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Friday 23 January 2015

केवल वयस्कों के लिए

नोट: यह लेख कोई चुनावी स्टंट नहीं है, न ही किसी प्रकार का कोई प्रलोभन है, वास्तव में यह लेख उन्ही पाठको के लिए है जो १८+ उम्र के है या वयस्क है। अगर आप १८ साल से कम उम्र के है तो कृपया आगे न पढ़े।
धन्यवाद। 

बात थोड़ी पुरानी है, तब की जब मैं खुद वयस्क नहीं था। मैं अपने गांव के शासकीय हिन्दी माध्यमिक विद्यालय की कक्षा ४ का विद्यार्थी था। कुल जमा १४ विद्यार्थियों की कक्षा जिनमे से मात्र ३ कन्यायें। जी हाँ Gender Ratio की बात करने वालो यही हाल रहे है हमारे विद्यालयीन जीवन के अंत तक। खैर उस पर बाद में चर्चा करेंगे, बात करते है मेरे विद्यालय की, हमारा विद्यालय बहुपयोगी हुआ करता था। पुरे गांव भर के उत्सव, जलसे और १३वे का नुक्ता भी हमारे विद्यालय परिसर में होता था। और जिस दिन भी ऐसा कोई कार्यक्रम होता तो उस दिन आधी छुट्टी तो मिलती ही साथ ही साथ दावत अलग से मिलती। इतना ही नहीं, रात होते होते विद्यालय का मैदान भैंस, बैल, गाय और बछड़ो से भर जाता था। आप लोग जिन विद्यालयों में पढ़े होंगे वहाँ शायद शनिवार को आपका हॉफ डे हुआ करता होगा, परन्तु हमारे यहाँ मंगल-अमंगल कार्यक्रम के अलावा हर मंगलवार को भी हॉफ डे हुआ करता था। ऐसा इसलिए नहीं की हमारे प्राचार्य जी हनुमान जी में अगाथ श्रद्धा रखते थे बलकि प्रति मंगलवार हमारे गांव का प्रसिध्द पशु हाट बाजार लगता था। हाट में हमारा विद्यालय प्रांगण फिर एक बार काली चमकीली, रंगीन सींगो वाली भैंसो से, अतरंगी मुर्गो से, गाय बैल बछड़ो से और बकरे बकरियों से भर जाया करता था।



इतना ही नहीं, विद्यालय का इतना सदुपयोग होने के बाद प्रति रविवार हमारा विद्यालय हमारे गांव का स्वास्थ्य केंद्र बन जाया करता था। गांव के लोगो को हर प्रकार की दुःख तकलीफ की दवा मुफ्त में बांटी जाती थी। यह बात और है की गांव वालो की कुछ तकलीफे ऐसी है जिसकी कोई दवा आज तक नहीं बनी। तमाम मुफ्त में बांटी जाने वाली दवाईयों के पैकेट अगर बच जाते तो प्राचार्य के कक्ष में रख दिए जाते थे, परन्तु उस रविवार को प्राचार्य के कक्ष की चाबियां न होने से सारा सामान हमारी कक्षा में ही रख दिया गया।

आज जिस सोमवार को हम Bloody Monday कहते है, उस समय वही सोमवार हमें बड़ा अच्छा लगा करता था। आमतौर पर विद्यालय जल्दी पहुंच कर अपना बैग अपनी कक्षा में पटक कर प्रार्थना से पहले हम लोग सितोलिया खेला करते थे। उस दिन भी हम जल्दी पहुंचे और जब अपनी कक्षा में गए तो वहां कल के बचे हुए पैकेट रखे हुए थे। सरकारी विद्यालयों में इतना भी बुरा नहीं पढ़ाते की चौथी कक्षा तक आते आते हमें पढ़ना न आये। उन पैकेट्स पर लिखा पढ़ा तो टीवी पर आने वाला विज्ञापन याद आया, जो समाचार के पहले और चित्रहार के बीच में आया करता था और जिज्ञासाएँ जागृत कर जाता था। जिज्ञासा एक ऐसा कीड़ा है जो तब तक कुलबुलाता है जब तक की हम उसका कोई इलाज न ढूंढ ले। वो दवाई के पैकेट्स कुछ इलाज करे न करे पर हमारी उस टीवी के विज्ञापन की जिज्ञासा का इलाज जरूर थे। हमने तुरंत वो पैकेट्स खोले, और जब उनके अंदर रखे छोटे छोटे पैकेट्स  खोले तो हमारी जिज्ञासा शांत होने की बजाये बढ़ गयी थी।

अब जिज्ञासा यह थी की आखिर बच्चो के खेलने की चीज के विज्ञापन में बच्चे क्यों नहीं थे  दो बड़े लोग "प्यार हुआ इकरार हुआ है, प्यार से फिर क्यों डरता है दिल" गाना क्यों गाते थे। हालांकि एक बात समझ में आ गयी थी की डीलक्स निरोध और कुछ नहीं बलकि गुलाबी गुब्बारे हुआ करते थे। 


