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Thursday 1 May 2014

आईटी सर्विसमैन की भोजन गाथा


राहुल अपने हाथो में थाली लिए खड़ा है, अपनी दूर कि और पास कि नजरो से पुरे हॉल का निरिक्षण कर रहा है।  उधर से काव्या भी आ गयी वो भी अपनी बड़ी बड़ी गोल गोल आँखों को घुमा घुमा के इधर उधर देख रही है। इतनी देर में ६-७ युवा दोस्तों का एक और झुण्ड भी आ पंहुचा है , और सभी अपने अपने हाथो में प्लेट्स लिए खड़े हुए है।

अब अगर आप सोच रहे है कि यह दृश्य किसी शादी या बर्थडे पार्टी या किसी बुफे रेस्टॉरेंट का होगा आप थोडा सा गलत सोच रहे है। दर-असल यह दृश्य हमारे ऑफिस के कैफेटेरिया का है।

एक आईटी सर्विसमैन के जीवन मे भोजन का संघर्ष किसी युद्ध से कम नहीं होता है।  वैसे बहुत से लोग तो ४ साल हॉस्टल में रहके इस भोजन युद्द मे महारत प्राप्त किये होते है।  अब कैफेटेरिया का खाना हाथ मे लेकर बैठने के लिये एक टेबल ढूंढ़ना नयी मुसीबत।

दोपहर १ से लेकर ३ बजे तक यह दृश्य किसी भी आईटी कंपनी के कैफेटेरिया में देखा जा सकता है। लोग  हाथो में अपनी अपनी प्लेट्स और टिफ़िन के डिब्बे लिए एक टेबल से दूसरी टेबल ताका -झांकी  करते हुए अमूमन दिखाई पड़ेंगे। सबसे पहले तो देखते है कि कहा टेबल खाली है, फिर उस तक जल्दी से पहुचने कि कोशिश करेंगे, जैसे ही टेबल के करीब पहुचे तो पता पड़ा कि दूसरी और से किसी और ने आके अपना डिब्बा टेबल पर रखते हुए आपकी और देख के कंधे उचका के कह दिया सॉरी।
फिर आप दूसरी टेबल कि आस में इधर उधर ताकना शुरू करते है, और पाते है कि कोई टेबल खाली नहीं है, मतलब अब समय है पहले से बैठे हुए लोगो कि थालियों में नजर दौड़ाने का, कि किसकी थाली पहले खाली होने को है।  आप सबसे कम खाना नजर आने वाली थाली कि टेबल के पास जाके खड़े हो जाते है|
बेशर्मी कि हदों को लांघते हुये आप सतत रूप से टेबल पर बैठे व्यक्तियोँ के हर एक निवाले पर नजर गड़ा  कर रखते है और जैसे ही अन्तिम व्यक्ति अपणा अन्तिम निवाला मूह मे रखता है आप  टेबल से चिपक के खड़े हो जाते हो और अपना टिफ़िन या प्लेट ऐसे रखते है जैसे हिमालय कि चोटी पर झन्डा गाड़ दीया हो।



 भोजन मनुष्य के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है, आखिरकार हम  सारी मेहनत मशक्कत  पेट भर भोजन के लिए ही तो करते है। किन्तु कई बार भोजन को प्लेट तक पंहुचने मे जितना समय नही लगता उससे ज्यादा समय इसे  हमारे पेट तक पहुचने मे लग जाता है।


Tuesday 18 March 2014

शादी के बाद तुम बदल गए -२

शादी के बाद तुम बदल गए, इस जुमले पर एक बहुत ही हल्का सा ऑब्जरवेशन मेने अपने पुराने लेख में लिखा था, जो आपने पसंद किया था।

इसी कड़ी में "शादी के बाद तुम बदल गए" का दूसरा संस्करण आपके समक्ष प्रस्तुत है, यह लेख मूलतः मेरा लिखा गया नहीं है, और मूल लेखक का मुझे अता -पता भी नहीं है, मेने तो बस "रेडी तो ईट मील " में थोडा तड़का लगाने का प्रयास किया है, आशा है आपको पसंद आएगा। 


शादी के बाद हर इंसान बदलता है यह बात तो आपको समझ में आ ही गयी होगी, लोग आपके लिए बदल जायेंगे, आप लोगो के लिए बदल जायेंगे, यही नहीं आप अपनी बीवी या पति के लिए भी बदल जाओगे शादी के बाद, हम तो इंसान है बदलना हमारा स्वाभाव है लेकिन भगवान् का क्या ? 

अब आपको लेके चलता हूँ ऐसी ही एक मजेदार चर्चा में जहा आपको पता पड़ेगा कि शादी के बाद भगवान् भी कितना बदल गए, जी हाँ, यह चर्चा हो रही है स्वर्ग में भगवान् श्री कृष्ण और राधा रानी के बिच.

ऐसे ही घूमते घामते कृष्ण एकदम से राधा जी से टकरा गए एक दिन, देखते ही चोंक से गए, अब चौंकना तो स्वाभाविक है, आपकी शादी के हजारो साल बाद आप किसी दिन अपनी एक्स-प्रेमिका से टकरा जाओ तो आदमी शॉक में आ ही जायेगा, परन्तु यहाँ कृष्ण जी दिल ही दिल में खुश हुए और चौंकने का थोडा नाटक किया, खुश इसलिए हुए क्योंकि रुक्मिणी उनके साथ नहीं थी। कृष्ण कुछ कहते इसके पहले ही राधा जी बोली कैसे हो द्वारकाधीश ?


अब आप ही सोचिये अगर आप सालो बाद अपनी एक्स प्रेमिका से मिलो और वो आपको आपके ऑफिस में जो आपका पद है उससे सम्बोधित करे, मसलन कहे कि "कैसे हो मेनेजर साब ?" कैसा लगेगा आपको, जो कभी आपको आपके उपनाम से पुकारा करती थी, स्वीटहार्ट , जान , जानु इत्यादि और अचानक मेनेजर साब ?

