भारत के महाराष्ट्र राज्य में एक ख़ूबसूरत शहर है पुणे। इस शहर की बढ़ती हुयी आबादी और तरक्की में एक बहुत बड़ा हिस्सा आईटी प्रोफेशनल्स का है। जिस तेज़ी से शहर की सीमायें बढ़ रही है उस तेज़ी से सुविधाएँ नहीं बढ़ पा रही। पब्लिक ट्रांसपोर्ट के नाम पे गिनी चुनी बस और डूक्कड़गाड़ियां चलती है यहाँ जिनसे गुजारा होना बड़ा ही मुश्किल काम है साब। इसलिए हर आदमी की खुद की गाडी (२/३/४ व्हीलर) होना आवश्यक है।
जितनी शहर की आबादी उससे कहीं ज्यादा यहाँ की सडको पे ट्रैफिक रहता है। और क्या कहा आपने , ट्रैफिक सेन्स , जी वो क्या होता है यह किसी ने नहीं बताया हमें आज तक ?
पुणे शहर में प्रमुख कंपनियों के आईटी ऑफिस या तो पूर्व में हडपसर -खराड़ी - विमाननगर में है या पश्चिम में हिंजवडी में (जी यह जगहों के नाम है ना की द्वापर युग के राक्षसो के ). अभी ऐसे में कोई बेचारा जो की पूर्व के किसी क्षेत्र में रहता है और उसका तबादला पश्चिम वाले ऑफिस या स्पष्ट कहें हिंजवडी वाले ऑफिस में हो जाता है तो उस पर क्या बीतती होगी यह उसके सिवा वो ही बता सकता है जो हिंजवडी में रहता है और उसका ऑफिस हडपसर में हो जाता है।
ऐसे में रोज रोज ऑफिस जाना रामगोपाल वर्मा की आग झेलने से कहीं ज्यादा दुष्कर है । रोज सड़ा हुआ, थकेला ट्रैफिक झेल के ऑफिस जाओ, लेट होने पर बॉस का सड़ा हुआ चेहरा देखो फिर वापसी में उससे भी ज्यादा सड़ा हुआ ट्रैफिक झेल कर, जान पर खेलकर घर पहुँचो तो शकल देखकर बीवी कहती है " जाओ भइया कल आना, अभी ये घर पे नहीं है " ।
ऐसे में साला आदमी को सपने भी अच्छे आये तो कैसे आये ?
यहाँ बात दुरी की नहीं है , रोजी रोटी के लिए एक साइड का ४०-५० किलोमीटर तो कोई भी तय कर ले किन्तु पुणे की सडको पर हडपसर से हिंजवडी या हिंजवडी से खराड़ी रोज रोज आना जाना मतलब अपने पिछले जनम के पापो की सजा भुगतने जैसा है। अब तो शायद नरक वालो ने भी अपनी सजा के मेनू में बदलाव करके दुष्ट आत्माओ को पुणे की सडको पर छोड़ दिया होगा की भुगतो अपने कर्मो को यहाँ , यही तुम्हारी वैतरणी है जो तुम्हे पार लगाएगी ।
हर रोज सुबह मगरपट्टा(एक और जगह का नाम, नाकि की दानव का ) से एक आईटी प्रोफेशनल सजधज के ऋतिक रोशन बनके अपनी बाइक पर हिंजवडी के लिए निकलता है और ऑफिस पहुँचते पहुँचते कब राखी सांवत बन जाता है पता ही नहीं चलता। और अगर ऑफिस की बस में आना जाना करे तो आदमी का आधा जीवन बस में ही गुजर जाये।
सिर्फ पुणे वालो का दर्द नहीं है यह, आप बैंगलोर में रोज़ाना कम से कम दो बार मारथल्ली फ्लाईओवर क्रॉस करने वालो से पूछिये की कैसा लगता है 1 घंटा घसीट घसीट के चलना ? "it's like a slow death" .
