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Saturday, 28 November 2015

मैनेजर


मैनेजर
यह वह प्रजाति है जो हर दफ़्तर, हर संस्था, हर दूकान और यहाँ तक की गली नुक्कड़ों पर हो रही चर्चाओं में भी पायी जाती है। दफ़्तर सरकारी हो या प्राइवेट आपको भिन्न भिन्न प्रकार के मैनेजर हर जगह देखने सुनने को मिलेंगे।

अगर आपको इस प्रजाति के विशेष गुणों की चर्चा सुननी हो तो किसी भी दफ़्तर के बाहर की चाय-सुट्टे की टपरी पर जाकर आईये, आपको मैनेजर के भांति भांति के लक्षणों, गुणों के बारे में पता पड़ेगा। वैसे मैनेजर खुद अपने बारे में इतना नहीं जानता होगा जितना की वो चाय की टपरी वाला जानता है।  ऐसा भी माना जाता है की जिस वक़्त कुछ कर्मचारी चाय के साथ सुट्टा मार रहे होते है ठीक उसी वक़्त उनके मैनेजर की माताजी और बहन जी को गज्जब की हिचकियाँ आ रही होती है। खैर इसके पीछे के साइंस को मत समझिए, जाने दीजिये।



आपको एक बात बता दे की कईं कर्मचारीगण अपने जीवन में एक बार मैनेजर बनने का हसीं ख्वाब जरूर देखते है। यह बिलकुल उसी प्रकार है जैसे कॉलेज में फ्रेशर अपने सीनियर द्वारा हुए अत्याचारों की भड़ास निकालने के लिए खुद सीनियर बनने के ख्वाब बुनता है। फिर जिस प्रकार उस कर्मचारी ने अपने मैनेजर का "तथाकथित" सम्मान किया, उसकी हर बात को ब्रह्मवाक्य मानकर पूर्णतः पालन किया, कभी उसकी किसी बात का विरोध नहीं किया, उसी कर्मचारी का मैनेजर बनने पर अपनी निचले कर्मचारियों से भी यही सब करने की अपेक्षा करना स्वाभाविक है।

मैनेजर होना बिलकुल उस कढ़ाई की तरह है जो भट्टी पर रखी होती है और जिसमे तरह तरह के प्रोजेक्ट पकवान की तरह पकते रहते है। इस कढ़ाई में सामान्य कर्मचारी तेल या घी की तरह गरम होते है और इस गर्म कढ़ाई को कोसते है। किन्तु बेचारी कढ़ाई भी अपनी निचे लगी भट्टी की आग को झेल रही होती है। ऐसे में कढ़ाई का मजबूत होना बहुत आवश्यक है। कभी कभी जब कढ़ाई आग सहन न कर पाये और पिघल के पकवान में मिश्रित होने लगे तो पकवान स्वादिष्ट नहीं रह पाते है और कसैले स्वाद के लिए कढ़ाई को ही जिम्मेदार ठहराया जाता है। इसलिए आग इतनी भी नहीं बढ़नी चाहिए की कढ़ाई को कढ़ाई न रहने दे और पकवान को ज़हर बना दे।

इसीलिए कह रहे है की मैनेजर होना आसान नहीं है साब, बहुत मुश्किलें है। ऊपर निचे आगे पीछे हर जगह से तपना पड़ता है। अगर आपको कोई ऐसा कर्मचारी मिले जो १०-२० साल नौकरी करने के बाद भी मैनेजर न बन पाया हो और एक सामान्य कर्मचारी का जीवन जी रहा हो तो उसे मुर्ख मत समझिए। मेरा यकीन मानिए उस महान आत्मा को जरूर इस कढ़ाई वाले ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति हो गयी होगी।


दुनिया के समस्त मैनेजर प्रजाति के लोगो को समर्पित।

डिस्क्लेमर: यह पोस्ट किसी भी प्रकार से प्रायोजित पोस्ट नहीं है और न ही इसका आने वाले अप्रैज़ल साईकल से कोई लेना देना है ।


Thursday, 4 June 2015

सफ़र(Suffer)

भारत के महाराष्ट्र राज्य में एक ख़ूबसूरत शहर है पुणे। इस शहर की बढ़ती हुयी आबादी और तरक्की में एक बहुत बड़ा हिस्सा आईटी प्रोफेशनल्स का है। जिस तेज़ी से शहर की सीमायें बढ़ रही है उस तेज़ी से सुविधाएँ नहीं बढ़ पा रही। पब्लिक ट्रांसपोर्ट के नाम पे गिनी चुनी बस और डूक्कड़गाड़ियां चलती है यहाँ जिनसे गुजारा होना बड़ा ही मुश्किल काम है साब। इसलिए हर आदमी की खुद की गाडी (२/३/४ व्हीलर) होना आवश्यक है।
जितनी शहर की आबादी उससे कहीं ज्यादा यहाँ की सडको पे ट्रैफिक रहता है। और क्या कहा आपने , ट्रैफिक सेन्स , जी वो क्या होता है यह किसी ने नहीं बताया हमें आज तक ?


पुणे शहर में प्रमुख कंपनियों के आईटी ऑफिस या तो पूर्व में हडपसर -खराड़ी - विमाननगर में है या पश्चिम में हिंजवडी में (जी यह जगहों के नाम है ना की द्वापर युग के राक्षसो के ). अभी ऐसे में कोई बेचारा जो की पूर्व के किसी क्षेत्र में रहता है और उसका तबादला पश्चिम वाले ऑफिस या स्पष्ट कहें हिंजवडी वाले ऑफिस में हो जाता है तो उस पर क्या बीतती होगी यह उसके सिवा वो ही बता सकता है जो हिंजवडी में रहता है और उसका ऑफिस हडपसर में हो जाता है।

हिंजवडी रोड


ऐसे में रोज रोज ऑफिस जाना रामगोपाल वर्मा की आग झेलने से कहीं ज्यादा दुष्कर है । रोज सड़ा हुआ, थकेला ट्रैफिक झेल के ऑफिस जाओ, लेट होने पर बॉस का सड़ा हुआ  चेहरा देखो फिर वापसी में उससे भी ज्यादा सड़ा हुआ ट्रैफिक झेल कर, जान पर खेलकर घर पहुँचो तो शकल  देखकर बीवी कहती है " जाओ भइया कल आना, अभी ये घर पे नहीं है " ।

ऐसे में साला आदमी को सपने भी अच्छे आये तो कैसे आये ?