यही हुआ भगवान् कृष्ण के साथ ,जो राधा उन्हें कान्हा कान्हा कह के बुलाती थी उसके मुख से द्वारकाधीश का संबोधन कृष्ण को भीतर तक घायल कर गया फिर भी किसी तरह अपने आप को संभाल लिया और बोले राधा से .........
मै तो तुम्हारे लिए आज भी कान्हा हूँ तुम तो द्वारकाधीश मत कहो! आओ बैठते है ....जलपान ग्रहण करते है कुछ मै अपनी कहता हूँ कुछ तुम अपनी कहो, और वो लोग जाके एक पेड़ कि छाँव में बैठ गए, अगर आप अपने जीवन से जोड़ के देखना चाहे तो जैसे आप किसी मॉल में "उनसे" मिले और कॉफी के लिए बैठ गए। 
सच कहूँ राधा जब जब भी तुम्हारी याद आती थी इन आँखों से आँसुओं की बुँदे निकल आती थी, दिल बड़ा ही बेचैन हो उठता था, लेकिन क्या करे शादी का धर्म रुक्मिणी के साथ निभाना ही था.
राधा ने भी एक जमके फ़िल्मी फटका मारा और  बोली,
मेरे साथ ऐसा कुछ नहीं हुआ ना तुम्हारी याद आई ना कोई आंसू बहा क्यूंकि हम तुम्हे कभी भूले ही कहाँ थे जो तुम याद आते, इन आँखों में सदा तुम रहते थे कहीं आँसुओं के साथ निकल ना जाओ इसलिए रोते भी नहीं थे, हम तो वैसे के वैसे ही है,  ज़रा सा भी नहीं बदले, आप ही बिलकुल बदल गए शादी के बाद.
कृष्णा अपने माथे पे हाथ रख के  बोले , 
अरे राधा तुम भी ?? सारी  दुनिया कहती है में शादी के बाद बदल गया, यंहा तक कि रुक्मिणी भी यही कहती है , तुम तो ऐसा मत कहो। 
बेचारे कृष्ण भी एकदम फ्रस्ट्रेट होके  बोले थे , लेकिन राधा तो राधा थी, एक तो लड़की और ऊपर से एक्स प्रेमिका, 
राधा बोली, नहीं द्वारकाधीश, 
तुम बहुत बदल गए हो, मानो या न मानो, तुम मेरे कान्हा नहीं रहे.आप  कितना बदल गए हो इसका इक आइना दिखाऊं आपको ? कुछ कडवे सच ,प्रश्न सुन पाओ तो सुनाऊ?
कृष्णा जी कुछ और कहते इसके पहले राधा जी ने टोका और आगे कहना शुरू किया, वैसे भी एक बार नारी कहना शुरू कर दे तो नर को चुप चाप खड़े रह के सुनना ही पड़ता है , बिलकुल डॉक्टर कि कड़वी दवाई कि तरह  हर बात निगलना पड़ती है
राधा ने कहना जरी रखा ,  
कभी सोचा इस तरक्की में तुम कितने पिछड़ गए यमुना के मीठे पानी से जिंदगी शुरू की और समुन्द्र के खारे पानी तक पहुच गए ?एक ऊँगली पर चलने वाले सुदर्शन चक्रपर भरोसा कर लिया और दसों उँगलियों पर चलने वाळी बांसुरी को भूल गए ? कान्हा जब तुम प्रेम से जुड़े थे तो ....जो ऊँगली गोवर्धन पर्वत उठाकर लोगों को विनाश से बचाती थी प्रेम से अलग होने पर वही ऊँगली क्या क्या रंग दिखाने लगी सुदर्शन चक्र उठाकर विनाश के काम आने लगी.

तुम कहते हो कि तुम नहीं बदले लेकिन कान्हा और द्वारकाधीश में क्या फर्क होता है बताऊँ, कान्हा होते तो तुम सुदामा के घर जाते सुदामा तुम्हारे घर नहीं आता, तुम राजा हो गए हो, बड़े आदमी हो गए हो, तब एक ग्वाले हुआ करते थे। 
अब तक राधा फुल मूड में आ चुकी थी, कान्हा भी समझ गए थे कि अब पार पाना अपने बस का ना है

राधा ने बिना साँस लिए बोलना ज़ारी रखा 
युद्ध में और प्रेम में यही तो फर्क होता है युद्ध में आप मिटाकर जीतते हैं और प्रेम में आप मिटकर जीतते हैं कान्हा,  प्रेम में डूबा हुआ आदमी दुखी तो रह सकता है पर किसी को दुःख नहीं देता

राधा वाकई में कान्हा कि सच्ची प्रेमिका थी, कान्हा कि हर गतिविधि पर नजर रखे हुए थी, कान्हा के हर एक एक्शन को राधा ने करीब से देखा था, हो सकता जैसे आप भी अपने एक्स पार्टनर कि फेसबुक प्रोफाइल को रेगुलरली चेक करते हो, मन ही मन उसके हर मूव को रिकॉर्ड करते हो, हो सकता है न ? मतलब में ये नहीं कह रहा कि ऐसा होता ही है, हो सकता है, सम्भावना है। 
तो राधा को भी कान्हा कि पूरी जानकारी थी, उसने आज सोच लिया था कि साबित करना ही है कि कान्हा शादी के बाद कितना बदल गया है , राधा आगे बोली 
आप तो कई कलाओं के स्वामी हो स्वप्न दूर द्रष्टा हो गीता जैसे ग्रन्थ के दाता हो पर आपने क्या निर्णय किया अपनी पूरी सेना कौरवों को सौंप दी? और अपने आपको पांडवों के साथ कर लिया सेना तो आपकी प्रजा थी राजा तो पालक होता है उसका रक्षक होता है, आप जैसा महा ज्ञानी उस रथ को चला रहा था जिस पर बैठा अर्जुन आपकी प्रजा को ही मार रहा था अपनी प्रजा को मरते देख आपमें करूणा नहीं जगी ?
 क्यूंकि आप प्रेम से शून्य हो चुके थे, आप बदल चुके थे मान लो कान्हा कि इंसान हो या भगवान्, शादी के बाद हर कोई बदल जाता है। 
कान्हा कि बारी आयी, अबकी कान्हा बोले, 
मान गया राधा कि में बहुत बदल गया हूँ, लेकिंन क्या करे काम काज का बोझ, और शादी के बाद घर गृहस्थी कि जिम्मेदारी में कोई भी अपने आप को बदल ही लेता है, बदलना ही पड़ता है, जिंदगी में आगे बढ़ना ही पड़ता है, अब इसमें मेरा क्या कसूर ?
राधा ठहाके लगा के हंसी और बोली, वो तो सब ठीक है, पर एक बात बताती हूँ, प्रेम से कभी दूर मत रहो, हो सके तो उसी से शादी करो  जिससे प्रेम करते हो, वोही काम करो जिसमे आनंद आता हो, बस जिम्मेदारी निभाने के लिए किया गया काम और प्रेम ये दुनिया याद नहीं रखती।
कान्हा ने माथे पे बल देकर कहा, में कुछ समझा नहीं राधा, 
तब राधा ने अपना लास्ट बट नोट दी लीस्ट वाला मास्टर डायलॉग मारा, और जो बात राधा ने कही उसके बाद आप भी विचार करने को मजबूर हो जायेंगे ……………राधा ने अपनी अंतिम बात कुछ यू रखी
मतलब यह है कान्हा कि आज भी धरती पर जाकर देखो अपनी द्वारकाधीश वाळी छवि को ढूंढते रह जाओगे,  हर मंदिर में मेरे साथ ही खड़े नजर आओगे आज भी मै मानती हूँ लोग गीता के ज्ञान की बात करते हैं उनके महत्व की बात करते है मगर धरती के लोग युद्ध वाले द्वारकाधीश पर नहीं प्रेम वाले कान्हा पर भरोसा करते हैं गीता में मेरा दूर दूर तक नाम भी नहीं है पर आज भी लोग उसके समापन पर " राधे राधे" करते है"

विचार कीजियेगा कि शादी के बाद बदल जाने के तर्क वितर्क में भगवान् भी जीत न पाये तो क्या आप जीत पाएंगे ??

Thursday 30 January 2014

Piclog-3


After piclog-1, piclog-2 here I am with third version of piclog, this time the theme is "Jeev-Jantu" :

I hope you would enjoy this piclog....


 An Indian leader, when we select him as MP or MLA, a clean and white image


 Judiciary system , can only watch and tell others to wait for justice

 A proud and caring mother....


