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Wednesday 11 February 2015

जीन्स V/s फॉर्मल पैंट

उस इंसान(विशेषतः पुरुष प्रजाति) को अपनी कमर की साइज बढ़ने का अहसास जल्दी ही हो जाता है जो नित्य प्रतिदिन फॉर्मल्स कपडे पहन के काम पे जाता है। जीन्स वालो को इतना जल्दी समझ नहीं आता, उन्हें तो तब समझता है जब खड़े खड़े जूते की लेस बांधना पड़ जाये। 

फॉर्मल्स पहनने वाले जब फैलने लगते है तो सबसे ज्यादा बुरा उनके कपड़ो को लगता है। शर्ट तो फिर भी फंसा लेते है शरीर पर किन्तु पैंट सड़ा सा मूँह बना लेती है जब उसको कमर पे चढाने की कोशिश की जाती है। जैसे तैसे पेंट ऊपर खिसकती है तो उसकी बटन रूठ जाती है और लगने से साफ़ मना कर देती है। पेंट को जैसे तैसे फंसा भी लो तो बेल्ट हड़ताल पे बैठ जाता है, बेल्ट की नजर में हम चुलबुल पाण्डे होते है क्योंकि हर महीने उसमे एक नया छेद करते है।


 आजकल के रेडीमेड कपड़ो के ज़माने में पैंट्स ऐसे भी नहीं होते की टेलर को २० रुपये देके कमर बढ़वा लो। ले देके आपके पास २ ही विकल्प होते है, या तो नया खरीदो या फिर कमर को कम कर लो। पहला जेब पर भारी पड़ता है तो दूसरा जेब और शरीर दोनों पर। मैं दोनो ऑप्शंस को दरकिनार कर तीसरे विकल्प के तौर पे जीन्स अपना लेता हूँ। जीन्स का स्वाभाव बिलकुल कट्टरपंथी नहीं है साहब, बहुत ही फ्लेक्सिबल होती है। आप ३२ की लेके आये थे और अब कमर ३४ हो गयी तो भी एडजस्ट हो जाएगी। 

सोमवार की अलसाई सुबह में मेरे फॉर्मल पेंट ने मुझे धुत्कार दिया तो मैंने भी तैश में आकर जीन्स को अपने बदन से लगा लिया। सप्ताह के पहले ही दिन आप सुबह सुबह ऑफिस जीन्स पहन के जाओ वो तब तक ठीक है जब तक की कोई HR बाला या बाल गोपाल आपको रोक के टोक न दे। मेरे नसीब तो गधे की पूँछ के बाल से लिखे हुए है, घुसते से ही सुनने को मिला "एक्सक्यूज़ मी, आप ड्रेस कोड का वोइलेशन कर रहे है" 

 मैंने मन ही मन सोचा की हद्द है यार वहां सीमा पर पड़ौसी देश सीज़फायर का वोइलेशन किये जा रहा है, चुनावो में नेता कोड ऑफ़ कंडक्ट का वोइलेशन कर रहे है, सडको पर हजारो लोग ट्रैफिक रूल्स का वोइलेशन कर रहे है उनको कोई कुछ नहीं कह रहा,यहाँ इस नन्हे से एम्प्लोयी का ड्रेस कोड वोइलेशन तुम्हारी चिंता का विषय बन गया। 

खैर मैंने उस HR सुंदरी से कहा की मैडम, दर-असल जिस हिसाब से हमारी कमर बढ़ रही है न उस हिसाब से आप सैलेरी नहीं बढ़ा रहे हो, अब हर महीने नया फॉर्मल पेंट खरीद के तो नहीं पहन सकते न। मेरी बात सुनकर उसकी आँखों में पानी भर आया और उसने अपनी भीगी पलकें झुकाके मुझे अपनी सीट पे जाने को कहा। 

कुछ ही देर बाद में देखता हूँ की एक ई-मेल आयी हुयी है की इस बार सबको सैलेरी हाईक उनकी कमर की साइज़ के हिसाब से मिलेगा। जिसकी ३६ इंच उसको ३६ टक्का और जिसकी ४० इंच उसको ४० टक्का। मेरे पीछे वाले क्यूबिकल की कुछ ज़ीरो साइज़ लड़कियों को छोड़ के पूरा ऑफिस जश्न के माहौल में डूब चूका था। मैं भी चिल्ला रहा था धन्य है यह कंपनी मैं अब यह कंपनी नहीं छोड़ूंगा, नहीं छोड़ूंगा , कभी नहीं छोड़ूंगा 

 ……………इतने में  बीवी ने एक जग पानी मेरे मुँह पे डाला और चिल्लायी , पहले यह रज़ाई छोडो और उठो, मंडे है आज ऑफिस नहीं जाना क्या ?



