Friday, 20 March 2015

स्मार्टफोन की लत


स्मार्टफोन पर सोशल मिडिया की लत, इस विषय पर अब तक बहुत कुछ लिखा पढ़ा जा चूका होगा। कईं सेमिनार हो चुके होंगे, ब्रिटेन के किसी होनहार ने कोई रिसर्च पेपर तक प्रदर्शित कर दिया होगा। परन्तु इस लत को  IIN और एयरटेल वाली लड़की के सिवा किसी ने जिंदगी जीने की लठ (छड़ी)साबित नहीं किया होगा।

आप में से कितने ही लोग ऐसे होंगे जिन्हे कभी न कभी फेसबुक/स्मार्टफोन की लत लगी होगी या अभी भी है ? एक बात बता दू आपको कि यह लत किसी भी प्रकार की अन्य लतो की तुलना में जितनी ज्यादा खतरनाक है उतनी ही गुणकारी भी। आपको अगर शराब या सिगरेट या दोनों की लत है तो आप दिन में कितनी बार पीते होंगे ? सिगरेट ४ बार या  ६ बार , शराब  १ बार या २ बार , गुटखा खैनी मुश्किल से दिन में २ बार। माफ़ कीजियेगा अगर यह आंकड़े आपकी पर्सनालिटी पर खरे न उतरे। परन्तु अगर आपको फेसबुक या व्हाट्सऐप की लत लगी हुयी है तो जनाब पूछिये ही मत। दिन में १००-१०० बार आप फेसबुक या व्हाट्अप खोल खोल के देखेंगे बिलकुल वैसे ही जैसे पुरातन समय में पहले प्यार में पागल इंसान अपनी माशूका या माशूक़ के पुराने मेसेजेस(SMS ) भी बार बार पढता था। आजकल तो पहला वाला प्यार ही बार बार हो जाता है, यह अलग बात है की हर बार माशूका/माशूक़  बदल जाती है।




परन्तु अगर आप "बी-पॉजिटिव" वाले नजरिये से देखे तो यह लत कईं मायनो में समाज की दशा सुधारने की दिशा में बहुत ही कारगर सिद्ध हो सकती है।कैसे , यह जानने के लिए चलते है रोहित के घर।

 रोहित को जब भी उसके पिताजी डांट लगाते है तो वो चुपचाप उठकर अपने कमरे में जाके अपना लैपटॉप खोलकर बैठ जाता है। तुरंत फेसबुक पर स्टेटस अपडेट करता है "फीलिंग इरिटेटेड", उसके बाद धड़ाधड़ कमेंट्स आने शुरू हो जाते है, लोग बाग़ सोशल मीडिआ पर दिल खोलकर अपनी सांत्वना प्रकट करते है जिस से रोहित का मूड फ्रेश हो जाता है। 
वहीं अगर यह पुराने जमाने का रोहित होता तो या तो घर छोड़कर ही चला जाता या फिर अपने किसी नालायक दोस्त के पास जाकर अपना दुखड़ा सुनाता। बदले में वो दोस्त कुछ न कुछ "उलटी पट्टी" पढ़ा ही देता।

एक और उदाहरण लेते है अपने दीपू का, दीपू को उसकी गर्लफ्रेंड ने सिर्फ इसलिए छोड़ दिया था क्योंकि दीपू ने उसे पिछले नौ दीनो में एक भी सरप्राइज नहीं दिया था। दीपू का दिल टूट चूका था, एकदम उदास दीपू घर आकर अपने स्मार्टफोन से फेसबुक पर स्टेटस डालता है "फीलिंग ब्रोकन " बदले में उसको ढेरो सांत्वनाएं ही नहीं मिलती बल्कि एन्जेल प्रिया और सिमरन बेब  जैसी ढेरो खूबसूरत लड़कियों के प्रपोज़ल  भी आ जाते है। इसी ले साथ दीपू के प्रेम प्रसंग का सिस्टम रिबूट हो जाता है। अगर यहाँ भी पुराने जमाने का दीपू होता तो सीधा "अल्ताफ राजा" या "पंकज उधास" बन कर "मयखाने" की ओर दौड़ लगाता और खुद को नशे की लत लगा बैठता।


