अँधेरी कोठरी में ढूँढता हूँ एक दीपक उजाले के लिए
जैसे भटका हुआ परिंदा ढूंढे कोई दरख़्त सुस्ताने के लिए
चेहरो की इस भीड़ में तलाशता हूँ एक चेहरा जिसे कह सकु मैं अपना
जैसे हर सुबह उठके याद करे कोई एक भुला हुआ सा सपना
असंख्य दर्पणों में खोजता हूँ खुद की एक तस्वीर धुँधली सी
जैसे हजारो बार किसी से मिलने पर भी उसकी हर मुलाक़ात लगे पहली सी
कहने को तो जी रहा हूँ मैं, पर अभी भी तलाश है ज़िन्दगी की
ऊपर वाला भी राह दिखाए तो कैसे, उसे भी तो खोज है सच्ची बंदगी की
कुल मिलाकर बस बात इतनी सी है की
ढूंढ रहा हूँ मैं अपनी आत्मा, जो खो गयी है कहीं मेरे ही भीतर
जैसे तेज़ बहती नदी थक हार कर तलाशती है अपना समंदर
यह जीवन एक यात्रा है अनन्त खोज की, जिसमे न जाने क्या ढूंढ रहा है हर कोई और इसी खोज में खो दे रहा है स्वयं को कहीं।
जैसे भटका हुआ परिंदा ढूंढे कोई दरख़्त सुस्ताने के लिए
चेहरो की इस भीड़ में तलाशता हूँ एक चेहरा जिसे कह सकु मैं अपना
जैसे हर सुबह उठके याद करे कोई एक भुला हुआ सा सपना
असंख्य दर्पणों में खोजता हूँ खुद की एक तस्वीर धुँधली सी
जैसे हजारो बार किसी से मिलने पर भी उसकी हर मुलाक़ात लगे पहली सी
कहने को तो जी रहा हूँ मैं, पर अभी भी तलाश है ज़िन्दगी की
ऊपर वाला भी राह दिखाए तो कैसे, उसे भी तो खोज है सच्ची बंदगी की
कुल मिलाकर बस बात इतनी सी है की
ढूंढ रहा हूँ मैं अपनी आत्मा, जो खो गयी है कहीं मेरे ही भीतर
जैसे तेज़ बहती नदी थक हार कर तलाशती है अपना समंदर
यह जीवन एक यात्रा है अनन्त खोज की, जिसमे न जाने क्या ढूंढ रहा है हर कोई और इसी खोज में खो दे रहा है स्वयं को कहीं।
1 comment:
Profound. Loved the opening verse.
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