इसे कहते है अच्छी खासी "मोटी" सैलरी के "सपने" पे पानी फेरना। 



----------------------चित्र गूगल महाराज की कृपा से सधन्यवाद प्राप्त 

Friday 27 June 2014

आईटी-सर्विसमैन के जीवन की सरगम


आप लोगो ने संगीत के ७ स्वरों के बारे में तो सुना ही है,  हाँ हाँ वही सा-रे -गा -मा  वाले साथ ही भाषा के स्वरों के बारे में भी आप जानते ही है।

जैसे अंग्रेजी भाषा में ५ स्वर (vowels) होते है,  संगीत में सात सुर होते है वैसे ही बेचारे आईटी-सर्विसमैन के जीवन की सरगम में  भी ५ स्वर होते है। 




अब आप सोचेंगे की क्या अनाप शनाप की ऊल जुलूल बातें करता रहता है, तो आगे पढ़िए और खुद ही निर्णय लीजिये की में क्या कह रहा हूँ।  अगर आप एक सच्चे आईटी-सर्विसमैन होंगे तो जान जायेंगे की मेरी बातों में कितनी सच्चाई है और अगर आप नॉन-आईटी के है तो आपको भी तो पता पड़े की आईटी वालो की लाइफ का कांटा किन ५ चीजो के चारो और घूमता है।

मेने कहा था की अंग्रेजी भाषा के स्वरों(a .e.i.o.u) की तरह ही आईटी-सर्विसमैन के जीवन के भी ५ स्वर है तो आईये शुरू करते है और जानते है इन स्वरों के बारे में।

१.' अ ' या A =Affair 

प्रथम स्वर है A माने Affair, मतलब कोई चक्कर या रास-लीला। जी हाँ जब भी एक फ्रेशर कोई आईटी कंपनी में दाखिल होता है तो या तो वो कॉलेज जमाने से ही कमिटेड स्टेटस में होता या अकेला होता है। कंपनी में दाखिल होते ही पहला स्वर अपने पुरे जोर शोर से इस नए नए आईटी-सर्विसमैन के कानो में गूंजने लगता है।  वो देखता है की कैसे उसकी आँखों के सामने ४-५ जोड़े ऐसे ही  बन गए और वो बस देखता रहा।  उसकी अंतरात्मा उसको धिक्कारने लगती है की कॉलेज के जमाने में तो कुछ बात बनी  नहीं अब तो कुछ कर।  और बेचारा शुरू हो जाता है अपनी अंतरात्मा की ललकार को चुप कराने की कोशिश में।

खैर अब हर किसी का अफेयर हो यह जरूरी भी नहीं कुछ न कुछ कारण या बहाना तो मिल ही जाता है "सिंगल" रहने का।  किन्तु यह प्रथम स्वर गूंजता ही रहता है उम्र भर।

२. 'इ' या "e " :Eatery Points


दूसरा स्वर जो गूंजता है वो हर किसी आईटी सर्विसमैन के कानो को नहीं फाड़ता यह उन लोगो के लिए है जो दूसरे शहरों से आये है।  E माने Eatery Points माने खाने पिने के अड्डे। वैसे एक इंजीनियर के लिए भोजन का युद्ध कोई बड़ी बात नहीं होती, वो हॉस्टल में रहके अच्छी तरह से जान जाता है की "भोजन समझौता" किसे कहते है।  परन्तु जब आप एक नए शहर में नौकरी करने जाते हो, अच्छा खासा पैसा कैफेटेरिया में देते हो और बदले में आपके हॉस्टल के खाने से भी बद्तर खाना मिले तो मन में फ़्रस्ट्रेशन वाली फीलिंग्स आती है तब ये दूसरा स्वर आपके कानो को चीरता हुआ गूंजता है की ढूंढो  कुछ अच्छे Eatery Points.


