Thursday 3 March 2016

कन्हैया की ज़मानत

  
हमारा देश आजकल एक अलग ही "संघर्ष" से जूझ रहा है। JNU के मसले को कोई हर दिन एक नया मोड़ दिया जाता है। इस सिलसिले में "सच" DSLR कैमरा की रॉ फाइल की तरह है जो सिर्फ फोटोग्राफर के पास है और हमारे सामने सिर्फ "Processed" फोटो ही आ रही है।  जिसको जैसी फोटो अच्छी लगे उसके लिए उसी प्रकार से "Process" की हुयी तस्वीर हाजिर कर दी जाती है। क्या पता २ साल बाद यूनिवर्सिटी का कोई कर्मचारी सेवानिवृत्त होने के बाद एक नया ही सच लेकर सामने आये। बहरहाल इस फैशन शो के शोस्टॉपर कन्हैया कुमार को दिल्ली हाईकोर्ट ने ज़मानत दे दी है।


किन्तु यह ज़मानत कुछ चेतावनी और मशवरों के साथ दी गयी है। मीडिया और सोशल मीडिया पर हर कोई ज़मानत का जिक्र कर रहा है किन्तु उसके ऊपर लगे * ( शर्ते लागू) का जिक्र कोई नहीं कर रहा है। कन्हैया की ज़मानत के कोर्ट के आदेश की एक प्रति हमारे हाथ भी लग गयी है तो हमने सोचा क्यों न हम आपके सामने कन्हैया की ज़मानत का विश्लेषण प्रस्तुत करें  in cut to cut style.

तो जनाब, कोर्ट के आदेश के मुताबिक,

"कन्हैया को ६ महीने की जमानत पर रिहा किया जाता है और उसके माँ बाप को मशवरा दिया जाता है कि  जल्द से जल्द कन्हैया के लिए एक लड़की ढूंढ कर उसके साथ इसकी शादी करवा दी जाये। कन्हैया को अगले ३० दिनों के भीतर अपना फेसबुक रिलेशनशिप स्टेटस "कोम्प्लिकेटेड " से बदलकर "मैरिड To XYZ" करना है। अदालत चाहती है की एक महीने बाद कन्हैया के फेसबुक वाल पर JNU वाले वीडियो के बजाये हनीमून के पिक्चर्स पाये जाने चाहिए। अदालत बहुत ही बारीकी से कन्हैया का फेसबुक फॉलो कर रही है और उपरोक्त सभी मटेरियल फेसबुक या न्यूज़  में न पाये जाने पर  इसे अदालत की अवमानना करार दिया जायेगा "

अदालत के इस क्रांतिकारी फैसले को समझने के लिए जब हमने हाईकोर्ट  के एक वरिष्ठ वकील से बात की तो बेहद ही चौंकाने वाली बात सामने आई। आईये पढ़िए क्या कहा उन्होंने।

"देखिये, अदालत ने यह फैसला बहुत ही सोच समझ कर "बच्चे" के जीवन को संवारने के लिए दिया है। कन्हैया एक अच्छा स्टूडेंट बने न बने परन्तु उसे एक अच्छा पति तो झक मारकर बनना ही पड़ेगा।  अभी बहुत से लोगो को कन्हैया से शिकायत होगी की वो वन्दे के बाद मातरम का नारा नहीं लगाता है किन्तु शादी के बाद तो उसे I love you के बाद I love you too का नारा लगाना ही पड़ेगा। यही नहीं,  शादी के बाद कन्हैया को कश्मीर तो दूर  खुद की आज़ादी के बारे में  सोचना भी  महंगा पड़ेगा।  आज लाल-झंडे उठाने वाला हमारा ये दोस्त कल सब्जियों के झोले में लाल टमाटर उठाता हुआ मिलेगा। अफज़ल गुरु का शहादत दिवस भूल के हर साल अपना शहादत दिवस  मनायेगा शादी की सालगिरह के तौर पर। "

इतनी बात कहते कहते वकील साब की आँखें भर आयी और उन्होंने रजनीगंधा की पुड़िया फाड़कर अपने मुखकमल को समर्पित की और अब भरी आँखों के साथ भरे मुंह से बोलना शुरू किया। (पति है वो भी, अपनी छोटी से दुनिया को कदमो में लाने के लिए रजनीगंधा का नाकामयाब सहारा ले रहा है ) इससे पहले की वो गुटखे को देखकर चर्चा को बजट की और मोड़े हमने कहा आप कन्हैया पर बोलना जारी रखे।

उन्होंने आगे कहा

"देखिये मेरी नजरो में तो अदालत ने उसे एक तरह से जमानत देने के बजाय उम्रकैद का फैसला सुनाया है।  दर-असल अदालत ने त्रेतायुग के कन्हैया के केस का संज्ञान लेते हुए यह फैसला सुनाया। 

त्रेतायुग में राम थे, कृष्ण तो द्वापर में थे न सर ?

अरे हाँ तो राम को भी तो शादी के तुरंत बाद वनवास लगा था , भाई भावनाओ को समझो, GK टेस्ट तो मत करो। 

ओके ओके, आप बताईये आगे।

हाँ तो आप तो जानते ही होंगे की कैसे रुक्मणी से शादी करके द्वापर वाले कन्हैया की सारी लीलाओ पर विराम लग गया था। ऐसे ही हमारे इस JNU वाले कन्हैया का होगा। बेचारा कल तक देश की बर्बादी तक जंग लड़ने की बात कर रहा था और अब देखिएगा शादी के बाद उसकी इस वीरता पर  कैसे जंग लग जाएगी। पाकिस्तान जिंदाबाद की जगह पत्नी महान -जिंदाबाद जिंदाबाद के नारे लगाएगा । अब तक जो फेसबुक स्टेटस  क्रांतिकारी हुआ करते थे अब  'Checked into falaana-dhimkaa mall with wife', "Happy birthday dear wife" 'Watching bhutiyapa movie with wife' जैसे स्टेटस में बदल जायेंगे। सरकार बदलने की बात करने वाला हमारा वीर बहादुर 'कॉमरेड' अब टीवी का चैनल भी नहीं बदल पायेगा। में तो कहता हूँ की अदालत ने लाल सलाम को लाल बिंदी से दबा दिया है।  और.............."


"यूँही तुम मुझसे बात करती हो , या कोई प्यार का इरादा है .........."

