Thursday, 4 December 2014

एक बंधुआ मज़दूर की कहानी

 क्या आप भगवान या भाग्य में यकीन रखते है ?

आप कहोगे की आज यह कौनसी बेतुकी बात कर रहे हो , खुद की मेहनत और हुनर के सिवा किसी पे यकीन करना बईमानी है। पढ़े लिखे नवजवान जो ठहरे आप, ऐसा ही सोचना होगा आपका, है ना ? अब भइया हम आपको एक सच्ची घटना पर आधारित कहानी सुना रहे है,  मतलब पढ़वा रहे है।  इसको पढ़कर आपको यकीन हो जायेगा की गरीब, ईमानदार और मेहनती लोगो को उनका ईश्वर उन्हें न्याय जरूर दिलाता है।

यह घटना मध्यप्रदेश  के एक छोटे से गाँव की है, गाँव मे अधिकांश लोग किसान है और सब के सब बड़े किसान है और उँची जाती से है तो ज़ाहिर सी बात है की खेतो में काम करने के लिए मज़दूर मिलना बहुत मुश्किल होता होगा किसानो के लिए। इसीलिए मज़दूरी के लिए बाहर से लोगो को लाया जाता है और अपने खेत पर रख कर साल भर काम करवाया जाता है।

ऐसे ही एक बड़े किसान परिवार जिसका मुखिया है रामप्रसाद ने मध्यप्रदेश के नीमाड क्षेत्र से एक मजदूर परिवार जिसका मुखिया है मोहनलाल  को अपने यहाँ लगभग बंधुआ मजदूर की हैसियत से रखा हुआ था। नाम मात्र का वेतन और खूब सारा काम करवाया जाता था उनसे. मोहन का परिवार भी इसी बात से खुश था की कम से कम २ वक़्त की रोटी तो मिल रही है पूरे परिवार को नही तो अपने क्षेत्र मे ना तो बारिश है ना ज़मीन ही इतनी उपजाऊ की कुछ काम मिल सकता।



गाँव हो या शहर, किसान हो या उद्योगपति, कॉम्पीटिशन के इस समय मे हर कोई अपने प्रतिद्वंदी को निचा करने का मौका ढूंढता है।  इसी गाँव के दूसरे किसान परिवार ने जिलाधीश कार्यालय में रामप्रसाद की शिकायत लगा दी।  शिकायत पर जिला कलेक्टर ने मोहन के  परिवार को बंधुआ मजदूर घोषित कर गाँव से रिहा कर के उनको वापस अपने गाँव भिजवा दिया।

अभी यहाँ पर सवाल यह है की सरकारी कायदो के मुताबिक कलेक्टर ने सही किया या मानवीय आधार पर गलत किया ?खैर जो भी हो , अभी एक परिवार बेरोज़गार हो गया था और दूसरी तरफ एक बड़े किसान की फसल पर विपरीत असर होने आया था।  सरकारी कायदो के मुताबिक बाहर के व्यक्ति को "जबरदस्ती" अपने खेत पर कम वेतन पर रखना और काम करवाना "बंधुआ मज़दूरी" की श्रेणी में आता है।

किसान परिवार के मुखिया रामप्रसाद ने पुनः उस मोहन के  परिवार को अपने  गांव में बुला लिया और इस बार उसको गांव का स्थाई निवासी बना लिया, याने की  उसके राशन कार्ड, वोटिंग कार्ड इत्यादि उसी गांव के बनवा दिए।  अब मोहन इसी गांव का निवासी हो गया और दिहाड़ी मज़दूरी पर रामप्रसाद के यहाँ काम करने लगा। 

६ महीने बाद गांव के पंचायत के चुनाव के समय इस गांव की सीट अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवार के लिए आरक्षित घोषित की गयी। और इस बार गांव को बगैर चुनाव के ही सरपंच मिल गया।  पुरे गांव में केवल एक ही परिवार था जो अनुसूचित जनजाति का था और जिसके पास गांव के स्थाई निवासी होने के वैध कागज़ भी थे।
जी हाँ दोस्तों, वो था मोहन का परिवार। और हाँ अब मोहन को उस गांव में मज़दूर नहीं मोहन सरपंच के नाम से जाना जाता है।

तो अब बताईये की यहाँ भाग्य ने अपना खेल खेला की नहीं ??



Tuesday, 25 November 2014

प्रमोशन

पिछली लघुकथा "आवारा लड़का "को बहुत ही अच्छा प्रतिसाद मिलने के बाद आप लोगो के लिए एक और कहानी लेकर मैं उपस्थित हो रहा हूँ जिसका शीर्षक है "प्रमोशन". आशा है की इसे भी आप पसंद करेंगे।

इस कथा के सभी पात्र, घटनाएँ तथा स्थान पूर्णतः काल्पनिक है जिनका किसी से कोई लेना देना नहीं है।
---------------------------------------------------------------------------------------

संजय ४८ वर्ष के एक नौजवान प्रौढ़ मॅनेजर है जो की एक मल्टिनॅशनल बैंक मे कार्यरत है| घर मे एक खूबसूरत बीवी के अलावा इनकी एक जवान बेटी टिया है जिसने कुछ ही महीनो पहले शहर की ही एक बहुत बड़ी आय.टी. कंपनी मे जूनियर सॉफ्टवेर इंजीनियर के तौर पर जॉईन किया है|

संजय साब के सहकर्मी इन्हे इनकी पीठ पीछे रंगीला संजू भी कहते है, ऐसा क्यों कहते यह जानने के लिए चलते है इनकी एक महफ़िल मे।
संजू भाई साहब अपने ३चेले चपाटो के साथ एक क्लब मे दारू पार्टी मे बैठे है और अपनी जवानी (जो अब भी दारू के साथ चढ़ ही जाती है ) के किस्से बयाँ कर रहे है,  और वो क्या कह रहे है लीजिए आप खूद ही सुन लीजिए।

