हम बड़े ही सहज रूप से कह सकते है कि २०१४ का चुनाव अब "बीजेपी" और "आप" के बीच ही लड़ा जायेगा (या यु कहे मोदी और केजरीवाल के बीच लड़ा जायेगा)
कॉंग्रेस ( राहुल गाँधी ) कि तो कोई बात ही नहीं कि जा सकती यहाँ, क्रिकेट कि भाषा में बात करे तो यह वो त्रिकोणीय मुक़ाबला है जिसमे तीसरी टीम (टीम RaGa ) नामीबिया कि है। या बॉलीवूड कि भाषा में बात करे तो ३ फिल्मो के बिच मुक़ाबला है जिनके मुख्य किरदार क्रमशः शाहरुख़ खान, सलमान खान और उदय चोपड़ा है।
अब अगर इसे सीधा मुकाबला मोदी V /S केजरीवाल माने तो यहाँ यह देखना भी जरूरी है कि आखिर इन दोनों में तुलना किन बिन्दुओ पर हो ?
- सुढृढ़ सुशासन या दिखावटीपन (चुहलबाजी)
- परिणामकारी प्रदर्शन या आंदोलन
- विकास के मुद्दे या व्यक्तिगत मान से जुड़े इरादे
- एक स्थापित विचारधारा या आदर्शवाद
- देश कि अखंडता या अलगाववादियों का समर्थन
- सम्पूर्ण विकास या किसी समुदाय विशेष का तुष्टिकरण
- एक सिद्ध अनुभव या अतिउत्साही और अवसरवादी लोगो का समूह
- देश को विकास कि दिशा प्रदान करना या देश के साथ एक प्रयोग करना
यह एक बहुत अच्छी बात है कि आप पहली बार चुनाव लड़े और लोगो कि भावनाओ के साथ जुड़कर उनके दिल और कुछ सीटे जीत ले और जिनका उम्रभर से विरोध करते आये उन्ही का थोडा सा साथ लेकर सत्ता में भी आ जाये।
परन्तु एक तरफ वो है जो लोगो कि भावनाओ के दम पर पहली बार जीत के आये और सत्ता में बने रहने के लिए संघर्ष कर रहे है वोही दूसरी और वो है जो समग्र विरोध को झेलने के बावज़ूद लगातार तीन बार जीत कर आये, लोगो कि भावनाओ के दम पर नहीं, अपने शक्तिशाली प्रदर्शन के दम पर.।
महत्वकांक्षी होना अच्छी बात है परन्तु जो चीज हाथ में है, जिसके लिए आपको मौका दिया गया है (दिल्ली ), उसके बारे में सोचने के बजाय आप क्या कर रहे है , खूद को देश की हर समस्या का समाधान बता कर मैदान में कूद कर स्थापित लोगो को चुनौती दे रहे है जबकि आपको यह तक नहीं पता कि आपका कौन नेता देश के किस मुद्दे पर क्या अनर्गल बाते कर रहा है।
जब आपको एक राज्य का दायित्व दिया गया है तो उसी को राजधर्म कि तरह निभाईये, झोंक दीजिये अपनी सारी शक्ति यह साबित करने में कि आपको दिया गया मौका व्यर्थ नहीं है।
दूसरी और मोदी के बारे में यह कैसा झूठा डर फैलाया जा रहा है कि अगर मोदी कि सरकार बनी तो देश में अल्पसंख्यक असुरक्षित हो जायेंगे, मानो अचानक ही यह पूरा जनतंत्र तानाशाही में बदल जायेगा और सारी विपक्षी पार्टियाँ, सहयोगी दल , राज्य सरकारे और न्यायपालिका रातोरात इस "सबका मालिक एक " वाली सरकार के सामने नतमस्तक हो जाएँगी ?
यह तो सीधा सीधा उन लोगो के द्वारा किया गया दुष्प्रचार या प्रपंच है को वाकई में मोदी को सत्ता में आने से रोकना चाहते है , यह लोग सिर्फ नफरत कि राजनीति जानते है प्रेम कि नहीं।
वैसे कविराज जो कि अब नेता जी बन गए है कि एक काव्य गोष्ठी में मेने उन्ही के मुख कमल से एक कविता सुनी थी जो कुछ यों थी_ _ _
हमे मुहब्बत सब से है हमे फूलो को छांटना नहीं आता
हम तो जोड़ना जानते है बस हमें काटना नहीं आता
हम क्या करे हमे खुशियों के सिवा कुछ बाँटना नहीं आता
अभी यह सब बाते शायद उनके लिए सिर्फ कल्पनाओ और शब्दो का एक जाल मात्र हो सकती है जिसका हकीकत से कोई लेना देना न हो शायद।
खैर छोड़िये
केजरीवाल (और AAP ) कि तुलना मोदी (और NDA ) से करना किसी कल ही कॉलेज से पास हो कर नए आये कर्मचारी कि किसी उच्च प्रबंधक जो कि बरसो से कंपनी और अपने विभाग कि सेवा करके उस पद तक पंहुचा है से तुलना करने के बराबर है।
क्या कोई भी कंपनी कल के पास हुए छात्र को अपने उच्च प्रबंधन का दायित्व सोंप सकती है ?
खुद ही विचार कीजियेगा।
--------------------------------------------फेसबुक पर एक पेज "भक साला " में प्रकाशित हुये एक अंग्रेजी लेख़ से साभार