इतनी ही गंभीर बातें हो पायी थी हमारी कि अचानक से वकील साब की बीवी का फ़ोन आ गया और यह ऊपर उनके फ़ोन की रिंगटोन थी। वकील साब को अचानक किसी "जरूरी काम" से जल्दी निकलना पड़ा। किन्तु उन्होंने बहुत ही सरल भाषा में अदालत के फैसले की व्याख्या करके हमें ज्ञान संपन्न बना दिया।


नोट: यह लेख एक व्यंग्य मात्र है और इसका उद्देश्य केवल हास्य पैदा करना है। हम भारत के नागरिक होने के नाते देश और इसकी न्याय व्यवस्था का भरपूर सम्मान करते है। और जी हाँ, शादी और पत्नियों का भी उतना ही सम्मान करते है। :) उपरोक्त लिखी सभी बाते काल्पनिक है।

Saturday 27 February 2016

भारत की युवाशक्ति


जब से सत्ता संभाली है तभी से हमारे प्रधानमंत्री जी ने दुनियाभर में ढिंढोरा पिट रखा है कि भारत दुनिया का सबसे युवा देश है। भारत का युवा दुनिया बदलने की ताकत रखता है। सारी दुनिया हमारे देश की ओर आशाभरी दृष्टि से देख रही है। और भी न जाने कितनी बातें कही है हमारे प्रधानमंत्री ने हमारी युवा शक्ति के बारे में।

किन्तु बेचारे मोदी जी यह जानने में शायद असफल रहे है की असल में उनकी तथाकथित महान युवा शक्ति कर क्या रही है। हमारे देश में आज की तारिख में मोटे-मोटे तौर पर ५ प्रकार की युवाशक्ति पायी जाती है। मोटे तौर पर इस लिए विभाजित किया क्योंकि इन्ही ५ श्रेणी के युवा तय कर सकते है की देश को किस दिशा में लेके जाना है।

आईये आपको हम बताते है उस युवाशक्ति के बारे में, मोदी जी जिसका प्रचार प्रसार समस्त विश्व में कर रहे है ।

१. बुद्धिजीवी युवाशक्ति :
ये वो युवाशक्ति है जो अपने आपको "रॅशनल" कहते है और हर प्रकार के रूढ़िवादी विश्वास पर प्रश्न करते है। इसी कड़ी में कईं बार वो भूल जाते है की देश का इतिहास क्या रहा है। भूल जाते है की कुछ विश्वास इतने अटल होते है की तथ्यों से परे होते है। ये वो युवा है जिन्हे अपने "ईश्वर" से  ज्यादा भरोसा अपनी बुद्धिमता पर है। यहाँ तक तो सब कुछ अच्छा है, आपको सब ठीक लग रहा होगा। किन्तु यही वो युवा है जो बड़ी आसानी से बहकावे में आता है। यही वो युवा है जो गरीबो के लिए लड़ते लड़ते अचानक से आतंकवादियों के लिए मोर्चा लिया खड़ा पाया जाता है। इस युवाशक्ति के लिए अफजलगुरु और याकूब मेमन जैसे लोग हीरो हो जाते है।यही वो युवा है जो कलम छोड़ कर बन्दूक उठाने की बात करता है। यही वो युवा है जो अंधभक्ति पर सवाल उठाते उठाते देशभक्ति भूल जाता है। यही वो युवा है जो दक्षिणपंथ (राइट विंग) का विरोध करते करते देश का ही विरोध करने लग जाता है।सामंतवाद से लड़ते लड़ते ये अलगाववाद से जुड़ जाते है। ये लोग अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर देशविरोधी नारे लगाते है। इस प्रकार की युवाशक्ति हमारे देश में सदियों से रही है किन्तु उन्होंने कभी देश के अपमान में एक शब्द भी नहीं कहा। किन्तु आज कुछ लोगो के बहकावे में आकर यही युवाशक्ति अपने पथ से भटक रही है।





२.सायबर युवाशक्ति:
दूसरी प्रकार का युवा वो है जिसे जमीनी हकीक़त से कोई सरोकार नहीं है। जिसके लिए मीडिआ (प्रिंट, इलेक्ट्रॉनिक और ज्यादातर सोशल मीडिआ ) ही साक्षात ईश्वर है। यह वो युवा है जो सिर्फ इंटरनेट पर देश के लिए लड़ाई लड़ता है। यह वो युवा है जिसे सरकार को गालियां देना फैशन लगता है। यह वो युवा है जो आये दिन देशद्रोही और देशभक्ति का प्रमाणपत्र  बांटता फिर रहा है। सबसे खतरनाक तो इनमे से वो है जिन्हे "लॉजिक" और "तथ्यों" से कोई मतलब नहीं होता। ये वो युवा है जो "टार्ड " और "भक्त" नाम के दो समुदायों में बंट के रह गया है। वैसे इनमे एक तीसरा समुदाय भी है जिसे किसी पार्टी, देश या धरम से कुछ लेना देना नहीं होता। इस समुदाय के लोग सबसे काम हानिकारक भी होते है। ये समुदाय है "एन्जेल-प्रिया" या "मीणा-बॉयज" टाइप फेसबुक अकाउंट धारियों का।


३.आक्रोशी युवाशक्ति:
तीसरी प्रकार की युवाशक्ति वो है जिन्हे बस "आदेश" मिलना चाहिए और वो निकल पड़ते है सडको पर। इस प्रकार के युवा इंटरनेट पर ही लड़ाई नहीं लड़ते अपितु सडको पर खुले-आम बसो को, गाड़ियों को, ट्रको को फूंक डालते है। ट्रेनों को जला कर पटरियां उखाड़ फेंकते है। जब जहाँ जैसा मौका मिले वैसा कुकृत्य करते है और ग्लानि तो दूर इनके माथे पर शिकन तक नहीं आती है। ये वो युवा है जिसे पढ़ना लिखना नहीं है, बाौद्धिक मेहनत इनसे नहीं होती है। इन्हे हर प्रकार की शासकीय सुविधा पर एक ख़ास आरक्षित तथा अप्रतिबंधित अधिकार चाहिए। इन्हे आरक्षण चाहिए। इन्हे उसी "इंफ्रास्ट्रक्चर" के लिए आरक्षण चाहिए जिसे यह आये दिन नुकसान पँहुचाते रहते है।