"अर्रे प्रशांत तू देल्ही घूमा की नही, यहाँ के मस्त वाले एरिया मे गया की नही अब तक" ?,
"नही सर, वैसे किस टाइप के मस्त एरिया की बात कर रहे हो आप ?"
"अबे तू जवान है, कुँवारा है, यही तो उम्र है हर चीज़ एक्सप्लोर करने की, साले हम तुम्हारी उम्र के थे ना तो कहर बरपा के रखे थे "
तभी प्रशांत कहता है "बताईए ना सर कोई किस्सा आपके जमाने का "
" जब में नया नया शिफ्ट हुआ था ना देल्ही मे तो अकेला ही आया था , फॅमिली को होमटाउन मे ही छोड़ के आया था, तब मैं और मेरे कुछ और तुम्हारे जैसे दोस्त , रात मे निकल पड़ते थे, पहले क्लब जाके दारू पीते फिर वो नये वाले थियेटर के बाजू वाली गली मे  जाके वहाँ से बढ़िया वाली २-३टॉप क्लास मॉडेल लेके आते और किसी भी एक दोस्त के फ्लॅट पे जाके सारी रात मौज मस्ती करते"
"समझे कुछ, अरे मैं  शादीशुदा होके इतनी अय्याशी कर सकता हूँ तो तुम क्यों नही ?'

प्रशांत और उसके २ साथी बस सुनते रहते है चुपचाप, प्रशांत मन ही मन सोचता है की साला हमने जिंदगी मे किया ही क्या है, इसको देखो कितना मौज करता है और एक हम है जो घर का किराया, पढ़ाई का लोन, बहन की शादी और पिताजी की दवाई मे ही उलझे हुए है।

तो अब तक आप समझ चुके होंगे की संजय भाई साहब को रंगीला क्यों कहा जाता है।

दर-असल प्रशांत संजय की बैंक मे प्रशिक्षु (प्रोबशनरी) अधिकारी के तौर पर और २० लोगो के सांथ  भरती हुआ है, सब के सब संजय के अधीन ट्रैनिंग ले रहे है और किन्ही १० अशिकारियों  को ही पर्मनेंट किया जाना है और बाकी १० को घर भेज दिया जाना है।


ट्रैनिंग, उसके बाद होने वाली एग्ज़ॅम के रिज़ल्ट और प्रशिक्षण के दौरान रहन सहन के आधार पर तय किया जाना है की कौन रहेगा और कौन घर जाएगा , किंतु आज की दुनिया मे हर चीज़ इतनी आसान नही होती जितनी की वो लगती है। जो फल बाहर से जितना अच्छा दिखता है, और खाने पर जितना स्वादिष्ट होता है उसके बीज उतने ही तकलीफ़ देते है, इसी प्रकार से हर कहानी मे कोई ना कोई ट्विस्ट ज़रूर होता है, यहाँ भी है।

ट्रैनिंग, उसके बाद होने वाली एग्ज़ॅम के रिज़ल्ट और प्रशिक्षण के दौरान रहन सहन गया चूल्‍हे मे, दर-असल संजय साहब की मर्ज़ी से तय होगा की कौन स्थाई कर्मचारी बनेगा और कौन घर जाएगा।

प्रशांत और उसके बहुत से साथी यह बात ट्रैनिंग ख़त्म होते होते जान चुके थे, प्रशांत के लिए इस नौकरी का होना उतना ही ज़रूरी था जितना निधि के लिए, और दोनो को यह नौकरी हर हाल मे बचानी ही थी।

निधि, एक सीधे सादे बॅकग्राउंड की लड़की है साहब, जबलपुर जैसे छोटे से शहर से आई है, विधवा माँ के सिवाए निधि का इस पूरे विश्व मे कोई शुभचिंतक नही है। असल में आज के परिदृश्य में किसी अकेली लड़की का कोई शुभचिंतक होना करीबन नामुमकिन है।  हिन्दी फिल्म "जब वी मेट" के अनुसार अकेली लड़की एक खुली तिजोरी की तरह होती है जिसकी कमज़ोरी का फ़ायदा उठाने को चारो तरफ भूखे भेड़िए तैयार बैठे रहते है, बस वही हाल है । बहरहाल, निधि अपनी हिम्मत, हौसले और काबिलियत के दम पर बैंक मे प्रोबशनरी ओफीसर के पद पर नियुक्त हुई है और अपनी इन्ही ख़ूबियों के दम पर आगे बढ़ना चाहती है।

प्रशांत की कहानी भी बिल्कुल सीधी सादी है, प्रशांत हिन्दी फिल्म ३ ईडियट्स के किरदार राजू की तरह है , उसके घर मे बीमार पिताजी, माताजी के अलावा एक जवान बहन है।  प्रशांत के सर पर भारी भरकम एजुकेशन लोन है, पिताजी का इलाज चल रहा है जिसमे उनकी सारी पेंशन खर्च हो जाती है, घर का खर्च चलाने के लिए बहन ट्यूशन पढ़ाती है। इन सब चीज़ो की चिन्ताओ की लकीरे प्रशांत के माथे पर साफ़ देखी जा सकती है।











खैर कहानी के इन २ शुद्ध आम भारतीय किरदारो की स्थिति से आप समझ ही गये होंगे की इनके लिए यह नौकरी कितनी ज़रूरी है, बाकी के १८ प्रशिक्षु भी कोई पूंजीपति  या राजनैतिक घराने से नही आते, वो भी इन्ही मे से एक है।

