदर्शन या आंदोलन 
  3. विकास के मुद्दे या व्यक्तिगत मान से जुड़े इरादे 
  4. एक स्थापित विचारधारा या आदर्शवाद 
  5. देश कि अखंडता या अलगाववादियों का समर्थन 
  6. सम्पूर्ण विकास या किसी समुदाय विशेष का तुष्टिकरण
  7. एक सिद्ध अनुभव या अतिउत्साही और अवसरवादी लोगो का समूह 
  8.  देश को विकास कि  दिशा प्रदान करना या देश के साथ एक प्रयोग करना 
यह एक बहुत अच्छी बात है कि आप पहली बार चुनाव लड़े और लोगो कि भावनाओ के साथ जुड़कर उनके दिल और कुछ सीटे जीत ले और जिनका उम्रभर से विरोध करते आये उन्ही का थोडा सा साथ लेकर सत्ता में भी आ जाये।
परन्तु  एक तरफ वो है जो लोगो कि भावनाओ के दम पर पहली बार जीत के आये  और सत्ता में बने रहने के लिए संघर्ष कर रहे है वोही दूसरी  और वो है जो  समग्र विरोध को झेलने के बावज़ूद लगातार तीन बार जीत कर आये, लोगो कि भावनाओ के दम पर नहीं, अपने शक्तिशाली प्रदर्शन के दम पर.। 

महत्वकांक्षी  होना  अच्छी बात है परन्तु  जो चीज हाथ में है, जिसके लिए आपको मौका दिया गया है (दिल्ली ), उसके बारे में सोचने के बजाय आप क्या कर रहे है ,  खूद को देश की  हर समस्या का समाधान बता कर  मैदान में कूद कर स्थापित लोगो को चुनौती दे रहे है जबकि आपको यह  तक नहीं पता कि आपका कौन नेता देश के किस मुद्दे पर क्या अनर्गल बाते कर रहा है। 
 जब आपको एक राज्य का दायित्व दिया गया है तो उसी को राजधर्म कि तरह निभाईये, झोंक दीजिये अपनी सारी शक्ति यह साबित करने में कि आपको दिया गया मौका व्यर्थ नहीं है। 

दूसरी और मोदी के बारे में  यह कैसा झूठा डर  फैलाया जा रहा है कि अगर मोदी कि सरकार बनी तो देश में अल्पसंख्यक असुरक्षित  हो जायेंगे, मानो अचानक ही  यह पूरा जनतंत्र  तानाशाही में बदल जायेगा और सारी  विपक्षी पार्टियाँ, सहयोगी दल , राज्य सरकारे और न्यायपालिका रातोरात इस "सबका मालिक एक " वाली सरकार के सामने नतमस्तक हो जाएँगी ?
यह तो सीधा सीधा उन लोगो के द्वारा किया गया दुष्प्रचार या प्रपंच है को वाकई में मोदी को सत्ता  में आने से रोकना चाहते है , यह लोग सिर्फ नफरत कि राजनीति जानते है प्रेम कि नहीं।

वैसे कविराज जो कि अब नेता जी बन गए है कि एक काव्य गोष्ठी में मेने उन्ही के मुख कमल से एक कविता सुनी थी जो कुछ  यों  थी_ _ _

हमे मुहब्बत सब से है हमे फूलो को छांटना नहीं आता
हम तो जोड़ना जानते है बस हमें काटना नहीं आता
हम क्या करे हमे खुशियों के सिवा कुछ बाँटना नहीं आता

अभी यह सब बाते शायद उनके लिए सिर्फ कल्पनाओ और शब्दो का एक जाल मात्र हो सकती है जिसका हकीकत से कोई लेना देना न हो शायद।

खैर छोड़िये 

केजरीवाल (और AAP ) कि तुलना मोदी (और NDA ) से करना किसी कल ही कॉलेज से पास हो कर नए आये कर्मचारी कि  किसी उच्च प्रबंधक जो कि बरसो से कंपनी और अपने विभाग कि सेवा करके उस पद तक पंहुचा है से तुलना करने के बराबर है। 