४.बेचारी युवाशक्ति:
ये वो युवाशक्ति है जो देश को ज्यादा फायदा नहीं तो कोई नुकसान भी नहीं पँहुचाते है । ये मेहनत करते है, पढ़ते है लिखते है। रोजी-रोटी कमाने के लिए दिन रात एक कर देते है। ये वो युवा शक्ति है जो रात-रात भर अपनी "तशरीफ़" रगड़ कर काम करते है और ईमानदारी से पूरा का पूरा इनकम टैक्स भी भरते है। ये वो युवाशक्ति है जो अगर नौकरी न भी मिले तो मायूस होकर आरक्षण के लिए पटरियां नहीं उखाड़ते अपितु उसी स्टेशन पर चाय की टपरी खोल कर अपनी आजीविका चलाते है। इनको कोई मतलब नहीं है आप किस पार्टी को अच्छा मानते है किसे बुरा। इनको कोई मतलब नहीं है अगर किसी ने पैगम्बर को बुरा कहा या दुर्गा माँ को अपशब्द कहे। इन्हे मतलब होता है तो इस बात से की आज इनके यहाँ सब्जी क्या बनेगी, आज बेटे को दूध मिलेगा या नहीं, इस महीने की EMI का बंदोबस्त होगा या नहीं, इस बार अपनी बेटी को एडमिशन दिलवा पाउँगा या नहीं और ऐसी ही तमाम जद्दोजहद में जीवन बीत जाता है इनका।


५ . असल देशभक्त युवा:
यहाँ हम उस युवा शक्ति की बात कर रहे है जो बहुतायत में बिलकुल नहीं पायी जाती है। दुर्लभ किसम की युवा शक्ति है यह। इनके मन में असल देशप्रेम होता है जिसे इन्हे "फेसबुक" या "ट्विट्टर" पर साबित नहीं करना पड़ता। इनका देशप्रेम सर्वविदित होता है, जगज़ाहिर होता है। इनके देशप्रेम से किसी भारतवासी को कोई डर नहीं लगता अपितु दुश्मन देशो के हौसले पस्त हो जाते है इनकी देशप्रेमी के आगे। ये वो युवा शक्ति है जो चोटिल होने के बावजूद मोर्चा नहीं छोड़ते।इन्हे अपनी माँ से ज्यादा फ़िक्र भारत माँ की होती है। ये सामने से आतंकवादियों का सामना कर रहे होते है तो पीछे से अपने ही देश के "पथभ्रष्ट" युवाओ के पत्थरो का शिकार भी हो रहे होते है। ये वो युवाशक्ति है जिसे वन्दे-मातरम कहने या तिरंगे के आगे सर झुकाने में किसी धरम की परिभाषा रोकती नहीं है । ये वो युवाशक्ति है जिसके होने से ही हम है और बाकी के युवा है। उन माताओं को हमारा शत शत नमन है जिन्होंने ऐसे युवाओ को जन्म दिया है।




अब आप ही बताईये हमें किस वर्ग के युवा की सबसे ज्यादा आवश्यकता है और हम कितना और किस श्रेणी में योगदान दे रहे है देश को सुदृढ़ करने में ?

नोट: सभी चित्र इंटरनेट इमेज सर्च के माध्यम से विभिन्न सूत्रों द्वारा साभार संकलित

Tuesday 2 February 2016

व्रत की महिमा


आगे पढ़ने से पहले एक बात आप समझ लें की यह लेख पूर्णतः पुरुषो के और विशेषतः भावनात्मक रूप से बंदी (शादीशुदा) पुरुषो के दृष्टिकोण से लिखा गया है।

तो जनाब तन की शक्ति, मन की शक्ति से कहीं बढ़कर है व्रत की शक्ति।जी हाँ सही पढ़ा आपने। व्रत की शक्ति को नज़रअंदाज करना आपके लिए हानिकारक हो सकता है। विशेषकर जब कि आपकी अर्धांगिनी फलां -फलां व्रत करती है।



 शादी के बाद जीवन में आने वाले बड़े-बड़े परिवर्तनों के बीच हम छोटे-छोटे परिवर्तनों पर गौर ही नहीं कर पाते है। जैसे कि जब आप सिंगल थे तब आपके कार्यक्षेत्र पर (प्रोजेक्ट में, ऑफिस, महाविद्यालय इत्यादि जगह ) आपके आसपास हमेशा खूबसूरती छायी रहती थी। आँखें कभी तरसती नहीं थी, इसीलिए तो आप सदैव प्रसन्न रहते थे। किन्तु शादी के बाद हालात ऐसे होते है जैसे नसीब केजरीवाल (U-Turn) बन गया हो।आप को लगता है जैसे आपके साथ काम करने वालो में अचानक से डाइवर्सिटी (विभिन्न जेंडर ) ख़त्म हो गयी है। एकाएक आपको अहसास होता कि धीरे धीरे आपके साथ काम करने वालो की लिस्ट में सिर्फ पुरुष ही रह गए है।

 शादी से पहले जब भी आप कहीं कोई यात्रा करते थे ट्रैन से, बस से, वायुयान इत्यादि से तो भी १० में से ८ बार आपकी यात्रा मंगलमयी ही रहती थी । आपकी बोगी में, या आपकी पास वाली सीट पर कोई न कोई सुन्दर बाला(या बालाएँ ) जरूर बैठी मिलती थी। जिनके सिर्फ वहाँ बैठे होने भर से ही ऐसा लगता था जैसे किसी ने हवा में खुशबू घोल दी हो। जैसे किसी ने सुमधुर सरगम के राग छेड़ दिए हो। अगर मैं ग़लत कह रहा हूँ तो बताईये ? होता था कि नहीं ऐसा शादी से पहले ?और अब जब आप शादीशुदा है तो जो चीज १० में से ८ बार होती थी वो १ बार ही होती है और वो भी तब जब कि आप सपरिवार(सपत्नीक) यात्रा कर रहे होते है।

आपकी शादी से पहले आपके कईं दोस्त हुआ करते थे उनमे लड़कियाँ भी होती थी और लडके भी, कुँवारे भी होते थे और शादीशुदा भी। परन्तु जैसे ही आप शादीशुदा हुए आपके दोस्तों की लिस्ट छोटी ही नहीं हो जाती बल्कि क्लासिफाइड भी हो जाती है। कुछ शादीशुदा बेवड़े दोस्त ही गुप्त रूप से उस लिस्ट की परमानेंट आइटम होते है जिनको लिस्ट से डिलीट कर दिए जाने के बाद भी आप हर बार रिसाईकल बिन से रिस्टोर कर लाते हो।

