Thursday, 30 January 2014

Piclog-3


After piclog-1, piclog-2 here I am with third version of piclog, this time the theme is "Jeev-Jantu" :

I hope you would enjoy this piclog....


 An Indian leader, when we select him as MP or MLA, a clean and white image


 Judiciary system , can only watch and tell others to wait for justice

 A proud and caring mother....


 Aam aadmi, bole to sota hua sher ( a sleeping Tiger depicting a common man)






The same leader who we chose as MP or MLA, after some time....

Saturday, 25 January 2014

पत्नियां ............. तब और अब

डिस्क्लेमर : इस लेख के पात्र, घटनाये, और सन्दर्भ काल्पनिक भी हो सकते है(जिसके चान्सेस कम है ), और यह लेख लिखते समय किसी भी पशु के साथ कोई  दुर्व्यवहार नहीं किया गया है means no animal is hurt during writing of this article . और यह लेख सम्पूर्णतः एक पति के दृष्टि से लिखा गया है तो कोई नारी जो पत्नी भी है, कृपया आगे न पढ़े।

पत्नियां ............. तब और अब 

पत्नी, बीवी,  अर्धांगिनी, जीवनसंगिनी, वाइफ या बेग़म , ऊपर  वाले कि इस बेहतरीन रचना पर कई बड़े धुरंधरो ने बड़ी बड़ी बातें कही, लिखी, गायी , और सही भी है।
पत्नियों पर लिखी सारी रचनाओ को संकलित किया जाये तो इससे बड़ा महा-काव्य कुछ न होगा, मेने भी सोचा कि इस ऐतिहासिक विषय पर चोरी छुपे कुछ लिखा जाये(चोरी छुपे किसलिए, यह आप समझ ही गए होंगे).

जैसा कि मेरे लेख के  विषय  से ही समझ आता है कि में यहाँ  भिन्न काल खंडो कि पत्नियों कि तुलना करने कि जुर्रत करने जा रहा हूँ।
अगर हम पुरातन युग कि बात करे तो रजा-महाराजाओ के ज़माने में पत्नियां आज कि पत्नियों कि तुलना में बिलकुल अलग हुआ करती थी, उनकी तुलना हम आधुनिक पत्नियों से नहीं कर सकते, तब कोई राजा या सेनापति कही लड़ाई को जाते तो पत्नियों को मालूम होता था कि या तो हार के मूह काला करा के आयेंगे या जीत के किसी के साथ मूह काला करके आयेंगे। तब के राजा लोग तो जितनी बार युद्ध जीत के आते २-४ नयी रानियां साथ ले आते, अब आज के जमाने में यह कहा सम्भव है इसलिए मध्यकालीन युग कि पत्नियों को प्रणाम करके हम आगे बढ़ते है।

आगे बढ़ने से पहले एक बात  बता दू कि पत्नियां किसी कि भी हो , किसी भी कालखंड या देश कि हो सबमे एक बात कॉमन होती है , और वो है पति पे शक करना।  जी हाँ दोस्तों , दुनियां भर कि पत्नियां खाना, टीवी देखना, घूमना फिरना और यहाँ तक कि शौपिंग करना भी छोड़ सकती है पर अपने पति पर और किसी दूसरी औरत पर शक कि निगाह से देखना नहीं छोड़ सकती।