यहाँ बात दुरी की नहीं है , रोजी रोटी के लिए एक साइड का ४०-५० किलोमीटर तो कोई भी तय कर ले किन्तु पुणे की सडको पर हडपसर से हिंजवडी या हिंजवडी से खराड़ी रोज रोज आना जाना मतलब अपने पिछले जनम के पापो की सजा भुगतने जैसा है। अब तो शायद नरक वालो ने भी अपनी सजा के मेनू में बदलाव  करके दुष्ट आत्माओ को पुणे की सडको पर छोड़ दिया होगा की भुगतो अपने कर्मो को यहाँ , यही तुम्हारी वैतरणी है जो  तुम्हे पार लगाएगी ।

हर रोज सुबह मगरपट्टा(एक और जगह का नाम, नाकि की दानव का ) से एक आईटी प्रोफेशनल सजधज के ऋतिक रोशन बनके अपनी बाइक पर हिंजवडी के लिए निकलता है और ऑफिस पहुँचते पहुँचते कब राखी सांवत बन जाता है पता ही नहीं चलता। और अगर ऑफिस की बस में आना जाना करे तो आदमी का आधा जीवन बस में ही गुजर जाये।

सिर्फ पुणे वालो का दर्द नहीं है यह, आप बैंगलोर में रोज़ाना कम से कम दो बार मारथल्ली फ्लाईओवर क्रॉस करने वालो से पूछिये की कैसा लगता है 1 घंटा घसीट घसीट के चलना ? "it's like a slow death" .

 हमने एक्सपेरिमेंट करने के लिए 2 लोगो को मगरपट्टा से हिंजवडी बाइक पर भेजा, 2 लोगो को BTM Layout से व्हाईट फिल्ड भेजा और at the same time 2 लोगो को 4 रेपट धर के दिए, कसम से रेपट खाने वाले लोग ज्यादा खुश दिखे ।

 हमारे इसी दर्द को देखते हुए इंसानियत के नाते ओला कैब्स और टैक्सी 4 श्योर ने वादा किया है की जल्द ही वो इन सारे बताये हुए रूट्स पर लो कॉस्ट एयर टैक्सी चलाएंगे। इसके लिए हिंजवडी और ITPL में हेलिपैड बनवाने के ऑर्डर्स दे दिए गए है ।

(अब दुआ करो की ये सपना सच हो और जल्दी हो , ताकि यह सफ़र थोड़ा सुहाना हो सके )








सभी चित्र गूगल महाराज के सौजन्य से



Wednesday, 11 February 2015

जीन्स V/s फॉर्मल पैंट

उस इंसान(विशेषतः पुरुष प्रजाति) को अपनी कमर की साइज बढ़ने का अहसास जल्दी ही हो जाता है जो नित्य प्रतिदिन फॉर्मल्स कपडे पहन के काम पे जाता है। जीन्स वालो को इतना जल्दी समझ नहीं आता, उन्हें तो तब समझता है जब खड़े खड़े जूते की लेस बांधना पड़ जाये। 

फॉर्मल्स पहनने वाले जब फैलने लगते है तो सबसे ज्यादा बुरा उनके कपड़ो को लगता है। शर्ट तो फिर भी फंसा लेते है शरीर पर किन्तु पैंट सड़ा सा मूँह बना लेती है जब उसको कमर पे चढाने की कोशिश की जाती है। जैसे तैसे पेंट ऊपर खिसकती है तो उसकी बटन रूठ जाती है और लगने से साफ़ मना कर देती है। पेंट को जैसे तैसे फंसा भी लो तो बेल्ट हड़ताल पे बैठ जाता है, बेल्ट की नजर में हम चुलबुल पाण्डे होते है क्योंकि हर महीने उसमे एक नया छेद करते है।


 आजकल के रेडीमेड कपड़ो के ज़माने में पैंट्स ऐसे भी नहीं होते की टेलर को २० रुपये देके कमर बढ़वा लो। ले देके आपके पास २ ही विकल्प होते है, या तो नया खरीदो या फिर कमर को कम कर लो। पहला जेब पर भारी पड़ता है तो दूसरा जेब और शरीर दोनों पर। मैं दोनो ऑप्शंस को दरकिनार कर तीसरे विकल्प के तौर पे जीन्स अपना लेता हूँ। जीन्स का स्वाभाव बिलकुल कट्टरपंथी नहीं है साहब, बहुत ही फ्लेक्सिबल होती है। आप ३२ की लेके आये थे और अब कमर ३४ हो गयी तो भी एडजस्ट हो जाएगी। 

सोमवार की अलसाई सुबह में मेरे फॉर्मल पेंट ने मुझे धुत्कार दिया तो मैंने भी तैश में आकर जीन्स को अपने बदन से लगा लिया। सप्ताह के पहले ही दिन आप सुबह सुबह ऑफिस जीन्स पहन के जाओ वो तब तक ठीक है जब तक की कोई HR बाला या बाल गोपाल आपको रोक के टोक न दे। मेरे नसीब तो गधे की पूँछ के बाल से लिखे हुए है, घुसते से ही सुनने को मिला "एक्सक्यूज़ मी, आप ड्रेस कोड का वोइलेशन कर रहे है" 

 मैंने मन ही मन सोचा की हद्द है यार वहां सीमा पर पड़ौसी देश सीज़फायर का वोइलेशन किये जा रहा है, चुनावो में नेता कोड ऑफ़ कंडक्ट का वोइलेशन कर रहे है, सडको पर हजारो लोग ट्रैफिक रूल्स का वोइलेशन कर रहे है उनको कोई कुछ नहीं कह रहा,यहाँ इस नन्हे से एम्प्लोयी का ड्रेस कोड वोइलेशन तुम्हारी चिंता का विषय बन गया। 

खैर मैंने उस HR सुंदरी से कहा की मैडम, दर-असल जिस हिसाब से हमारी कमर बढ़ रही है न उस हिसाब से आप सैलेरी नहीं बढ़ा रहे हो, अब हर महीने नया फॉर्मल पेंट खरीद के तो नहीं पहन सकते न। मेरी बात सुनकर उसकी आँखों में पानी भर आया और उसने अपनी भीगी पलकें झुकाके मुझे अपनी सीट पे जाने को कहा। 

कुछ ही देर बाद में देखता हूँ की एक ई-मेल आयी हुयी है की इस बार सबको सैलेरी हाईक उनकी कमर की साइज़ के हिसाब से मिलेगा। जिसकी ३६ इंच उसको ३६ टक्का और जिसकी ४० इंच उसको ४० टक्का। मेरे पीछे वाले क्यूबिकल की कुछ ज़ीरो साइज़ लड़कियों को छोड़ के पूरा ऑफिस जश्न के माहौल में डूब चूका था। मैं भी चिल्ला रहा था धन्य है यह कंपनी मैं अब यह कंपनी नहीं छोड़ूंगा, नहीं छोड़ूंगा , कभी नहीं छोड़ूंगा 

 ……………इतने में  बीवी ने एक जग पानी मेरे मुँह पे डाला और चिल्लायी , पहले यह रज़ाई छोडो और उठो, मंडे है आज ऑफिस नहीं जाना क्या ?