कुलमिलाकर अगर कहा जाये तो शादी के बाद आप ही नहीं बदल जाते, आपका नसीब भी बदल जाता है।

ऊपर जितनी भी बातें लिखी है ऐसा सब कुछ होने के पीछे क्या कारण हो सकता है कभी आपने सोंचा है ? मैं बताता हूँ ,कभी आपने ग़ौर किया है कि भले ही आपकी पत्नी कभी कोई व्रत रेगुलर बेसिस पर न करे परन्तु साल में कोई न कोई एक व्रत पकड़ के कर ही लेती है। बस यही व्रत आपके इस नसीब के स्विच का कारण बनता है। ईश्वर और किसी की सुनें  न सुनें परन्तु व्रत करने वाली स्त्री की अवश्य सुनता है। आपने बचपन से सुना होगा कि बीवियों के व्रत से पतियों की उम्र बढ़ती है , बिलकुल सही सुना है। जब उनके व्रत के प्रभाव से आपको अपने शादीशुदा जीवन के बाहर विचरण (एक्स्ट्रा मैरिटल) करने का मौका ही नहीं मिलेगा, आपको किसी गलत राह पर जाने की छूट ही नहीं मिलेगी तो आप पथ से भटकेंगे ही नहीं। और जब आप पथ से भटकेंगे नहीं तो बीवी के प्रति वफादार रहेंगे, ईमानदार रहेंगे और जब तक बीवी के प्रति वफादार रहेंगे तब तक ज़िंदा रहेंगे और न केवल ज़िंदा बल्कि लम्बे समय तक ज़िंदा रहेंगे।

अगर आपकी शादी हो चुकी है तो आप शायद ऊपर लिखी सारी बक़वास समझ पाएं।परन्तु अगर आप अब तक सिंगल है और प्रसन्न है तो दुनिया के किसी कोने में कोई तो होगी जो आपकी प्रसन्नता भंग करने के लिए (आपसे विवाह करने के लिए) कोई न कोई व्रत कर ही रही होगी।

तो जनाब नारी की शक्ति तो अपरम्पार है ही, उनकी व्रत के शक्ति भी कम नहीं है।




चित्र गूगल इमेज सर्च के सौजन्य से






Thursday 28 January 2016

बड़े बाबू

डिस्क्लेमर:   हो सकता है की यह लेख मेरी कोरी कल्पना का नतीजा हो, हो सकता है इसका किसी जीवित या मृत व्यक्ति से कोई लेना देना न हो।  अगर यह लेख पढ़ते समय आपका सामना किसी जीवित या मृत व्यक्ति के व्यक्तित्व से हो जाये तो हो सकता है यह भी संयोग मात्र हो।
और एक बात, इस लेख को लिखते समय किसी भी जीव- जंतु, पेड़-पौधे या कोई भी प्राणी को कोई क्षति नहीं पंहुचायी गयी है।

तो बैठे बैठे क्या करे, करना है कुछ काम, आओ बतोलेबाजी करे लेकर बाबूजी का नाम।

एक होते है बाबूजी, जो हर फिलम, टीवी और लगभग हर इंसान के असली जीवन में होते है। जो कभी नरम  तो कभी सख्त, कभी अच्छे तो कभी खडूस, कभी "कूल" तो कभी संस्कारी होते है। ऐसे सभी बाबूजी को प्रणाम करके बात करते है बड़े बाबू की।

 जी हाँ, बड़े बाबू वही जो ज्यादातर सरकारी दफ्तरों में सुनाई दिखाई पड़ते है। जिन तक पहुँचना मुश्किल ही नहीं कभी कभी नामुमकिन होता है। ऐसे बड़े बाबू सिर्फ सरकारी दफ्तरों में ही नहीं, प्राइवेट दफ्तरों, स्कूलों, अस्पतालों, बैंको और यहाँ तक की शादियों में भी फूफा के रूप पाये जाते है।

हमने अपने पिछले लेख में आपको एक प्रजाति से अवगत कराया था जिसे मैनेजर कहते है। अब जैसे शेर जो है वो बिल्ली की नसल का है , छिपकली जो है वो डाईनासौर के खानदान की है और जैसे भेड़िया, कुत्तो के कुटुंब का प्राणी है ठीक वैसे ही मैनेजर जो है वो बड़े बाबू की ही नस्ल के प्राणी होते है किन्तु बड़े बाबू के आगे कुछ नहीं लगते। बड़े बाबुओं की तुलना में मैनेजर निहायती सीधा, सरल और उपजाऊ प्राणी होता है।



कुछ एक अपवादों (Exceptional Cases) को छोड़ दो तो बड़े बाबू बनने के लिए ज्यादा हुनर या किसी विशेष गुण या अत्यधिक परिश्रम करने की आवश्यकता नहीं होती है। चाहिए तो सिर्फ एक लम्बा कार्यकाल,  ४० पार की उमर और एक लम्बी जबान। जी हाँ कार्यकाल लम्बा होगा तो उसको अनुभव माना जायेगा (आप कहोगे की लम्बा कार्यकाल होना और अच्छा अनुभव होना अलग है तो मैं कहूँगा की ऐसा आप सोचते है, बड़े बाबू नहीं ) और अगर जबान लम्बी और टिकाऊ होगी तो अपने से ऊपर वालो के _ _ _ _ (रिक्त स्थान अपने विवेक से भर ले ) चाटने के अलावा अपने "लम्बे और अच्छे अनुभव" की दास्तान (धीरे से इसे डींगे हांकना पढ़े) सुनाने के काम आती है।दास्तान बोले तो अपनी पिछली पोस्टिंग या प्रोजेक्ट के बहादुरी, पराक्रम, कर्तव्यपरायणता  और हुनर की किस्से। याने की जंगल में मोर नाचा, किसने देखा वाली बात।

केवल इन दो गुणों(लम्बा कार्यकाल और जबान) की बदौलत इंसान कितना ऊपर जा सकता है यह बात समझने के लिए आपको न्यूटन या आईन्स्टाईन होने की आवश्यकता तो है नहीं। समझ गए न ?