Monday 12 January 2015

नाम में क्या रखा है

"नाम में क्या रखा है ?" शेक्सपियर तो इतना कहके निकल लिए, उनको क्या मालूम था की यहाँ भारत में नाम के पीछे कितना कोहराम है।
स्रोत: गूगल इमेज सर्च 


आजकल के लेखक, पत्रकार, दार्शनिक भी जब कुछ लिखते है तो नायक नायिका के नाम लेने से परहेज करते है। बेवजह का "साम्प्रदयिक" तनाव पैदा हो सकता है इसीलिए कोई नाम नहीं लेता। यहाँ तक की पुलिस थाने में भी रिपोर्ट "अज्ञात" लोगो के नाम की लिखी जाती है, फिर भले ही सबूत के तौर पर पेश किया गया वीडियो चिल्ला चिल्ला के अपराधी का नाम ज़ाहिर कर रहा हो।

खैर इन सब के बारे में आप सब जानते हो, मैं आपको नामो की वजह से होने वाली एक अलग ही वैश्विक समस्या से आपको अवगत कराने की मंशा रखता हूँ। हालाँकि आप में से अधिकांश लोगो को यह समस्या झेलनी पड़ी होगी।

जवान हो, अपने पैरो पर खड़े हो तो घरवाले आप पर सबसे बड़ा दबाव डालेंगे की शादी कर लो, वो भी हो गया तो सालभर के भीतर आप पर एक नया दबाव आ जायेगा, २ से ३ होने का। कहीं कहीं तो मैंने यह भी सुना है की एम्प्लोयी ने इन्ही सब बातों का रोना रोकर अपने मैनेजर को इतना इमोशनल ब्लैकमेल किया की उसको सैलरी हाईक मिल गयी। खैर आप २ से ३ भी हो गए, अब आपके सामने सबसे बड़ी समस्या यह नहीं है की डाइपर कौन बदलेगा, न ही इस बात की चिंता है की रात रात भर जाग के दूध की बोतल कौन भरेगा बल्कि सबसे बड़ी चिंता का विषय है की इस नए मेहमान का नाम क्या रखे ?

स्रोत: गूगल इमेज सर्च 

आज के जमाने में "यूनिक" नाम रखने का चलन है। लोग अपने पालतू पशुओ का नाम भी मोती, ब्रूनो, टाइगर या शेरू नहीं रखते बल्कि यूनिक सा अंग्रेजी सा कोई नाम ढूंढ़ते है। बात खुद के बच्चे की हो तो नाम थोड़ा ख़ास ही ढूंढ़ना पड़ता है और ये यूनिक नाम ढूढ़ने पर भी नहीं मिलते। हालांकि कई माँ-बाप तो अपने खुद के नामो के प्रथम २ अक्षरो की संधि करके ही यूनिक नाम बना लेते है।  परन्तु हर पति पत्नी ऐसा नहीं कर सकते तो ऐसे में बेचारा पति सारी  रात इंटरनेट पर सर्च करके कोई "भल्ता सा" ही सही पर यूनिक नाम ढूंढ़ता है तो पत्नी कहती है, नहीं यह नाम तो मेरी मौसी की बेटी के देवर के बच्चे का भी है, कोई "यूनिक" नाम ढूंढो। फिर जाके २-४ "बेबी नेम्स" वाली किताब खरीद के लाते हो, फिर भी मनपसंद नाम तो किसी के भाई के साले के बच्चे का निकलता है तो कोई नाम दोनों पति पत्नियों में से किसी के दोस्त अपने बच्चो को दे चुके होते है । हजारो नाम खारीज़ करने के बाद बड़ी मशक्कत से एक यूनिक नाम आप ढूंढते हो। अब आप सेलिब्रेशन की तैयारी कर ही रहे होते हो की आपके घरवाले जाके किसी पण्डित से बच्चे की कुंडली बनवा आते है और नाम का अक्षर तय हो जाता है की अब नाम तो इसी अक्षर से शुरू होगा। फिर शुरू होती है वही कहानी, गोल गोल धानी और इत्ता इत्ता पानी।



मेरे एक परिचित ने तो यूनिकनेस के चक्कर में कंफ्यूज होके अपने बच्चे का नाम "चमन" रख दिया तो उसके पहले जन्मदिन पर आये मेहमानो ने जैसे तैसे समझाया की कैसे तुम अपने ही बच्चे को उसके बाप का कतल करने के लिए उकसा रहे हो।  अभी अभी मेरे एक बहुत खास और बहुत ही कांग्रेस विरोधी दोस्त ने अपना खुद का ही नाम राहुल से बदल के वरुण रख लिया है।

क्या आप अब भी कहेंगे की नाम में क्या रखा है ? अब तो शेक्सपियर भी अपने शब्द वापस लेने को तैयार होंगे।

Wednesday 17 December 2014

हैप्पी न्यू ईयर


वर्ष २०१४ संपन्न होने जा रहा है। हर साल की तरह यह साल भी बहुत सारी बातो के लिए याद किया जायेगा। इस साल आपके जीवन में भी तो कुछ ऐसा घटित हुआ ही होगा जिसे आप भूल नहीं पाओगे।