आज से ठीक एक हफ्ते मे संजय साब को फाइनल लिस्ट अपने टॉप मैनेजमेंट को देना है, इसकी तैयारी भी हो चुकी है। कल रात रोहित की तरफ से संजय सर को अनलिमिटेड दारू पार्टी मिली है, देल्ही की ही रहने वाली सोनिया भी जॉब बचाने के लिए थोडा "कोम्प्रोमाईज़" करने को राज़ी हो गयी है।  संजय साब ने अपने घर पर इंपॉर्टेंट बीजिनेस ट्रिप का हवाला देकर १ हफ्ते के लिए शहर मे ही होटेल बुक कर लिया है, जिसका पूरा खर्चा मुंबई से आए सौरभ ने उठाया है। इसी होटल के रूम में बाकी के "टेस्ट" होंगे जिनके आधार पर फाइनल लिस्ट बनायी जाएगी।

आज संजय सर ने निधि को पिंग किया " केन यू कम टू माइ कॅबिन ?” निधि ने तुरंत रिप्लाइ किया "यस, कमिंग"

"देखो निधि, तुम्हारा रिज़ल्ट थोडा सा गड़बड़ आया है, परफॉरमेंस  भी तुम्हारा वीक ही रहा है, अब ऐसे मे तुम्हे पर्मनेंट करना थोड़ा टॅफ हो रहा है"

"लेकिन सर, मैंने  ......."

"रहने दो निधि, अब कुछ नही हो सकता, कॉम्पिटीशन बहुत टॅफ है, तुम अच्छे से जानती हो  की बाकी के लोग कितने टॅलेंटेड है. . . . . . . . "

"फिर भी तुम चाहो तो मैं कुछ कर सकता हूँ" धीरे से संजय बाबू अपनी कुर्सी से उठकर निधि के पास आके उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहते है
" मेरे हाथ मे ही है फाइनल लिस्ट, रश्मि का नाम काट के तुम्हारा नाम जोड़ सकता हूँ, बस तुम्हे एक और टेस्ट पास करना होगा"

निधि को उम्मीद की एक किरण नज़र आई तो उसकी आँखें चमक गयी, उसने बिना समय गँवाए पूछा
"मैं  तैयार हूँ सर हर टेस्ट के लिए, बताईए कैसा टेस्ट देना होगा मुझे ?"

"होटेल कॅपिटल-इन मे आज शाम को मेरे साथ पूरी रात टेस्ट देदो, कल ही तुम्हारा नाम पर्मनेंट ओफीसर्स की लिस्ट मे जूड जाएगा, यही नही, अगर तुमने आज रात बहुत अच्छा  परफॉर्म किया तो में तुम्हे मिड-टर्म प्रमोशन के लिए भी रीकमेंड कर दूँगा।  सोच लो, आजकल हर बड़ी कंपनी में ऐसे ही सर्वाइव किया जाता है। "

यह सुनते ही निधि की आँखें जो थोड़ी देर पहले खुशी से चमक रही थी, गुस्से से लाल हो गयी और वो गुस्से मे अपने पैर पटकते हुए बाहर आ गयी, सारा गुस्सा लावा की तरह पिघल के उसकी आँखों से बह रहा था। ऐसा होते उसने अब तक क्राइम पेट्रोल और सावधान इंडिया के एपिसोड्स मे ही देखा था, लेकिन ऐसी घिनौनी बातें अगर असल जिंदगी मे हो तो मन व्याकुल हो उठता है, दील और दीमाग काम करना बंद कर देते है। गुस्से और दुःख  के मिश्रित भाव हमारे ज़हन को भर देते है। यही हाल निधि का था।  निधि ने अब तक अपने ज़मीर का, अपने आदर्शो का सौदा कभी नही किया था, उसके पास उसकी हिम्मत, हौसला और उसके आदर्श यही जमा पूंजी थी जो वो किसी हाल मे गँवाना नही चाहती थी, उसने संजय के आगे झुकने  की बजाए लड़ने का फ़ैसला किया। और टॉप मैनेजमेंट को इसकी शिकायत करने की ठानी।

और जैसा की आप जानते है की आज के परिदृश्य में एक अकेली और जरूरतमंद लड़की को हर कोई अपनी जरूरत का "सामान" समझता है, निधि के सांथ भी यही हुआ उसको चक्कर लगवाये गए, यहाँ से वहां, इस ऑफिस से उस ऑफिस।  बहार हाल वो और प्रशांत मिलकर अब भी कोर्ट में एक केस लड़ रहे है बैंक के खिलाफ।

खैर, संजय को जो करना था उसने वंही किया और उस घटना के एक हफ्ते बाद संजय होटल से अपने घर लौटा तो देखता है की घर पर एक सजावट की गयी है, घर के हॉल मे किसी छोटे सेलेब्रेशन की तैयारियाँ हो रखी है, तभी अंदर से टिया भागती हुई आई और संजय कुछ  कहता उसके पहले ही टिया  ने अपने पापा को गले लगाते हुए ऐसा कुछ कहा जो आज भी संजय के कानो में गूंजता रहता है।

टिया ने कहा

पापा "It's Party Time" मेरे परफॉरमेंस से मेरा मैनेजर इतना खुश हुआ की उसने मुझे अपनी कंपनी में न केवल परमानेंट एम्प्लोयी किया बल्कि मुझे मिड टर्म प्रमोशन के लिए रिकमेंड भी किया है ।



नोट: चित्र गूगल इमेज सर्च के सौजन्य से 
----------------------------------------------------कथा पर आपकी टिप्पणियां आमंत्रित है। 

Thursday, 20 November 2014

अजनबी हवा

यह कविता मेने आज से करीब ६- ७ साल पहले तब लिखी थी जब हम लोग कॉलेज से पास आउट होकर अपनी अपनी नौकरियों की तलाश में या जॉइनिंग के लिए निकल रहे थे, जब बीता हुआ कॉलेज का हर लम्हा आँखों के सामने फ़्लैश बैक की तरह घूम रहा था। हम सभी ने कॉलेज में एडमिशन इसी दिन के लिए तो  लिया था की एक दिन अच्छी कंपनी में नौकरी करने जायेंगे, पर जॉब मिलने की ख़ुशी से ज्यादा इस बात का अफ़सोस था की कॉलेज में बने दोस्त बिछड़ जायेंगे, अलग अलग शहरों और कंपनियों में चले जायेंगे।  और वैसे भी किसी महान शख्स ने कहा है की दोस्त कॉलेज लाइफ तक ही मिलते  है उसके बाद जो मिलते है वो तो सिर्फ कलीग्स होते है।