 Aam aadmi, bole to sota hua sher ( a sleeping Tiger depicting a common man)






The same leader who we chose as MP or MLA, after some time....

Monday 23 December 2013

ट्रैफिक हवलदार, केले वाला और राजू


समय : शाम ४ बज कर १० मिनट
स्थान : पुणे शहर का एक प्रमुख चौराहा
पात्र: ट्रैफिक हवलदार, केले वाला और राजू


राजू तेज गति से अपनी धून में अपनी दुपहिया गाडी पे कानो में हैडफ़ोन लगाकर चला आ रहा था, सामने चौराहे पर लाल बत्ती होते ही तुरंत ब्रेक लगाकर जैसे ही साइड में खड़ा हुआ, एक सिटी कि आवाज़ और डंडे कि फटकार सुन कर उसने कान से हैडफ़ोन निकाले और देखा कि सामने खड़े ट्रैफिक हवलदार ने उसे सड़क के किनारे लगे पेड़ के निचे बुलाया है । राजू चुपचाप अपनी गाडी धकेलता हुआ जा पंहुचा उस हवलदार के पास।

लाइसेंस, इन्शुरन्स, गाडी के कागज और PUC  हर चीज मुकम्मल करके हवलदार बोला, रेड लाइट में ज़ेबरा क्रासिंग पे खड़ा था भाउ तू, चल चालान भर, ८०० रूपया लगेगा। राजू एक  सीधा साधा, और तुलनात्मक रूप से ईमानदार आदमी है, इसीलिए अपने सारे डाक्यूमेंट्स रेडी रखता है, आज तक जब भी पकड़ा गया है बिना पैसे दिए ही छोड़ा भी गया है, बिना कोई धौंस -डपट के।
राजू के कोई रिश्तेदार पुलिस में, सरकारी नौकरी में या राजनीती में भी नहीं है, ताकि वो कह सके कि "जानते भी हो किस से बात कर रहे हो तुम ?" या फिर अपना फ़ोन निकाल के किसी को फ़ोन लगा के कह ही सके कि तेरी बात करवाऊ S.P  साब से ? वो तो एक आम आदमी (AAP  वाला नहीं ) है।

फिर राजू ने पूछा कि कहा है ज़ेबरा क्रासिंग जिस पर में खड़ा था ? यहाँ तो कोई क्रासिंग नहीं दिखाई देता, तभी हवलदार ने अपनी आवाज़ में टाटा टी कि कडकनेस घोल के कहा "अब तू हमें ट्रैफिक रूल सिखाएगा ?, भाउ प्रेम से चालान कटवा ले नहीं तो खड़ा रह, मेरे को और भी काम है" (मतलब मेरे को और भी बकरे पकड़ने है ) .

कुछ जगहो पर हवलदारों के बड़े साब भी मौजूद होते है, अब अगर बड़े साब हो तो "कद्दू कटेगा, सब में बंटेगा" वाली कहावत चरितार्थ हो जाती है, इसीलिए हवलदारों ने चौराहो पे ठेलागाड़ी (रेड़ी ) लगा के बैठे फल वाले, चाट वाले अपने भाइयों को सेट करके रखा होता है। जैसे ही कोई "बकरा" बात चित शुरू करता है लेन -देन  कि तो हवलदार साब रकम फिक्स करके "बकरे" को कह देते है कि जाके केले वाले या चाट वाले को देदो और निकल जाओ।

हमारे राजू के केस में भी ऐसा ही कुछ था, राजू ने सोचा कि अब बात बिगड़ने से अछा है कुछ ले-देके मामला निपटाया जाये, उसने पहल करी, "सरजी ८०० तो बहुत ज्यादा है , इतने तो है भी नहीं मेरे पास, और अगर रसीद ना लेनी हो तो कितने लगेंगे ?"
इसी बात कि तो बाट  जोह रहे थे हवलदार बाबू, उन्होंने बिना कोई समय गंवाए राउंड फिगर में ५०० का प्रस्ताव रखा, इधर राजू भाई साहब ने अपना चमड़े का दबा कुचला बिल्कुल भारत देश के आम आदमी कि दशा को प्रदर्शित करता बटुआ अपनी जीन्स कि दाई पॉकेट से निकाला, खोला तो ढेर सारे छोटे बड़े कागजो, विजिटिंग कार्डो, ATM  स्लिपों के बीचोबीच १०० - १०० के २ और १०-१० के ३ नोट मिले, उसने हवलदार साब को अपना पर्स दिखाके विनती कि " सर अभी २०० में काम चला लो, अगली बार पकड़ो तो पुरे ले लेना" , हवलदार साब ने भी दरियादिली का परिचय देते हुए कहा, ठीक है जा  रोड क्रॉस करके सामने केले वाले को देते हुए निकल जा, में यहाँ से देख रहा हूँ उसको इशारा करता हूँ।

राजू पलक झपकते ही रोड के उस पार केले वाले कि दूकान पर खड़ा था, उस पार से हवलदार ने सिटी बजा के केले वाले को अपनी हथेली कि २ उंगलियां इस अंदाज में दिखाई जैसे कोई नेता अपनी विजय रैली में विक्ट्री सिम्बॉल दिखाता है। केले वाले ने भी अपनी मुंडी OKAY  SIR के अंदाज़ में हिला दी।

स्थान: रोड के दूसरी तरफ केले वाले कि दूकान
समय: शाम के ४ बजकर २० मिनट
पात्र : राजू, केले वाला और ट्रैफिक हवलदार

राजू: भैया वो साब ने २ दर्जन केले मंगवाए है। उनकी तरफ देखो वो शायद इशारा करेंगे।

केले वाला सिटी कि आवाज़ सुनकर  हवलदार कि तरफ देखता है, हवलदार २ का इशारा करता है। केलेवाला OKAY SIR कि मुद्रा में मुंडी हिला देता है।

राजू जाते जाते २ याने कि विक्ट्री का इशारा हवलदार कि तरफ करता हुआ अपनी तेज़ गति में, हेडफोन्स कानो में लगाये उस चौराहे से ओझल हो जाता है।

तात्पर्य, बईमानी का जवाब थोड़ी से बईमानी करके दिया जा सकता है और यह थोड़ी से बईमानी मेरे हिसाब से वाजिब है , आप क्या कहते है इस विषय पर ? आपके पास भी कोई ऐसी कि घटना हो तो साझा कीजिये। 



Tuesday 10 December 2013

Bollywood vs IT World

आईटी सर्विसेज में काम करते हुए आप इस क्षेत्र  के बारे में लिखे/बोले  बिना रह ही नहीं सकते, जैसे  मैं पहले भी आईटी सर्विसमैन और इसके जीवन में आने वाले कुछ मकाम के बारे में लिख चूका हूँ, अगर आपने नहीं पढ़ा हो तो अभी पढ़ सकते है यहाँ क्लिक करके !