आईये तुलना करते है आज से १५ -२० साल पहले कि पत्नियों कि  आज कि पत्नियों से , तब कि बात थोड़ी अलग हुआ करती थी, तब पत्नियां ज्यादातर घरेलु हुआ करती थी, घरेलु से तात्पर्य है कि होम मेकर्स हुआ करती थी,  इसलिए ज्यादातर समय घर पर या मोहल्ले में अड़ौस पड़ौस कि औरतो के बिच ही गुजारना पसंद किया करती थी।  उस समय टीवी पर इतने सारे चेनल्स कि भरमार भी न थी और न ही इतने सारे "एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर्स" वाले सिरिअल्स आते थे फिर भी बीवियां अपने शक का चूरन ढूंढ ही लेती थी , कहा से मिलता था ये चूरन ?? यह बात जानने के लिए चलते है श्रीमती मेहता के  यहाँ , श्रीमति मेहता जब भी अपने पति के कपडे धोती है या धोबी को देने के लिए निकालती है तो एक एक शर्ट को किसी प्रशिक्षित स्निफर कि भांति सूंघती है , भाई जब शर्ट मैला है तो धोने में देना ही है, सूंघना क्यों? रिसर्च करने पर पता पड़ा कि पत्नियां(इन्क्लुडिंग मिसेज़ मेहता) सूंघ कर देखती थी कि पति कि शर्ट में से कही किसी महिला परफ्यूम कि खुशबू तो नहीं आ रही या कही किसी कपडे में कोई लम्बा बाल या लिपस्टिक के निशाँन तो नहीं । तो आप समझे उस ज़माने कि पत्नियां शर्ट सूंघ कर अपने लिए "शक" का चूरन तलाशती थी, यही नहीं फिर अगर थोडा समय मिला तो पड़ौस में श्रीमती शर्मा के यहाँ गपशप में हिस्सा लिया जाता , उस गपशप में मोहल्ले या बिल्डिंग कि सारी सभ्य महिलाएं इकट्ठी होती और जो महिला किसी कारण से न आ पाती तो वो बेचारी ,आयी हुयी सारी महिलाऒ कि चर्चा का विषय बनती।
वैसे  क्या चर्चा होती है श्रीमती शर्मा कि महफ़िल में ? जानने के लिए चलते है ऐसी ही एक महफ़िल में। ………

श्रीमती शर्मा:  सुना तूने वो शीला है न , अरे वोही बी विंग में दूसरे माले वाली, जो बड़ी स्टाइलिश ड्रेसेस पहनती है , वो अपने मिस्टर खन्ना के ऑफिस में ही जॉब करती है, कई बार मिस्टर खन्ना के साथ ही आती जाती है, मिसेज़ खन्ना को थोडा ध्यान देना चाहिए।

ओफ्फ्फहो ---------

ऐसी बातें तो  उस समय कि पत्नियों के लिए दिमाग में रखे हुए कच्चे माल  में  भरपूर मात्रा में तड़का लगाने के लिए काफी होती थी, शीला जैसी स्टाइलिश औरते मेरे पति के ऑफिस में भी तो जॉब करती होगी , और वो उस दिन रात को कितनी देर से भी आये थे घर , सन्डे को भी कभी कभी ऑफिस जाते है , हाय कोई भला सन्डे को काम करता है क्या ? और भी न जाने कितनी घटनाओ को सीधे अपनी "शक" कि निगाहो से देखना शुरू कर देती थी उस समय कि पत्नियां।  वैसे भी पुरानी छोटी छोटी घटनाओ के  टुकड़ो  कि HD रिकॉर्डिंग महिलाओ के दिमाग कि "हार्ड ड्राइव " के किसी फोल्डर में हमेशा सुरक्षित रहती है.

अब बात करते है आज २१वी  शताब्दी कि पत्नियों कि, आज इनके पास समय ही नहीं है फिजूल कि चर्चाओ का, क्योंकि आज  कि पत्नियां ज्यादातर काम  -काजी किसम कि होती है, सुबह उठते से दफतर को जाती है शाम को आके थक हार के खाना खाके सो जाती है, फिर भी "शक का चूरन" इन्हे भी मिल ही जाता है , वो भला कैसे ?
अब यह कपडे तो नहीं धोती अपने पति के जो कि उनको सूंघ के देखे और कोई "सुराग" हाथ लग जाये, ना ही इतना समय कि यह जान पाये कि पड़ौस में मिसेज़ शर्मा का घर है या मिसेज़ देशपांडे का, फिर भी मेरे प्यारे दोस्तों इन्हे इनके शक के कीड़े के लिए खुराक मिल ही जाती है।
आज टीवी पर इतने चैनल्स कि भरमार है कि उसमे दिखाए गए किसी भी सिरिअल को अपनी निजी जिंदगी से जोड़ने में इन्हे ज्यादा वक़्त नहीं लगता , और सिरिअल भी कैसे कैसे , "इमोशनल अत्याचार" जिसमे शो का सूत्रधार पूरी कोशिश करता है कि बने बनाये रिश्तो में किसी तरह दरार पड़  जाये  , या "बालिका वधु" जिसमे नायक को पता ही नहीं होता कि वो प्यार किससे करता है और शादी किस से करना चाहता है या "क्राइम पेट्रोल दस्तक" जहा अनूप सोनी हर नारी को यह अहसास दिलाता है कि आप एक अबला नारी हो, सावधान रहना और किसी से नहीं तो अपने पति से ही , रही सही कसर "सनसनी" पूरी कर देता है , "ध्यान से देखिये अपने पति को , कही वो आप से चीटिंग तो नहीं कर रहा". और भी बहुत सारे ऐसे शोज़ है जिनके बारे में लिखने बैठूंगा तो २-४ भागो में यह लेख पूरा होगा, बहरहाल आप समझ गए होंगे कि हमारे घर में रखा टीवी नामक डब्बा   पत्नियों  के "चूरन" का  कितना बड़ा जरिया है।