इसे कहते है अच्छी खासी "मोटी" सैलरी के "सपने" पे पानी फेरना। 



----------------------चित्र गूगल महाराज की कृपा से सधन्यवाद प्राप्त 

Friday, 27 June 2014

आईटी-सर्विसमैन के जीवन की सरगम


आप लोगो ने संगीत के ७ स्वरों के बारे में तो सुना ही है,  हाँ हाँ वही सा-रे -गा -मा  वाले साथ ही भाषा के स्वरों के बारे में भी आप जानते ही है।

जैसे अंग्रेजी भाषा में ५ स्वर (vowels) होते है,  संगीत में सात सुर होते है वैसे ही बेचारे आईटी-सर्विसमैन के जीवन की सरगम में  भी ५ स्वर होते है। 




अब आप सोचेंगे की क्या अनाप शनाप की ऊल जुलूल बातें करता रहता है, तो आगे पढ़िए और खुद ही निर्णय लीजिये की में क्या कह रहा हूँ।  अगर आप एक सच्चे आईटी-सर्विसमैन होंगे तो जान जायेंगे की मेरी बातों में कितनी सच्चाई है और अगर आप नॉन-आईटी के है तो आपको भी तो पता पड़े की आईटी वालो की लाइफ का कांटा किन ५ चीजो के चारो और घूमता है।

मेने कहा था की अंग्रेजी भाषा के स्वरों(a .e.i.o.u) की तरह ही आईटी-सर्विसमैन के जीवन के भी ५ स्वर है तो आईये शुरू करते है और जानते है इन स्वरों के बारे में।

१.' अ ' या A =Affair 

प्रथम स्वर है A माने Affair, मतलब कोई चक्कर या रास-लीला। जी हाँ जब भी एक फ्रेशर कोई आईटी कंपनी में दाखिल होता है तो या तो वो कॉलेज जमाने से ही कमिटेड स्टेटस में होता या अकेला होता है। कंपनी में दाखिल होते ही पहला स्वर अपने पुरे जोर शोर से इस नए नए आईटी-सर्विसमैन के कानो में गूंजने लगता है।  वो देखता है की कैसे उसकी आँखों के सामने ४-५ जोड़े ऐसे ही  बन गए और वो बस देखता रहा।  उसकी अंतरात्मा उसको धिक्कारने लगती है की कॉलेज के जमाने में तो कुछ बात बनी  नहीं अब तो कुछ कर।  और बेचारा शुरू हो जाता है अपनी अंतरात्मा की ललकार को चुप कराने की कोशिश में।

खैर अब हर किसी का अफेयर हो यह जरूरी भी नहीं कुछ न कुछ कारण या बहाना तो मिल ही जाता है "सिंगल" रहने का।  किन्तु यह प्रथम स्वर गूंजता ही रहता है उम्र भर।

२. 'इ' या "e " :Eatery Points


दूसरा स्वर जो गूंजता है वो हर किसी आईटी सर्विसमैन के कानो को नहीं फाड़ता यह उन लोगो के लिए है जो दूसरे शहरों से आये है।  E माने Eatery Points माने खाने पिने के अड्डे। वैसे एक इंजीनियर के लिए भोजन का युद्ध कोई बड़ी बात नहीं होती, वो हॉस्टल में रहके अच्छी तरह से जान जाता है की "भोजन समझौता" किसे कहते है।  परन्तु जब आप एक नए शहर में नौकरी करने जाते हो, अच्छा खासा पैसा कैफेटेरिया में देते हो और बदले में आपके हॉस्टल के खाने से भी बद्तर खाना मिले तो मन में फ़्रस्ट्रेशन वाली फीलिंग्स आती है तब ये दूसरा स्वर आपके कानो को चीरता हुआ गूंजता है की ढूंढो  कुछ अच्छे Eatery Points.


३. 'ई ' या I : Increment

अब यह मत कहना की यह तो सबसे ज्यादा दुखने वाला स्वर है, वैसे इसके बारे में ज्यादा कुछ लिखने से फायदा नहीं। तीसरा स्वर है I बोले तो इंक्रीमेंट याने बढ़ोत्तरी , जी हाँ सालाना तनख्वा में।  हम हमेशा सोचते है की यह स्वर कभी तो ऊँचा लगेगा, थोड़ा हाई पीच, परन्तु जैसा हम सोचते है अक्सर वैसा होता नहीं है हमारे जीवन में।  यह वाला स्वर सबसे नीचे की और बैठता है और बड़ी धीरे से लगता है। कभी कभी तो इस स्वर से कोई आवाज़ ही नहीं निकलती है।

४. 'ओ '  या O: Onsite 

अब आते है आईटी संगीत के चौथे स्वर पर तो दोस्तों यह स्वर हर आईटी सर्विसमैन लगाने की कोशिश करता है, किन्तु लगता सिर्फ भाग्यशाली लोगो का ही है बाकी तो बस मूह से हवा निकालते रह जाते है।

५. " ऊ " या U : U Turn:

अंतिम और सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण और सबसे ज्यादा दुखदायी और सबसे ज्यादा कर्कश स्वर है U-टर्न।
जी हाँ यहाँ बात हो रही है आपके मैनेजर के U-टर्न की , साल के शुरू में आपसे काम लेने के लिए आपको सुन्दर , हसीं सपने दिखाए जाते है फिर चाहे वो सालाना हाइक  हो, ओनसाईट  हो, प्रमोशन हो या प्रोजेक्ट से रिलीज़  हो।  आपको इनमे से कई तरह के प्रलोभन दिए जाते है, वो देता जाता है और आप लेते जाते हो।  असल में होता इसके विपरीत है।  साल के अंत तक जब आप अपने सपनो के वाउचर  को रिडीम करवाने जाते हो तो मिलता है एक तड़कता  भडकता  हुआ सा U Turn. आप फिर से जुट जाते हो काम में इसी आस में की कभी तो यह सिलसिला खत्म होगा।