आईये इससे पहले की दुनिया भर के टीवी चैनल्स बीते हुए साल का एनालिसिस करे हम भी कुछ चिर-फाड़ कर डालते है थोड़े कट-टू-कट अंदाज़ में।

हम भारतियों की एक बात तो छुपाये नहीं छुपती और वो है बॉलीवुड और क्रिकेट प्रेम, तो चलिए इस बीते साल का मुआईना करते है इसी साल रिलीज़ हुई बॉलीवुड फिल्मो के "टाइटल" के आधार पर।

हम लेकर आये है कुछ चुनिंदा फिल्मे जिनके टाइटल इस साल के महत्वपूर्ण इवेंट्स को समर्पित है।


१. टोटल सियापा 

साल की शुरुआत हुई एक फिल्म "टोटल सियाप्पा" से जो की समर्पित है " आम आदमी पार्टी" और केजरीवाल साब को जिन्होंने इस साल सियाप्पे के सिवा कुछ नहीं पटका। पहले दिल्ली में उम्मीद बंधवाई फिर उस बंधी हुई उम्मीद को छोड़ के लोकसभा के पीछे भागे और फिर लौट के दिल्ली में सियाप्पे किये जा रहे है।


२. जय हो 
अगली है सलमान की फिल्म  "जय हो"  और यह फिल्म बहुत कुछ हद तक नरेंद्र मोदी की तरफ इशारा करती है  जिनके लिए इस साल हर जगह एक ही नारा गूंजा है और वो है "जय हो।" न केवल मोदी बल्कि भारतीय खेल जगत ने भी इस साल कॉमनवेल्थ और एशियन गेम्स में "जय हो" का नारा लगवाया।  यही नहीं जय हो का टाइटल हमारे देसी नासा याने की इसरो को भी मिलता है जिन्होंने इस साल दुनिया का सबसे सस्ता मंगलयान अंतरिक्ष में छोड़ा।


३. बेवकूफियां 
जी हाँ यह फिल्म समर्पित है हमारे देश के प्यारे राहुल गांधी को जिन्होंने इस साल भी अपने हर भाषण में कुछ ऐसा किया और कहा जिससे इनकी बेवकूफियों के पुराने रिकॉर्ड भी ध्वस्त हो गए।


४. दावत-ऐ-इश्क़ 
हमारे प्रधानमंत्री ने प्यार का सन्देश देने के लिए अपनी शपथ ग्रहण समारोह में सारे पड़ौसी देशो को दावत दी थी और इस दावत का एक ही उद्देश्य था की आपसी तकरार कम हो और प्यार बढे।  इसीलिए परिणीति चोपड़ा की फिल्म का टाइटल इस शपथ ग्रहण समारोह को दिया जाता है।

५ . २ स्टेट्स 

आंध्र प्रदेश और तेलंगाना जो की पहले संयुक्त राज्य हुआ करते थे इसी साल १ से २ स्टेट्स बन गए और इसीलिए इस साल की इस हिट फिल्म का टाइटल समर्पित है इन राज्यों को।


६ . क़्वीन 
दर-असल यह टाइटल हमारे देश के किंग के लिए है मेरा मतलब हमारे प्रधानमंत्री के लिए है , जिस तरह से फिल्म में नायिका अपने हनीमून पर अकेली विदेश यात्राओ पर निकल पड़ती है ठीक उसी प्रकार इस साल हमारे पी. एम साब ने भी ताबड़तोड़ विदेश यात्रायें करी है और वो भी अपनी सरकार के हनीमून पीरियड में। इसीलिए यह टाइटल जाता है हमारे पी.एम. साब को।

७ . गुलाब गैंग 

आप सबने रोहतक की घटना तो सुनी ही होगी, और इस घटना के कितने सारे पहलु सामने आये यह भी आप जानते होंगे। इस घटना का सच जो भी हो किन्तु उन दो बहनो के लिए माधुरी दिक्षित अभिनीत फिल्म का टाइटल "गुलाब गैंग" हम जरूर इस्तेमाल कर सकते है।

८ . गुंडे 

यह शीर्षक और इसके कई पर्यायवाची शीर्षक से हर साल फ़िल्मे आती है और हर साल देश दुनिया में कितनी ही हरकते ऐसी होती है जिनके लिए यह टाइटल बना है। किसी विशेष घटना या विशेष अपराधी को यहाँ अपने लेख में जगह देकर उसको यह टाइटल समर्पित नहीं करूँगा।  बस इतना कहूँगा की आप इस किसी की भी हरकतों को नजरअंदाज न करे क्योंकि हम जिन लोगो  की  छोटी छोटी गलतियों को नज़रअंदाज करते रहते है वही लोग आगे चलकर "गुंडे" बनते है।


९   . क्या दिल्ली क्या लाहोर 

हर साल की तरह इस साल भी बनते बिगड़ते रिश्तो के बीच दोनों देशो की जनता सिर्फ यही कहती रह गयी की साब अब तो क्या दिल्ली क्या लाहोर। यह फिल्म का शीर्षक समर्पित है भारत-पाकिस्तान के रिश्ते को।