३. 'ई ' या I : Increment

अब यह मत कहना की यह तो सबसे ज्यादा दुखने वाला स्वर है, वैसे इसके बारे में ज्यादा कुछ लिखने से फायदा नहीं। तीसरा स्वर है I बोले तो इंक्रीमेंट याने बढ़ोत्तरी , जी हाँ सालाना तनख्वा में।  हम हमेशा सोचते है की यह स्वर कभी तो ऊँचा लगेगा, थोड़ा हाई पीच, परन्तु जैसा हम सोचते है अक्सर वैसा होता नहीं है हमारे जीवन में।  यह वाला स्वर सबसे नीचे की और बैठता है और बड़ी धीरे से लगता है। कभी कभी तो इस स्वर से कोई आवाज़ ही नहीं निकलती है।

४. 'ओ '  या O: Onsite 

अब आते है आईटी संगीत के चौथे स्वर पर तो दोस्तों यह स्वर हर आईटी सर्विसमैन लगाने की कोशिश करता है, किन्तु लगता सिर्फ भाग्यशाली लोगो का ही है बाकी तो बस मूह से हवा निकालते रह जाते है।

५. " ऊ " या U : U Turn:

अंतिम और सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण और सबसे ज्यादा दुखदायी और सबसे ज्यादा कर्कश स्वर है U-टर्न।
जी हाँ यहाँ बात हो रही है आपके मैनेजर के U-टर्न की , साल के शुरू में आपसे काम लेने के लिए आपको सुन्दर , हसीं सपने दिखाए जाते है फिर चाहे वो सालाना हाइक  हो, ओनसाईट  हो, प्रमोशन हो या प्रोजेक्ट से रिलीज़  हो।  आपको इनमे से कई तरह के प्रलोभन दिए जाते है, वो देता जाता है और आप लेते जाते हो।  असल में होता इसके विपरीत है।  साल के अंत तक जब आप अपने सपनो के वाउचर  को रिडीम करवाने जाते हो तो मिलता है एक तड़कता  भडकता  हुआ सा U Turn. आप फिर से जुट जाते हो काम में इसी आस में की कभी तो यह सिलसिला खत्म होगा।


तो, देखा आपने की एक आईटी सर्विसमैन के जीवन के ५ स्वर इतने आसान नहीं है जितना की दिखाई देते है, संगीत के ७ स्वरों को ठीक से लगाने के लिए जितना परिश्रम करना पड़ता है उससे ज्यादा परिश्रम आईटी के इन ५ स्वरों को ठीक से लगाने में करना पड़ता है।


..................................................चित्र गूगल महाराज के सौजन्य से 

Thursday 1 May 2014

आईटी सर्विसमैन की भोजन गाथा


राहुल अपने हाथो में थाली लिए खड़ा है, अपनी दूर कि और पास कि नजरो से पुरे हॉल का निरिक्षण कर रहा है।  उधर से काव्या भी आ गयी वो भी अपनी बड़ी बड़ी गोल गोल आँखों को घुमा घुमा के इधर उधर देख रही है। इतनी देर में ६-७ युवा दोस्तों का एक और झुण्ड भी आ पंहुचा है , और सभी अपने अपने हाथो में प्लेट्स लिए खड़े हुए है।

अब अगर आप सोच रहे है कि यह दृश्य किसी शादी या बर्थडे पार्टी या किसी बुफे रेस्टॉरेंट का होगा आप थोडा सा गलत सोच रहे है। दर-असल यह दृश्य हमारे ऑफिस के कैफेटेरिया का है।

एक आईटी सर्विसमैन के जीवन मे भोजन का संघर्ष किसी युद्ध से कम नहीं होता है।  वैसे बहुत से लोग तो ४ साल हॉस्टल में रहके इस भोजन युद्द मे महारत प्राप्त किये होते है।  अब कैफेटेरिया का खाना हाथ मे लेकर बैठने के लिये एक टेबल ढूंढ़ना नयी मुसीबत।

दोपहर १ से लेकर ३ बजे तक यह दृश्य किसी भी आईटी कंपनी के कैफेटेरिया में देखा जा सकता है। लोग  हाथो में अपनी अपनी प्लेट्स और टिफ़िन के डिब्बे लिए एक टेबल से दूसरी टेबल ताका -झांकी  करते हुए अमूमन दिखाई पड़ेंगे। सबसे पहले तो देखते है कि कहा टेबल खाली है, फिर उस तक जल्दी से पहुचने कि कोशिश करेंगे, जैसे ही टेबल के करीब पहुचे तो पता पड़ा कि दूसरी और से किसी और ने आके अपना डिब्बा टेबल पर रखते हुए आपकी और देख के कंधे उचका के कह दिया सॉरी।
फिर आप दूसरी टेबल कि आस में इधर उधर ताकना शुरू करते है, और पाते है कि कोई टेबल खाली नहीं है, मतलब अब समय है पहले से बैठे हुए लोगो कि थालियों में नजर दौड़ाने का, कि किसकी थाली पहले खाली होने को है।  आप सबसे कम खाना नजर आने वाली थाली कि टेबल के पास जाके खड़े हो जाते है|
बेशर्मी कि हदों को लांघते हुये आप सतत रूप से टेबल पर बैठे व्यक्तियोँ के हर एक निवाले पर नजर गड़ा  कर रखते है और जैसे ही अन्तिम व्यक्ति अपणा अन्तिम निवाला मूह मे रखता है आप  टेबल से चिपक के खड़े हो जाते हो और अपना टिफ़िन या प्लेट ऐसे रखते है जैसे हिमालय कि चोटी पर झन्डा गाड़ दीया हो।