वैसे आप फ़िल्म / टीवी तो देखते ही होंगे, और सोचते होंगे कि यह टीवी कलाकार और फ़िल्म स्टार कि लाइफ भी कितनी सही है, लेकिन आपको एक बात  बताउ ?? इनमे और हम IT वालो के काम में कुछ ज्यादा अंतर नहीं होता बस यह लोग कुछ ज्यादा टैक्स भरते है (करोड़ो में ) और हम लोग थोडा कम (हजारो में )। 

आप सोच रहे होंगे फालतू कि बकवास करता है, काम और कमाई दोनों ही अलग है इनकी हमसे, हैना ऐसा ही सोच रहे होंगे ना ? चलिए  कोई बात नहीं, वो क्या है कि हमे कोई बात जब एक्सप्लेन करके न बतायी जाये तो वो बकवास ही लगती है, हालांकि इसकी कोई ग्यारंटी नहीं है कि एक्सप्लेन करने के बाद भी बकवास न लगे, मसलन कोई क्लाइंट छोटा सा इ-मेल लिखे किसी issue के लिए तो हम उसको तुरंत reply करते है कि "kindly elaborate, and  give more details about  the issue " और जब वो डिटेल में मेल लिखता है तो भी हम कहते है कि "क्या बकवास है ?"

चलिए फिर आते है टीवी/फ़िल्म कलाकार और आईटी सर्विसमैन कि जिंदगी और उनके काम कि समानता पर , आपको एक्सप्लेन करता हूँ कि क्या समानता है दोनों के कामो में। 
आईटी में अगर आप हमेशा किसी न किसी इम्प्लीमेंटेशन प्रोजेक्ट्स पर ही काम करते है तो आप अपने आप को किसी  फ़िल्म कलाकार कि तरह समझ सकते है, क्योंकि जैसे फिल्मो कि शुटिंग कुछ ही महीनो में कम्पलीट हो जाती है वैसे ही  इम्प्लीमेंटेशन प्रोजेक्ट्स में होता है , कुछ ही महीनो में कोडिंग कम्पलीट। फिर फिल्मो में एडिटिंग, डबिंग का दौर चलता है वैसे ही प्रोजेक्ट में UT, UAT और बग फिक्सिंग का दौर चलता है, फिर एक फ़िल्म रिलीज़ हो जाती है और इधर प्रोजेक्ट कि भी  रिलीज़ हो जाती है।  फिर हीरो किसी और फ़िल्म कि शूटिंग में व्यस्त हो जाता है और आप किसी और प्रोजेक्ट या Module कि कोडिंग में व्यस्त हो जाते है, कभी कभी फिल्मो कि पार्टीज कि तरह प्रोजेक्ट्स कि भी पार्टीज होती है, तो भाई हुआ न सेम टू सेम, बन गए न आप हीरो। 

अब आप कहेंगे कि आईटी सर्विसेज में हर कोई इम्प्लीमेंटेशन प्रोजेक्ट्स में काम नहीं करता यहाँ सपोर्ट और मैन्टेनन्स के भी प्रोजेक्ट्स होते है जो कुछ महीनो के नहीं अपितु कई वर्षो तक के होते है, तो महाशय अगर आप किसी ऐसे प्रोजेक्ट्स पर भी काम कर रहे है जो सालो साल से चले आ रहे है, जहाँ सालो साल से एक जैसा काम काज, इक्का दुक्का लोग बदलते है परन्तु बाकी टीम वैसी कि वैसी है, तो आप अपने आप को कम से कम किसी टीवी आर्टिस्ट कि तरह तो समझ ही सकते है।  टीवी सिरिअल्स बिलकुल आईटी के सपोर्ट प्रोजेक्ट कि तरह होते है बहुत सारे, बहुत दिनों तक चलने वाले और सबकी एक जैसी कहानी।  टीवी एक्टर हमेशा चाहता है कि वो कभी फिल्मो में भी काम करे वैसे ही सपोर्ट के प्रोजेक्ट में काम करने वाला इंजीनियर हमेशा सोचता है कि कभी वो भी इम्प्लीमेंटेशन प्रोजेक्ट में काम करे।  जैसे टीवी सिरिअल्स में हर त्यौहार को बड़ी धूम धाम से भारी भरकम costumes के साथ मनाया जाता है,  ठीक वैसे ही मैन्टेनन्स प्रोजेक्ट्स में हर त्यौहार पर ट्रेडिशनल डे मनाया जाता है। आईटी सपोर्ट प्रोजेक्ट्स में बॉस और एम्प्लोयी का झगड़ा वैसा ही होता है जैसा सिरिअल्स में सास बहु का, सिरिअल्स में २ औरतें मिलकर जैसी गॉसिप्स करती दिखाई देती है बिलकुल वैसी ही गॉसिप्स एक ही प्रोजेक्ट में काम करने वाली २ लड़कियां करती हुयी मिलेगी। 

और जैसे इम्प्लीमेंटेशन में काम करने वाला इंजीनियर कभी न कभी तो सपोर्ट के प्रोजेक्ट्स में आता ही है भले ही मेनेजर बनकर वैसे ही बड़े से बड़ा फ़िल्म कलाकार कभी न कभी टीवी पर आता ही है भले ही होस्ट बनकर।  और इसका विपरीत भी होता है बहुत से काबिल और बड़े एक्टर टीवी कि दुनिया से आये है वैसे ही बहुत सारे  इंजीनियर सपोर्ट प्रोजेक्ट्स से निकल कर बड़े बड़े इम्प्लीमेंटेशन प्रोजेक्ट्स में आये है.
और जो इंजीनियर अपने इम्प्लीमेंटेशन प्रोजेक्ट को इस तरह से बर्बाद या बिगाड़ देते है की उन्हे दूसरा मौका नही मिलता और कोई और उन्हे किसी इंप्लिमेंटेशन प्रॉजेक्ट मे लेने को तैयार नही होता तो उनके लिए भी कुछ सपोर्ट प्रॉजेक्ट रहते ही है कंपनी में बिल्कुल वैसे ही जैसे टीवी पर बिगबोस !!!

तो देखा आपने, आईटी सर्विसेज और फ़िल्म/टीवी कि दुनिया एक जैसी ही है , हमे भी अपने आप को किसी  सलिब्रिटी से कम नहीं समझना चाहिए।

तो बोलो सब मिलके_ _ _ लाइट्स - कैमरा - एक्शन - कट -कॉपी - पेस्ट 

आपका क्या विचार है , या अब भी कहेंगे कि "क्या बकवास कर रहा है ?"

-------------------------------------------------------------फ़ोटो  इंटरनेट के सौजन्य से 

Monday 18 November 2013

Liebster Award


I don't see myself as an award winner at the very early stage of blogging or some people say it writing.

However Many thanks to Gunjan for nominating me for the Liebster Award. Its a great honor to receive this award from a fellow blogger!


Liebster Award is given to upcoming bloggers who have less than 200 followers. The word 'Liebster' is of German origin and means sweetest, kindest, nicest, dearest, beloved, lovely, kind, pleasant, valued, cute, endearing and welcome.

How does it work?

1.                   Link back to the persons blog who has nominated you and convey thanks for giving the award.
2.                   Answer all questions posted by the nominator.
3.                   Nominate 10 more bloggers whom you feel are deserving of more subscribers; you pass the award on to them.
4.                   Create 10 questions for the nominees.
5.                   Contact the nominees and let them know that they have been nominated for the Liebster Award!

Here are my responses to the questions posed by Gunjan:-

1) Why do you like most about blogging?
About Blogging I like that it gives you a platform to share your thoughts in a detailed way, it reaches to the specific audiences i.e. to those who really want to read something interesting. It is different than any other social network as while you blog you can enhance your artistic skills.