आईये एक "एमेच्योर कवि" की हिंदी -उर्दू  मिश्रित कविता की चंद पंक्तियों का आनंद लीजिये, और अच्छी लगे या बुरी , कमेंट करके बताईये।


कदमो को जुदा जुदा सी लगे यह जमीं। 
इन सांसो को हवाएँ भी लगने लगी अजनबी। 

सर पर है जो आसमाँ वो भी लगता अब अपना नहीं। 
लम्हा लम्हा गुजरता यह वक़्त क्यों थमता नहीं। 

इन अजनबी हवाओं के साथ बाह चले है सभी। 
कुछ ख्वाब पुरे हुए, कईं और  ख्वाब बाकी है अभी। 

राहें बदल जाएंगी, ख्वाब बदल जायेंगे। 
पर इन ख्वाबो को पनाह देंगी ऑंखें वही। 

हमने न सोचा था की ये पल इतनी जल्दी आएंगे। 
हँसते खेलते ये  साल यूँही बीत जायेंगे। 

जिस डोर से जिंदगी को नचाया था हमने कभी। 
उसी डोर पर कठपुतलियों की तरह नाचेंगे हम सभी। 

जंदगी नए मोड़ पर खड़ी है अपनी हकीक़त का आईना लेकर। 
और एक हम है जो इस वक़्त को थाम रहे है हाथो से पकड़ कर। 

यह वक़्त अब नहीं थम पायेगा, पहिये की तरह घूमता जायेगा। 
इन चंद सालो का हर एक लम्हा यादों के सुनहरे पिंजरे में कैद हो जायेगा। 

कॉलेज से भले ही हम हो रहे है विदा। 
पर खुद को कभी न समझना दोस्तों से जुदा। 

हम फिर मिल जायेंगे, वही हंगामा फिर मचाएंगे। 
मिल कर फिर इस जिंदगी को उसी की डोर से नचाएंगे। 

-प्रितेश दुबे 


Sunday, 16 November 2014

आवारा लड़का

आईये आपका पुनः स्वागत है कट टू कट के इस नए लेख पर , अब तक की मेरी रचनाएँ हमारे दैनिक जीवन की उठा पटक को देख कर लिखी गयी है जिनमे मेने थोड़ा व्यंग्य का नमक भी छिड़का है।  आज संभवतया पहली बार यह एक कहानी नुमा लेख आपके समक्ष प्रस्तुत कर रहा हूँ जो की "फिक्शन" की श्रेणी में आता है जिसका शीर्षक है "आवारा लड़का "। आशा है आप इसे भी पसंद करेंगे। 

यह कहानी है एक १७ साल के किशोर की, जो अपने जीवन के उस दौर में है जहाँ हमें कोई एक राह चुन कर आगे बढ़ना होता है , समाज वाले इस उम्र को "कच्ची उम्र" भी कहते है क्योंकि अभी तक जीवन रूपी घड़े की मिटटी कच्ची ही होती है इसके बाद इसे जो रूप देदो वो रूप अख्तियार करके जीवन आगे बढ़ जाता है। यह कहानी है गोलू की। 



गोलू, बी. कॉम प्रथम वर्ष का छात्र है, इसका ज़्यादातर समय अपने दोस्तो मे इधर-उधर की सम-सामयिक चर्चाएँ करने मे गुजरता है, एक 17 साल का किशोर किस तरह की सम-सामयिक चर्चाओं मे व्यस्त रहता होगा इसका बखान करने की शायद आवश्यकता नहीं है, यह वो उम्र होती है जब इंसान के शरीर और मस्तिष्क पर "क्यूरीयोसिटी" नाम का वाइरस अपना क़ब्ज़ा जमा चुका होता है और गाहे-बगाहे दीमाग के किसी शांत पड़े कोने मे कुलबुलाता रहता हैं| अक्सर जब यह कुलबुलाता है तो इसे शांत करने के लिए इंसान कई तरह के इलाज के पीछे भागता है, वैसे सबसे सस्ता और कारगर इलाज है दोस्त।   जी हाँ  मन मे जो भी विकार हो, कोई कुलबुलाहट हो, सीधा जाके अपने दोस्तो से डिसकस करो, सारे वाइरस एकदम शांत हो जाते है| दोस्त या तो आपको सटीक तरीका बता देंगे जिससे सारी कुलबुलाहट मिट जाए, या फिर उस वाइरस को दीमाग के एक कोने से दूसरे कोने मे शिफ्ट कर देते है, और इसी प्रक्रिया मे थोड़ी देर के लिए सही, हमारा "क्यूरीयोसिटी"  वाइरस शांत रहता है|

बहर-हाल बात करते है गोलू की, गोलू ने अपनी कक्षा 12वी तक की पूरी पढ़ाई मोहल्ले के  "गवर्नमेंट बॉय्स उ. मा. विद्यालय" से ही पुरी की है, और उसके ज़्यादातर दोस्त भी उसी स्कूल से पास/फैल/आउट होके निकले है। गोलू के आधे से ज़्यादा दोस्तो को सितारो से जडीत मार्क-शीट मीली, और उन्होने इधर-उधर ट्राय करने के बाद अपने पिताओ के घरेलू व्यवसाय संभालने शुरू कर दिए|
परंतु गोलू थोड़ा ख़ुशनसीब निकला और ठिक-ठाक अंको से स्कूल कि दहलीज पार करने का सर्टिफिकट लेकर अब कॉलेज जाने लगा है। उसके नये नये दोस्त भी बने है , पूरी 100% पुरुष मंडली। शुद्ध रूप से लडको के स्कूल से पढकर आने वाले विद्यार्थी के लिये सबसे आसान काम होता है “बॉय्स ओनली ग्रूप बना लेना और फिर उस लडके कि जम्के खींचायी करना जो भुले से भी कन्याओ कि मंड्ली मे शामील हो गया हो। या यूँ कह लीजिए की अंगूर खट्टे के खट्टे ही रहते है|