हमने एक्सपेरिमेंट करने के लिए 2 लोगो को मगरपट्टा से हिंजवडी बाइक पर भेजा, 2 लोगो को BTM Layout से व्हाईट फिल्ड भेजा और at the same time 2 लोगो को 4 रेपट धर के दिए, कसम से रेपट खाने वाले लोग ज्यादा खुश दिखे ।
हमारे इसी दर्द को देखते हुए इंसानियत के नाते ओला कैब्स और टैक्सी 4 श्योर ने वादा किया है की जल्द ही वो इन सारे बताये हुए रूट्स पर लो कॉस्ट एयर टैक्सी चलाएंगे। इसके लिए हिंजवडी और ITPL में हेलिपैड बनवाने के ऑर्डर्स दे दिए गए है ।
(अब दुआ करो की ये सपना सच हो और जल्दी हो , ताकि यह सफ़र थोड़ा सुहाना हो सके )
सभी चित्र गूगल महाराज के सौजन्य से
जितनी शहर की आबादी उससे कहीं ज्यादा यहाँ की सडको पे ट्रैफिक रहता है। और क्या कहा आपने , ट्रैफिक सेन्स , जी वो क्या होता है यह किसी ने नहीं बताया हमें आज तक ?
पुणे शहर में प्रमुख कंपनियों के आईटी ऑफिस या तो पूर्व में हडपसर -खराड़ी - विमाननगर में है या पश्चिम में हिंजवडी में (जी यह जगहों के नाम है ना की द्वापर युग के राक्षसो के ). अभी ऐसे में कोई बेचारा जो की पूर्व के किसी क्षेत्र में रहता है और उसका तबादला पश्चिम वाले ऑफिस या स्पष्ट कहें हिंजवडी वाले ऑफिस में हो जाता है तो उस पर क्या बीतती होगी यह उसके सिवा वो ही बता सकता है जो हिंजवडी में रहता है और उसका ऑफिस हडपसर में हो जाता है।
हिंजवडी रोड |
ऐसे में रोज रोज ऑफिस जाना रामगोपाल वर्मा की आग झेलने से कहीं ज्यादा दुष्कर है । रोज सड़ा हुआ, थकेला ट्रैफिक झेल के ऑफिस जाओ, लेट होने पर बॉस का सड़ा हुआ चेहरा देखो फिर वापसी में उससे भी ज्यादा सड़ा हुआ ट्रैफिक झेल कर, जान पर खेलकर घर पहुँचो तो शकल देखकर बीवी कहती है " जाओ भइया कल आना, अभी ये घर पे नहीं है " ।
ऐसे में साला आदमी को सपने भी अच्छे आये तो कैसे आये ?
यहाँ बात दुरी की नहीं है , रोजी रोटी के लिए एक साइड का ४०-५० किलोमीटर तो कोई भी तय कर ले किन्तु पुणे की सडको पर हडपसर से हिंजवडी या हिंजवडी से खराड़ी रोज रोज आना जाना मतलब अपने पिछले जनम के पापो की सजा भुगतने जैसा है। अब तो शायद नरक वालो ने भी अपनी सजा के मेनू में बदलाव करके दुष्ट आत्माओ को पुणे की सडको पर छोड़ दिया होगा की भुगतो अपने कर्मो को यहाँ , यही तुम्हारी वैतरणी है जो तुम्हे पार लगाएगी ।
हर रोज सुबह मगरपट्टा(एक और जगह का नाम, नाकि की दानव का ) से एक आईटी प्रोफेशनल सजधज के ऋतिक रोशन बनके अपनी बाइक पर हिंजवडी के लिए निकलता है और ऑफिस पहुँचते पहुँचते कब राखी सांवत बन जाता है पता ही नहीं चलता। और अगर ऑफिस की बस में आना जाना करे तो आदमी का आधा जीवन बस में ही गुजर जाये।
सिर्फ पुणे वालो का दर्द नहीं है यह, आप बैंगलोर में रोज़ाना कम से कम दो बार मारथल्ली फ्लाईओवर क्रॉस करने वालो से पूछिये की कैसा लगता है 1 घंटा घसीट घसीट के चलना ? "it's like a slow death" .
हमने एक्सपेरिमेंट करने के लिए 2 लोगो को मगरपट्टा से हिंजवडी बाइक पर भेजा, 2 लोगो को BTM Layout से व्हाईट फिल्ड भेजा और at the same time 2 लोगो को 4 रेपट धर के दिए, कसम से रेपट खाने वाले लोग ज्यादा खुश दिखे ।
हमारे इसी दर्द को देखते हुए इंसानियत के नाते ओला कैब्स और टैक्सी 4 श्योर ने वादा किया है की जल्द ही वो इन सारे बताये हुए रूट्स पर लो कॉस्ट एयर टैक्सी चलाएंगे। इसके लिए हिंजवडी और ITPL में हेलिपैड बनवाने के ऑर्डर्स दे दिए गए है ।
(अब दुआ करो की ये सपना सच हो और जल्दी हो , ताकि यह सफ़र थोड़ा सुहाना हो सके )
सभी चित्र गूगल महाराज के सौजन्य से