तो, देखा आपने की एक आईटी सर्विसमैन के जीवन के ५ स्वर इतने आसान नहीं है जितना की दिखाई देते है, संगीत के ७ स्वरों को ठीक से लगाने के लिए जितना परिश्रम करना पड़ता है उससे ज्यादा परिश्रम आईटी के इन ५ स्वरों को ठीक से लगाने में करना पड़ता है।


..................................................चित्र गूगल महाराज के सौजन्य से 

Thursday, 1 May 2014

आईटी सर्विसमैन की भोजन गाथा


राहुल अपने हाथो में थाली लिए खड़ा है, अपनी दूर कि और पास कि नजरो से पुरे हॉल का निरिक्षण कर रहा है।  उधर से काव्या भी आ गयी वो भी अपनी बड़ी बड़ी गोल गोल आँखों को घुमा घुमा के इधर उधर देख रही है। इतनी देर में ६-७ युवा दोस्तों का एक और झुण्ड भी आ पंहुचा है , और सभी अपने अपने हाथो में प्लेट्स लिए खड़े हुए है।

अब अगर आप सोच रहे है कि यह दृश्य किसी शादी या बर्थडे पार्टी या किसी बुफे रेस्टॉरेंट का होगा आप थोडा सा गलत सोच रहे है। दर-असल यह दृश्य हमारे ऑफिस के कैफेटेरिया का है।

एक आईटी सर्विसमैन के जीवन मे भोजन का संघर्ष किसी युद्ध से कम नहीं होता है।  वैसे बहुत से लोग तो ४ साल हॉस्टल में रहके इस भोजन युद्द मे महारत प्राप्त किये होते है।  अब कैफेटेरिया का खाना हाथ मे लेकर बैठने के लिये एक टेबल ढूंढ़ना नयी मुसीबत।

दोपहर १ से लेकर ३ बजे तक यह दृश्य किसी भी आईटी कंपनी के कैफेटेरिया में देखा जा सकता है। लोग  हाथो में अपनी अपनी प्लेट्स और टिफ़िन के डिब्बे लिए एक टेबल से दूसरी टेबल ताका -झांकी  करते हुए अमूमन दिखाई पड़ेंगे। सबसे पहले तो देखते है कि कहा टेबल खाली है, फिर उस तक जल्दी से पहुचने कि कोशिश करेंगे, जैसे ही टेबल के करीब पहुचे तो पता पड़ा कि दूसरी और से किसी और ने आके अपना डिब्बा टेबल पर रखते हुए आपकी और देख के कंधे उचका के कह दिया सॉरी।
फिर आप दूसरी टेबल कि आस में इधर उधर ताकना शुरू करते है, और पाते है कि कोई टेबल खाली नहीं है, मतलब अब समय है पहले से बैठे हुए लोगो कि थालियों में नजर दौड़ाने का, कि किसकी थाली पहले खाली होने को है।  आप सबसे कम खाना नजर आने वाली थाली कि टेबल के पास जाके खड़े हो जाते है|
बेशर्मी कि हदों को लांघते हुये आप सतत रूप से टेबल पर बैठे व्यक्तियोँ के हर एक निवाले पर नजर गड़ा  कर रखते है और जैसे ही अन्तिम व्यक्ति अपणा अन्तिम निवाला मूह मे रखता है आप  टेबल से चिपक के खड़े हो जाते हो और अपना टिफ़िन या प्लेट ऐसे रखते है जैसे हिमालय कि चोटी पर झन्डा गाड़ दीया हो।



 भोजन मनुष्य के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है, आखिरकार हम  सारी मेहनत मशक्कत  पेट भर भोजन के लिए ही तो करते है। किन्तु कई बार भोजन को प्लेट तक पंहुचने मे जितना समय नही लगता उससे ज्यादा समय इसे  हमारे पेट तक पहुचने मे लग जाता है।


Monday, 24 March 2014

Polls from the eyes of an IT serviceman

These days the oxygen of India is so adulterated with politic that you can not refrain from inhaling it, even you use masks.
politics is everywhere, you want to search for any technical information you get ads of political parties on web pages, you read newspaper, every page is colored with politics, you switch TV channels, you get ads of parties there too. So in short, I want to say that you can not run away from politics even if you hate it most.

Now when the environment to so politics friendly, how can I escape from writing something on politics, however I have written on politics in past too, this time let's try to make it a little interesting.

As the title of this article says, election from the eyes of an IT serviceman, so if you do not belong to IT or do not understand IT people's emotions then stop reading.
 And if you are an IT fellow, working in development team or quality testing team, or as a technical consultant and want to see the political scenario as an IT guy, then go ahead my friend, you must read this article.

Here is a scenario, if I consider India as client and Central government as a production server, then we see that in last 10 years, the code in production server got corrupted, and needs to be either upgraded or should be replaced with new code. Client (India) follows a 5 yearly release process, means the whole code can be replaced or upgraded only once in 5 years. Emergency releases may possible provided that the production is completely down.

so once a code is released, our various development teams(political Parties) start coding for next release. Our client(India) does not have 2 team system, where best code of 2 will go to production, but we have several development teams. Whoever's code is passed by end user(Voters), only that code will be delivered to production. However there were only 2 big development teams for many years, who are coding for India, but now several small teams have been grown. In recent few releases India has deployed code written by one big team along with some small teams, because some of the crucial modules developed and integrated by small teams, and they given integration option to only one big team.

Here we name the teams, the oldest development team is called as team C, the other big team is called Team B and several small teams collectively can be called team X. So right now our production server is (dis)functioning on a code written by C+X.(anyways, Ctr+X means cut from everywhere and paste it in swiss production).
 The code is traditional and runs on legacy systems, with very limited flexibility. End Users are now frustrated with the performance of production system. End users used to have only option that they pass the code by Team B. All of sudden a new team arises, team A, who claimed that they can develop a code which is most suitable for production, which will remove all the bugs from production. Team A claimed that they born to kill bugs from production, they are willing to clean the system, so that users do not get useless pop ups and they can work on production system easily. 

We have several quality servers ( state government) which got periodically refreshed with the data from production, but they do not function exactly same as production, but somehow near to production. The big difference is load, there are less users per quality server as compare to production server.
So when Team A claimed that they have a revolutionary code which could fix all problems of production, then end users decided to test their code in one of the quality system(Delhi), in fact it can be called as a pre-production server. The code written by team A was deployed in Delhi, with the help of legacy system as they were short of some important modules. The code was tested for 49 days, since it was claimed that it is a revolutionary code and can bring drastic changes, so load testing was performed along with UAT.
Several bugs were reported, many times code was hanged, the main module of the code was so unpredictable that anytime it would stop working  and hang(sit on Dharna). End users of quality system were happy for some time as they could see a totally new interface to use, they started testing the system heavily.