2) What do you dislike most about blogging?
Many people start blogging as passion, as their hobby, as they wanted to showcase their skills to others, gradually people make it their profession and only few people can keep Passion alive and they turned to be professionals by flooding their blogs with so many “How to”, “what to” blogs, which many times are repetitive. I dislike this thing that people forget the original motive.

3) How do you get blogging ideas?
There is only mantra behind getting ideas, “Always be alert, keep your eyes, nose and ear open” .
Actually I think that I am a good observer and while observing incidents, people and work around me I get ideas to write.

4) What did you want to be when you were a child?
Hahahahaha, this is a funny question to any adult living in his late twenties now. Each person grown up in 90s wanted to be a superman, yes he personally wanted to become something, then his mother wants something else, and suddenly father came and decide another profession, but after all, destiny takes him to a different stage.
My case is not different actually I wanted to become a Doctor till my class 10th, then an Army Officer, then I decided to become a physics scholar and researcher but then I found that god has written something for me in other profession and Finally I became IT Consultant or Software Engineer.

5) Which is your favorite book and why?
In today’s date my favorite book is “Shrimadbhagwatgeeta” and why, because every time when I read it, I do not get a single thing repeated. Each time I find something new, may be after my each reading the level of my understanding enhanced and I see the same thing in different direction.
 I request to all fellow bloggers to read it at least once, do not think that it is a religious book, it’s a philosophical book.
   

6) Of all the places you have ever been to, which one is your favorite and why?
Here I assume that the question is asked in terms of my residences in where cities then in that case my favorite place for living is Hyderabad, and why, because this city has it’s own pace of life, a royal pace, a charm of staying forever in the city. Even it is considered as a Metro city, it has its own share of calmness during usual business.
And if the question is about the tourist destinations which I visited and liked the most, then my answer is Gangtok, yes it is my favorite destination where I would like to go again and again or may be in my retirement age I would settle down there. I liked the people there, they are very nice, helping in nature, and you can see the same purity on most of the faces which you see on a new born baby.

7) Your biggest influence or role model is?
I do not have a fixed role model ever, at each stage of life I see role models around me, for example when I was in school then the topper of the class was my role model, I wanted to become like him, at the same time the football captain of school team was also my role model.
When I joined my profession, then I saw several skilled people around me who knew more than me about the skills where I am working so I made them my role model.
But being as a human being I always admire my Father, and wants to become a father, husband, son and human being like him.

8) What's your favorite genre of books?
I like Hindi humor, History, Fiction by Indian writers.

9) What time of the day is the most conducive for you to write?
Whenever an idea flashes in my mind, I put it on a notepad, and then whenever I find a little time during any part of the day, I write.

10) How do you overcome blogger/writer's block?
That I do not know how to answer!!!

Now my 10 Nominations for this Award are as under (hey guys please forgive me if you have already received such award and if I am spamming you)
  1. Kartikey Joshi (http://kartikeyjoshi.wordpress.com)
  2. Darshil Shah (http://thenationalistdigest.blogspot.in)
  3. Sreeram Manoj Kumar (http://memyinnerthoughts.blogspot.in/)
  4. Swati Maheshwari (http://cogitativeme.blogspot.in/)
  5. Altaf Hussain (http://altafphp.blogspot.in/)
  6. Richa Shukla  (http://prathamprayaas.blogspot.in)
  7. Maitreyee Bhattacharjee Chowdhury (http://jumble-rumble-thoughts.blogspot.in/)
  8. Suresh Chandrasekaran (http://www.jambudweepam.blogspot.in/)
  9. Pankaj Kumar ( http://behtarlife.blogspot.in/)
  10. Madhusha http://madhushadash.blogspot.in/  



And My 10 questions for the awardees are :


  1. Write a unique thing about you which are reflected in your blogs.
  2. Hindi or English, chose one and why?
  3. What is the craziest thing you done in your school life? ( I hope you have been to school… lolzz, joking)
  4. What is the Dish which you can cook and serve with confidence to the guests arrived in emergencies?
  5. If your spouse (or to be) hates your writing, and do not want you to write, what will you do and why?
  6. If you had a chance to be PM of India for a day, what are 5 major decisions you would take?
  7. Who/what influenced you for putting your thoughts on paper?
  8. What is your favorite movie character you relate yourself with?
  9. Do you have set any targets for your blogging? If yes what kind of targets?
  10. Your thoughts about Life and Love.

Thursday 12 September 2013

Future of India....भारत का भविष्य




दोस्तो आज कल जहा देखो वहाँ राजनैतिंक चर्चाएँ होती दिखाई दे रही है, हर कोई कॉंग्रेस, BJP की बातें करता मिलता है, लोगो को राजनीति मे इतनी रूचि पहले कभी नही हुई होगी जितनी अब हो रही है|
आजकल तो बच्चे भी चोर-पोलीस का खेल ना खेल के के कॉंग्रेस-बीजेपी का खेल खेलने लगे है.

अभी कुछ दीनो पहले मेरे 7 साल के भतीजे ने मुझ से पुछा की चाचा अगले साल चुनाव है और अगर फिर से कॉंग्रेस जीत गयी तो हमारा प्रधान मंत्री हमारे जैसा होगा, है ना? मेने पूछा बेटा वो कैसे? तुम्हारे जैसा कैसा होगा? तो वो तपाक से बोला की हमारी टीचर कहती है की अगर कॉंग्रेस जीती तो राहुल गाँधी हमारा प्रधानमंत्री होगा और वो बिल्कुल हमारे जैसा है, उसे भी पोगो चेनल पे छोटा भीम देखना अच्छा लगता है, वो उसकी मम्मी की आगे पीछे ही घूमता रहता है, मम्मी के मना करने पर भी बाहर दूसरे लोगो का दिया हुआ खाना खा लेता है, इसलिए वो हमारे जैसा ही हुआ ना…..??
 में क्या कहता, मेने कहा हाँ बेटा, वो तुम्हारे जैसा ही है|
अब उस नन्हे से बचे को कैसे कहे की वो तुमसे भी गया गुज़रा है….
परंतु इस बात ने मुझे यह सोचने पे विवश कर दिया की अगर सच मे अगली सरकार फिर से कॉंग्रेस की बन गयी ( जो की होना संभव है), और सच मे राहुल गाँधी प्रधानमंत्री बन गया तो देश का क्या द्रश्य होगा??



सबसे पहले तो जैसे माँ ने उसका सपना पूरा किया फुड सेक्यूरिटी बिल लाकर, वैसे बेटा अपना सपना पूरा करेगा एक बहुत ही महत्वाकांक्षी योजना, “वाइफ सेक्यूरिटी बिल” लाकर|
जी हाँ, देखिए अब यह लोग कहते है की देश मे 67 करोड़ जनता ऐसी है जिसे पेट भर खाना नही मिलता तो यह लोग फुड सेक्यूरिटी बिल ले आए, अब देश मे अगर लिंग अनुपात की चर्चा करे तो यह भी बहुत कम है 1000 पुरुषो पर 940 महिलाएँ, याने की  6% पुरुष बेचारे ऐसे है जो विदाउट वाइफ बिताते है अपनी लाइफ.
बेचारे राहुल गाँधी जैसे ही कितने पुरुष होंगे जो 40 की उमर पार कर गये परंतु अब तक वाइफ नही मिली, इसीलिए राहुल बाबा का सबसे बड़ा सपना ये ही है, संसद मे वाइफ सेक्यूरिटी बिल को कैसे भी करके पास करवाना, ताकि उनके जैसे कई पुरुष जो बगैर वाइफ के जीवन बसर कर रहे है उन्हे भी घर बसाने का मौका मिले.
अब आप पूछेंगे की  इस बिल को लागू( इंप्लिमेंट) कैसे करेंगे, तो मित्रो जैसे फुड सेक्यूरिटी बिल लागू होगा वैसे ही यह भी हो जाएगा.
ज़्यादा कुछ नही कर पाए तो वेट्रेस इम्पोर्ट करवा लेंगे इटली से…..


