IT सर्वीसेज़ मे काम करने वालो का जीवन बड़ा ही मस्तिभरा, ऊर्जायुक्त और रंगीन होता है, ये लोग बड़े ही मस्तीखोर, पार्टी करने वाले और बहुत पैसे कमाने वाले होते है, IT वालो को क्राउड भी बड़ा हसीन मिलता है साथ काम करने को........
यह सब बातें में नही बोल रहा, वो लोग बोलते है जो IT में नही है.....और थोड़ी बहुत बातें virtually True भी है,
पर रंगीन जीवन???? ....मेनफ्रेम्स और यूनिक्स पे काम करने वालो से पुछो कितना रंगीन होता है? उन लोगो को तो सपने भी काली स्क्रीन की तरह काले काले ही आते है।
मस्तिभरा जीवन ?? ...नाइट शिफ्ट मे काम करने वालो से पुछो तो सही की रातें कितनी मस्तिभरी और हसीन गुजरती है उनकी, सारी रात कंप्यूटर के सामने ऊँघते रहो और अगर कोई समस्या आ जाये तो अगला दिन भी गुले-गुलज़ार हो जाता है ,
और रही बात बहुत सारे पैसे कमाने की तो भाई सच है, पैसे तो हम अपने कॉलेज जमाने की पॉकेट मनी की तुलना मे कुछ ज़्यादा ही कमाते है पर इतना भी ज़्यादा नही की मेट्रो सिटी के खर्चो को सहन कर पाए, कोई कुँवारा IT प्रोफेशनल बेचारा 10 बार सोचता है शादी करने से पहले, की घर चला पाऊँगा या नही, अभी तक Shared मे रहता था तो किराया पूरा पड़ जाता था अब अकेले देना पड़ेगा, इसी तरह की हज़ारो बातें सोचनी पड़ती है......तब जाके कही शादी जैसे बहुत बड़े एडवेंचर के लिए अपना Mindset बना पाता है ...
अब आख़िरी बात हसीन लोगो के साथ काम करने की तो वो तो भाई कंपनी वाइज़, सिटी वाइज़ और प्रॉजेक्ट वाइज़ सीन बदलता रहता है, अधिकांश ऐसा होता है की आप की टीम मे अगर कोई हसीन बाला है तो आपके पास इतना समय ही नही होता की आप नज़रे उठा के उनके सौदर्य की मदिरा को अपनी आँखो के प्याले मे डाल सके, असंभव सा प्रतीत होगा... और अगर ऐसा है की आप के पास कुछ ज़्यादा ही समय है तो भी चक्षुओ के प्याले खाली ही रहेंगे क्योंकि आपका भाग्य ही कुछ इस तरह की क़लम और स्याही से लिखा गया है की आप के नैनो को सिर्फ़ १४" का मॉनिटर ही नसीब होगा और eye drops की ४ बूंदे........... वैसे हर जगह हर परिस्थिति मे अपवाद(Exceptions) तो आपको मिलते ही रहेंगे.
बहरहाल बात यहाँ करते है पैसे की, काम की, तो बेचारा IT सर्विस वाला बंदा कभी भी एक जगह खुश नही रह सकता, आजकल पत्नीव्रता पति नही मिलते तो कंपनी व्रता employees कहा मिलेंगे, एक कंपनी से दूसरी मे, दूसरी से तीसरी मे, बेचारे का जीवन बंजारो की तरह होता है, हर बार बेहतर क्राउड की उम्मीद लिए, बेहतर मैनेजर की उम्मीद लिए, या थोड़े और अच्छे क्वालिटी के काम की उम्मीद लिए बदलते रहो, कंपनी बदलने का ऊपरी कारण कोई भी हो, मूलभूत कारण तो पैसा ही होता है... बिल्कुल भट्ट कॅंप की मूवीस की तरह, स्टोरी लाइन कुछ भी हो, कलाकार कोई भी हो, बेसिक थीम सेक्स ही होती है....
जब एक लड़की अपने पुराने बॉयफ्रेंड को “डंप” करके नया बनती है तो इसका मतलब यह नही होता की पुराना सब ख़तम, इन्स्टेंट्ली तो नही कम से कम, और आगे भी जीवन भर पुराने से नये की तुलना होती रहती है जब तक की नया वाला फिर पुराना नही बन जाता, यही हाल कंपनी चेंज करने पर होता है, जब हम एक कंपनी बदल के दूसरी मे आते है तो भी हमें चैन नही, यहाँ आकर के भी पुरानी वाली को भूलते नही ।
मनुष्य का दीमाग बड़ा ही विचित्र है, .....अब तुलना किए बगैर तो रहा नही जाता, वहाँ ऐसा होता था, यहाँ ऐसा होता है, वहाँ तो यह भी मिलता था यहाँ नही मिलता, वग़ैरह वग़ैरह...
बेहतरी की तलाश मे हम बस भटकते रहते है ...... अपना आशियाना तक नही बसा पाते.....और सच तो यह है की ऐसा कुछ Exist ही नही करता है बाहरी दुनिया मे जिसे हम बेहतर कह सके, जो भी है अपने भीतर की दुनियाँ मे है, बस खूद को एक बेहतर इंसान बनाने की कोशिश कर लो, जीवन खूद-ब-खूद बेहतर होता चला जाएगा ......