अब बात करते है आज के ज़माने के सबसे बड़े औजार कि , जो कि पत्नियों के दीमागी शक के कीड़ो कि खुराक का  पूरा का पूरा खज़ाना है , आप सही समझे में बात कर रहा हूँ मोबाइल कि, अब पत्नियों को आपके शर्ट, बैग, लैपटॉप या पर्स चेक करने कि कोई जरुरत नहीं है, बस दिन में २ बार आपका मोबाइल चेक कर लिया तो कुछ न कुछ तो मिल ही जाता है, किस्से आपने व्हाट्सप्प पे चैट कि , किसके FB PIC को लाइक किया , किसके कमेंट पर आपने :) :) स्माइली भेजा etc etc. और जब शक वाले कीड़ो को इतनी सारी खुराक मिलेगी तो सोचिये जरा कि कीड़े कितने बलवान होके अटैक करेंगे ?


इसलिए पति महोदय , ध्यान से देखिये ,आपके दुश्मन आपके घर में ही मौजूद है , कही ४० इंच  तो कही ५२ इंच कि साइज़ में , कही जेली बीन तो कही आइस-क्रीम सैंडविच के रूप में , सावधान रहिये अपने इन ज़ालिम दोस्तों से जो आपकी पीठ पीछे आपकी मासूम पत्नी को उसके "शक" कि खुराक मुहैया कराते है।



तो दोस्तों पत्नियां तो पत्नियां ही होती है, किसी भी ज़माने कि हो, किसी भी देश कि हो, शक के साथ साथ अपने पति को 24/7 प्यार भी करती है।

ओफ्फ्फ माफ़ कीजियेगा आज का पत्निपुराण यही खत्म करता हूँ, चोरी छुपे ज्यादा लिख नहीं पाउँगा, कीबोर्ड कि खट खट से मेरी पत्नी कही यह न समझ ले कि किसी के साथ चैटिंग कर रहा हूँ.

मेरे ब्लॉग पर आने के लिए शुक्रिया और ऐसे ही आते रहिये , हौसला अफजाई करते रहिये, पढ़ते और पढ़ाते रहिये। जयहिन्द।



कार्टून: इन्टनेट से साभार




Thursday, 16 January 2014

२०१४ का महाभारत

हम बड़े ही सहज रूप से कह सकते है कि २०१४ का चुनाव अब "बीजेपी" और "आप" के बीच ही लड़ा जायेगा (या यु कहे मोदी और केजरीवाल के बीच लड़ा जायेगा)

कॉंग्रेस ( राहुल गाँधी ) कि तो कोई बात ही नहीं कि जा सकती यहाँ,  क्रिकेट कि भाषा में बात करे तो यह वो त्रिकोणीय मुक़ाबला है जिसमे तीसरी टीम (टीम  RaGa ) नामीबिया कि है। या बॉलीवूड कि भाषा में बात करे तो ३ फिल्मो के बिच मुक़ाबला है जिनके मुख्य किरदार क्रमशः  शाहरुख़ खान, सलमान खान और उदय चोपड़ा है।

अब अगर इसे सीधा मुकाबला मोदी V /S  केजरीवाल माने तो यहाँ यह देखना भी जरूरी है कि आखिर इन दोनों में तुलना किन बिन्दुओ पर हो ?