 यही नहीं आजकल व्हट्सऐप की नयी लत लगी है अपने दोस्तों को। वो भी बहुत फायदेमंद सिद्ध हो रही है। आपको अकेले बैठे बैठे बोरियत हो रही हो तो तुरंत आपका कोई दोस्त या ग्रुप मेंबर एक धांसू चुटकुला भेज देता है या कोई "फ़िल्मी गाना बताओ" करके पहेली भेज देता है तो आपका समय बड़ी आसानी से बर्बाद व्यतीत हो जाता है। यही नहीं अगर आप पत्नी से पीड़ित है और बुरी तरह से मन व्यथित है तो भी आपके कईं दोस्त आपको "पत्नी पीड़ित स्पेशल" जोक्स भेजते रहेंगे जिन्हे पढ़कर आप हल्का महसूस करेंगे।

तो देखा आपने किस तरह से सोशल मीडिआ की इस लत ने हमारी युवा पीढ़ी को न केवल बुरी संगतो से बचा के रखा है बल्कि कईं दूसरी भयानक लतो से भी दूर रखा है ।

किन्तु एक बात सामने आयी है कि ज्यादातर पत्नियां अपने पति की इस व्हाट्सएप या फेसबुक की लत से खफा हो जाती है। उन्हें मैं समझाना चाहता हूँ कि देखिये आपके पति आपके पास ही बैठे है, अपने दोस्त के साथ बातें कर रहे है वो भी बिना कुछ बोले चाले एक दम "म्यूट" अवस्था में। सोचिये आपका कितना बड़ा फायदा है इसमें , एक तो वो कहीं बाहर जाकर अपना मूह काला मूड फ्रेश नहीं कर रहे और दूसरा उनके कोई दोस्त यार आपके घर आके धमाल नहीं मचा रहे ;और इन सबसे बड़ी बात आप अपने पति की गोद में लेटकर बड़े इत्मीनान से "यह रिश्ता क्या कहलाता है"  या "ससुराल सीमर का"   जैसे बेहद ही घटिया उम्दा  सीरियल का लुत्फ़ ले सकती है। इतनी सारी चीजों  के साथ साथ अगर गलती से आप रूठी भी तो बेचारा पति उसी स्मार्टफोन से आपके लिए कुछ न कुछ गिफ्ट भी आर्डर कर देता है। तो देवियों आप के पति का फ़ोन आपका दुश्मन नहीं, सबसे अच्छा दोस्त है।

तो साथियों स्मार्टफोन की लत कतई बुरी बात नहीं है अपितु इसके सहारे कईं लोग अपनी  जिंदगी के कृत्रिम असली मज़ो का लुत्फ़ उठा रहे है। 





सभी चित्र गूगल इमेज सर्च के सौजन्य से


Monday, 9 March 2015

परीक्षा की तैयारी


मार्च का महीना, फागुन की बयार, क्रिकेट का सीजन और पहला पहला प्यार लेकिन इन सब पर बैरन परीक्षा की मार।

अगर आप यह लेख पढ़ पा रहे है(मतलब अगर आप पढ़े-लिखे है) तो उपरोक्त पंक्ति को आप अच्छे से समझ पा रहे होंगे(मतलब कभी कोई परीक्षा दी ही होगी)। परीक्षाओ का मौसम चल रहा है। २०-२० क्रिकेट भी चालु है और अभी अभी बसंत बीता और फागुन आया है।  परीक्षा जैसी मनहूस चीज के लिए ऐसा समय जिसने भी चुना वो बड़ा ही नीरस किसम का इंसान रहा होगा। खैर छोड़िये, बात करते है परीक्षा की तैयारियों की। विशेषकर हमारे जमाने(90s) की तैयारियों की। जैसे जैसे परीक्षा नज़दीक आती थी, वैसे वैसे दिलो-दिमाग की हालत उस दूल्हे जैसे होने लगती थी जो आज ही ब्याहने जा रहा हो।  परीक्षा के बाद मिलने वाली गर्मी की छुट्टियों की खुशियां तो मन में रहती ही थी साथ ही बालको को फ़ैल होने का और कन्यायों  को १००/१०० न ला पाने का डर भी रहता था।