अभी कॉलेज की ख़ास बात यह है की यहा गोलू के सिर्फ दीमाग मे ही वायरस छट्पटाता है आँखों मे कोई वाइरस नही कुलबुलाता, क्योंकि को-एड कॉलेज मे दाखिला लिया था, इसीलिए आँखें ठंडक पाने को कम ही तरसती थी|
गोलू और उसकी मंडली ज़्यादातर अपना समय ऐसी जगहो पर बीताते है जहाँ कन्याओ के झुंड का आना जाना ज्यदा होता हो।
 खैर अब तक यहाँ गोलू के बारे में जो कुछ भी बताया गया है उसको सुन पढ़ कर आपके दिमाग में उसका चरित्र चित्रण हो चूका होगा, यह सामान्य इंसानी बिमारी है की हम किसी के बारे में कुछ सुनते पढ़ते है तो उसके बारे में वैसी ही धारणा बना लेते है। 
वैसे गोलू आसानी से किसी का कहना नहीं सुनता परन्तु अगर बाइक पर कही जाके कोई काम करवाना हो तो आप बेझिझक गोलू को कह सकते है। मसलन, पड़ौसी शर्मा अंकल को सुबह सुबह ६ बजे उठकर रेलवे स्टेशन पहुचाना हो, बड़ी बहन को उसके कॉलेज छोड़ कर आना हो, पास वाली भाभी को बाजार लेके जाना हो या पीछे की गली में रहने वाली सलमा आपा को ब्यूटी पार्लर लेके जाना हो, गोलू बिना कोई झिक झिक किये इन सब का काम कर देता है। 
आज ही गोलू के घर में किरायेदार आंटी ने कहा "अरे गोलू भइया, आप कोचिंग जाओगे न, तो रास्ते में ही हमारी मौसी का घर पड़ता है, थोड़ा छोड़ दोगे क्या हमको ?" गोलू ने तपाक से कह दिया " अरे आंटी थोड़ा क्या आपको पूरा का पूरा वहां छोड़ दूंगा " ठहाके गूंजे और थोड़ी देर में गोलू अपनी बाइक पर आंटी को बिठा के निकल पड़ा। 

गोलू ने अपना बी.कॉम  प्रथम वर्ष पूरा कर लिया इसी तरह, देश में जिस तरह बारिश की कमी रही उसी तरह गोलू की मार्कशीट में भी थोड़ा सुखा पड़ा इस बार, परन्तु पास जरूर हो गया। 
गोलू की जिंदगी इसी तरह अब भी चल रही है, पास वाले चौहान अंकल से लेके पड़ोस वाले पटेल काका तक सब का कोई न कोई काम करता आ रहा है (बशर्ते उस काम में बाइक की आवश्यकता हो ना की बल की )

आईये अब आपको लेके चलते है इन्ही पड़ौसियों के घर, पास वाली शर्मा आंटी आज अपने बेटे को डांट रही थी "पढ़ ले थोड़ा, बैठ के किताब खोल लिया कर नहीं तो वो गोलू जैसा आवारा बन के घुमा करेगा इधर उधर " 
गोलू की बाइक पर अक्सर बाज़ार जाने वाली भाभी आज सलमा आपा से मिली तो कह रही थी की आज तो पुरे १० रुपये खर्च करके बस से बाजार जाना पड़ा नहीं तो वो आवारा गोलू छोड़ ही देता है हमेशा। पड़ोस वाले शर्मा जी को उनका सहकर्मी ट्रैन में बता रहा था की किस तरह उसको ऑटो वाले ने लूटा, तभी शर्मा जी बोले "यार अपना तो बढ़िया है , पड़ोस में एक बेवकूफ़ किसम का लड़का रहता है उसको जब बोलो तब बाइक लेके आ जाता है और स्टेशन छोड़ जाता है।"

गोलू को उसके अपने घर में भी कोई सीरियसली नहीं लेता है, वो अपने खुद के घर में भी एक "आवारा लड़के" की पदवी पा चूका है। 
 

Sunday, 26 October 2014

ईयर एंड क्लोजिंग

ईयर एंड क्लोजिंग 

"Well done guys, this year we have over-achieved our year end target and we all hope to begin this new year with grand opening as we have a change of season advantage."

ऐसा कहते हुए माइक पर थोड़ा खाँसकर अंतर्राष्ट्रीय  रोगाणु  समिति के चेयरमैन श्री झींगा वायरस पानी पिने लगे।  दर-असल आज विक्रम सम्वंत २०७१ की शुरुआत में सारे विश्व से आये रोगाणु , विषाणु , बैक्टीरिया इत्यादि के प्रतिनिधियों के साथ चेयरमैन साहब की अहम बैठक रखी गयी है। 

बैठक अपने पठान साहब के गैराज में रखी है , जहाँ गाडी को छोड़कर आपको तमाम चीजे मिल जाएगी, मसलन एक कोने में पड़ा हुआ पुराना कूलर जिसके टैंक में अभी भी पानी सड़ रहा है, उसी के बाजु में रखा एक फ्लॉवर पॉट जिसमे फ्लॉवर का फ़्लेवर तक नहीं मिलेगा बल्कि दुनियाभर का गीला कचरा उसी में पड़ा मिलेगा और चूँकि यह गैराज खुला ही रहता है तो आसपास से उड़ कर आने वाला तमाम प्रकार का कचरा भी जमा है इसमें। कुल मिलाकर इस मीटिंग के लिए इस गैराज से उपयुक्त जगह कोई हो ही नहीं सकती थी। 