क्या कोई भी कंपनी कल के पास हुए छात्र को अपने उच्च प्रबंधन का दायित्व सोंप सकती है ?
खुद ही विचार कीजियेगा। 

--------------------------------------------फेसबुक पर एक पेज "भक साला " में  प्रकाशित हुये एक अंग्रेजी लेख़ से साभार  

Monday, 30 December 2013

Kejriwal and Karna


Now-a-days everyone is talking about Mahabharat, be it the animation movie where big stars have landed their voice or the Television Series or the current political scenario in India

So I thought I should write something about it. You might have already flooded with various comparisons of today’s political set-up with mythological stories, but I can not stop myself.You may not be a fan of mythological writings or the stories, but you must have heard the name Karna or Karan.

Karna, a Mythological character from Mahabharata, is a well praised character, a great warrior, large hearted, hard worker, generous, and above all a fighter and self made leader. Any positive adjective I use here will be less for him and all this written in the classic book.  Having all said about Karna, he is not considered by people as a deity or someone who can be kept in the good books.

He was a son of the god Sun by kunti, but brought up by a charioteer and was always called a saarthi – putra or Soot-putra. According to the “Varna-vyavastha” he could not be a disciple of Gurus like Dronacharya and Parashurama, he could not get learning and teaching of astras(Weapons) and shaastra(Rules of life).


 He hated the system and rebelled against it. Karna became pupil of Guru Parashurama on a false note that he is a Brahmin. And as people say that a lie has no feet, so karna couldn’t go long with that lie and became victim of curse from his contemporary Guru Parshuram.Karna was good at heart, his intentions were good and he was skilled but just because he did not belong to a particular Varna(Caste), he could not hone his skills with the dignity as Khatriyas and Brahmins could afford.  He nourished a kind of hatred in his heart for this system and wanted to change it, and wanted to get the power, wanted to become a king.To douse his burning desires, to get the Kingdome, to fulfill his long term aspirations he joined hands with Kouravas (the 100 bad brothers or better the main villains of Mahabharat).

Finally in the climax his life was ended like a villain and not like a hero. He was killed by Arjuna.
He had to suffer a lot because of his 2 big mistakes, first, to betray a Guru like Parashuram and second, joining hands with most lawless, corrupt and hypocrite people like Kauravas.


The title of this article is Kejriwal and Karna, and I have written all about Karna, you might be thinking that when I would introduce our today’s hero Kejriwal? So my dear readers, that’s all, now I don’t need to write anything about Kejriwal. At the end of this article I will rename Kejriwal as today’s Karna who joined hands with today’s Kauravas.Rest you think, and relate the populist with the Karna's Story.


Note: All AAP and AK lovers, please excuse!

Image courtesy: Google.

Monday, 23 December 2013

ट्रैफिक हवलदार, केले वाला और राजू


समय : शाम ४ बज कर १० मिनट
स्थान : पुणे शहर का एक प्रमुख चौराहा
पात्र: ट्रैफिक हवलदार, केले वाला और राजू


राजू तेज गति से अपनी धून में अपनी दुपहिया गाडी पे कानो में हैडफ़ोन लगाकर चला आ रहा था, सामने चौराहे पर लाल बत्ती होते ही तुरंत ब्रेक लगाकर जैसे ही साइड में खड़ा हुआ, एक सिटी कि आवाज़ और डंडे कि फटकार सुन कर उसने कान से हैडफ़ोन निकाले और देखा कि सामने खड़े ट्रैफिक हवलदार ने उसे सड़क के किनारे लगे पेड़ के निचे बुलाया है । राजू चुपचाप अपनी गाडी धकेलता हुआ जा पंहुचा उस हवलदार के पास।