यह तो बात हुयी गुणों की तो भईया जहाँ सुख है वहां दुःख है, जहाँ हँसी है वहाँ रोना भी है और जहाँ दिन है वहां रात है ऐसे ही जहाँ गुण है वहाँ अवगुण भी होंगे ही। सोचिये भला की बड़े बाबुओं में क्या क्या अवगुण होते होंगे ?नहीं नहीं ऐसे महापुरुषों में कोई भी अवगुण भला कैसे हो सकता है ये तो सिर्फ गुणों और सद्गुणों की खदान होते है।

चलिए हम उलटे क्रम (Chronological order) में बातें करते है अपने बड़े बाबुओ के Extra ordinary सद्गुणों  की और इन्ही सद्गुणों के महत्ता और ऐसे बाबुओ की उपलब्धता के आधार पर उनकी वरीयता भी इसी क्रम में रखते चले जायेंगे ।

४ . भुक्कड़ बाबू :


कुछ बड़े बाबू जो होते है न उनके दिमाग में सिर्फ खाना-पीना रहता है। ऐसे बाबू सुबह दफ्तर आते ही काम से पहले चाय पकौड़े निपटाएंगे।  दोपहर में खुद के डिब्बे  के साथ साथ औरो के डिब्बो को भी चट कर जायेंगे। और फिर शाम की चाय के साथ समोसे और कचोरी अलग। इनमे एक विशेष खूबी होती है, कहीं भी प्लास्टिक की थैली की चर -चर  की आवाज़ सुनते ही पहुंच जायेंगे इसी आस में की कुछ खाने का खुला है। यही नहीं अगर गलती से किसी का खाने का डिब्बा लीक हो रहा हो तो खुशबू से जान लेंगे की आज कोई बिरियानी लेके आया है। रात होते ही पीने की बातें और बातों के साथ यह कवायद भी शुरू कर देंगे की कहीं फ्री की पीने को मिल जाये तो जन्नत नसीब हो । ऐसे गुणों के स्वामी बड़े बाबू आपको बहुतायत में मिलेंगे इसीलिए  जनरल कैटगरी के ऐसे महान लोगो को अपने क्रम में अंतिम स्थान पर रखा है।

३ . ठरकी बाबू :

कौन आदमी ठरकी नहीं होता जनाब, जब संसद में बैठा सफेदपोश नेता भी अपने फ़ोन पे "उस टाइप" के वीडिओज़ देखता पाया जाता है तो बड़े बाबू तो फिर भी एक मामूली से दफ्तर में बैठे बाबू है। ठरकी हो सकते है।इस पूरी दुनिया में आदमी ही एक ऐसा प्राणी है जिसकी ठरक उम्र, ओहदे और पैसे के साथ बढ़ती ही जाती है। बड़े बाबू इस बीमारी से कैसे अछूते रह सकते है। जैसे कुछ बड़े बाबुओ के दिमाग पर खाना-पीना हावी रहता है उसी प्रकार कुछ लोगो के दिमाग पर सिर्फ लड़कियां ही हावी रहती है। ऐसे बड़े बाबुओ को अगर फिरंगी लड़कियों (औरतें भी) से रू-बरु करवा दो तो इनके दिमाग के कोने कोने में ऐसे रस का स्त्राव शुरू हो जाता है जो इनके इमोशन्स को बेकाबू करने की जी-तोड़ कोशिश करता है। इस सारी मानसिक जद्दोजहद के अंत में बड़े बाबू अपने छोटे बाबू को सिर्फ इतना कह पाते है की "बस यार जैसे तैसे कंट्रोल करता हूँ, नहीं तो मन तो करता है की............ " हालांकि कुछ बड़े बाबू इस जद्दोजहद में हार जाते है और अपने इमोशन के हाथो अपनी इज्जत भी गँवा बैठते है।  ऐसे चरित्रवान बाबू बहुतायत में न मिले किन्तु दुर्लभ भी नहीं है। इसीलिए हमारी लिस्ट में तीसरे स्थान पर है।

२ . आवारा-नाकारा बाबू : ( ज़ोम्बी बाबू )

यह वह श्रेणी है जिसके अंतर्गत आने का नसीब हर किसी का नहीं होता। मतलब एक तो आपको बड़े बाबू के पद से नवाजा जाये, और ऊपर से कुछ काम धाम न करने पर भी कोई कार्रवाई न हो। ऐसे तक़दीरवाले बड़े बाबू जिस भी दफ्तर, कॉर्पोरेट में होते है वहां इनकी चर्चाएं भी खूब होती है। इन्हे अगर आम जनता के साथ बैठने को कहा जाये तो बिदक जाते है , पर्सनल केबिन जरूरी होता है। इस कैटगरी के लोग कभी कोई काम ठीक से कर नहीं पाते और हमेशा शिकार की तलाश में रहते है जो इनका काम कर दे और इनके बदले की गालियां भी सुन ले। इन्हे कुछ लोग ज़ोम्बी बाबू भी कहते है क्योंकि ये कुछ प्रोडक्टिव काम तो नहीं करते अपितु इधर उधर भटकते रहते है और दुसरो के कामो में उंगली करते है। ऐसे बड़े बाबू हमारी लिस्ट में दूसरी वरीयता पर आते है।

१. सर्वगुण संपन्न बड़े बाबू :

हमारी लिस्ट के सर्वोच्च पायदान पर है वो बड़े बाबू जिनमे उपरोक्त सभी गुण प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होते है। इतना ही नहीं इन सभी गुणों के अलावा इनमे और भी कईं ख़ास बातें होती है जैसे चिन्दिगिरी(अपनी चाय के पैसे दुसरो से दिलवाना), आलसीपन(दफ्तर में सोते रहना), फटीचरी (पैसा कमाते हुए भी दिखाना भी इनसे गरीब कोई नहीं )इत्यादि। ऐसे छोटे मोटे गुणों का बखान तो हम कर ही नहीं रहे है। इतनी सारी विशेष कलाओं के धनि हमारी इस लिस्ट में प्रथम स्थान पर विराजमान है।