"झींगा साहब कितने अच्छे है न, कितनी बढ़िया जगह मीटिंग रखी है, सफाई का कोई खतरा नहीं है यहाँ " डेंगू वायरस के प्रेजिडेंट ने मलेरिआ प्रेजिडेंट से कहा, बाकी के जीवाणुओ की भी खुसर फुसर चालू ही थी की इतने में चैयरमेन साहब ने एक और अनाउंसमेंट किया , " सभी रोगाणुओं बंधुओ से अनुरोध है की सब अपनी अपनी जगह पर शांत बैठे रहे, अभी थोड़ी देर में हम अपने ईयर एंड क्लोजिंग की फुल रिपोर्ट पेश करेंगे। हमारे पास देश और दुनिया के सारे रिकार्ड्स पहुंच चुके है। "

"लेकिन सबसे पहले में बधाई देना चाहूंगा हमारे एसोसिएशन के नए सदस्य का, जिन्होंने हाल ही में बड़ी धमाकेदार एंट्री मारी है जिससे पूरा विश्व हिल गया है, और आज तक सभी बड़े से बड़े देश खौफ में जी रहे है।  जी हाँ दोस्तों में बात कर रहा हूँ सारी दुनिया में कुप्रसिद्ध और कुख्यात वायरस एबोला की .......... " बात खत्म होते होते पुरे हॉल में तालियों की गड़गड़ाहट गूंज उठी , हर छोटे मोटे वायरस को लगने लगा की वो भी एक दिन ऐसा बड़ा कारनामा कर सकता है , चारो और फिर से एक बार खुसर फुसर शुरू हो जाती है। 

प्रेजिडेंट ऑफ़ HIV एक कोने में खड़ा होक एबोला की तारीफ सुनकर जलभुनकर ख़ाक हो रहा होता है तभी पीछे से V.P ऑफ़ स्वाईन फ्लू आके उसको सांत्वना देता है की "ऐसा तो होता रहता है , परसो तुम फेमस थे कल में और आज यह एबोला", बर्डफ्लू का डायरेक्टर भी हाँ में हाँ मिलाते हुए कहता है "same to same ". 

"Silence Please" फिर से चैयरमैन साब ने माइक संभाला "और अब मुझे आप सभी को यह बताते हुए बड़ा हर्ष हो रहा है की  भारत देश में हमने इस बार भी तमाम चुनौतियों का सामना करते हुए  अच्छा प्रदर्शन जारी रखा है।  हमारा टारगेट पूरा करने में कई शहरों के म्युनिसिपालिटी  ने और वहाँ के बेवकूफ इंसानो ने हमारी बड़ी सहायता की है। " किन्तु पिछला एक महीना हमारे लिए थोड़ा संकटमय  गुजरा है , जब से भारत के P.M  मोदी ने स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत की है  तब से लेकर आज तक हमारे करोडो साथी शहीद हुए है और हमारे आंकड़ों पर भी इसका असर पड़ा है।  परन्तु मुझे इस देश के  इंसानी मूर्खों पर पूरा भरोसा है की वो अपने P.M की बातों में इतनी आसानी से नहीं पड़ने वाले  और हमें पाल के रखेंगे अपने आसपास। "

"अभी जैसा की आप सभी जानते है की चेंज ऑफ़ सीजन चल रहा है जो की हमारे बिज़नेस का सबसे अनुकूल समय है , इसी समय में हम ज्यादा से ज्यादा टारगेट पूरा कर सकते है तो आप सभी को नयी टारगेट लिस्ट दे दी जाएगी, आशा है आप उसे जरूर पूरा करेंगे। " 

"अंत में हम सब मिलकर स्वच्छ भारत अभियान में शहीद हुए अपने साथियों को श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे और दावत -ए -कचरा का लुत्फ़ उठाएंगे। "

भाषण ख़त्म होते ही सब के सब जोर से एक नारा लगाते है 
"जब तक कूड़े का ढेर रहेगा । 
रोगाणु समुदाय अमर रहेगा ॥ "


चित्र इंटरनेट के सौजन्य से 


Thursday, 11 September 2014

अजन्मे का संकट


आज बड़े दिनों बाद ऐसा हुआ की में सूरज ढलने  से पहले ही ऑफिस का  काम निपटा के घर पहुँच गया। मुझे समय से पहले ही दरवाज़े पर खड़ा पाके मेरी बीवी बड़ी खुश हुयी।  जी साब हम आईटी वालो के जीवन का घडी से कोई लेना देना नहीं होता, कब उठे, कब तैयार हुए, कब ऑफिस पहुँचे और फिर कब घर लौटे, इन सब का समय से कोई वास्ता है ही नहीं ।

पत्नी के मुखमंडल पर मिश्रित सी भावभंगिमा देखकर मुझे आश्चर्य नहीं हुआ, परन्तु वो बड़ी खुश हो गयी।
पत्नियां भी अजीब होती है ( सभी को पता है , कोई नयी बात नहीं ) कभी कभी कोई बड़े से बड़ा काम भी करो या कोई बड़े से बड़ा उपहार भी लाके दो तब भी खुश नहीं होती, और कभी छोटी छोटी सी बातों में ही खुश हो जाती है , जैसे की अभी मुझे समय से पहले अपने सामने पाकर मेरी पत्नी खुश हुयी।

जल्दी से हाथ मुह धोकर मैंने आज बहुत दिनों के बाद शाम की(भी) चाय अपने हाथो से बनाकर अपनी अर्धांगिनी के साथ में बैठकर चुस्कियां मार मार के पी। चूँकि अभी शाम का समय था, बाहर का मौसम भी थोड़ा रोमेंटिक सा हो चला था, सो हमने सोचा क्यों का आज कॉलोनी के बड़े वाले गार्डन में "इवनिंग वॉक " पर चला जाये।  झटपट से तैयार होके हम निकल पड़े।