Before implementing the code, development team A claimed that it is purest of pure code they have delivered, so they do not expect any bug. Testing teams have reported several bugs but dev team was reluctant to correct any of their bug. In fact their code could not survive the load which was generated, they excused that due to firewall we are not able to perform. They demanded to disable the firewall, they even claimed that the antivirus is not good, they wanted to implement their own antivirus. When dev team was forced to follow the CMM-5 process they became angry and they deimplemented their code by themselves from the quality.

Now the Delhi quality server is down, and waiting for a new deployment.

Even after failing in quality server, dev team A is preparing code for production, they want to deploy their code in production. They say that Team C has corrupted the production but Team B will also do the same. Team A's dev lead is everywhere criticizing team B's dev lead. In fact still they claim that only they can provide clean code, some end users are still hopeful, however chances are less that their code is going to be deployed.

Business people says that Team B has a code which may be deployed in production, no one from Team B claiming that their code has 0 bug, unlike Team A.  Offcourse they have some bugs in their code, some hard to identify and some they can not remove as they are using few unlicensed SDKs.

Team B is claiming that their code will be so robust and powerful that it will improve the performance of production, and so the business of client will be improved, they are claiming that they will save the system from Trojan, spams, and viruses. In fact they have implemented their code in some quality systems successfully and their code is running fine, no major bugs reported. There is one thing that is still horrifying for Team B.In 2002 one of quality server where their code was running crashed due to some important database table corruption, however they have somehow recovered the tables, but lost data. The data which was belonged to a certain group of user could not be recovered. That part of users think that the code developed by Team B is not suitable for them, so they may deny the deployment of Team B's code. But Team B's star coder, who has developed a smooth code in a quality server Gujarat, has become the face of Team B. People are starting to believe that he can write a good code.

Now coming to team C, which is also known for masters of legacy systems, since they run their code on legacy systems only, never upgraded, but this time they don't have a proper code. They are still trying to woo the end user, if any of their module could be implemented. The current production server was running on their code, and it is so much corrupted that India had to suffer major financial loss. But they don't bother. Their main programmer is trying hard to learn new technologies to write a better code, but he is not able to grasp the things. Still hopes are alive.

Team X, they are comprising of several small scale development teams, are also in race of production.Team X alone may not deliver the production code, but they could play an important role. They could provide some modules, and it may be possible that Team B or C or A can not integrate their code without team X's connectors.


So, the announcement is due on 16th May, who's code is going to deployed in production, is it Team B, B+X, A, A+X or team C. However the contest seems to be C, X, A v/s B. 
Wait and watch.

at the end I would appeal to all of you, please go and vote for any team, but at least vote, at last you are the end user, who is going to suffer if correct code is not selected and business will suffer if stable and strong code is not selected. 

--JaiHind


Cartoon from Internet.


Tuesday, 10 December 2013

Bollywood vs IT World

आईटी सर्विसेज में काम करते हुए आप इस क्षेत्र  के बारे में लिखे/बोले  बिना रह ही नहीं सकते, जैसे  मैं पहले भी आईटी सर्विसमैन और इसके जीवन में आने वाले कुछ मकाम के बारे में लिख चूका हूँ, अगर आपने नहीं पढ़ा हो तो अभी पढ़ सकते है यहाँ क्लिक करके !

वैसे आप फ़िल्म / टीवी तो देखते ही होंगे, और सोचते होंगे कि यह टीवी कलाकार और फ़िल्म स्टार कि लाइफ भी कितनी सही है, लेकिन आपको एक बात  बताउ ?? इनमे और हम IT वालो के काम में कुछ ज्यादा अंतर नहीं होता बस यह लोग कुछ ज्यादा टैक्स भरते है (करोड़ो में ) और हम लोग थोडा कम (हजारो में )। 

आप सोच रहे होंगे फालतू कि बकवास करता है, काम और कमाई दोनों ही अलग है इनकी हमसे, हैना ऐसा ही सोच रहे होंगे ना ? चलिए  कोई बात नहीं, वो क्या है कि हमे कोई बात जब एक्सप्लेन करके न बतायी जाये तो वो बकवास ही लगती है, हालांकि इसकी कोई ग्यारंटी नहीं है कि एक्सप्लेन करने के बाद भी बकवास न लगे, मसलन कोई क्लाइंट छोटा सा इ-मेल लिखे किसी issue के लिए तो हम उसको तुरंत reply करते है कि "kindly elaborate, and  give more details about  the issue " और जब वो डिटेल में मेल लिखता है तो भी हम कहते है कि "क्या बकवास है ?"

चलिए फिर आते है टीवी/फ़िल्म कलाकार और आईटी सर्विसमैन कि जिंदगी और उनके काम कि समानता पर , आपको एक्सप्लेन करता हूँ कि क्या समानता है दोनों के कामो में। 
आईटी में अगर आप हमेशा किसी न किसी इम्प्लीमेंटेशन प्रोजेक्ट्स पर ही काम करते है तो आप अपने आप को किसी  फ़िल्म कलाकार कि तरह समझ सकते है, क्योंकि जैसे फिल्मो कि शुटिंग कुछ ही महीनो में कम्पलीट हो जाती है वैसे ही  इम्प्लीमेंटेशन प्रोजेक्ट्स में होता है , कुछ ही महीनो में कोडिंग कम्पलीट। फिर फिल्मो में एडिटिंग, डबिंग का दौर चलता है वैसे ही प्रोजेक्ट में UT, UAT और बग फिक्सिंग का दौर चलता है, फिर एक फ़िल्म रिलीज़ हो जाती है और इधर प्रोजेक्ट कि भी  रिलीज़ हो जाती है।  फिर हीरो किसी और फ़िल्म कि शूटिंग में व्यस्त हो जाता है और आप किसी और प्रोजेक्ट या Module कि कोडिंग में व्यस्त हो जाते है, कभी कभी फिल्मो कि पार्टीज कि तरह प्रोजेक्ट्स कि भी पार्टीज होती है, तो भाई हुआ न सेम टू सेम, बन गए न आप हीरो। 