 भोजन मनुष्य के जीवन का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है, आखिरकार हम  सारी मेहनत मशक्कत  पेट भर भोजन के लिए ही तो करते है। किन्तु कई बार भोजन को प्लेट तक पंहुचने मे जितना समय नही लगता उससे ज्यादा समय इसे  हमारे पेट तक पहुचने मे लग जाता है।


Tuesday 10 December 2013

Bollywood vs IT World

आईटी सर्विसेज में काम करते हुए आप इस क्षेत्र  के बारे में लिखे/बोले  बिना रह ही नहीं सकते, जैसे  मैं पहले भी आईटी सर्विसमैन और इसके जीवन में आने वाले कुछ मकाम के बारे में लिख चूका हूँ, अगर आपने नहीं पढ़ा हो तो अभी पढ़ सकते है यहाँ क्लिक करके !

वैसे आप फ़िल्म / टीवी तो देखते ही होंगे, और सोचते होंगे कि यह टीवी कलाकार और फ़िल्म स्टार कि लाइफ भी कितनी सही है, लेकिन आपको एक बात  बताउ ?? इनमे और हम IT वालो के काम में कुछ ज्यादा अंतर नहीं होता बस यह लोग कुछ ज्यादा टैक्स भरते है (करोड़ो में ) और हम लोग थोडा कम (हजारो में )। 

आप सोच रहे होंगे फालतू कि बकवास करता है, काम और कमाई दोनों ही अलग है इनकी हमसे, हैना ऐसा ही सोच रहे होंगे ना ? चलिए  कोई बात नहीं, वो क्या है कि हमे कोई बात जब एक्सप्लेन करके न बतायी जाये तो वो बकवास ही लगती है, हालांकि इसकी कोई ग्यारंटी नहीं है कि एक्सप्लेन करने के बाद भी बकवास न लगे, मसलन कोई क्लाइंट छोटा सा इ-मेल लिखे किसी issue के लिए तो हम उसको तुरंत reply करते है कि "kindly elaborate, and  give more details about  the issue " और जब वो डिटेल में मेल लिखता है तो भी हम कहते है कि "क्या बकवास है ?"

चलिए फिर आते है टीवी/फ़िल्म कलाकार और आईटी सर्विसमैन कि जिंदगी और उनके काम कि समानता पर , आपको एक्सप्लेन करता हूँ कि क्या समानता है दोनों के कामो में। 
आईटी में अगर आप हमेशा किसी न किसी इम्प्लीमेंटेशन प्रोजेक्ट्स पर ही काम करते है तो आप अपने आप को किसी  फ़िल्म कलाकार कि तरह समझ सकते है, क्योंकि जैसे फिल्मो कि शुटिंग कुछ ही महीनो में कम्पलीट हो जाती है वैसे ही  इम्प्लीमेंटेशन प्रोजेक्ट्स में होता है , कुछ ही महीनो में कोडिंग कम्पलीट। फिर फिल्मो में एडिटिंग, डबिंग का दौर चलता है वैसे ही प्रोजेक्ट में UT, UAT और बग फिक्सिंग का दौर चलता है, फिर एक फ़िल्म रिलीज़ हो जाती है और इधर प्रोजेक्ट कि भी  रिलीज़ हो जाती है।  फिर हीरो किसी और फ़िल्म कि शूटिंग में व्यस्त हो जाता है और आप किसी और प्रोजेक्ट या Module कि कोडिंग में व्यस्त हो जाते है, कभी कभी फिल्मो कि पार्टीज कि तरह प्रोजेक्ट्स कि भी पार्टीज होती है, तो भाई हुआ न सेम टू सेम, बन गए न आप हीरो। 