परीक्षा शुरू होने से कुछ ही दिनों पहले जैसे ही प्रिपरेशन लीव पड़ती थी  हम बनाते थे  एक "टाइम-टेबल ", चिपकाते थे उसे वहां जहाँ हमारी नजर बार बार पड़े। और ये टाइम-टेबल कुछ इस तरह से होता था :

सुबह ५ बजे उठना और थोड़ी सी खिट -पिट करके जता देना की हाँ उठ गए है।  ५ से ७ पढ़ना या लाइट जाने का इन्तेजार करना, जैसे ही लाइट जाये तुरंत सो जाना। ८-९ बजे उठकर घरवालो को बताना की कैसे आज ४ बजे से ७ बजे तक पढ़ाई करी। फिर नहाना -धोना(अगर मूड हुआ तो), खाना पीना और दोस्त के घर पढने जाना और वहां जाकर क्या पढ़ना यह आपको अच्छे से पता है। दोस्त के घर से सीधे ट्यूशन जाना। ट्यूशन पर थोड़ा पहले पहुँचना और "उसका" इन्तेजार करना।वो आ जाये तो क्लास ख़त्म होते ही उससे बात करने की फिर एक आखिरी नाकाम कोशिश करना।

स्कूल में हो न हो ट्यूशन में हमारी अटेंडेंस शत प्रतिशत रहती है। हर रोज इसी आस में जाते है कि आज तो बात कर लूंगा, हालांकि अक्सर ऐसा करते करते साल गुजर जाता है और बात वहीं रह जाती है।  घर आके मूड फ्रेश करने का कह के थोड़ा खेलना उसके बाद जहां सुबह किताब बंद हुयी थी वहीं से आगे बढ़ने की "कोशिश" करना। कईं बार किताब का एक पन्ना एक तनहा जिंदगी जैसा लगता है, जो आसानी से गुजरती नहीं। खैर थोड़ा पढ़ के खाना खाके फिर मूड फ्रेश करना पड़ता है टीवी देख कर। अब चूँकि सुबह जल्दी उठना है तो जल्दी सोना पड़ेगा।

यही सब करते करते आ जाती है मुई परीक्षा। घर वाले, रिश्तेदार, आस-पड़ोस सभी एक ही सवाल पूछते है , "हो गयी तैयारी परीक्षा की ?" हम भी जोर शोर से कहते है हाँ हाँ एक दम फर्स्टक्लास तैयारी हो गयी।
और हमारी तैयारी होती थी कुछ इस तरह :

यूनिफार्म पर इस्तरी कर ली जूते पोलिश कर लिए और साइकिल की एक मरम्मत करवा ली। नया रेनॉल्ड्स 045 फाइन कर्बर या रोटोमैक (लिखते लिखते लव हो जाये वाला) या सेलो जैल पेन और उसकी २ एक्स्ट्रा रिफिल खरीद ली। नया शार्पनर और रबर खरीदा। नयी नटराज या अप्सरा( औकात के हिसाब से लगा लो ) पेन्सिल शार्प करके रखी। एक कम्पास बॉक्स* लिया जिसमे नया स्केल*, चांदा*, डे-टांगा* पहले से आया था।

एक नया क्लिप वाला पुष्टां* खरीदा। पुष्ठे पर परीक्षा का टाईमटेबल चिपकाया। कम्पास बॉक्स में सारी आयटम अच्छे से चेक करके रखी और प्रवेश पत्र भी उसी में ठूस लिया। २-३ बार इन सब चीजो को बारी बारी से चेक किया और हो गयी हमारी परीक्षा की तैयारी।आजकल के बच्चे तो खामखाँ का टेंशन लेते है।


*

ग्लोसरी:
क्लिप वाला पुष्टां= clipboard
चांदा = Protractor,
डे-टांगिया= Divider or Compass,
कम्पास बॉक्स= Geometry box,
स्केल= Ruler


और हाँ ....... चित्र इंटरनेट के सौजन्य से।


देश भक्ति

  देश भक्ति , यह वो हार्मोन है जो हम भारतियों की रगो में आम तौर पर स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस  या भारत पाकिस्तान के मैच वाले दिन ख...