 किन्तु इस प्रजाति के बड़े बाबू सर्वगुण संपन्न बहु की भांति ही दुर्लभ है, किसी किसी बदनसीब के दफ्तर में ही मिलते है। पर जिसे भी मिलते है वो अगर इन्हे हँसते हँसते सह जाये, इनके साथ रहकर अपने सारे काम सकुशलता से निपटाता जाये तो उसे वीरता पुरूस्कार से नवाज़ा जाता है।

 इन सभी प्रकार के बड़े बाबुओ के बीच कुछ अपवाद भी पाये जाते है। यह अपवाद बड़ी लगन और श्रद्धा से, मेहनत और जूनून से अपना काम करते है। ऐसे बड़े बाबुओ को भी प्रणाम।

हमारे देश के सरकारी - प्राइवेट बड़े बाबुओ की यह चर्चा अब यहीं समाप्त करते है, फिर मिलेंगे अगले मसालेदार लेख के साथ। और हाँ आप भी अगर बड़े बाबू बनो तो हो सके तो मेरी उपरोक्त बातो को झूठा जरूर साबित करना।

एक मिनट  ..........
"क्या कहा आपने ? , IT  इंडस्ट्री मैं ?" अरे जनाब बिलकुल, यहाँ तो ऐसे बड़े बाबुओ की भरमार है। किसी भी प्रोजेक्ट में जाईये असल काम करने वाले सिर्फ २ या ३ मिलेंगे परन्तु उनके ऊपर ६-८  बड़े बाबू बैठे मिल जायेंगे। गौर से अपने आसपास देखिये और लेख फिर से पढ़िए, क्या पता आपके बाजु में ही कोई बड़ा बाबू बैठा हो।


सभी चित्र गूगल बाबू की कृपा से

Sunday 27 December 2015

गोआ



दुनिया भर के युवाओं के लिए चार छः आठ धामो में से एक धाम है गोआ। मतलब युवावस्था में एक बार गोआ घूमने जाना जिंदगी की चंद जरूरी चीजो में शामिल है और अगर यह यात्रा शादी से पहले हो जाये तो जीवन सुधर जाये।

हमारे इन यात्रियों की शादी से पहले और शादी के बाद वाले गोआ प्रवासो में काफ़ी अंतर होता है और यह अंतर क्या होता है यह बताना जरूरी नहीं है।

गोआ शब्द कानो में पड़ते ही हमारी कल्पना के घोड़े समंदर के उन किनारों पर दौड़ना शुरू कर देते है जहाँ मदिरा की लहरो की सूनामी आपके दिलो-दिमाग पर छा जाती है। इस जगह के बारे में सुनते ही कईं लोगो के दिमाग में एक ३ डी फिल्म चालू हो जाती है जिसके ३ आयाम होते है मदिरा, मादकता और मांसाहार। ( शुद्ध हिंदी में शराब-शबाब और कबाब )


गोआ के बारे में अब तक असंख्य यात्रियों ने अपने यात्रा वृतांत लिखे होंगे और लाखो लोगो ने अपने यात्रा अनुभवों को ब्लॉग के माध्यम से दुनिया के सामने परोसा होगा। गोआ यात्रा के बारे में सुनना, पढ़ना बड़ा ही क्लिेशे सा हो गया है इसलिए मैने सोचा मैं नया क्या ही लिख पाउँगा छोडो नहीं लिखते है। फिर आधी रात को ख़याल आया की साला शाहरुख़ खान जैसा सुपर स्टार भी कुछ नया नहीं कर पा रहा है, मोदी भी कितना नया कर ले लोग गालियां ही देते है तो मेँ कौनसा ऊपर वाला हूँ। मुझपर नया करने का कौनसा दबाव है ? लिख डालो गोआ पर। तो मेरे प्यारे दोस्तों जब मेने लिख डाला तो आप पढ़ डालो 

गोआ में शराब, शबाब, कबाब और समुन्दर की लहरो के सिवा भी आपको बहुत कुछ अजीब चीजे देखने को मिलती है, बस उन्ही अजीब चीजो को आप भी देखो मेरी नज़र से ।

एक आकर्षक हनीमून डेस्टिनेशन होने के नाते यहाँ कईं नए नवेले जोड़े दीखते है। समुद्र बीच पर हाथो में हाथ डाले, लहरो के साथ अठखेलियां करते ये जोड़े आपको बहुतायत में देखने को मिलेंगे। आप कहेंगे की इसमें अजीब क्या है तो देखिये एक नयी नवेली दुल्हन जिसके चूड़े से भरे पुरे हाथ, हाथो में धुंधली सी मेहंदी और उन्ही  हाथो में ब्रीज़र की बोतल। फिर गले में लम्बा सा मंगलसूत्र, गाढ़े सिन्दूर से भरी मांग, अनापशनाप मेकअप के साथ पैरो पर घुटने तक की मेहंदी और ऊपर हॉट पैंट्स। वहीं दुल्हन के बाजू में दुल्हेराजा गले में DSLR लटकाये अतरंगी रंग का चश्मा चढ़ाये सामने दो कपड़ो में लिपटी फिरंगी बालाओ और बाजू में बैठी बीवी के बीच नज़रो का टेबल टेनिस खेल रहे होते है।  है न अजीब दृश्य ?

यह तो नए जोड़ो का हुआ अब आपको दिखाते है सनसेट, मतलब पुराने जोड़ो का प्यार, अरे मतलब सनसेट पर बैठे कुछ पुराने कपल्स का प्यार। जब पति पत्नी एक साथ समुन्दर किनारे सूर्यास्त का आनंद ले रहे होते है और रोमांटिक बातो में मशगूल होते है तभी सामने से अल्प वस्त्रो में देशी-विदेशी बालाओं का एक झुण्ड गुजर जाये तब पतिदेव की आँखों में जो नूर आता है वो देखते ही बनता है। डूबता हुआ सूरज भी चमकने लगता है।




ऐसा नहीं नहीं है की गोआ में सिर्फ नए नवेले जोड़े ही आते है, या सिर्फ यंग क्राउड ही आता है बल्कि "शिवशंकर तीर्थ यात्रा कंपनी" के प्रौढ़ और बुजुर्ग दंपत्ति भी आपको गोआ का रसपान करते हुए दिख जायेंगे। ऐसे जोड़े समुन्दर किनारे अक्सर चाय ढूंढते पाये जाते है। गोआ में आपको हर दो कदम पर दारू की दूकान मिल जाएगी परन्तु अगर आप चाय के शौकीन है तो फ्रस्ट्रेट हो जायेंगे। ऐसे ही फ्रस्ट्रेट होते हुए मिस्टर श्रीवास्तव आकर घुटने मसलते हुए बैठी बेचारी मिसेज़ श्रीवास्तव को समझाते है, बहुत ही कमीने लोग है यहाँ के ४० रुपये में चाय बेच रहा है वो भी गरम लाल मीठा पानी, तुम चाय पीना छोड़ ही दो अब।

