पिता
हमारी पहचान के जनक है वो।
हमारे अस्तित्व के घटक है वो।
स्वयं के कंठ को सुखा रखके,
हमारी हर तृष्णा को शांत किया
स्वयं भूख की ज्वाला में धधक कर ,
हमें भूख की परिभाषा से भी वंचित किया।
हमारी असीमित इच्छाओ की पूर्ति के लिए ,
स्वयं की हर इच्छा को रौंदा है जिन्होंने
ऐसे त्यागी उपासक है वो।
हमारा जीवन परिणाम के जिनकी कठिन साधना का
ऐसे योगी, साधक हमारे पिता है वो।
संसार के सारे पिताओ को प्रणाम !!
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