अब आप कहेंगे कि आईटी सर्विसेज में हर कोई इम्प्लीमेंटेशन प्रोजेक्ट्स में काम नहीं करता यहाँ सपोर्ट और मैन्टेनन्स के भी प्रोजेक्ट्स होते है जो कुछ महीनो के नहीं अपितु कई वर्षो तक के होते है, तो महाशय अगर आप किसी ऐसे प्रोजेक्ट्स पर भी काम कर रहे है जो सालो साल से चले आ रहे है, जहाँ सालो साल से एक जैसा काम काज, इक्का दुक्का लोग बदलते है परन्तु बाकी टीम वैसी कि वैसी है, तो आप अपने आप को कम से कम किसी टीवी आर्टिस्ट कि तरह तो समझ ही सकते है।  टीवी सिरिअल्स बिलकुल आईटी के सपोर्ट प्रोजेक्ट कि तरह होते है बहुत सारे, बहुत दिनों तक चलने वाले और सबकी एक जैसी कहानी।  टीवी एक्टर हमेशा चाहता है कि वो कभी फिल्मो में भी काम करे वैसे ही सपोर्ट के प्रोजेक्ट में काम करने वाला इंजीनियर हमेशा सोचता है कि कभी वो भी इम्प्लीमेंटेशन प्रोजेक्ट में काम करे।  जैसे टीवी सिरिअल्स में हर त्यौहार को बड़ी धूम धाम से भारी भरकम costumes के साथ मनाया जाता है,  ठीक वैसे ही मैन्टेनन्स प्रोजेक्ट्स में हर त्यौहार पर ट्रेडिशनल डे मनाया जाता है। आईटी सपोर्ट प्रोजेक्ट्स में बॉस और एम्प्लोयी का झगड़ा वैसा ही होता है जैसा सिरिअल्स में सास बहु का, सिरिअल्स में २ औरतें मिलकर जैसी गॉसिप्स करती दिखाई देती है बिलकुल वैसी ही गॉसिप्स एक ही प्रोजेक्ट में काम करने वाली २ लड़कियां करती हुयी मिलेगी। 

और जैसे इम्प्लीमेंटेशन में काम करने वाला इंजीनियर कभी न कभी तो सपोर्ट के प्रोजेक्ट्स में आता ही है भले ही मेनेजर बनकर वैसे ही बड़े से बड़ा फ़िल्म कलाकार कभी न कभी टीवी पर आता ही है भले ही होस्ट बनकर।  और इसका विपरीत भी होता है बहुत से काबिल और बड़े एक्टर टीवी कि दुनिया से आये है वैसे ही बहुत सारे  इंजीनियर सपोर्ट प्रोजेक्ट्स से निकल कर बड़े बड़े इम्प्लीमेंटेशन प्रोजेक्ट्स में आये है.
और जो इंजीनियर अपने इम्प्लीमेंटेशन प्रोजेक्ट को इस तरह से बर्बाद या बिगाड़ देते है की उन्हे दूसरा मौका नही मिलता और कोई और उन्हे किसी इंप्लिमेंटेशन प्रॉजेक्ट मे लेने को तैयार नही होता तो उनके लिए भी कुछ सपोर्ट प्रॉजेक्ट रहते ही है कंपनी में बिल्कुल वैसे ही जैसे टीवी पर बिगबोस !!!

तो देखा आपने, आईटी सर्विसेज और फ़िल्म/टीवी कि दुनिया एक जैसी ही है , हमे भी अपने आप को किसी  सलिब्रिटी से कम नहीं समझना चाहिए।

तो बोलो सब मिलके_ _ _ लाइट्स - कैमरा - एक्शन - कट -कॉपी - पेस्ट 

आपका क्या विचार है , या अब भी कहेंगे कि "क्या बकवास कर रहा है ?"

-------------------------------------------------------------फ़ोटो  इंटरनेट के सौजन्य से 

Monday 11 November 2013

Wedding Invitation of an IT Employee

In one of my last posts I have shared the "Last Working day e-mail" of an IT employee, which you have appreciated, and it was real e-mail which was actually sent to top managers of organization.

Now since wedding season has to be started in a week or so, I would like to share with you a real wedding e-mail of an IT employee ( i.e mine). 

It's totally an original work and originally sent to my friends and colleagues,  you are free to use it although it is copyrighted  :) :)



--------------------Wedding Invitation E-mail of an IT Employee-------------------

Hi,


You may find this mail a bit long, like my courtship period...... 
but I insist, please read it completely J


After working in IT industry for almost 42 months I found that I have developed few qualities in myself…
such as....