अब आप कहेंगे कि आईटी सर्विसेज में हर कोई इम्प्लीमेंटेशन प्रोजेक्ट्स में काम नहीं करता यहाँ सपोर्ट और मैन्टेनन्स के भी प्रोजेक्ट्स होते है जो कुछ महीनो के नहीं अपितु कई वर्षो तक के होते है, तो महाशय अगर आप किसी ऐसे प्रोजेक्ट्स पर भी काम कर रहे है जो सालो साल से चले आ रहे है, जहाँ सालो साल से एक जैसा काम काज, इक्का दुक्का लोग बदलते है परन्तु बाकी टीम वैसी कि वैसी है, तो आप अपने आप को कम से कम किसी टीवी आर्टिस्ट कि तरह तो समझ ही सकते है।  टीवी सिरिअल्स बिलकुल आईटी के सपोर्ट प्रोजेक्ट कि तरह होते है बहुत सारे, बहुत दिनों तक चलने वाले और सबकी एक जैसी कहानी।  टीवी एक्टर हमेशा चाहता है कि वो कभी फिल्मो में भी काम करे वैसे ही सपोर्ट के प्रोजेक्ट में काम करने वाला इंजीनियर हमेशा सोचता है कि कभी वो भी इम्प्लीमेंटेशन प्रोजेक्ट में काम करे।  जैसे टीवी सिरिअल्स में हर त्यौहार को बड़ी धूम धाम से भारी भरकम costumes के साथ मनाया जाता है,  ठीक वैसे ही मैन्टेनन्स प्रोजेक्ट्स में हर त्यौहार पर ट्रेडिशनल डे मनाया जाता है। आईटी सपोर्ट प्रोजेक्ट्स में बॉस और एम्प्लोयी का झगड़ा वैसा ही होता है जैसा सिरिअल्स में सास बहु का, सिरिअल्स में २ औरतें मिलकर जैसी गॉसिप्स करती दिखाई देती है बिलकुल वैसी ही गॉसिप्स एक ही प्रोजेक्ट में काम करने वाली २ लड़कियां करती हुयी मिलेगी। 

और जैसे इम्प्लीमेंटेशन में काम करने वाला इंजीनियर कभी न कभी तो सपोर्ट के प्रोजेक्ट्स में आता ही है भले ही मेनेजर बनकर वैसे ही बड़े से बड़ा फ़िल्म कलाकार कभी न कभी टीवी पर आता ही है भले ही होस्ट बनकर।  और इसका विपरीत भी होता है बहुत से काबिल और बड़े एक्टर टीवी कि दुनिया से आये है वैसे ही बहुत सारे  इंजीनियर सपोर्ट प्रोजेक्ट्स से निकल कर बड़े बड़े इम्प्लीमेंटेशन प्रोजेक्ट्स में आये है.
और जो इंजीनियर अपने इम्प्लीमेंटेशन प्रोजेक्ट को इस तरह से बर्बाद या बिगाड़ देते है की उन्हे दूसरा मौका नही मिलता और कोई और उन्हे किसी इंप्लिमेंटेशन प्रॉजेक्ट मे लेने को तैयार नही होता तो उनके लिए भी कुछ सपोर्ट प्रॉजेक्ट रहते ही है कंपनी में बिल्कुल वैसे ही जैसे टीवी पर बिगबोस !!!

तो देखा आपने, आईटी सर्विसेज और फ़िल्म/टीवी कि दुनिया एक जैसी ही है , हमे भी अपने आप को किसी  सलिब्रिटी से कम नहीं समझना चाहिए।

तो बोलो सब मिलके_ _ _ लाइट्स - कैमरा - एक्शन - कट -कॉपी - पेस्ट 

आपका क्या विचार है , या अब भी कहेंगे कि "क्या बकवास कर रहा है ?"

-------------------------------------------------------------फ़ोटो  इंटरनेट के सौजन्य से 

Monday, 11 November 2013

Wedding Invitation of an IT Employee

In one of my last posts I have shared the "Last Working day e-mail" of an IT employee, which you have appreciated, and it was real e-mail which was actually sent to top managers of organization.

Now since wedding season has to be started in a week or so, I would like to share with you a real wedding e-mail of an IT employee ( i.e mine). 

It's totally an original work and originally sent to my friends and colleagues,  you are free to use it although it is copyrighted  :) :)



--------------------Wedding Invitation E-mail of an IT Employee-------------------

Hi,


You may find this mail a bit long, like my courtship period...... 
but I insist, please read it completely J


After working in IT industry for almost 42 months I found that I have developed few qualities in myself…
such as....

1. Time management

2. Team work

3.How to say "Yes" to everything

4.Boss is always right

5.Stay quiet and concentrate on work

6.Be a good listener ( Listening only)

7.Accept all the negative things whatever come to your way even if you have given your 100%

8.            Commitment

9.            How to articulate a lie

and
10. Strong mindset of living in a stressed environment

If you notice carefully then you will find that all above qualities are essential to be a good husband,

(scroll up and read again if you do not believe)

so I think now I am prepared to take a plunge for this responsibility,

Those who are already inside the ring may warn me saying that married life has many pains, but trust me, celibacy has no pleasures.


Married life is a rollercoaster ride, and you cannot experience it’s thrill until you ride, I have seen those who are already on this rollercoaster, some are yelling, some are crying, some are vomiting but some are surely enjoying.

I have got a ticket for this roller coaster ride and I am ready to take a seat along with  my partner in this ride.

Those who are already there please bless & welcome us onboard and those who are standing outside and clapping, I wish you will get a ticket soon. J


Image Source: Internet 

Monday, 2 September 2013

भारत की न्याय प्रणाली


कुछ दीनो पहले मेने एक हिन्दी फ़िल्म देखी थी “स्पेशल 26”, जिसमे असली वाली CID के मनोज वाजपयी और लूट जाने वाले जौहरी सेठ के बीच एक संवाद है जिसमे मनोज वाजपयी कहते है की “ सेठ जी, हमारे देश मे जुर्म सोचने की सज़ा नही मिलती, जुर्म करने की मिलती है और वो भी तब जब सबूत हो”


यह संवाद सुन के मेरे मन मे आया की अगर ऐसा सच मे होता की इंसान के अपराध  सोचने भर से ही उसको पकड़ लिया जाता और सज़ा सुना दी जाती तो कैसा होता हमारा देश?