गोआ में एक और चीज बहुत प्रसिद्द है और वो है टैटू स्टूडियो। इसमें अजीब क्या है अब ? आपको पूछा जाये की टैटू की दूकान का कोई रैंडम नाम सोचिये तो आपके दिमाग में आएगा रॉकी टैटू, सैंडी टैटू , बीच-वे टैटू इत्यादि। किन्तु असल में ऐसा नहीं है, गोआ में आपको गुप्तजी टैटू वाले, रमेश टैटू स्टुडिओ, रामलाल टैटू वाला भी है।
जहाँ कईं लडके अपने बाजुओं पर ऐसी ऐसी डिज़ाइन बनवाते नजर आते है जिनका मतलब उन्हें खुद भी समझ न आये। और तो और कईं लडको के टैटू तो दिखाई भी नहीं देते क्योंकि स्किन कलर और इंक कलर एक ही होता है। (ख़बरदार जो मुझे रेसिस्ट कहा).

और सबसे अजीब और अनोखी चीज जो आज हर जगह देखने ही मिलती है उससे गोआ कैसे अछूता रह सकता है ? वो चीज है सेल्फ़ी प्रेम। कुछ लोग यहाँ  सिर्फ इसलिए आते है ताकि २ दिन घूम के 1760 फोटो खीच के फेसबुक पे डाल सकें। उसके बाद फिर इन्तेजार लाइक्स और कमेंट्स का तब जाकर होती है गोआ यात्रा सफल।

अगली बार जब आप गोआ जाएँ तो "कुछ हटके" जरूर देखियेगा और खुद भी करियेगा।















Tuesday 1 December 2015

असहिष्णुता

दृश्य एक :
स्थान: पुणे
समय-काल  : गणेशोत्सव के आस पास

कहते है की गणेशोत्सव की धूम धाम इस शहर से बढ़कर कहीं  देखने को नहीं मिलती , सच भी है। इस वर्ष भी गणेशोत्सव की तैयारियाँ जोरो शोरो से चल रही है। जोर इस लिए क्योंकि बड़े बड़े ढोल ताशे घंटो उठा के प्रैक्टिस करने में बड़ा जोर लगता है और फिर होने वाला शोर तो वाज़िब है ही । पुणे में गणेश विसर्जन बड़ा खास होता है, भिन्न भिन्न ढोल-ताशा पथक इसके लिए महीनो पहले रियाज़ शुरू करते है और अपनी प्रस्तुति देते है।
इस बार नव-युवा चेतना समूह भी जोर शोर से तैयारी कर रहा है, इस समूह में ६ से  ७० साल तक के सदस्य है। एक ८  साल का बच्चा अपने घर वालो से ज़िद करके अभी अभी इस समूह में दाखिल हुआ है और समूह के सदस्यों ने उसका भव्य स्वागत भी किया।  मात्र ३ दिनों में ही इस बालक ने पुरे समूह का दिल जीत लिया है। अपने अन्य साथियों के साथ वो भी अपने नाजुक कंधो पर भारी ढोल उठा के ताल से ताल मिलाके घंटो प्रैक्टिस करता है।


कईं दिनों की प्रैक्टिस के बाद गणेश विसर्जन के दिन  समूह को अन्य बड़े बड़े ढोल पथको के साथ प्रस्तुति देने का अवसर प्राप्त हुआ । ६ घंटे सतत रूप से ढोल और ताशो के लय ताल से भरे युद्ध में अंततः इस युवा समूह को विजयी घोषित किया जाता है। समूह के सभी बड़े सदस्य छोटे छोटे सदस्यों को अपने कंधे पर उठाकर झूम रहे है। हमारा ८ वर्षीय बालक जो अपने घरवालो से लड़कर इस समूह में शामिल हुआ था वो भी बहुत खुश है। आज उसके माता पिता भी बहुत खुश है यह देख कर की उसे समूह के बाकी लोगो से कितना प्रेम मिल रहा है। J

दृश्य दो:
स्थान: हैदराबाद
समय -काल : रमज़ान का महीना

हैदराबाद की चार मीनार और बिरियानी के अलावा वहां की ओल्ड सिटी में बोली जाने वाली हिंदी भी विश्वप्रसिद्ध है। क्या कहा ? आपने नहीं सुनी वहां की हिंदी ? क्या हौले जैसी बातां करते मियां तुम, तुम हयदेराबाद की हिंदी नको सुने तो क्या सुने जी  ?
चलिए मजाक की बात छोड़िये मुद्दे की बात करते है।
रमज़ान का महीना है, ज्वेलरी की दूकान पर सेठ जी के यहाँ काम करने वालो में ज्यादातर लोग रोज़ा रखते है। जो लोग रोज़ा नहीं रखते वो रोज़ा रखने वालो का ध्यान रखे इस बात का सेठजी पूरा ध्यान रखते है। सेठ जी ने अपने शोरूम के ऊपरी माले में एक कमरा खाली करवाया है। भोजन काल के दौरान रोज़ा न रखने वाले चुपचाप बिना कोई शोर किये उस कमरे में जाके अपना भोजन करके आ जाते है और फिर शाम तक न पानी का और न ही भोजन का कोई जिक्र करते है। शाम होते ही सेठजी अपनी और से इफ्तार के लिए भोजन सामग्री मंगवाकर रोज़ा करने वालो को उसी ऊपरी माले के कमरे में भेजते है जहाँ वो इत्मीनान से अपना रोज़ा खोल सके।


 पुणे वाले किस्से में उस ८ साल के बालक का नाम है  सोहैल  जी हाँ एक मुस्लिम परिवार का बच्चा जो हिन्दुओं के त्यौहार में ढोल बजा रहा था जहाँ  उसे मान सम्मान भी भरपूर मिला।और उसके परिवार ने भी धार्मिक सहनशीलता दिखाते हुए उसे आज़ादी दी अपने मन की करने की।
हैदराबाद की घटना में यह जौहरी सेठ एक हिन्दू है जिन्हे यह भी पता है की इंसानियत भी एक धर्म है। इन्ही सेठ के यहाँ कईं वफादार कारीगर मुस्लिम समुदाय से है और प्रतिवर्ष इनकी दूकान पर ईद और दीवाली समान रुप से मनाई जाती है।