1. Time management

2. Team work

3.How to say "Yes" to everything

4.Boss is always right

5.Stay quiet and concentrate on work

6.Be a good listener ( Listening only)

7.Accept all the negative things whatever come to your way even if you have given your 100%

8.            Commitment

9.            How to articulate a lie

and
10. Strong mindset of living in a stressed environment

If you notice carefully then you will find that all above qualities are essential to be a good husband,

(scroll up and read again if you do not believe)

so I think now I am prepared to take a plunge for this responsibility,

Those who are already inside the ring may warn me saying that married life has many pains, but trust me, celibacy has no pleasures.


Married life is a rollercoaster ride, and you cannot experience it’s thrill until you ride, I have seen those who are already on this rollercoaster, some are yelling, some are crying, some are vomiting but some are surely enjoying.

I have got a ticket for this roller coaster ride and I am ready to take a seat along with  my partner in this ride.

Those who are already there please bless & welcome us onboard and those who are standing outside and clapping, I wish you will get a ticket soon. J


Image Source: Internet 

Saturday 26 January 2013

The last working day mail....

  This post can be considered as sequel of one of my previous post IT Serviceman....
this is nothing but a simple last working day mail of an IT serviceman, we have a habit to write a sweet and short good bye mail which includes many thanks and appreciations for the managers( I don't understand why people don't put their real feelings in their last day mail?)....

this is real mail and already delivered to all my colleagues including Managers of my previous organization, I thought to share it with you all, so here we go.....


-------------------------------------------------Last Working Day---------------------

Object Name: Pritesh Dubey
Object ID: L0306620, 10496722
Object Image:
Date of Creation in Project: 18th March 2009
Date of Creation in Company: 28th August 2008
Date of Archiving: 26th November 2012

Dear all,

In my 4+ years of IT career, I have observed that people are very excited about writing the Last working day mail, moreover it's a tradition to send last day mail, many of you might have created personal folders in your outlook with this name "Last day mails", I think every Pvt sector employee gets a chance to write such mails.

for me it's not that easy to write this mail, but as it's kind of tradition so why should I miss the chance to put my feelings on digital paper.
so, today is my last working day not only in Project but in organization as well, though I wanted to have a last day only for Project but it could not materialized due to some gravitational managerial forces.

When you leave your First Company, who gave your First salary, First ever experience of Corporate life,  then how you feel, there are no words in any dictionary which are capable enough  to express that feeling.

in my last 4+ years in this company I have learned a lot behavioral science, technically and professionally I feel myself a little more mature now.

Here I learned the biggest lesson of Geeta as well from Chapter 2 verse 47.
karmany evadhikarass te maphaleshu kadacana
ma karma-phala-hetur bhuha ma te sango stv akarmani
Meaning:
You have right to perform your prescribed duty, but you are not entitled to worry for the fruits of action. Never consider yourself the cause of the results of your activities, and never be attached to not doing your duty.

in my last 3.5+ years in this project, I enjoyed a lot, worked a little, converted colleagues into friends, seen this project growing from a toddler to a giant, seen all the kind of faces which are available in below smiley box.

During my tenure in this company and in this project I have captured lots of memories few to learn lessons, few to cherish them, my sincere thanks to all those who have contributed in my box of memory.

It's very hard to leave your first things in life but I am thankful to a fist of people who helped me to take this decision, I loved this company and at last I would only say a few lines from a poem of a very renowned Hindi poet ..........
Bahut bikhra bahut toota thapede seh nahi paaya
Hawaaon ke ishaaron par magar main beh nahi paaya
Adhoora an suna hi reh gaya youn pyaar ka kissa
Kabhi tum sun nahi paaye, kabhi main keh nahin paaya !!!

however as Chulbul Pandey would say “there ij alwayjj a furst time and there ij alwayjj a next time.”! so see you next time, till then be happy, keep smiling, and have a great moderation year ahead J

Good bye !!!!


PS: For those who want to access this object even after archived, please use the below links:

FB: https://www.facebook.com/kut2kut
 
  so this was the "last working day mail" from my side to all my colleagues in previous organization, and I tried to be very honest about my feelings for my organization and the people with whom I worked.





देश भक्ति

  देश भक्ति , यह वो हार्मोन है जो हम भारतियों की रगो में आम तौर पर स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस  या भारत पाकिस्तान के मैच वाले दिन ख...