लाइसेंस, इन्शुरन्स, गाडी के कागज और PUC  हर चीज मुकम्मल करके हवलदार बोला, रेड लाइट में ज़ेबरा क्रासिंग पे खड़ा था भाउ तू, चल चालान भर, ८०० रूपया लगेगा। राजू एक  सीधा साधा, और तुलनात्मक रूप से ईमानदार आदमी है, इसीलिए अपने सारे डाक्यूमेंट्स रेडी रखता है, आज तक जब भी पकड़ा गया है बिना पैसे दिए ही छोड़ा भी गया है, बिना कोई धौंस -डपट के।
राजू के कोई रिश्तेदार पुलिस में, सरकारी नौकरी में या राजनीती में भी नहीं है, ताकि वो कह सके कि "जानते भी हो किस से बात कर रहे हो तुम ?" या फिर अपना फ़ोन निकाल के किसी को फ़ोन लगा के कह ही सके कि तेरी बात करवाऊ S.P  साब से ? वो तो एक आम आदमी (AAP  वाला नहीं ) है।

फिर राजू ने पूछा कि कहा है ज़ेबरा क्रासिंग जिस पर में खड़ा था ? यहाँ तो कोई क्रासिंग नहीं दिखाई देता, तभी हवलदार ने अपनी आवाज़ में टाटा टी कि कडकनेस घोल के कहा "अब तू हमें ट्रैफिक रूल सिखाएगा ?, भाउ प्रेम से चालान कटवा ले नहीं तो खड़ा रह, मेरे को और भी काम है" (मतलब मेरे को और भी बकरे पकड़ने है ) .

कुछ जगहो पर हवलदारों के बड़े साब भी मौजूद होते है, अब अगर बड़े साब हो तो "कद्दू कटेगा, सब में बंटेगा" वाली कहावत चरितार्थ हो जाती है, इसीलिए हवलदारों ने चौराहो पे ठेलागाड़ी (रेड़ी ) लगा के बैठे फल वाले, चाट वाले अपने भाइयों को सेट करके रखा होता है। जैसे ही कोई "बकरा" बात चित शुरू करता है लेन -देन  कि तो हवलदार साब रकम फिक्स करके "बकरे" को कह देते है कि जाके केले वाले या चाट वाले को देदो और निकल जाओ।

हमारे राजू के केस में भी ऐसा ही कुछ था, राजू ने सोचा कि अब बात बिगड़ने से अछा है कुछ ले-देके मामला निपटाया जाये, उसने पहल करी, "सरजी ८०० तो बहुत ज्यादा है , इतने तो है भी नहीं मेरे पास, और अगर रसीद ना लेनी हो तो कितने लगेंगे ?"
इसी बात कि तो बाट  जोह रहे थे हवलदार बाबू, उन्होंने बिना कोई समय गंवाए राउंड फिगर में ५०० का प्रस्ताव रखा, इधर राजू भाई साहब ने अपना चमड़े का दबा कुचला बिल्कुल भारत देश के आम आदमी कि दशा को प्रदर्शित करता बटुआ अपनी जीन्स कि दाई पॉकेट से निकाला, खोला तो ढेर सारे छोटे बड़े कागजो, विजिटिंग कार्डो, ATM  स्लिपों के बीचोबीच १०० - १०० के २ और १०-१० के ३ नोट मिले, उसने हवलदार साब को अपना पर्स दिखाके विनती कि " सर अभी २०० में काम चला लो, अगली बार पकड़ो तो पुरे ले लेना" , हवलदार साब ने भी दरियादिली का परिचय देते हुए कहा, ठीक है जा  रोड क्रॉस करके सामने केले वाले को देते हुए निकल जा, में यहाँ से देख रहा हूँ उसको इशारा करता हूँ।

राजू पलक झपकते ही रोड के उस पार केले वाले कि दूकान पर खड़ा था, उस पार से हवलदार ने सिटी बजा के केले वाले को अपनी हथेली कि २ उंगलियां इस अंदाज में दिखाई जैसे कोई नेता अपनी विजय रैली में विक्ट्री सिम्बॉल दिखाता है। केले वाले ने भी अपनी मुंडी OKAY  SIR के अंदाज़ में हिला दी।

स्थान: रोड के दूसरी तरफ केले वाले कि दूकान
समय: शाम के ४ बजकर २० मिनट
पात्र : राजू, केले वाला और ट्रैफिक हवलदार