वैसे आप कहेंगे की क्या फालतू की बकवास है, ऐसा कैसे संभव हो सकता है? तो दोस्तो, ऐसा हो सकता है, सोचिए अगर हमारे यहाँ हर इंसान के पैदा होते ही उसके दीमाग मे एक चिप लोड कर दें जो की उसके सोचने समझने की प्रणाली(nervous system) को नियंत्रित करती हो, चिप के प्रोग्रामिंग IPC की धाराओं के हिसाब से इस तरह हो की अगर व्यक्ति ने सोचा की में फलाँ फलाँ व्यक्ति को मार दूँगा तो तुरंत धारा 302 वाला signal activate हो जाएगा और निकटतम पोलीस स्टेशन पर उस व्यक्ति के ID नंबर के साथ अलार्म बज जाएगा, बस पोलीस वाले अपना काम शुरू कर देंगे और अपराधी सोच वाला व्यक्ति  पुलिस  की निगरानी में आ जायेगा।
विज्ञान  के इस युग मे सब कुछ संभव है, तो ऐसा भी हो सकता है एक दिन.
तो पाठकों (readers)  सोचिए की अगर ऐसा हो जाए, की इंसान के अपराध सोचने भर से ही उसके मोबाइल फोन पर उसको  चेतावनी मिल जाए की “एक बार अपराध सोच तो लिया है अब दोबारा से मत सोचना”. ऐसे मे हमारे देश मे बढ़ते हुए कितने अपराध नियंत्रित हो जाएँगे?

किंतु एक समस्या भी है,  कई  सारे निर्दोष लोग  बे-वजह फँस जाएँगे, जो बेचारे सिर्फ़ अपने दिल की खुशी के लिए किसी अपराध के बारे मे सोचते है, करते कभी नही,, जैसे आज के परिद्रश्य(Situation) की बात करे और  ऐसी प्रणाली प्रभावी हो जाए तो देश की आधी से ज़्यादा जनसंख्या “गाँधी” परिवार के विरुद्ध  "सोचने" के अपराध मे जेल मे होगी, ये ही नही, हमारे देश के कई मेधावी (Brilliant) अभियांत्रिकी (Engineering) स्वस्थ युवा पुरुष की श्रेणी मे आने वाले छात्र जो बेचारे सिर्फ़ सोच ही सकते है, वो सबसे ख़तरनाक धारा के लपेटे मे आ जाएँगे ( धारा 376).

इस अपराध सूचक प्रणाली का असर सीधा हमारे देश के नागरिको की सोच पर होगा और जब सोच बदलेगी तो देश तो अपने आप बदल जाएगा| किंतु फिर एक समस्या है, ऐसे कई अपराध सूचक यंत्र तो आज भी देश मे है, आज भी  देश मे कठोर कानून व्यवस्था है। सुचना का अधिकार है, CBI है, दुनिया भर की एजेंसीज है,
परंतु जो सबसे ज़्यादा बड़े अपराधी है, हमारे नेता गण जो की अपने आप को किसी भी अपराध नियंत्रण प्रणाली से ऊपर समझते है वो यहा भी बच निकलेंगे. और दूसरी समस्या यह है की आज की हमारी पोलीस जो की अपराध “करने” वालो को ही नही पकड़ सकती, और पकड़ भी ले तो उन्हे सज़ा नही दिला सकती तो सोचिए वो पोलीस अपराध “सोचने” वालो को क्या खाक पकड़ेगी…..

अभी के ताजा उदाहरण (Delhi Gang Rape Juvenile verdict, Aasaram Bapu case)इस बात के प्रमाण है की हमारी न्याय प्रणाली कितनी खोखली है, हमारा संविधान जो की कई दुसरे देशो के संविधान का Copy Paste है कितना कमजोर है, हमारे देश में अगर ताकतवर है तो बस राजनैतिक लोग जो जब भी मन में आये तब कानून, संविधान, नीतियां बदल लेते है और सिर्फ आम आदमी के विरुद्ध इन्हें उपयोग करते है।

में आप सभी के भी विचार जानना चाहूँगा, की आज की कानून व्यवस्था हमारे देश के अपराधिक मनोविज्ञान से निपटने में कारगर है ? हमारा देश जो की प्रजातान्त्रिक देश है क्या कानून बनाने के समय हमारी राय नहीं ली जानी चाहिए ?

Saturday, 27 July 2013

2014, General Election, India and We

We all are  waiting for 2014 general elections, which might be a biggest thing for Indian Political parties but for Indian Public (most of them) it will be like another bigger, fancier, loud and Multi-starrer Bollywood Masala flick which will provide them lots of entertainment.

When I was a kid I used to wait for 15 August and 26 January, not because to celebrate these biggest days of Indian republic but to get a chance either to sing a poetry on mike or at least to get a “motichoor ka Laddoo” after “Jhanda-Vandan” (Flag hoisting ceremony) in School. I never understood the words used by chief guests on that occasion even I couldn’t understand the importance of those days till I grown up to class 5th-6th standard.
The same scenario we can see today for most of our Adults in rural India when it comes to elections, for many of them it is just a chance to get either a free bottle of desi daroo and a blanket or a 500/1000 Rupee note at the time of elections, for some people it is a matter of showing their connections with political parties to their local neighborhood, and this time in 2014, for a bigger chunk of urban India it may be a hot topic to discuss on Social media or to watch News channel’s Exit polls.After elections when poll results are shown on TV, it will be same for them as watching a tennis match between Federer and Rafa where in one set Federer is leading and another set it is Rafa.

A very few responsible citizens will step out for a real change, for making their vote count, for making their voice to be listened, for making India a proud nation again. For all this they have to Vote, they have to go to their constituency and vote for a correct or I should better say a less wrong person.

According to NASSCOM we have around 3 Million professionals working in IT/ITES, and if majority of them are working away from their home, if we take a rough figure say 50% are away from their home (in actual it may be more), so my question is how many of them take leaves for voting and go to their home town and vote for right candidate?
I don’t think more than 1 or 2% of these people would do so. So out of 15 Lac persons only 20-25 thousand would go and vote and rest enjoy the TV chat shows. Here I am talking only for IT/ITES professionals where we have many such other fields.
The point is here not to blame our young friends for not voting but to make them aware that only their vote can bring a true change to this country, many educated, young and mature people are not using their voting power and it is being misused by local goons for fake voting and we get a wrong government just to accuse for high taxing, not developing, looting, scams, bad roads, price hikes, no infrastructure and no salary hikes.


So here I request you to take an oath that in next elections you will perform your duty and try hard to cast your vote, I must say again that only educated people can bring change to this nation, otherwise it will be sold to Congress again with a price of a desi daroo bottle and a Murga.

Please go and vote for good governance this time, and circulate my appeal to all our friends.

If you do not have a voter ID card then please register yourself for the same at the below link, before registering keep ready scanned copy of your class 10th Mark sheet ( or Birth Certificate for age proof), Residence proof and Photo.

Link to register for Voter ID:    http://www.firstpost.com/firstvote/ 

Share information about this link as much as possible, inspire others in your family, neighborhood, friend circle and at workplace for registering for Voter ID.



Image Courtesy: Internet 

JaiHind.