गार्डन में पहुंच के बड़ा अच्छा लगा, बड़े से गार्डन में  अलग अलग कोने में और बहुत सारे  और हर उम्र के बच्चे खेल रहे थे, दूसरी और कुछ बुजुर्ग अपना प्राणायाम कर रहे थे, एक कोने में कुछ महिलाएं निंदासन कर रही थी।  निंदासन क्या होता है यह तो आपको पता ही होगा।
गार्डन में हम लोग थोड़ा चहल-कदमी करते रहे , में आसपास के यह सारे नज़ारे देखता-सुनता रहा और साथ ही साथ बैकग्राऊँड में मेरी बीवी के  मुख कमलो से निकली वाणी मेरे कानो में बराबर पड़ती रही और में हूँ -हूँ करता रहा।

 कुछ देर चहल कदमी करने के पश्चात् हम लोग मौका देख कर एक खाली बेंच पर विराजमान हुए और मैंने अपनी हूँ- हूँ जारी रखी।  मेरे कानो पर तभी कुछ बुदबुदाने की ध्वनि पड़ी, पास वाली बेंच से ही यह ध्वनि आ रही थी, दर-असल 2 महिलाएं कुछ बातें कर रही थी, एक महिला गर्भवती जान पड़ती थी , और इस बार हमने अपनी पत्नी से आज्ञा लेके  उन दोनों  के संवाद को अपने कानो के ज़रिये दिमाग में रिकॉर्ड कर डाला। और अब वही संवाद सीधा यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ। सहूलियत के लिए मेने दोनों नायिकाओं को नाम दिए है उमा और रमा। जिसमे से रमा वो है जो कुछ दिनों में इस धरती पर नया जीवन लाने वाली है , जी हाँ मतलब गर्भवती है।

उमा : अरे रमा तू वो पाउडर ले रही है की नहीं ? जो मेने तुझे दिया था , वो पाउडर खायेगी तो बच्चा  गोरा चिट्टा और तंदुरुस्त पैदा होगा।
रमा : हाँ हाँ दीदी ले रही हूँ न , दिन में ३ बार लेती हूँ वो तो।

उमा : और तू ना सारे रियल्टी शो देखा कर, जिस से तेरा बालक भी टेलेंटेड पैदा होगा , आजकल सब बच्चे ऐसे ही पैदा होते है, पैदाईशी टैलेंटेड।
रमा: अरे हाँ, आप सही कह रहे हो , वो पास वाली बिल्डिंग में मोना को बेटी हुयी ना तो वो सूर के साथ ही रोती है , और लेटे  लेटे ही डांस भी करती है।  उस मोना ने जरूर सारे रियल्टी शो देखे होंगे, मैं भी सारे शो देखा करुँगी, मुझे भी अपने बच्चे को सुपर टैलेंटेड बनाना है।

उमा: और सुन, तेरे पति जब क्रिकेट देखे ना तो वो तू भी देखा कर, आजकल के बच्चे स्पोर्ट्स में भी आगे होते है, तुझे भी अपने बच्चे को   . . . . . . . . .
रमा: अरे दीदी , यह सब में पूरा ध्यान रखती  हूँ,पर इसके चक्कर में मेरे कई सीरियल्स मिस हो जाते है , पर क्या करे बाहर कॉम्पिटिशन इतना बढ़ गया है की मुझे अपने बच्चे के लिए यह सब करना पड़ता है।

इन महिलाओ की यह चर्चा यहीं समाप्त नहीं हुयी थी, की अचानक से मेरे कानो में एक नन्ही आवाज़ गूंजी, बचाओ बचाओ करके . . ..... सीधे रमा के गर्भ से, जी हाँ , इन दोनों की इतनी भयानक प्लानिंग सुन के बेचारा बच्चा चीख पड़ा , की बस करो, मेरे बाहर आने से पहले ही मुझ पर इतना प्रेशर डाल रहे हो तो  बाहर आने के बाद मेरा क्या हाल करोगे।




इतनी बातें सुन कर , में भी सोच में पड़ गया की बीते कुछ वर्षो में हमारे बालको पर माता पिता द्वारा उत्कृष्ट प्रदर्शन करने के लिए इतना दबाव डाला जा रहा है जिसके लिए कहते सुनते सब नजर आते है , परन्तु करता कोई कुछ नहीं। वैसे माता पिता भी इसी दबाव में रहते होंगे की कही उनका बच्चा बाकी बच्चो से किसी विधा में पिछड़ न जाये। परन्तु  इस होड़ में आज के बालको का बालपन कहीं नजर नहीं आता।

आप भी सोचियेगा , की कही यही "कम्पीटीशन " बच्चो को समय से पहले "बड़ा" तो नहीं कर रहा ?
मेरा इशारा तो आप समझ ही रहे होंगे।

में घड़ा हूँ कच्चा, पकने में समय लगने दो  
बड़ा होने की जल्दी नहीं है मुझे  
बच्चा हूँ अभी मैं, मुझे बच्चा रहने दो। । 



नोट : बच्चा और बालक शब्द पढ़ने सुनने में पु:लिंग लगते है , परन्तु हिंदी भाषा में यह शब्द उभयलिंगी (यूनिसेक्स) है। तो कृपया लेख के मूल से भटकने का प्रयास न करे !
चित्र इंटरनेट के सौजन्य से








Friday, 27 June 2014

आईटी-सर्विसमैन के जीवन की सरगम


आप लोगो ने संगीत के ७ स्वरों के बारे में तो सुना ही है,  हाँ हाँ वही सा-रे -गा -मा  वाले साथ ही भाषा के स्वरों के बारे में भी आप जानते ही है।

जैसे अंग्रेजी भाषा में ५ स्वर (vowels) होते है,  संगीत में सात सुर होते है वैसे ही बेचारे आईटी-सर्विसमैन के जीवन की सरगम में  भी ५ स्वर होते है। 