राहुल बाबा के दीमाग मे और भी काई योजनाएँ कुलबुला रही है जिन्हे वो जल्द से जल्द लागू करवाना चाहते है जैसे की:
१. दूरदर्शन को बंद कर के पोगो चैनल को राष्ट्रीय चैनल घोषित किया जाए|
२. कौन बनेगा करोड़पती मे सारे सवाल वही पूछे जाए जिनका जवाब राहुल बाबा को पता हो, मतलब KBC के प्रतियोगियों और MTV Roadies के प्रतियोगियों मे कोई अंतर नही रहेगा|
३.हमारे देश मे बिकने वाले सारे शब्दकोषों ( Dictionaries) से भ्रष्टाचार, ग़रीबी, अपराध, बलात्कार, आतंकवाद और काला पैसा जैसे शब्दो को हटाया जाएगा, और अगले 15 August के भाषण मे दावा किया जाएगा की हमने ऐसी तमाम चीज़ो को देश से हटा दिया है जो देश की तरक्की मे बाधक है|
४. पप्पू नाम के लोगो के लिए विशेष अवॉर्ड घोषित किए जाएँगे, अवॉर्ड लेने के लिए आपको अपनी कक्षा 5वीं की मारक्शीट दिखानी पड़ेगी जिसपे आपका नाम पप्पू अंकित होना चाहिए|
५. विशेष क़ानून बनाया जाएगा उन लोगो के लिए जो फ़ेसबुक पर पप्पू जोक्स शेर करते है|
६. राहुल बाबा को मोदी से बहुत डर लगता है, वो सोच रहे है की अगर प्रधानमंत्री बन गया तो सबसे पहले मोदी से कैसे निपटा जाए, उसके लिए मास्टर प्लान है राहुल के पास, वो गुजरात को एक अलग “देश” का दर्जा देने वाले है और फिर मोदी को इंडिया का वीज़ा नही देंगे, इससे कॉंग्रेस की 2 बड़ी समस्याएँ हल हो जाएगी, एक तो पाकिस्तान की आधी बॉर्डर गुजरात शेयर करेगा, और दूसरी बड़ी समस्या मोदी|
बहुत ही क्रांतिकारी सोच है भाई,.... नही?
७. पहली एप्रिल को विश्व पप्पू दिवस मनाया जाएगा|
१०. पप्पू भाई साब यह भी सोच रहे है की सारे उत्तर-पूर्वी राज्यो (नॉर्थ-ईस्ट स्टेट्स) को Join कर दिया जाए और एक संयुक्त राज्य बना दिया जाए , आप कहेंगे की कितना नेक ख़याल है बंदे का, पर इसके पीछे कारण यह है की इनको सारे स्टेट्स का नाम तक नही पता है, कोई पूछ ही ले तो क्या कहेंगे??

ऐसे ही और कई नेक ख़याल इनके दिल मे घर कर बैठे है जो यह देश के राजकुमार इस देश मे इंप्लिमेंट करना चाहते है…

कुछ आपको पता हो तो बताईए !!
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Monday 2 September 2013

भारत की न्याय प्रणाली


कुछ दीनो पहले मेने एक हिन्दी फ़िल्म देखी थी “स्पेशल 26”, जिसमे असली वाली CID के मनोज वाजपयी और लूट जाने वाले जौहरी सेठ के बीच एक संवाद है जिसमे मनोज वाजपयी कहते है की “ सेठ जी, हमारे देश मे जुर्म सोचने की सज़ा नही मिलती, जुर्म करने की मिलती है और वो भी तब जब सबूत हो”


यह संवाद सुन के मेरे मन मे आया की अगर ऐसा सच मे होता की इंसान के अपराध  सोचने भर से ही उसको पकड़ लिया जाता और सज़ा सुना दी जाती तो कैसा होता हमारा देश?

वैसे आप कहेंगे की क्या फालतू की बकवास है, ऐसा कैसे संभव हो सकता है? तो दोस्तो, ऐसा हो सकता है, सोचिए अगर हमारे यहाँ हर इंसान के पैदा होते ही उसके दीमाग मे एक चिप लोड कर दें जो की उसके सोचने समझने की प्रणाली(nervous system) को नियंत्रित करती हो, चिप के प्रोग्रामिंग IPC की धाराओं के हिसाब से इस तरह हो की अगर व्यक्ति ने सोचा की में फलाँ फलाँ व्यक्ति को मार दूँगा तो तुरंत धारा 302 वाला signal activate हो जाएगा और निकटतम पोलीस स्टेशन पर उस व्यक्ति के ID नंबर के साथ अलार्म बज जाएगा, बस पोलीस वाले अपना काम शुरू कर देंगे और अपराधी सोच वाला व्यक्ति  पुलिस  की निगरानी में आ जायेगा।
विज्ञान  के इस युग मे सब कुछ संभव है, तो ऐसा भी हो सकता है एक दिन.
तो पाठकों (readers)  सोचिए की अगर ऐसा हो जाए, की इंसान के अपराध सोचने भर से ही उसके मोबाइल फोन पर उसको  चेतावनी मिल जाए की “एक बार अपराध सोच तो लिया है अब दोबारा से मत सोचना”. ऐसे मे हमारे देश मे बढ़ते हुए कितने अपराध नियंत्रित हो जाएँगे?

किंतु एक समस्या भी है,  कई  सारे निर्दोष लोग  बे-वजह फँस जाएँगे, जो बेचारे सिर्फ़ अपने दिल की खुशी के लिए किसी अपराध के बारे मे सोचते है, करते कभी नही,, जैसे आज के परिद्रश्य(Situation) की बात करे और  ऐसी प्रणाली प्रभावी हो जाए तो देश की आधी से ज़्यादा जनसंख्या “गाँधी” परिवार के विरुद्ध  "सोचने" के अपराध मे जेल मे होगी, ये ही नही, हमारे देश के कई मेधावी (Brilliant) अभियांत्रिकी (Engineering) स्वस्थ युवा पुरुष की श्रेणी मे आने वाले छात्र जो बेचारे सिर्फ़ सोच ही सकते है, वो सबसे ख़तरनाक धारा के लपेटे मे आ जाएँगे ( धारा 376).