१०   .हेट स्टोरी -२ 

इस फिल्म का टाइटल दिया जाता है हमारे देश के कई सारे नेता/वक्ताओं/धर्म के ठेकेदारो को जो हर साल की तरह इस साल भी अपनी ज़हरीली वाणी से समाज में नफरत का विष घोलने से पीछे नहीं हटे। हम आशा करते है की हेट स्टोरी २ से अब हेट स्टोरी ३-४-५ इत्यादि न बने इस देश में।

११  . अमित साहनी की लिस्ट 

जी इस टाइटल को हम थोड़ा इस प्रकार कह सकते है "भारत सरकार की लिस्ट" जो की समर्पित है उस लिस्ट को जिसमे  ६२७ वो नाम है "जिनका नाम नहीं लेते" मेरा मतलब है जिनका नाम कोई नहीं लेता।  यह वो नाम है जिनका असीमित धन देश के बाहर की तिजोरियों में जमा है, जी जनाब मैं काले धनवानों की लिस्ट का जिक्र कर रहा हूँ।

चलिए हंसी मजाक बहुत हुआ, देश दुनिया के परिदृश्य में इस साल बहुत उथल पुथल हुई और हर घटना को महज एक बॉलीवुड फिल्म के टाइटल से प्रदर्शित करना आसान नहीं है। जब कही कुछ अच्छा होता है तो कही बहुत अच्छा भी होता है और जब कही कुछ बुरा होता है तो कही बहुत बुरा भी होता है।
फिल्मो की इस लिस्ट की अंतिम फिल्म का टाइटल हमने कुछ बहुत बुरे को प्रदर्शित करने के लिए इस्तेमाल किया है। हालांकि फिल्म बहुत बुरी नहीं है हम सिर्फ इसका टाइटल इस्तेमाल कर रहे है।

१२  . बैंग - बैंग 

इस साल भी भारत पाकिस्तान सीमा पर, नक्सली क्षेत्रो में और उत्तर-पूर्वी राज्यों में भीषण गोलीबारी और बम धमाके हुए जिनमे सैकड़ो निर्दोष लोगो और सैनिको की जाने गयी।  यही नहीं पुरे विश्व में अमरीका से लेके ऑस्ट्रेलिया और इराक़ से लेके पाकिस्तान तक हर जगह आतंकवादियों ने कहर बरपाया।  ईश्वर से प्रार्थना है की इस साल की समाप्ति के साथ ही ये बैंग बैंग भी समाप्त हो जाये और अगला साल पुरे विश्व के लिए "हैप्पी न्यू ईयर" बन के आये इसी के साथ अब हम इस लेख की "हैप्पी एंडिंग" करते है और आपको आने वाले साल के लिए ढेरो शुभकामनायें देते है ।
और आप लेख पर अपनी प्रतिक्रियाएं अवश्य ज़ाहिर कीजियेगा।
जय हिन्द।

नोट: कुछ फिल्मे सिनेमा स्क्रीन के साथ ही हमारे ज़ेहन से भी उतर जाती है इसीलिए हमने यहाँ उनके पोस्टर्स भी चिपकाएं है ताकि आपको याद आजाये की हम किस फिल्म की बात कर रहे है।  सभी चित्र गूगल इमेज सर्च के सौजन्य से। 




Thursday 4 December 2014

एक बंधुआ मज़दूर की कहानी

 क्या आप भगवान या भाग्य में यकीन रखते है ?

आप कहोगे की आज यह कौनसी बेतुकी बात कर रहे हो , खुद की मेहनत और हुनर के सिवा किसी पे यकीन करना बईमानी है। पढ़े लिखे नवजवान जो ठहरे आप, ऐसा ही सोचना होगा आपका, है ना ? अब भइया हम आपको एक सच्ची घटना पर आधारित कहानी सुना रहे है,  मतलब पढ़वा रहे है।  इसको पढ़कर आपको यकीन हो जायेगा की गरीब, ईमानदार और मेहनती लोगो को उनका ईश्वर उन्हें न्याय जरूर दिलाता है।

यह घटना मध्यप्रदेश  के एक छोटे से गाँव की है, गाँव मे अधिकांश लोग किसान है और सब के सब बड़े किसान है और उँची जाती से है तो ज़ाहिर सी बात है की खेतो में काम करने के लिए मज़दूर मिलना बहुत मुश्किल होता होगा किसानो के लिए। इसीलिए मज़दूरी के लिए बाहर से लोगो को लाया जाता है और अपने खेत पर रख कर साल भर काम करवाया जाता है।

ऐसे ही एक बड़े किसान परिवार जिसका मुखिया है रामप्रसाद ने मध्यप्रदेश के नीमाड क्षेत्र से एक मजदूर परिवार जिसका मुखिया है मोहनलाल  को अपने यहाँ लगभग बंधुआ मजदूर की हैसियत से रखा हुआ था। नाम मात्र का वेतन और खूब सारा काम करवाया जाता था उनसे. मोहन का परिवार भी इसी बात से खुश था की कम से कम २ वक़्त की रोटी तो मिल रही है पूरे परिवार को नही तो अपने क्षेत्र मे ना तो बारिश है ना ज़मीन ही इतनी उपजाऊ की कुछ काम मिल सकता।