यह किस्से सत्य घटनाओँ से प्रेरित है। ऐसे ही असंख्य किस्से है जो हमारे आस पास बिखरे पड़े है। हम आम लोगो का जीवन बीते कईं वर्षो से इसी प्रकार चल रहा है।किन्तु हमें कभी नहीं लगा की देश में असहनशीलता का वातावरण है। हाँ यह एक राजनैतिक बहस का मुद्दा जरूर हो सकता है किन्तु जरा विचार कीजिये की क्या देश के हीत के लिए ऐसी नकारात्मक बातें फैलाना उचित होगा ? हमें अपने विवेक से भी काम लेना होगा, हम इतने साधन संपन्न भी नहीं है की किसी ने कुछ कहा और देश छोड़ के चले जाएँ।

चलिए अभी इन वास्तविक किस्सों से परे एक काल्पनिक किस्सा सुनाते है।
दृश्य ३
स्थान : आमिर खान का घर,मुंबई
समय-काल : दिसंबर २०१५

३ साल का आज़ाद घर छोड़ने की ज़िद्द लिए बैठा है क्योंकि उसको उसकी माताजी ने डांट दिया है। क्यों ?
क्योंकि अब उसकी शैतानियाँ बर्दाश्त से बाहर है। जब आमिर ने पूछा की बेटा अगर मम्मी ने जरा सा डांट दिया तो इसमें घर छोडनें की क्या जरुरत है ?
मासूम आज़ाद का जवाब सुनिए : "मम्मी को तो किसी ने नहीं डांटा था और वो इंडिया छोड़ने की बात कर रही थी तब तो आपने उन्हें कुछ नहीं कहा और मुझे ज्ञान पेल रहे हो पापा ? हैँ ? "



चित्र: गूगल इमेज सर्च के सौजन्य से









Saturday 28 November 2015

मैनेजर


मैनेजर
यह वह प्रजाति है जो हर दफ़्तर, हर संस्था, हर दूकान और यहाँ तक की गली नुक्कड़ों पर हो रही चर्चाओं में भी पायी जाती है। दफ़्तर सरकारी हो या प्राइवेट आपको भिन्न भिन्न प्रकार के मैनेजर हर जगह देखने सुनने को मिलेंगे।

अगर आपको इस प्रजाति के विशेष गुणों की चर्चा सुननी हो तो किसी भी दफ़्तर के बाहर की चाय-सुट्टे की टपरी पर जाकर आईये, आपको मैनेजर के भांति भांति के लक्षणों, गुणों के बारे में पता पड़ेगा। वैसे मैनेजर खुद अपने बारे में इतना नहीं जानता होगा जितना की वो चाय की टपरी वाला जानता है।  ऐसा भी माना जाता है की जिस वक़्त कुछ कर्मचारी चाय के साथ सुट्टा मार रहे होते है ठीक उसी वक़्त उनके मैनेजर की माताजी और बहन जी को गज्जब की हिचकियाँ आ रही होती है। खैर इसके पीछे के साइंस को मत समझिए, जाने दीजिये।



आपको एक बात बता दे की कईं कर्मचारीगण अपने जीवन में एक बार मैनेजर बनने का हसीं ख्वाब जरूर देखते है। यह बिलकुल उसी प्रकार है जैसे कॉलेज में फ्रेशर अपने सीनियर द्वारा हुए अत्याचारों की भड़ास निकालने के लिए खुद सीनियर बनने के ख्वाब बुनता है। फिर जिस प्रकार उस कर्मचारी ने अपने मैनेजर का "तथाकथित" सम्मान किया, उसकी हर बात को ब्रह्मवाक्य मानकर पूर्णतः पालन किया, कभी उसकी किसी बात का विरोध नहीं किया, उसी कर्मचारी का मैनेजर बनने पर अपनी निचले कर्मचारियों से भी यही सब करने की अपेक्षा करना स्वाभाविक है।

मैनेजर होना बिलकुल उस कढ़ाई की तरह है जो भट्टी पर रखी होती है और जिसमे तरह तरह के प्रोजेक्ट पकवान की तरह पकते रहते है। इस कढ़ाई में सामान्य कर्मचारी तेल या घी की तरह गरम होते है और इस गर्म कढ़ाई को कोसते है। किन्तु बेचारी कढ़ाई भी अपनी निचे लगी भट्टी की आग को झेल रही होती है। ऐसे में कढ़ाई का मजबूत होना बहुत आवश्यक है। कभी कभी जब कढ़ाई आग सहन न कर पाये और पिघल के पकवान में मिश्रित होने लगे तो पकवान स्वादिष्ट नहीं रह पाते है और कसैले स्वाद के लिए कढ़ाई को ही जिम्मेदार ठहराया जाता है। इसलिए आग इतनी भी नहीं बढ़नी चाहिए की कढ़ाई को कढ़ाई न रहने दे और पकवान को ज़हर बना दे।

इसीलिए कह रहे है की मैनेजर होना आसान नहीं है साब, बहुत मुश्किलें है। ऊपर निचे आगे पीछे हर जगह से तपना पड़ता है। अगर आपको कोई ऐसा कर्मचारी मिले जो १०-२० साल नौकरी करने के बाद भी मैनेजर न बन पाया हो और एक सामान्य कर्मचारी का जीवन जी रहा हो तो उसे मुर्ख मत समझिए। मेरा यकीन मानिए उस महान आत्मा को जरूर इस कढ़ाई वाले ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति हो गयी होगी।


दुनिया के समस्त मैनेजर प्रजाति के लोगो को समर्पित।

डिस्क्लेमर: यह पोस्ट किसी भी प्रकार से प्रायोजित पोस्ट नहीं है और न ही इसका आने वाले अप्रैज़ल साईकल से कोई लेना देना है ।


देश भक्ति

  देश भक्ति , यह वो हार्मोन है जो हम भारतियों की रगो में आम तौर पर स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस  या भारत पाकिस्तान के मैच वाले दिन ख...