इस अपराध सूचक प्रणाली का असर सीधा हमारे देश के नागरिको की सोच पर होगा और जब सोच बदलेगी तो देश तो अपने आप बदल जाएगा| किंतु फिर एक समस्या है, ऐसे कई अपराध सूचक यंत्र तो आज भी देश मे है, आज भी  देश मे कठोर कानून व्यवस्था है। सुचना का अधिकार है, CBI है, दुनिया भर की एजेंसीज है,
परंतु जो सबसे ज़्यादा बड़े अपराधी है, हमारे नेता गण जो की अपने आप को किसी भी अपराध नियंत्रण प्रणाली से ऊपर समझते है वो यहा भी बच निकलेंगे. और दूसरी समस्या यह है की आज की हमारी पोलीस जो की अपराध “करने” वालो को ही नही पकड़ सकती, और पकड़ भी ले तो उन्हे सज़ा नही दिला सकती तो सोचिए वो पोलीस अपराध “सोचने” वालो को क्या खाक पकड़ेगी…..

अभी के ताजा उदाहरण (Delhi Gang Rape Juvenile verdict, Aasaram Bapu case)इस बात के प्रमाण है की हमारी न्याय प्रणाली कितनी खोखली है, हमारा संविधान जो की कई दुसरे देशो के संविधान का Copy Paste है कितना कमजोर है, हमारे देश में अगर ताकतवर है तो बस राजनैतिक लोग जो जब भी मन में आये तब कानून, संविधान, नीतियां बदल लेते है और सिर्फ आम आदमी के विरुद्ध इन्हें उपयोग करते है।

में आप सभी के भी विचार जानना चाहूँगा, की आज की कानून व्यवस्था हमारे देश के अपराधिक मनोविज्ञान से निपटने में कारगर है ? हमारा देश जो की प्रजातान्त्रिक देश है क्या कानून बनाने के समय हमारी राय नहीं ली जानी चाहिए ?

Friday 14 June 2013

हिन्दुस्तान मे गूगल ग्लास

 इस संसार मे भगवान के अलावा एक और चीज़ है जो की सर्वव्यापक है, कण कण मे है, हर एक इंसान के विश्वास मे है, यहाँ तक की नास्तीको के दिलो मे भी उसीका राज है और  वो है “गूगल”.

गूगल सिर्फ़ एक कंपनी का नाम नही है बल्कि यह इस पापी दुनिया मे कुछ लोगो के लिए जीने का एक सहारा है….

इस मायावी संसार मे कई सारे अत्याचार हम निर्दोष प्राणियों पे होते है जिनसे बचाने मे गूगल की जो सहायता हमे मिलती है वो नज़रअंदाज नही की जा सकती है, कभी कभी तो मुझे लगता है की भगवान विष्णु का दसवां अवतार गूगल के रूप मे ही हुआ है|

हम आय टी प्रोफेशनल्स की प्रजाति मे कई लोग ऐसे होंगे जिनके लिए गूगल के बिना दिन गुज़ारना मानो किसी महिला के लिए बिना कोई सीरियल देखे दिन गुजारने के बराबर है|
चलिए गूगल की महिमा को आगे बढ़ाते हुए अब बात करते है गूगल के नये आविष्कार “गूगल ग्लास” की। 
अभी यह नया शिगूफ़ा गूगल ने बाज़ार मे पूरी तरह से उतारा भी नही की इस पर सारी दुनिया मे बहस शुरू हो गयी इसके नुकसान और फायदो के बारे मे… खैर छोड़िये यह तो हमारी दुनिया की फ़ितरत है|









आपको बता देना उचित होगा की गूगल ग्लास एक ऐसा औज़ार है जो की चश्मे के रूप मे एक चलता फिरता, अच्छे से काम करता कंप्यूटर, वीडियो रेकॉर्डर, कॅमरा, दूरबीन और भी ना जाने क्या क्या है …..
कहते है की इसे लगा के देखने से सामने जो नज़र आता है उसकी सारी जानकारी भी तुरंत डिस्‍प्‍ले हो जाती है और आप चाहे जिसका फोटो खींच सकते है उसकी रेकॉर्डिंग कर सकते है बिना सामने वाले को पता पड़े.....वाह भाई कमाल की चीज़ है, पर ज़रा गौर फरमाने की बात यह है की अगर यह चश्मा हिन्दुस्तान मे लॉंच हुआ तो इसके क्या क्या नफे-नुकसान होंगे सोचा है आपने? 
आईए आप और हम मिलके इन बातो पे चर्चा करते है दुनिया वाले तो कर ही रहे है फिर हम क्यों पीछे रहे|

सबसे बड़ा नुकसान तो बेचारे हमारे लैला-मजनुओ को होगा जो यहाँ वहाँ गाना गाते फिरते है “खुल्लम-खुल्ला प्यार करेंगे हम दोनो”, पता नही कब, कहाँ, कौन रेकॉर्डिंग करके घर पहुचा दे, या “गूगल” के ही एक और औजार "यू ट्यूब" पे डाल दे। 


हिन्दुस्तान मे कुछ कुछ जगहो पे बड़े बड़े साइन बोर्ड्स पे छोटे छोटे अल्फाज़ो मे लिखा होता है “ यहा फोटोग्रफी करना सख़्त मना है”. गूगल ग्लास के आने के बाद “सख़्त” थोड़ा नर्म हो जाएगा, और अगर हमारे सेक्यूरिटी वाले संतरी लोगो को इस अनोखे चश्मे के बारे मे जैसे तैसे थोडा बहुत  पता भी होगा तो आपके बॅग्स, पर्स, पॉकेट्स के अलावा आपका चश्मा भी उतरवा लेंगे।  ऐसे मे बेचारे सीधे सादे से दिखने वाले  नज़र के चश्मे पहनने वाले लोगो को कितनी मुसीबतो का सामना करना पड़ेगा सोचिए जरा । 

जैसा की आप  जानते है यह चश्मा सामने वाले की सारी डीटेल्स डिसप्ले कर देता है, सोचिए हमारे रंगीन मिज़ाज प्यारेलाल साहिब अपनी ऑफीस वाली माशुका के साथ कॉफी पी रहे है, और कॉफी शॉप के नज़दीक से   भाभी जी  याने प्यारेलाल साहिब की बीवी गुजर रही हो और अचानक उनके चश्मे की स्क्रीन पे मेसेज आता है “Pyarelal is having coffee with Teena"……आगे का अंजाम तो आप खुद ही सोच सकते है, समझदार है|



सिर्फ़ प्यारेलाल ही नही किसी भी साधारण स्वस्थ पुरुष के साथ यह दुर्घटना घट सकती है, फर्ज़ कीजिए आपके चश्मे की रेकॉर्डिंग ऑन है और आपको पता नही है, आप मज़े से अपने आसपास के रंगीन नज़ारो को घूर घूर के देखे जा रहे है, पूरे स्वाद के साथ, चटखारे लेके, शाम को आपके चश्मे की वही रेकॉर्डिंग आपकी बीवी या माशुका देखती है फिर आपके चटखारो की आपको क्या कीमत चुकानी होगी अंदाज़ा लगाना ज्यादा मुश्किल नही है। 


यह भी हो सकता है की आप अपनी गर्ल फ्रेंड या बीवी के साथ मार्केट मे घूम रहे है और चश्मे की स्क्रीन पे सारे मार्केट की दुकानो पे जो “सेल” या ऑफर चल रहा है उसकी डीटेल्स धड़ा-धड़ आ रही है और  इधर  आपका क्रेडिट कार्ड धड़ा-धड़ स्वाइप हो रहा है..। 