गाँव हो या शहर, किसान हो या उद्योगपति, कॉम्पीटिशन के इस समय मे हर कोई अपने प्रतिद्वंदी को निचा करने का मौका ढूंढता है।  इसी गाँव के दूसरे किसान परिवार ने जिलाधीश कार्यालय में रामप्रसाद की शिकायत लगा दी।  शिकायत पर जिला कलेक्टर ने मोहन के  परिवार को बंधुआ मजदूर घोषित कर गाँव से रिहा कर के उनको वापस अपने गाँव भिजवा दिया।

अभी यहाँ पर सवाल यह है की सरकारी कायदो के मुताबिक कलेक्टर ने सही किया या मानवीय आधार पर गलत किया ?खैर जो भी हो , अभी एक परिवार बेरोज़गार हो गया था और दूसरी तरफ एक बड़े किसान की फसल पर विपरीत असर होने आया था।  सरकारी कायदो के मुताबिक बाहर के व्यक्ति को "जबरदस्ती" अपने खेत पर कम वेतन पर रखना और काम करवाना "बंधुआ मज़दूरी" की श्रेणी में आता है।

किसान परिवार के मुखिया रामप्रसाद ने पुनः उस मोहन के  परिवार को अपने  गांव में बुला लिया और इस बार उसको गांव का स्थाई निवासी बना लिया, याने की  उसके राशन कार्ड, वोटिंग कार्ड इत्यादि उसी गांव के बनवा दिए।  अब मोहन इसी गांव का निवासी हो गया और दिहाड़ी मज़दूरी पर रामप्रसाद के यहाँ काम करने लगा। 

६ महीने बाद गांव के पंचायत के चुनाव के समय इस गांव की सीट अनुसूचित जनजाति के उम्मीदवार के लिए आरक्षित घोषित की गयी। और इस बार गांव को बगैर चुनाव के ही सरपंच मिल गया।  पुरे गांव में केवल एक ही परिवार था जो अनुसूचित जनजाति का था और जिसके पास गांव के स्थाई निवासी होने के वैध कागज़ भी थे।
जी हाँ दोस्तों, वो था मोहन का परिवार। और हाँ अब मोहन को उस गांव में मज़दूर नहीं मोहन सरपंच के नाम से जाना जाता है।

तो अब बताईये की यहाँ भाग्य ने अपना खेल खेला की नहीं ??



Tuesday 25 November 2014

प्रमोशन

पिछली लघुकथा "आवारा लड़का "को बहुत ही अच्छा प्रतिसाद मिलने के बाद आप लोगो के लिए एक और कहानी लेकर मैं उपस्थित हो रहा हूँ जिसका शीर्षक है "प्रमोशन". आशा है की इसे भी आप पसंद करेंगे।

इस कथा के सभी पात्र, घटनाएँ तथा स्थान पूर्णतः काल्पनिक है जिनका किसी से कोई लेना देना नहीं है।
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संजय ४८ वर्ष के एक नौजवान प्रौढ़ मॅनेजर है जो की एक मल्टिनॅशनल बैंक मे कार्यरत है| घर मे एक खूबसूरत बीवी के अलावा इनकी एक जवान बेटी टिया है जिसने कुछ ही महीनो पहले शहर की ही एक बहुत बड़ी आय.टी. कंपनी मे जूनियर सॉफ्टवेर इंजीनियर के तौर पर जॉईन किया है|

संजय साब के सहकर्मी इन्हे इनकी पीठ पीछे रंगीला संजू भी कहते है, ऐसा क्यों कहते यह जानने के लिए चलते है इनकी एक महफ़िल मे।
संजू भाई साहब अपने ३चेले चपाटो के साथ एक क्लब मे दारू पार्टी मे बैठे है और अपनी जवानी (जो अब भी दारू के साथ चढ़ ही जाती है ) के किस्से बयाँ कर रहे है,  और वो क्या कह रहे है लीजिए आप खूद ही सुन लीजिए।

"अर्रे प्रशांत तू देल्ही घूमा की नही, यहाँ के मस्त वाले एरिया मे गया की नही अब तक" ?,
"नही सर, वैसे किस टाइप के मस्त एरिया की बात कर रहे हो आप ?"
"अबे तू जवान है, कुँवारा है, यही तो उम्र है हर चीज़ एक्सप्लोर करने की, साले हम तुम्हारी उम्र के थे ना तो कहर बरपा के रखे थे "
तभी प्रशांत कहता है "बताईए ना सर कोई किस्सा आपके जमाने का "
" जब में नया नया शिफ्ट हुआ था ना देल्ही मे तो अकेला ही आया था , फॅमिली को होमटाउन मे ही छोड़ के आया था, तब मैं और मेरे कुछ और तुम्हारे जैसे दोस्त , रात मे निकल पड़ते थे, पहले क्लब जाके दारू पीते फिर वो नये वाले थियेटर के बाजू वाली गली मे  जाके वहाँ से बढ़िया वाली २-३टॉप क्लास मॉडेल लेके आते और किसी भी एक दोस्त के फ्लॅट पे जाके सारी रात मौज मस्ती करते"
"समझे कुछ, अरे मैं  शादीशुदा होके इतनी अय्याशी कर सकता हूँ तो तुम क्यों नही ?'