कृपया ध्यान रहे: उपर लिखी गयी सारी बातें एक नर मानव के दृष्टिकोण से लिखी गयी है, हो सकता है मादा मानव का दृष्टिकोण थोड़ा अलग हो....
यह सब बातें में नही बोल रहा, वो लोग बोलते है जो IT में नही है.....और थोड़ी बहुत बातें virtually True भी है,
पर रंगीन जीवन???? ....मेनफ्रेम्स और यूनिक्स पे काम करने वालो से पुछो कितना रंगीन होता है? उन लोगो को तो सपने भी काली स्क्रीन की तरह काले काले ही आते है।
मस्तिभरा जीवन ?? ...नाइट शिफ्ट मे काम करने वालो से पुछो तो सही की रातें कितनी मस्तिभरी और हसीन गुजरती है उनकी, सारी रात कंप्यूटर के सामने ऊँघते रहो और अगर कोई समस्या आ जाये तो अगला दिन भी गुले-गुलज़ार हो जाता है ,
और रही बात बहुत सारे पैसे कमाने की तो भाई सच है, पैसे तो हम अपने कॉलेज जमाने की पॉकेट मनी की तुलना मे कुछ ज़्यादा ही कमाते है पर इतना भी ज़्यादा नही की मेट्रो सिटी के खर्चो को सहन कर पाए, कोई कुँवारा IT प्रोफेशनल बेचारा 10 बार सोचता है शादी करने से पहले, की घर चला पाऊँगा या नही, अभी तक Shared मे रहता था तो किराया पूरा पड़ जाता था अब अकेले देना पड़ेगा, इसी तरह की हज़ारो बातें सोचनी पड़ती है......तब जाके कही शादी जैसे बहुत बड़े एडवेंचर के लिए अपना Mindset बना पाता है ...
अब आख़िरी बात हसीन लोगो के साथ काम करने की तो वो तो भाई कंपनी वाइज़, सिटी वाइज़ और प्रॉजेक्ट वाइज़ सीन बदलता रहता है, अधिकांश ऐसा होता है की आप की टीम मे अगर कोई हसीन बाला है तो आपके पास इतना समय ही नही होता की आप नज़रे उठा के उनके सौदर्य की मदिरा को अपनी आँखो के प्याले मे डाल सके, असंभव सा प्रतीत होगा... और अगर ऐसा है की आप के पास कुछ ज़्यादा ही समय है तो भी चक्षुओ के प्याले खाली ही रहेंगे क्योंकि आपका भाग्य ही कुछ इस तरह की क़लम और स्याही से लिखा गया है की आप के नैनो को सिर्फ़ १४" का मॉनिटर ही नसीब होगा और eye drops की ४ बूंदे........... वैसे हर जगह हर परिस्थिति मे अपवाद(Exceptions) तो आपको मिलते ही रहेंगे.
बहरहाल बात यहाँ करते है पैसे की, काम की, तो बेचारा IT सर्विस वाला बंदा कभी भी एक जगह खुश नही रह सकता, आजकल पत्नीव्रता पति नही मिलते तो कंपनी व्रता employees कहा मिलेंगे, एक कंपनी से दूसरी मे, दूसरी से तीसरी मे, बेचारे का जीवन बंजारो की तरह होता है, हर बार बेहतर क्राउड की उम्मीद लिए, बेहतर मैनेजर की उम्मीद लिए, या थोड़े और अच्छे क्वालिटी के काम की उम्मीद लिए बदलते रहो, कंपनी बदलने का ऊपरी कारण कोई भी हो, मूलभूत कारण तो पैसा ही होता है... बिल्कुल भट्ट कॅंप की मूवीस की तरह, स्टोरी लाइन कुछ भी हो, कलाकार कोई भी हो, बेसिक थीम सेक्स ही होती है....
जब एक लड़की अपने पुराने बॉयफ्रेंड को “डंप” करके नया बनती है तो इसका मतलब यह नही होता की पुराना सब ख़तम, इन्स्टेंट्ली तो नही कम से कम, और आगे भी जीवन भर पुराने से नये की तुलना होती रहती है जब तक की नया वाला फिर पुराना नही बन जाता, यही हाल कंपनी चेंज करने पर होता है, जब हम एक कंपनी बदल के दूसरी मे आते है तो भी हमें चैन नही, यहाँ आकर के भी पुरानी वाली को भूलते नही ।
मनुष्य का दीमाग बड़ा ही विचित्र है, .....अब तुलना किए बगैर तो रहा नही जाता, वहाँ ऐसा होता था, यहाँ ऐसा होता है, वहाँ तो यह भी मिलता था यहाँ नही मिलता, वग़ैरह वग़ैरह...
बेहतरी की तलाश मे हम बस भटकते रहते है ...... अपना आशियाना तक नही बसा पाते.....और सच तो यह है की ऐसा कुछ Exist ही नही करता है बाहरी दुनिया मे जिसे हम बेहतर कह सके, जो भी है अपने भीतर की दुनियाँ मे है, बस खूद को एक बेहतर इंसान बनाने की कोशिश कर लो, जीवन खूद-ब-खूद बेहतर होता चला जाएगा ......
कृपया ध्यान रहे: उपर लिखी गयी सारी बातें एक नर मानव के दृष्टिकोण से लिखी गयी है, हो सकता है मादा मानव का दृष्टिकोण थोड़ा अलग हो....