  1. सुढृढ़ सुशासन या दिखावटीपन (चुहलबाजी)
  2. परिणामकारी प्रदर्शन या आंदोलन 
  3. विकास के मुद्दे या व्यक्तिगत मान से जुड़े इरादे 
  4. एक स्थापित विचारधारा या आदर्शवाद 
  5. देश कि अखंडता या अलगाववादियों का समर्थन 
  6. सम्पूर्ण विकास या किसी समुदाय विशेष का तुष्टिकरण
  7. एक सिद्ध अनुभव या अतिउत्साही और अवसरवादी लोगो का समूह 
  8.  देश को विकास कि  दिशा प्रदान करना या देश के साथ एक प्रयोग करना 
यह एक बहुत अच्छी बात है कि आप पहली बार चुनाव लड़े और लोगो कि भावनाओ के साथ जुड़कर उनके दिल और कुछ सीटे जीत ले और जिनका उम्रभर से विरोध करते आये उन्ही का थोडा सा साथ लेकर सत्ता में भी आ जाये।
परन्तु  एक तरफ वो है जो लोगो कि भावनाओ के दम पर पहली बार जीत के आये  और सत्ता में बने रहने के लिए संघर्ष कर रहे है वोही दूसरी  और वो है जो  समग्र विरोध को झेलने के बावज़ूद लगातार तीन बार जीत कर आये, लोगो कि भावनाओ के दम पर नहीं, अपने शक्तिशाली प्रदर्शन के दम पर.। 

महत्वकांक्षी  होना  अच्छी बात है परन्तु  जो चीज हाथ में है, जिसके लिए आपको मौका दिया गया है (दिल्ली ), उसके बारे में सोचने के बजाय आप क्या कर रहे है ,  खूद को देश की  हर समस्या का समाधान बता कर  मैदान में कूद कर स्थापित लोगो को चुनौती दे रहे है जबकि आपको यह  तक नहीं पता कि आपका कौन नेता देश के किस मुद्दे पर क्या अनर्गल बाते कर रहा है। 
 जब आपको एक राज्य का दायित्व दिया गया है तो उसी को राजधर्म कि तरह निभाईये, झोंक दीजिये अपनी सारी शक्ति यह साबित करने में कि आपको दिया गया मौका व्यर्थ नहीं है। 

दूसरी और मोदी के बारे में  यह कैसा झूठा डर  फैलाया जा रहा है कि अगर मोदी कि सरकार बनी तो देश में अल्पसंख्यक असुरक्षित  हो जायेंगे, मानो अचानक ही  यह पूरा जनतंत्र  तानाशाही में बदल जायेगा और सारी  विपक्षी पार्टियाँ, सहयोगी दल , राज्य सरकारे और न्यायपालिका रातोरात इस "सबका मालिक एक " वाली सरकार के सामने नतमस्तक हो जाएँगी ?
यह तो सीधा सीधा उन लोगो के द्वारा किया गया दुष्प्रचार या प्रपंच है को वाकई में मोदी को सत्ता  में आने से रोकना चाहते है , यह लोग सिर्फ नफरत कि राजनीति जानते है प्रेम कि नहीं।

वैसे कविराज जो कि अब नेता जी बन गए है कि एक काव्य गोष्ठी में मेने उन्ही के मुख कमल से एक कविता सुनी थी जो कुछ  यों  थी_ _ _

हमे मुहब्बत सब से है हमे फूलो को छांटना नहीं आता
हम तो जोड़ना जानते है बस हमें काटना नहीं आता
हम क्या करे हमे खुशियों के सिवा कुछ बाँटना नहीं आता

अभी यह सब बाते शायद उनके लिए सिर्फ कल्पनाओ और शब्दो का एक जाल मात्र हो सकती है जिसका हकीकत से कोई लेना देना न हो शायद।

खैर छोड़िये 

केजरीवाल (और AAP ) कि तुलना मोदी (और NDA ) से करना किसी कल ही कॉलेज से पास हो कर नए आये कर्मचारी कि  किसी उच्च प्रबंधक जो कि बरसो से कंपनी और अपने विभाग कि सेवा करके उस पद तक पंहुचा है से तुलना करने के बराबर है। 

क्या कोई भी कंपनी कल के पास हुए छात्र को अपने उच्च प्रबंधन का दायित्व सोंप सकती है ?
खुद ही विचार कीजियेगा। 

--------------------------------------------फेसबुक पर एक पेज "भक साला " में  प्रकाशित हुये एक अंग्रेजी लेख़ से साभार  

देश भक्ति

  देश भक्ति , यह वो हार्मोन है जो हम भारतियों की रगो में आम तौर पर स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस  या भारत पाकिस्तान के मैच वाले दिन ख...