कल्पना कीजिए आप अपनी गाड़ी से कही जा रहे है और अगले चौराहे पे ट्रॅफिक हवलदार आपको रोकता है और बदक़िस्मती से आपके पास गाड़ी का कोई ज़रूरी कागज नही है और हवलदार चढ़ बैठा, घबराने की कोई बात नही, आपने गूगल का जादुई चश्मा पहना है और रेकॉर्डिंग ऑन है, बस हवलदार साहिब मोल-भाव करना शुरू करते है, आप रेकॉर्डिंग को मोबाइल मे ट्रान्स्फर करके साहिब को दिखाते है और हवलदार जी  से सलामी ठुकवा के निकल पड़ते है, मुमकिन है साहब | 

ऐसे ही बेचारे ट्रॅफिक हवलदार, सरकारी ऑफिसर्स, क्लर्क्स, पोलीस वाले भैया लोग सब के सब हमारे चश्मे वाले भाइयों से कितना डरने लगेंगे सोचिए ज़रा…


शायद भ्रष्टाचार रूपी राक्षस से लड़ने मे भी गूगल का यह औजार हथियार बनके हमारे काम आजाए, क्या पता हमारे देश की एकॉनमी थोड़ी सुधार जाए इसीलिए तो मेने पहले ही कहा था की गूगल ही वो सूपर नॅचुरल शक्ति है जिसको हम भगवान के अवतार के रूप मे देख सकते है……

अब आप क्या सोचते है इस जादुई चश्मे के बारे मे??? 

Wednesday 26 December 2012

IT Serviceman

IT सर्वीसेज़  मे काम करने वालो का जीवन बड़ा ही मस्तिभरा, ऊर्जायुक्त और रंगीन होता है, ये लोग बड़े ही मस्तीखोर, पार्टी करने वाले और बहुत पैसे कमाने वाले होते है, IT वालो को क्राउड भी बड़ा हसीन मिलता है साथ काम करने को........

 यह सब बातें में नही बोल रहा,  वो लोग बोलते है जो IT में  नही है.....और  थोड़ी बहुत बातें virtually True भी है,

 पर रंगीन जीवन???? ....मेनफ्रेम्स और यूनिक्स पे काम करने वालो से पुछो कितना रंगीन होता है? उन लोगो को तो सपने भी काली स्क्रीन की तरह काले काले ही आते है। 

मस्तिभरा जीवन ?? ...नाइट शिफ्ट मे काम करने वालो से पुछो तो सही की रातें कितनी मस्तिभरी और हसीन गुजरती है उनकी, सारी रात  कंप्यूटर के सामने ऊँघते  रहो  और अगर कोई समस्या आ जाये तो अगला दिन भी गुले-गुलज़ार हो जाता है , 

और रही बात बहुत सारे पैसे कमाने की तो भाई सच है, पैसे तो हम अपने कॉलेज जमाने की पॉकेट मनी की तुलना मे कुछ ज़्यादा ही कमाते है पर इतना भी ज़्यादा नही की मेट्रो सिटी के खर्चो को सहन कर पाए, कोई कुँवारा  IT प्रोफेशनल बेचारा 10 बार सोचता है शादी करने से पहले, की घर चला पाऊँगा या नही, अभी तक Shared  मे रहता था तो किराया पूरा पड़ जाता था अब अकेले देना पड़ेगा, इसी तरह की हज़ारो बातें सोचनी पड़ती है......तब जाके कही शादी जैसे बहुत बड़े एडवेंचर के लिए अपना Mindset  बना पाता  है ...

 अब आख़िरी बात हसीन लोगो के साथ काम करने की तो वो तो भाई कंपनी वाइज़, सिटी वाइज़ और प्रॉजेक्ट वाइज़ सीन बदलता रहता है, अधिकांश ऐसा होता है की आप की टीम मे अगर कोई हसीन बाला है तो आपके पास इतना समय ही नही होता की आप नज़रे उठा के उनके सौदर्य की मदिरा को अपनी आँखो के प्याले मे डाल सके, असंभव सा प्रतीत होगा... और अगर ऐसा है की आप के पास कुछ ज़्यादा ही समय है तो भी चक्षुओ के प्याले खाली ही रहेंगे क्योंकि आपका भाग्य ही कुछ इस तरह की क़लम और स्याही से लिखा गया है की आप के नैनो को सिर्फ़ १४" का मॉनिटर ही नसीब होगा और eye  drops की ४ बूंदे........... वैसे हर जगह हर परिस्थिति मे अपवाद(Exceptions) तो आपको मिलते ही रहेंगे.

बहरहाल बात यहाँ करते है पैसे की, काम की, तो बेचारा IT सर्विस वाला बंदा कभी भी एक जगह खुश नही रह सकता, आजकल पत्नीव्रता पति नही मिलते तो कंपनी व्रता  employees कहा मिलेंगे, एक कंपनी से दूसरी मे, दूसरी से तीसरी मे, बेचारे का जीवन बंजारो की तरह होता है, हर बार बेहतर क्राउड की उम्मीद लिए, बेहतर मैनेजर  की उम्मीद लिए, या थोड़े और अच्छे क्वालिटी के काम की उम्मीद लिए बदलते रहो, कंपनी बदलने का ऊपरी कारण कोई भी हो, मूलभूत कारण तो पैसा ही होता है... बिल्कुल भट्ट कॅंप की मूवीस की तरह, स्टोरी लाइन कुछ भी हो, कलाकार कोई भी हो, बेसिक थीम सेक्स ही होती है....



 जब एक लड़की अपने पुराने  बॉयफ्रेंड  को “डंप” करके नया बनती है तो इसका मतलब यह नही होता की पुराना सब ख़तम, इन्स्टेंट्ली तो नही कम से कम, और आगे भी जीवन भर पुराने से नये की तुलना होती रहती है जब तक की नया वाला फिर पुराना नही बन जाता,  यही हाल कंपनी चेंज करने पर होता है, जब हम एक कंपनी बदल के दूसरी मे आते है तो भी हमें चैन नही, यहाँ आकर के भी पुरानी वाली को भूलते नही ।

मनुष्य का दीमाग बड़ा ही विचित्र है,  .....अब तुलना किए बगैर तो रहा नही जाता, वहाँ ऐसा होता था, यहाँ ऐसा होता है, वहाँ तो यह भी मिलता था यहाँ नही मिलता, वग़ैरह वग़ैरह...

बेहतरी की तलाश मे हम बस भटकते रहते है ...... अपना आशियाना तक नही बसा पाते.....और सच तो यह है की ऐसा कुछ Exist  ही नही करता है बाहरी दुनिया मे जिसे हम बेहतर कह सके, जो भी है अपने भीतर की दुनियाँ मे है, बस खूद को एक बेहतर इंसान बनाने की कोशिश कर लो, जीवन खूद-ब-खूद बेहतर होता चला जाएगा ......

कृपया ध्यान रहे: उपर लिखी गयी सारी बातें एक नर मानव के दृष्टिकोण से लिखी गयी है, हो सकता है मादा मानव का दृष्टिकोण थोड़ा अलग हो....

देश भक्ति

  देश भक्ति , यह वो हार्मोन है जो हम भारतियों की रगो में आम तौर पर स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस  या भारत पाकिस्तान के मैच वाले दिन ख...