प्रशांत और उसके २ साथी बस सुनते रहते है चुपचाप, प्रशांत मन ही मन सोचता है की साला हमने जिंदगी मे किया ही क्या है, इसको देखो कितना मौज करता है और एक हम है जो घर का किराया, पढ़ाई का लोन, बहन की शादी और पिताजी की दवाई मे ही उलझे हुए है।

तो अब तक आप समझ चुके होंगे की संजय भाई साहब को रंगीला क्यों कहा जाता है।

दर-असल प्रशांत संजय की बैंक मे प्रशिक्षु (प्रोबशनरी) अधिकारी के तौर पर और २० लोगो के सांथ  भरती हुआ है, सब के सब संजय के अधीन ट्रैनिंग ले रहे है और किन्ही १० अशिकारियों  को ही पर्मनेंट किया जाना है और बाकी १० को घर भेज दिया जाना है।


ट्रैनिंग, उसके बाद होने वाली एग्ज़ॅम के रिज़ल्ट और प्रशिक्षण के दौरान रहन सहन के आधार पर तय किया जाना है की कौन रहेगा और कौन घर जाएगा , किंतु आज की दुनिया मे हर चीज़ इतनी आसान नही होती जितनी की वो लगती है। जो फल बाहर से जितना अच्छा दिखता है, और खाने पर जितना स्वादिष्ट होता है उसके बीज उतने ही तकलीफ़ देते है, इसी प्रकार से हर कहानी मे कोई ना कोई ट्विस्ट ज़रूर होता है, यहाँ भी है।

ट्रैनिंग, उसके बाद होने वाली एग्ज़ॅम के रिज़ल्ट और प्रशिक्षण के दौरान रहन सहन गया चूल्‍हे मे, दर-असल संजय साहब की मर्ज़ी से तय होगा की कौन स्थाई कर्मचारी बनेगा और कौन घर जाएगा।

प्रशांत और उसके बहुत से साथी यह बात ट्रैनिंग ख़त्म होते होते जान चुके थे, प्रशांत के लिए इस नौकरी का होना उतना ही ज़रूरी था जितना निधि के लिए, और दोनो को यह नौकरी हर हाल मे बचानी ही थी।

निधि, एक सीधे सादे बॅकग्राउंड की लड़की है साहब, जबलपुर जैसे छोटे से शहर से आई है, विधवा माँ के सिवाए निधि का इस पूरे विश्व मे कोई शुभचिंतक नही है। असल में आज के परिदृश्य में किसी अकेली लड़की का कोई शुभचिंतक होना करीबन नामुमकिन है।  हिन्दी फिल्म "जब वी मेट" के अनुसार अकेली लड़की एक खुली तिजोरी की तरह होती है जिसकी कमज़ोरी का फ़ायदा उठाने को चारो तरफ भूखे भेड़िए तैयार बैठे रहते है, बस वही हाल है । बहरहाल, निधि अपनी हिम्मत, हौसले और काबिलियत के दम पर बैंक मे प्रोबशनरी ओफीसर के पद पर नियुक्त हुई है और अपनी इन्ही ख़ूबियों के दम पर आगे बढ़ना चाहती है।

प्रशांत की कहानी भी बिल्कुल सीधी सादी है, प्रशांत हिन्दी फिल्म ३ ईडियट्स के किरदार राजू की तरह है , उसके घर मे बीमार पिताजी, माताजी के अलावा एक जवान बहन है।  प्रशांत के सर पर भारी भरकम एजुकेशन लोन है, पिताजी का इलाज चल रहा है जिसमे उनकी सारी पेंशन खर्च हो जाती है, घर का खर्च चलाने के लिए बहन ट्यूशन पढ़ाती है। इन सब चीज़ो की चिन्ताओ की लकीरे प्रशांत के माथे पर साफ़ देखी जा सकती है।











खैर कहानी के इन २ शुद्ध आम भारतीय किरदारो की स्थिति से आप समझ ही गये होंगे की इनके लिए यह नौकरी कितनी ज़रूरी है, बाकी के १८ प्रशिक्षु भी कोई पूंजीपति  या राजनैतिक घराने से नही आते, वो भी इन्ही मे से एक है।

आज से ठीक एक हफ्ते मे संजय साब को फाइनल लिस्ट अपने टॉप मैनेजमेंट को देना है, इसकी तैयारी भी हो चुकी है। कल रात रोहित की तरफ से संजय सर को अनलिमिटेड दारू पार्टी मिली है, देल्ही की ही रहने वाली सोनिया भी जॉब बचाने के लिए थोडा "कोम्प्रोमाईज़" करने को राज़ी हो गयी है।  संजय साब ने अपने घर पर इंपॉर्टेंट बीजिनेस ट्रिप का हवाला देकर १ हफ्ते के लिए शहर मे ही होटेल बुक कर लिया है, जिसका पूरा खर्चा मुंबई से आए सौरभ ने उठाया है। इसी होटल के रूम में बाकी के "टेस्ट" होंगे जिनके आधार पर फाइनल लिस्ट बनायी जाएगी।

आज संजय सर ने निधि को पिंग किया " केन यू कम टू माइ कॅबिन ?” निधि ने तुरंत रिप्लाइ किया "यस, कमिंग"

"देखो निधि, तुम्हारा रिज़ल्ट थोडा सा गड़बड़ आया है, परफॉरमेंस  भी तुम्हारा वीक ही रहा है, अब ऐसे मे तुम्हे पर्मनेंट करना थोड़ा टॅफ हो रहा है"

"लेकिन सर, मैंने  ......."