Friday, 1 March 2013

It's a small world


You have appreciated my last post on ITpeople. And this time I have tried a story inspired from a real incident. 
This incident has proved that we are not living in a very big world but we are small particles of this small ball called globe.
By reading this story you will get to know that what can happen in this big yet small world of IT and why only IT, every Sector if it is Marketing, Finance or any other blood sucking job.



Manoj is a very talented technical consultant in a big MNC where he joined just a year ago as a Team Lead. In this company he is expected to work more on a technology called MS Excel than a technology in which he is an expert.

In the typical org structure of his company, he is a middle man, Manager is above him and consultants are below him. Manager always puts a cactus into Manoj’s A**s to get work done from consultants and to save cost, but he is unable to put the same cactus into consultants, why? Because may be he is not capable enough to do so, or may be he is enjoying the cactus himself.

He has completed 1 year and finished his appraisal cycle.  He is expecting a good result because according to him he has done very good job last year, so he should get promoted or at least should get  good ratings and a salary hike. But as you know that good ratings and hikes are dream components in IT industry. Working hard for a year and expecting a good hike in IT industry is same as expecting a union budget in favor of middle and lower middle class.

Manoj is disappointed or more over he is frustrated because he got a “C” rating(Below Average Performer), where hike will be in negative for this year( no bonus, no variable pay and 0% hike = less salary). He decided to switch the company and started circulating his resume across the industry.

One day in afternoon, after having lunch, he was wandering around his office building with a cigarette in one hand, a cup of tea in other and remembrance of old days in mind….

He was a happy consultant there in his old company, enjoying his technical work, been to onshore 4 times. His latest onsite visit was also from his previous company and it was in Australia for a long period of 9 months. It is other thing that in the 9th month in Sydney he was as desperate to come to India as is a child in the 9th month in mother’s womb desperate to take birth. Because he was married and these 9 months he spent with his colleague and not with his wife.
His colleague Venkat was from his native, so they had formed a very good bonding. They used to take breaks from work to have beer parties at each other’s place. One Friday in a similar drink party at Manoj’s place, Venkat got over-drunk and started teasing Manoj by taking his wife’s name. The party ended by Manoj with a firm blow on Venkat’s face, and then they exchanged few more blows before Venkat left saying that he would remember this. After this incident Manoj was missing his home and his wife, because he was alone. 

Today again he was feeling lonely and disappointed with an almost burnt cigarette butt in one hand and an empty disposable glass of tea in other. He realized it’s too late to go back to office desk so after disposing cigarette butt, tea glass and the memories in which he was engrossed, he headed towards his present office desk.

 Next day morning Manoj got a call from an Indian MNC and this call was to schedule a telephonic technical round of interview. He fixed a time of 5:00 PM in the evening on the same day. Manoj was prepared to crack the interview; he went outside at 4:45 PM and started waiting for the call. Till the time he got the call at 5:30 PM, he had finished 4 rounds of smoking. It was a technical interview and that too a telephonic, where a panel of 3 sitting persons each in Chennai, Bangalore and Noida respectively were shooting hard technical questions on a person standing in Hyderabad. After a massive Q/A round of 2.5 hours Manoj was tired and satisfied. His interview went well and he cracked the first round and was selected for the managerial round which is scheduled to be held the next day at 10 AM.

Next day Manoj came early to office. He was desperately waiting for the final call. Today again at 9:45 AM he left his seat and went outside to attend the call, but this time he didn't get call till 10:45 AM. Manoj was worried, he tried to call the corresponding HR, but failed. Finally at 11:10 AM he got the call. The person at other side apologized for the delay and then rescheduled the call for 4:00 PM on the same day. Again Manoj started waiting for the call from 4:00 PM. He consumed smoke of 5 cigarettes, however he didn't lose his patience till 5:00 PM when finally he got that “Managerial round” call, and here the exact conversation of the call:

Caller: Hi Manoj, sorry for a delay, is this the right time to talk, can we start now?

Manoj: hey, no issues, yes sure we can start.

Caller: so Manoj you cleared your Technical round and just this call will get you the package which you demanded. We have this project specific requirement for onshore, so tell me do you have any onshore experience?

Manoj: yes, I have visited client sites abroad 4 times in 4 different countries.

Caller: ohhh, great man, so you have a good exposure of working with client, it’s good.

Manoj: yes sir….

Caller: so tell me which countries you have visited and it would be good to know who were the clients you served for?

Manoj: I visited South Africa for a mining company, Spain for a liquor company, Canada for a food processing company and Australia for an oil and mining company.

Caller: Sounds interesting and it’s nice that you have done cross industrial projects. Manoj, tell me if you remember any serious issue you faced during any of these tours.

Manoj: actually all the tours were implementation projects, so all were challenging for me and as you know being a technical guy we have to face issues.

Caller: tell me about your toughest tour, professionally and personally.

Manoj: oh yea, my toughest tour was Australia, where I faced serious issues not only professionally but personally too.

Caller: you were alone there or someone accompanied you?

Manoj: No sir, I was not alone but Venkat, one of my colleagues was also there with me.

Caller: so it was a team of 2 people.

Manoj: yea….

Caller: Manoj, you told that you faced some personal issues there, if you don’t mind could you please put some more light on it, only of you feel comfortable.

(Manoj was now comfortable that this interview is rather a discussion and being interesting)

Manoj: yes, an incident happened there which disturbed me very much. I couldn’t concentrate on my job after that incident.

Caller: If you don’t mind Monoj, may I know what that incident was?

Manoj: Nothing, it was just a small fight. I and Venkat were enjoying a drink party and we got drunk and exchanged heated arguments. I lost my patience and slapped him hard on his face.

Caller: ohhh, it’s sad, so after this fight did you fine-tuned your relationship with him?
Manoj: no sir, I didn’t talk to him, neither had he talked to me.

Caller: So you haven’t spoken to Venkat till now, and you don’t know where he is?

Manoj: right….I don’t know.

Caller: ohhh… Manoj, it’s really sad.
 OK, I have done and I would like to end this call by a note that we don’t have any such requirement in our company where you can fit. And being as a technology lead of this company I am very sorry that it was an official prank call for you….
And before I leave you disheartened I must tell you that till now you haven’t spoken to Venkat, but for last half an hour you were speaking with him only.

Beep beep beep beep (call disconnected).


Don't mess with anybody at workplace !!!!!! It's a small world, you know.... :)



देश भक्ति

  देश भक्ति , यह वो हार्मोन है जो हम भारतियों की रगो में आम तौर पर स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस  या भारत पाकिस्तान के मैच वाले दिन ख...