राजू: भैया वो साब ने २ दर्जन केले मंगवाए है। उनकी तरफ देखो वो शायद इशारा करेंगे।

केले वाला सिटी कि आवाज़ सुनकर  हवलदार कि तरफ देखता है, हवलदार २ का इशारा करता है। केलेवाला OKAY SIR कि मुद्रा में मुंडी हिला देता है।

राजू जाते जाते २ याने कि विक्ट्री का इशारा हवलदार कि तरफ करता हुआ अपनी तेज़ गति में, हेडफोन्स कानो में लगाये उस चौराहे से ओझल हो जाता है।

तात्पर्य, बईमानी का जवाब थोड़ी से बईमानी करके दिया जा सकता है और यह थोड़ी से बईमानी मेरे हिसाब से वाजिब है , आप क्या कहते है इस विषय पर ? आपके पास भी कोई ऐसी कि घटना हो तो साझा कीजिये। 



Tuesday, 10 December 2013

Bollywood vs IT World

आईटी सर्विसेज में काम करते हुए आप इस क्षेत्र  के बारे में लिखे/बोले  बिना रह ही नहीं सकते, जैसे  मैं पहले भी आईटी सर्विसमैन और इसके जीवन में आने वाले कुछ मकाम के बारे में लिख चूका हूँ, अगर आपने नहीं पढ़ा हो तो अभी पढ़ सकते है यहाँ क्लिक करके !

वैसे आप फ़िल्म / टीवी तो देखते ही होंगे, और सोचते होंगे कि यह टीवी कलाकार और फ़िल्म स्टार कि लाइफ भी कितनी सही है, लेकिन आपको एक बात  बताउ ?? इनमे और हम IT वालो के काम में कुछ ज्यादा अंतर नहीं होता बस यह लोग कुछ ज्यादा टैक्स भरते है (करोड़ो में ) और हम लोग थोडा कम (हजारो में )। 

आप सोच रहे होंगे फालतू कि बकवास करता है, काम और कमाई दोनों ही अलग है इनकी हमसे, हैना ऐसा ही सोच रहे होंगे ना ? चलिए  कोई बात नहीं, वो क्या है कि हमे कोई बात जब एक्सप्लेन करके न बतायी जाये तो वो बकवास ही लगती है, हालांकि इसकी कोई ग्यारंटी नहीं है कि एक्सप्लेन करने के बाद भी बकवास न लगे, मसलन कोई क्लाइंट छोटा सा इ-मेल लिखे किसी issue के लिए तो हम उसको तुरंत reply करते है कि "kindly elaborate, and  give more details about  the issue " और जब वो डिटेल में मेल लिखता है तो भी हम कहते है कि "क्या बकवास है ?"

चलिए फिर आते है टीवी/फ़िल्म कलाकार और आईटी सर्विसमैन कि जिंदगी और उनके काम कि समानता पर , आपको एक्सप्लेन करता हूँ कि क्या समानता है दोनों के कामो में। 
आईटी में अगर आप हमेशा किसी न किसी इम्प्लीमेंटेशन प्रोजेक्ट्स पर ही काम करते है तो आप अपने आप को किसी  फ़िल्म कलाकार कि तरह समझ सकते है, क्योंकि जैसे फिल्मो कि शुटिंग कुछ ही महीनो में कम्पलीट हो जाती है वैसे ही  इम्प्लीमेंटेशन प्रोजेक्ट्स में होता है , कुछ ही महीनो में कोडिंग कम्पलीट। फिर फिल्मो में एडिटिंग, डबिंग का दौर चलता है वैसे ही प्रोजेक्ट में UT, UAT और बग फिक्सिंग का दौर चलता है, फिर एक फ़िल्म रिलीज़ हो जाती है और इधर प्रोजेक्ट कि भी  रिलीज़ हो जाती है।  फिर हीरो किसी और फ़िल्म कि शूटिंग में व्यस्त हो जाता है और आप किसी और प्रोजेक्ट या Module कि कोडिंग में व्यस्त हो जाते है, कभी कभी फिल्मो कि पार्टीज कि तरह प्रोजेक्ट्स कि भी पार्टीज होती है, तो भाई हुआ न सेम टू सेम, बन गए न आप हीरो। 