अब आप सोचेंगे की क्या अनाप शनाप की ऊल जुलूल बातें करता रहता है, तो आगे पढ़िए और खुद ही निर्णय लीजिये की में क्या कह रहा हूँ।  अगर आप एक सच्चे आईटी-सर्विसमैन होंगे तो जान जायेंगे की मेरी बातों में कितनी सच्चाई है और अगर आप नॉन-आईटी के है तो आपको भी तो पता पड़े की आईटी वालो की लाइफ का कांटा किन ५ चीजो के चारो और घूमता है।

मेने कहा था की अंग्रेजी भाषा के स्वरों(a .e.i.o.u) की तरह ही आईटी-सर्विसमैन के जीवन के भी ५ स्वर है तो आईये शुरू करते है और जानते है इन स्वरों के बारे में।

१.' अ ' या A =Affair 

प्रथम स्वर है A माने Affair, मतलब कोई चक्कर या रास-लीला। जी हाँ जब भी एक फ्रेशर कोई आईटी कंपनी में दाखिल होता है तो या तो वो कॉलेज जमाने से ही कमिटेड स्टेटस में होता या अकेला होता है। कंपनी में दाखिल होते ही पहला स्वर अपने पुरे जोर शोर से इस नए नए आईटी-सर्विसमैन के कानो में गूंजने लगता है।  वो देखता है की कैसे उसकी आँखों के सामने ४-५ जोड़े ऐसे ही  बन गए और वो बस देखता रहा।  उसकी अंतरात्मा उसको धिक्कारने लगती है की कॉलेज के जमाने में तो कुछ बात बनी  नहीं अब तो कुछ कर।  और बेचारा शुरू हो जाता है अपनी अंतरात्मा की ललकार को चुप कराने की कोशिश में।

खैर अब हर किसी का अफेयर हो यह जरूरी भी नहीं कुछ न कुछ कारण या बहाना तो मिल ही जाता है "सिंगल" रहने का।  किन्तु यह प्रथम स्वर गूंजता ही रहता है उम्र भर।

२. 'इ' या "e " :Eatery Points


दूसरा स्वर जो गूंजता है वो हर किसी आईटी सर्विसमैन के कानो को नहीं फाड़ता यह उन लोगो के लिए है जो दूसरे शहरों से आये है।  E माने Eatery Points माने खाने पिने के अड्डे। वैसे एक इंजीनियर के लिए भोजन का युद्ध कोई बड़ी बात नहीं होती, वो हॉस्टल में रहके अच्छी तरह से जान जाता है की "भोजन समझौता" किसे कहते है।  परन्तु जब आप एक नए शहर में नौकरी करने जाते हो, अच्छा खासा पैसा कैफेटेरिया में देते हो और बदले में आपके हॉस्टल के खाने से भी बद्तर खाना मिले तो मन में फ़्रस्ट्रेशन वाली फीलिंग्स आती है तब ये दूसरा स्वर आपके कानो को चीरता हुआ गूंजता है की ढूंढो  कुछ अच्छे Eatery Points.


३. 'ई ' या I : Increment

अब यह मत कहना की यह तो सबसे ज्यादा दुखने वाला स्वर है, वैसे इसके बारे में ज्यादा कुछ लिखने से फायदा नहीं। तीसरा स्वर है I बोले तो इंक्रीमेंट याने बढ़ोत्तरी , जी हाँ सालाना तनख्वा में।  हम हमेशा सोचते है की यह स्वर कभी तो ऊँचा लगेगा, थोड़ा हाई पीच, परन्तु जैसा हम सोचते है अक्सर वैसा होता नहीं है हमारे जीवन में।  यह वाला स्वर सबसे नीचे की और बैठता है और बड़ी धीरे से लगता है। कभी कभी तो इस स्वर से कोई आवाज़ ही नहीं निकलती है।

४. 'ओ '  या O: Onsite 

अब आते है आईटी संगीत के चौथे स्वर पर तो दोस्तों यह स्वर हर आईटी सर्विसमैन लगाने की कोशिश करता है, किन्तु लगता सिर्फ भाग्यशाली लोगो का ही है बाकी तो बस मूह से हवा निकालते रह जाते है।

५. " ऊ " या U : U Turn:

अंतिम और सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण और सबसे ज्यादा दुखदायी और सबसे ज्यादा कर्कश स्वर है U-टर्न।
जी हाँ यहाँ बात हो रही है आपके मैनेजर के U-टर्न की , साल के शुरू में आपसे काम लेने के लिए आपको सुन्दर , हसीं सपने दिखाए जाते है फिर चाहे वो सालाना हाइक  हो, ओनसाईट  हो, प्रमोशन हो या प्रोजेक्ट से रिलीज़  हो।  आपको इनमे से कई तरह के प्रलोभन दिए जाते है, वो देता जाता है और आप लेते जाते हो।  असल में होता इसके विपरीत है।  साल के अंत तक जब आप अपने सपनो के वाउचर  को रिडीम करवाने जाते हो तो मिलता है एक तड़कता  भडकता  हुआ सा U Turn. आप फिर से जुट जाते हो काम में इसी आस में की कभी तो यह सिलसिला खत्म होगा।


तो, देखा आपने की एक आईटी सर्विसमैन के जीवन के ५ स्वर इतने आसान नहीं है जितना की दिखाई देते है, संगीत के ७ स्वरों को ठीक से लगाने के लिए जितना परिश्रम करना पड़ता है उससे ज्यादा परिश्रम आईटी के इन ५ स्वरों को ठीक से लगाने में करना पड़ता है।


..................................................चित्र गूगल महाराज के सौजन्य से 

देश भक्ति

  देश भक्ति , यह वो हार्मोन है जो हम भारतियों की रगो में आम तौर पर स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस  या भारत पाकिस्तान के मैच वाले दिन ख...