"रहने दो निधि, अब कुछ नही हो सकता, कॉम्पिटीशन बहुत टॅफ है, तुम अच्छे से जानती हो  की बाकी के लोग कितने टॅलेंटेड है. . . . . . . . "

"फिर भी तुम चाहो तो मैं कुछ कर सकता हूँ" धीरे से संजय बाबू अपनी कुर्सी से उठकर निधि के पास आके उसके कंधे पर हाथ रखते हुए कहते है
" मेरे हाथ मे ही है फाइनल लिस्ट, रश्मि का नाम काट के तुम्हारा नाम जोड़ सकता हूँ, बस तुम्हे एक और टेस्ट पास करना होगा"

निधि को उम्मीद की एक किरण नज़र आई तो उसकी आँखें चमक गयी, उसने बिना समय गँवाए पूछा
"मैं  तैयार हूँ सर हर टेस्ट के लिए, बताईए कैसा टेस्ट देना होगा मुझे ?"

"होटेल कॅपिटल-इन मे आज शाम को मेरे साथ पूरी रात टेस्ट देदो, कल ही तुम्हारा नाम पर्मनेंट ओफीसर्स की लिस्ट मे जूड जाएगा, यही नही, अगर तुमने आज रात बहुत अच्छा  परफॉर्म किया तो में तुम्हे मिड-टर्म प्रमोशन के लिए भी रीकमेंड कर दूँगा।  सोच लो, आजकल हर बड़ी कंपनी में ऐसे ही सर्वाइव किया जाता है। "

यह सुनते ही निधि की आँखें जो थोड़ी देर पहले खुशी से चमक रही थी, गुस्से से लाल हो गयी और वो गुस्से मे अपने पैर पटकते हुए बाहर आ गयी, सारा गुस्सा लावा की तरह पिघल के उसकी आँखों से बह रहा था। ऐसा होते उसने अब तक क्राइम पेट्रोल और सावधान इंडिया के एपिसोड्स मे ही देखा था, लेकिन ऐसी घिनौनी बातें अगर असल जिंदगी मे हो तो मन व्याकुल हो उठता है, दील और दीमाग काम करना बंद कर देते है। गुस्से और दुःख  के मिश्रित भाव हमारे ज़हन को भर देते है। यही हाल निधि का था।  निधि ने अब तक अपने ज़मीर का, अपने आदर्शो का सौदा कभी नही किया था, उसके पास उसकी हिम्मत, हौसला और उसके आदर्श यही जमा पूंजी थी जो वो किसी हाल मे गँवाना नही चाहती थी, उसने संजय के आगे झुकने  की बजाए लड़ने का फ़ैसला किया। और टॉप मैनेजमेंट को इसकी शिकायत करने की ठानी।

और जैसा की आप जानते है की आज के परिदृश्य में एक अकेली और जरूरतमंद लड़की को हर कोई अपनी जरूरत का "सामान" समझता है, निधि के सांथ भी यही हुआ उसको चक्कर लगवाये गए, यहाँ से वहां, इस ऑफिस से उस ऑफिस।  बहार हाल वो और प्रशांत मिलकर अब भी कोर्ट में एक केस लड़ रहे है बैंक के खिलाफ।

खैर, संजय को जो करना था उसने वंही किया और उस घटना के एक हफ्ते बाद संजय होटल से अपने घर लौटा तो देखता है की घर पर एक सजावट की गयी है, घर के हॉल मे किसी छोटे सेलेब्रेशन की तैयारियाँ हो रखी है, तभी अंदर से टिया भागती हुई आई और संजय कुछ  कहता उसके पहले ही टिया  ने अपने पापा को गले लगाते हुए ऐसा कुछ कहा जो आज भी संजय के कानो में गूंजता रहता है।

टिया ने कहा

पापा "It's Party Time" मेरे परफॉरमेंस से मेरा मैनेजर इतना खुश हुआ की उसने मुझे अपनी कंपनी में न केवल परमानेंट एम्प्लोयी किया बल्कि मुझे मिड टर्म प्रमोशन के लिए रिकमेंड भी किया है ।



नोट: चित्र गूगल इमेज सर्च के सौजन्य से 
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Sunday 26 October 2014

ईयर एंड क्लोजिंग

ईयर एंड क्लोजिंग 

"Well done guys, this year we have over-achieved our year end target and we all hope to begin this new year with grand opening as we have a change of season advantage."