अब आप कहेंगे कि आईटी सर्विसेज में हर कोई इम्प्लीमेंटेशन प्रोजेक्ट्स में काम नहीं करता यहाँ सपोर्ट और मैन्टेनन्स के भी प्रोजेक्ट्स होते है जो कुछ महीनो के नहीं अपितु कई वर्षो तक के होते है, तो महाशय अगर आप किसी ऐसे प्रोजेक्ट्स पर भी काम कर रहे है जो सालो साल से चले आ रहे है, जहाँ सालो साल से एक जैसा काम काज, इक्का दुक्का लोग बदलते है परन्तु बाकी टीम वैसी कि वैसी है, तो आप अपने आप को कम से कम किसी टीवी आर्टिस्ट कि तरह तो समझ ही सकते है।  टीवी सिरिअल्स बिलकुल आईटी के सपोर्ट प्रोजेक्ट कि तरह होते है बहुत सारे, बहुत दिनों तक चलने वाले और सबकी एक जैसी कहानी।  टीवी एक्टर हमेशा चाहता है कि वो कभी फिल्मो में भी काम करे वैसे ही सपोर्ट के प्रोजेक्ट में काम करने वाला इंजीनियर हमेशा सोचता है कि कभी वो भी इम्प्लीमेंटेशन प्रोजेक्ट में काम करे।  जैसे टीवी सिरिअल्स में हर त्यौहार को बड़ी धूम धाम से भारी भरकम costumes के साथ मनाया जाता है,  ठीक वैसे ही मैन्टेनन्स प्रोजेक्ट्स में हर त्यौहार पर ट्रेडिशनल डे मनाया जाता है। आईटी सपोर्ट प्रोजेक्ट्स में बॉस और एम्प्लोयी का झगड़ा वैसा ही होता है जैसा सिरिअल्स में सास बहु का, सिरिअल्स में २ औरतें मिलकर जैसी गॉसिप्स करती दिखाई देती है बिलकुल वैसी ही गॉसिप्स एक ही प्रोजेक्ट में काम करने वाली २ लड़कियां करती हुयी मिलेगी। 

और जैसे इम्प्लीमेंटेशन में काम करने वाला इंजीनियर कभी न कभी तो सपोर्ट के प्रोजेक्ट्स में आता ही है भले ही मेनेजर बनकर वैसे ही बड़े से बड़ा फ़िल्म कलाकार कभी न कभी टीवी पर आता ही है भले ही होस्ट बनकर।  और इसका विपरीत भी होता है बहुत से काबिल और बड़े एक्टर टीवी कि दुनिया से आये है वैसे ही बहुत सारे  इंजीनियर सपोर्ट प्रोजेक्ट्स से निकल कर बड़े बड़े इम्प्लीमेंटेशन प्रोजेक्ट्स में आये है.
और जो इंजीनियर अपने इम्प्लीमेंटेशन प्रोजेक्ट को इस तरह से बर्बाद या बिगाड़ देते है की उन्हे दूसरा मौका नही मिलता और कोई और उन्हे किसी इंप्लिमेंटेशन प्रॉजेक्ट मे लेने को तैयार नही होता तो उनके लिए भी कुछ सपोर्ट प्रॉजेक्ट रहते ही है कंपनी में बिल्कुल वैसे ही जैसे टीवी पर बिगबोस !!!

तो देखा आपने, आईटी सर्विसेज और फ़िल्म/टीवी कि दुनिया एक जैसी ही है , हमे भी अपने आप को किसी  सलिब्रिटी से कम नहीं समझना चाहिए।

तो बोलो सब मिलके_ _ _ लाइट्स - कैमरा - एक्शन - कट -कॉपी - पेस्ट 

आपका क्या विचार है , या अब भी कहेंगे कि "क्या बकवास कर रहा है ?"

-------------------------------------------------------------फ़ोटो  इंटरनेट के सौजन्य से 

देश भक्ति

  देश भक्ति , यह वो हार्मोन है जो हम भारतियों की रगो में आम तौर पर स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस  या भारत पाकिस्तान के मैच वाले दिन ख...