ऐसा कहते हुए माइक पर थोड़ा खाँसकर अंतर्राष्ट्रीय  रोगाणु  समिति के चेयरमैन श्री झींगा वायरस पानी पिने लगे।  दर-असल आज विक्रम सम्वंत २०७१ की शुरुआत में सारे विश्व से आये रोगाणु , विषाणु , बैक्टीरिया इत्यादि के प्रतिनिधियों के साथ चेयरमैन साहब की अहम बैठक रखी गयी है। 

बैठक अपने पठान साहब के गैराज में रखी है , जहाँ गाडी को छोड़कर आपको तमाम चीजे मिल जाएगी, मसलन एक कोने में पड़ा हुआ पुराना कूलर जिसके टैंक में अभी भी पानी सड़ रहा है, उसी के बाजु में रखा एक फ्लॉवर पॉट जिसमे फ्लॉवर का फ़्लेवर तक नहीं मिलेगा बल्कि दुनियाभर का गीला कचरा उसी में पड़ा मिलेगा और चूँकि यह गैराज खुला ही रहता है तो आसपास से उड़ कर आने वाला तमाम प्रकार का कचरा भी जमा है इसमें। कुल मिलाकर इस मीटिंग के लिए इस गैराज से उपयुक्त जगह कोई हो ही नहीं सकती थी। 

"झींगा साहब कितने अच्छे है न, कितनी बढ़िया जगह मीटिंग रखी है, सफाई का कोई खतरा नहीं है यहाँ " डेंगू वायरस के प्रेजिडेंट ने मलेरिआ प्रेजिडेंट से कहा, बाकी के जीवाणुओ की भी खुसर फुसर चालू ही थी की इतने में चैयरमेन साहब ने एक और अनाउंसमेंट किया , " सभी रोगाणुओं बंधुओ से अनुरोध है की सब अपनी अपनी जगह पर शांत बैठे रहे, अभी थोड़ी देर में हम अपने ईयर एंड क्लोजिंग की फुल रिपोर्ट पेश करेंगे। हमारे पास देश और दुनिया के सारे रिकार्ड्स पहुंच चुके है। "

"लेकिन सबसे पहले में बधाई देना चाहूंगा हमारे एसोसिएशन के नए सदस्य का, जिन्होंने हाल ही में बड़ी धमाकेदार एंट्री मारी है जिससे पूरा विश्व हिल गया है, और आज तक सभी बड़े से बड़े देश खौफ में जी रहे है।  जी हाँ दोस्तों में बात कर रहा हूँ सारी दुनिया में कुप्रसिद्ध और कुख्यात वायरस एबोला की .......... " बात खत्म होते होते पुरे हॉल में तालियों की गड़गड़ाहट गूंज उठी , हर छोटे मोटे वायरस को लगने लगा की वो भी एक दिन ऐसा बड़ा कारनामा कर सकता है , चारो और फिर से एक बार खुसर फुसर शुरू हो जाती है। 

प्रेजिडेंट ऑफ़ HIV एक कोने में खड़ा होक एबोला की तारीफ सुनकर जलभुनकर ख़ाक हो रहा होता है तभी पीछे से V.P ऑफ़ स्वाईन फ्लू आके उसको सांत्वना देता है की "ऐसा तो होता रहता है , परसो तुम फेमस थे कल में और आज यह एबोला", बर्डफ्लू का डायरेक्टर भी हाँ में हाँ मिलाते हुए कहता है "same to same ". 

"Silence Please" फिर से चैयरमैन साब ने माइक संभाला "और अब मुझे आप सभी को यह बताते हुए बड़ा हर्ष हो रहा है की  भारत देश में हमने इस बार भी तमाम चुनौतियों का सामना करते हुए  अच्छा प्रदर्शन जारी रखा है।  हमारा टारगेट पूरा करने में कई शहरों के म्युनिसिपालिटी  ने और वहाँ के बेवकूफ इंसानो ने हमारी बड़ी सहायता की है। " किन्तु पिछला एक महीना हमारे लिए थोड़ा संकटमय  गुजरा है , जब से भारत के P.M  मोदी ने स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत की है  तब से लेकर आज तक हमारे करोडो साथी शहीद हुए है और हमारे आंकड़ों पर भी इसका असर पड़ा है।  परन्तु मुझे इस देश के  इंसानी मूर्खों पर पूरा भरोसा है की वो अपने P.M की बातों में इतनी आसानी से नहीं पड़ने वाले  और हमें पाल के रखेंगे अपने आसपास। "

"अभी जैसा की आप सभी जानते है की चेंज ऑफ़ सीजन चल रहा है जो की हमारे बिज़नेस का सबसे अनुकूल समय है , इसी समय में हम ज्यादा से ज्यादा टारगेट पूरा कर सकते है तो आप सभी को नयी टारगेट लिस्ट दे दी जाएगी, आशा है आप उसे जरूर पूरा करेंगे। " 

"अंत में हम सब मिलकर स्वच्छ भारत अभियान में शहीद हुए अपने साथियों को श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे और दावत -ए -कचरा का लुत्फ़ उठाएंगे। "

भाषण ख़त्म होते ही सब के सब जोर से एक नारा लगाते है 
"जब तक कूड़े का ढेर रहेगा । 
रोगाणु समुदाय अमर रहेगा ॥ "


चित्र इंटरनेट के सौजन्य से 


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